बस्तर में घोटुल की प्रथा

बस्तर के रीतिरिवाजों के बारे में बहुत कुछ लिखा व कहा गया है। यहाँ की परम्पराएं जुदा हैं और इसीलिए शोध कर्ताओं को बस्तर की संस्कृति काफी दिलचस्प लगती है। मिसाल के तौर पर प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले त्यौहार दशहरे को ही लें ये भारत के अन्य हिस्सों में मनाए जाने वाली दशहरें से बिलकुल अलग है। हांलाकि इस त्यौहार को लेकर मैने कुछ जानकारियां लिखीं है। आप नीचे लाल निशान में बने लिंक पर क्लिक करकें पढ़ सकते हैं।
फिलहाल मै आपको बस्तर की एक और रिवाज या परंपरा जिसे घोटुल कहते हैं -के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में मैने बस्तर के प्रसिद्ध साहित्यकार हरिहर वैष्णव के लेख से जानकारी हासिल की है। इसके अलावा कुछ दूसरे भी स्रोत हैं जिनसे मिली जानकारी के मुताबिक ये ब्लाॅग आप तक पहुँचा रहा हूँ। ब्रिटिश मूल के प्रसिद्ध मानव विज्ञानी वेरिअर एल्विन (1902 -1964) से लेकर आजतक जितने भी लोगों ने घोटूल पर अपने विचार रखें हैं उन्हें अपर्याप्त जानकारी कही जा सकती है।
इस पवित्र संस्था के बारे में वेरियर एल्विन और भाषाविद् ग्रियर्सन (1851-1941) के लेख के आधार पर लोगों ने इस संस्था पर काफी कीचड़ उछाला है । जाहिर है उनकी दी गई जानकारियां बस्तर की सही तस्वीर नहीं दिखाती है।

तो क्या है घोटुल?
हरिहर वैष्णव ने अपने लेख ‘‘ बस्तर की गोंड जनजाति का विश्वविद्यालय’’ जो निचोड़ पत्रिका (अंक जनवरी 2021 )पर प्रकाशित हैं । इसमें घोटुल के बारे में कहा कि
यह समाज शिक्षा का मंदिर है यह लिंगों देवता की अराधना का पवित्र स्थल है

युवा वर्ग के लिए गृहस्थ और सामाजिक जीवन की प्राथमिक पाठाशाला है
यह एक एसी पाठाशाला है जो विश्वविद्यालय तक की भूमिका निभाता है।

यह गोंड जनजाति की एक शाखा जिसे मुरिया कहते हैं इनके बीच यह प्रचीन प्रथा प्रचलित है।
वर्तमान शिक्षा पद्धति में जो आंगनबाड़ी, स्कूल,काॅलेज की भूमिका है वहीं भूमिका घोटूल निभाता रहा है। इसे ऊपरी तौर पर समझते हैं तो यह समझ में आता है कि
गाँव में आबादी से अलग एक संरचना की स्थापना की जाती है जिसमें केवल अविवाहित स्त्री-पुरूष ही आ सकते है। (यानि काॅलेज की तरह ) उन्हें कुछ सख्त नियमों का पालन करना होता है।
अविवाहित महिला को मोटियारिन और पुरूष को चेलिक कहा जाता है।
बहुत जरूरी न हो तो विवाहित यहाँ नहीं आ सकते।

क्या होता है घोटुल में?
मोटे तौर पर घोटुल को मनोरंजन का केन्द्र कहा जाता है। जिसमें नृत्य, गीत-गायन, कथावाचन और विभिन्ने खेलों के जरिए पाठ पढ़ाया जाता है। मगर इस केन्द्र में मनोरंजन का स्थान ज्यादा नहीं है । यह संस्था सामाजिक नियम से बंधे हुए हैं।इसमें निम्न बातों को ज्यादा अहमियत दी जाती है

  • संगठन की भावना का विकास
  • सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का पाठ
  • हस्त कला का ज्ञान
  • एक जुट होकर विपत्ति का सामाना करने की सीख
  • भावी वर-वधु को विवाह पूर्व सामाजिक ज्ञान
  • नृत्य गान का प्रसार
  • जीवन में अनुशासन की सीख और उसका महत्व

मोटे तौर पर समझें तो इसमें मनोरंजन का कम सीखने साखाने की बातें ज्यादा होती है। आज के किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम से इसकी तुलना करते हैं तो एक बात निकल कर आती है कि उसमें भी गीतसंगीत और दूसरी विधाओं को शामिल किया जाता है। आधुनिक समय में किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में केवल ज्ञान ही नहीं होता है उसमें मनोरंजन का भी स्थान होता है उद्देश्य होता है प्रशिक्षण के दौरान होने वाली बोरियत को दूर करना। संभवतः घोटुल की जाने वाली नृत्य और संगीत इसी उद्देश्य के लिए था।
घोटुल के नियम क्या होते हैं?
इतनी संगठित केन्द्र जाहिर है कुछ कायदे होते हैं जिन्हें हर सदस्य को मनाना ही है नहीं मानने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है।
नियमों पर गौर करते हैं तो ये नियम होते हैं

  • गांव के किसी भी काम में घोटुल की सहमति आवश्यक है।
  • घोटुल के पुरूष सदस्य को (चेलिक को )लकड़ी लाना आवश्यक है
  • संस्था के पदाधिकारियों द्वारा दिए गए काम को नियत समय पर करना आवश्यक है।
  • गाँव में शांति बनाए रखने के लिए सहयोग होना आवश्यक है।
  • महिला सदस्य (मोटियारिन)को घोटुल के बाहर और अंदर साफ सफाई की व्यवस्था बनाए रखना।
  • प्रत्येक सदस्य अपने वरिष्ठों का सम्मान करे और छोटें के प्रति सहानुभूति रखे।
  • प्रत्येक चेलिक मोटियारिन के लिए पनका यानि कंघा बनाकर देगा।

उक्त नियमों को पढ़कर तो यही समझ आता है कि सामाजिक सरोकार और दायित्वों का पाठ पढ़ाया जाता है। ये उस समय की बात है जब आधुनिक कालेज और स्कूल का कोइ चलन नहीं होता था । आदिवासी अपने बनाए नियमों के अधीन बच्चों में अनुशासन और कर्तव्य का पाठ पढ़ाया करते थे । आधुनिक शिक्षा प्रणाली भी ऐसी अनुशासन स्कूल और कालेज स्थापित करने की वकालत करती है।
क्या सजा है अगर नियमों का उल्लंघन हो जाए तो
कोई भी संगठन या संस्था नियमों के दायरे में काम करती है और नियमों का पालन न हो सदस्यों की जिम्मेदारी होती है कि वे नियमों के आधार पर ही काम करें । तो क्या नियम टूटने पर घोटुल में इस प्रकार की सजा सदस्यों को भुगतनी पड़ती है।
इसे छोटी और बड़ी सजा के विभाजित किया जा सकता है। पहले बात करते हैं छोटी सजा के बारे में
छोटी सजा
घोटुल में एक नियम है लकड़ी लेकर आना जो पुरूषों के जिम्मे होता है । यह अगर पुरूष यानि चेलिक न कर पाएं तो उन्हें छोटी सजा दी जाती है।
जिसमें अर्थ दण्ड होता है इसके तहत कुछ पैसे जो पांच से दस रूपए होते हैं देना होता है । अगर वह नहीं दे पाया तो उसे दूसरे प्रकार के दण्ड यानि शारीरिक दण्ड से गुजरना पड़ता है
जो इस प्रकार होता है । दण्ड पाने वाले को उकड़ु बिठाकर उसके कुहनियों और घुटनों के बीच रूल के आकार की लकड़ी डाल दी जाती है। इसके बाद कपड़े को मोड़ कर बनाई गई बेंत से उसपर प्रहार किया जाता है।
मोटियारिनों यानि महिलाओं के लिए अगल तरह का दण्ड होता है । उसे दण्ड स्वरूप अकेले ही साफ सफाई का काम करना होता है जो प्रायः समूह में किया जाता था।
छोटे दंण्ड की श्रेणी में प्रतिबंधात्मक दण्ड होता है । जाहिर है इसमें सदस्य को घोटुल में प्रवेश के लिए कुछ दिनों तक प्रतिबंधित कर दिया जाता है। उसे घोटुल में प्रवेश के अधिकार छीन लिए जाते हैं।
बड़ी सजा
बड़ी सजा के अंतर्गत सदस्य का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है। और एसे सदस्यों के परिवार को घोटुल सदस्य कोई सहयोग नहीं करते । यह बड़ी सजा का प्रावधान बड़ी चूक या अनुशासन हीनता पर दिया जाता है ।
घोटुल सदस्यों का विवाह
सबसे अहम बात जिसके लिए घोटुल पर काफी छींटाकसी कुछ कतिपय लेखक और शोधकर्ता करते है वे है यह सदस्यों के बीच अनैतिक संबध को यह बढ़ावा देता है मगर सच्चाई तो यह है कि घोटुल में या घोटुल के बाहर अनैतिक संबध होने पर यह अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और इस अपराध के लिए उन्हें घोटुल से निकाल दिया जाता है । क्योंकि लिंगो पेन की पवित्र संस्था में अनैतिक संबधों की कोई जगह नहीं है।
अनैतिक संबंध अगर बन भी जाते हैं समाज की बैठक पर फैसला कर दोनों का विवाह कर दिया जाता है। मगर विवाह के लिए जरूरी है कि युवक युवती विवाह बंधन के योग्य होना चाहिए।
घोटुल के नियमों के विरूद्ध दिए गए दण्ड की कोई सुनवाई नहीं होती । घोटुल का फैसला अंतिम और सर्वमान्य होता है।

घोटुल के पदाधिकारी
घोटुल के पदाधिकारी भी होते है जो अपने अपने पदों पर रहकर अपना कर्तव्य निभाते हैं । यहाँ सारा काम प्रजातांत्रित तरीके से होता है। पदाधिकारियों से कर्तव्य निर्वहन में हुई चूक से उन्हें भी दण्ड से गुजरना पड़ता है। ये अधिकारी अलग-अलग विभागों के लिए बनाए जाते हैं। इनके नाम इस प्रकार होते है- कोटवार, तसिलदार (तहसीलदार), कनिसबिल (कांस्टेबल) टुलोसा, बेलेसा,अतकरी, बुदकरी ।इन सबके मुखिया को दीवान कहा जाता है।
इस घोटुल के बारे में संक्षेप में निम्न बातें समझ में आती है यह शैक्षणिक संस्था है जो समाज की रीति-रीवाज और नियमों की शिक्षा देती है । इसमें मनोरंजन का स्थान गौण है।
यह संस्था गोड़ जनजाति की पवित्र देवता लिंगो पेन को समर्पित है। अतः अनैतिकता को यहाँ कोई स्थान नहीं है। आधुनिक शिक्षा में कालेज में भी अविवाहित युवक युवती आते है । शिक्षा अर्जित करते हैं। घोटुल में गोड़ समुदाय का महाविद्यालय है ।यहाँ जीवन का पाठ पढ़ाया जाता है । आधुनिक शिक्षा व्यवसायिक शिक्षा की वकालत आज कर रही है । गोड़ समुदाय सदियों से ये करता आया है। लिंगों देवता के बारे में अगले अंक में । यहाँ दी गई जानकारियों के बारे में टिप्पणी की प्रतिक्षा में

Leave a Comment