Ajit jogi. छत्तीसगढ़ राज्य के 1 (प्रथम) मुख्यमंत्री

Ajit jogi को एक कुशल प्रशासक जागरूक सांसद और छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाता है।

Ajit jogi उन गिने-चुने लोगों में से एक थे, जिन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के नए आयाम स्थापित किए ।

एक प्रशासक के तौर पर उन्होंने प्रशासन में सुधार के कई प्रयास किए जिनका लाभ जनता तक सीधे पहुंच सके।

सांसद के रूप में उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दों से सरकार को अवगत कराया और जब मंत्री बने तो उन अनुभवों के आधार पर आदिवासी और दलित कल्याण के विशेष योजनाएं बनाई जिससे इस वर्ग की उन्नति सुनिश्चित हो जाए ।

जीवन परिचय :–

29 अप्रैल 1946 को ग्राम जोगी डूंगरी जिला पेंड्रा मरवाही में एक आदिवासी परिवार में इनका जन्म हुआ था।

पिता का नाम श्री काशी प्रसाद जोगी और माता का नाम श्रीमती कांतामणि जोगी था यह दोनों पेंड्रा रोड में शासकीय विद्यालय के शिक्षक थे।

प्रारंभिक शिक्षा पेंड्रा रोड के शासकीय विद्यालय में ग्रहण करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा मौलाना आजाद तकनीकी महाविद्यालय भोपाल से इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि वर्ष 1967 में संपन्न की और स्वर्ण पदक भी हासिल किया।

इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त करने के बाद इंजीनियरिंग महाविद्यालय रायपुर में व्याख्याता के रूप में अपने कैरियर का आरंभ किया और वहीं से इनका झुकाव सिविल सेवाओं की ओर हुआ।

सिविल सेवा की प्रतियोगिता परीक्षा में 1967- 68 में इनका चयन भारतीय पुलिस सेवा के लिए और फिर वर्ष 1969-70 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया, यहीं से प्रशासक के रूप में वर्ष 1974 से 1986 तक 12 वर्षों के दौरान पूर्व मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में जिलाधीश के रूप में अपनी सेवाएं दी।

Ajit jogi का राजनीति मे प्रवेश :–

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता Arjun singh से उनकी पहचान उस समय रंग लाई जब Arjun singh ने उनका परिचय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से कराया।

कांग्रेस को इस क्षेत्र से राज्यसभा के लिए एक आदिवासी और दलित सांसद की आवश्यकता थी राजीव गांधी के कहने पर ajit jogi प्रशासक की भूमिका से राजनेता की भूमिका में आ गए और प्रशासनिक सेवाओं से त्यागपत्र देकर कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली।

वर्ष 1986 में प्रथम बार कांग्रेस से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए और फिर 6 वर्षों का कार्यकाल पूर्ण करने के बाद वर्ष 1992 में फिर से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए।

राज्यसभा के सदस्य के तौर पर उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी इस दौरान उन्होंने कांग्रेस को मजबूत करने और लोगों के हित में कई कार्य किए जो निम्न है।

1) 1989 छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में 1500 किलोमीटर की पदयात्रा।

2) 1989-90 नवीन तेंदूपत्ता नीति लाने में मुख्य भूमिका वनोपज व्यापार में सहकारिता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।

3) 1988-90 तक मध्य प्रदेश शासन के आदिवासी और हरिजन कल्याण समिति के अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त किया।

4) 1995 में भारत के प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण दिया।

5) 1996 से 2000 तक अखिल भारतीय कांग्रेस के प्रवक्ता थे।

संसद की निम्न समितियों के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दी थी। लोक लेखा समिति, विज्ञान और तकनीकी समिति, सार्वजनिक उपक्रम समिति, वन और पर्यावरण समिति, कोयला मंत्रालय सलाहकार समिति, उद्योग और रेलवे समिति, वाणिज्य समिति, आदि ।

वर्ष 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में रायगढ़ से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।

1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की और अपने राजनीतिक जीवन के चरमोत्कर्ष पर पहुंचे।

Ajit jogi का परिवार :–

वर्ष 1975 में अजीत जोगी का विवाह डॉक्टर रेणु जोगी के साथ हुआ जो कि एमबीबीएस डॉक्टर हैं, उनसे एक पुत्र अमित जोगी और पुत्री अनुषा जोगी का जन्म हुआ। पुत्र अमित जोगी विवाहित है जबकि उनकी पुत्री अनुषा जोगी की मृत्यु हो चुकी है।

Ajit jogi का लेखन :–

लेखन के क्षेत्र में भी अजीत जोगी ने अपने हाथ आजमाएं और अपना योगदान दिया लेखक के तौर पर उनका स्वाभाविक चिंतन और लेखन में व्यवहारिक एवं यथार्थवादीता की झलक दिखाई देती है लिखित प्रमुख पुस्तक निम्न है।

1) द रोल ऑफ डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर

2) एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ पेरीफेरल एरिया (सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रशासन)।

3) फुलकुवर एवं दृष्टिकोण।

इन पुस्तकों के अतिरिक्त देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में विविध लेख और संस्मरण भी प्रकाशित हुए थे।

Ajit jogi की मृत्यु :–

मई 2020 के शुरुआती दिनों में स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें रायपुर स्थित नारायणा हृदयालय (M.M.I. हॉस्पिटल) में भर्ती किया गया जहां लंबे संघर्ष के बाद 29 मई 2020 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

पुत्री की मृत्यु :–

मुख्यमंत्री बनने के बाद अजीत जोगी के जीवन में अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई। 12 मई 2000 को उनकी पुत्री अनुषा जोगी ने आत्महत्या कर ली, जिसका गहरा आघात उन्हें लगा। आज तक आत्महत्या के कारण अज्ञात हैं।

कार दुर्घटना :–

वर्ष 2004 में लोकसभा के चुनाव हो रहे थे, विधानसभा में चुनाव हारने के बाद लोकसभा सीट जीतना नाक का प्रश्न था जिसके लिए अजीत जोगी दिन-रात चुनाव प्रचार में लगे हुए थे ।

इसी दौरान कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए और उनके शरीर का निचला भाग लकवा ग्रस्त हो गया और वह फिर दोबारा कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए ।

दुर्घटना के बाद उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया था दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें दिल्ली एम्स में भी भर्ती कराया गया था।

इन सब स्वास्थ्य गत परेशानियों से जूझते हुए उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर को आगे बढ़ाया और आगामी कई वर्षों तक सक्रिय राजनीति में बने रहे।

Ajit jogi से जुड़े विवाद :–

विवादों के साथ अजीत जोगी का बहुत ही करीब का संबंध था। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बनने के बाद से मृत्यु तक अनेक विवादों से उन्हें जोड़ा गया या उनका जुड़ाव था।

उनसे जुड़े निम्न विवाद प्रमुख हैं।

पैराशूट मुख्यमंत्री

वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश राज्य से अलग छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ क्योंकि चुनाव वर्ष 1998 में हुए थे, इसलिए नई विधानसभा का गठन भी वर्ष 1998 में हुए चुनाव के आधार पर ही संपन्न हुआ।

कांग्रेस के छत्तीसगढ़ कैडर के कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को दरकिनार करते हुए कांग्रेस की हाईकमान ने दिल्ली से जोगी को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया जबकि वह उस समय विधानसभा के सदस्य भी नहीं थे।

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में इसका विरोध आरंभ हो गया इस विरोध को शांत करने और कांग्रेस के नेताओं को समझाने के लिए मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भेजा गया।

रायपुर में बंद कमरे में हुई मीटिंग के बाद बाहर आए दिग्विजय सिंह का कुर्ता फटा हुआ था। बरहाल विद्रोह को शांत कर लिया गया और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बन गए।

जाती को लेकर विवाद

अजीत जोगी की जाति को लेकर विवाद कभी भी समाप्त नहीं हुआ। वह अपने को अनुसूचित जनजाति वर्ग का बताते थे और इसके लिए उन्होंने प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत किया था ।

विरोधी हमेशा उनके जाती पर प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं और मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा था। जाति से संबंधित मामला अभी भी हाईकोर्ट में लंबित है।

अजीत जोगी ने एक बार स्वयं स्वीकार किया था कि उनके पिता ने क्रिश्चियन धर्म को अपना लिया था बरहाल जो भी हो जाति को लेकर संदेह तो बना ही हुआ था।

2003 विधानसभा चुनाव के बाद विधायकों की खरीद-फरोख्त

दिसंबर 2003 में छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए पहले चुनाव हुए इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत प्राप्त कर ली।

विधानसभा चुनाव के बाद अजीत जोगी ने बस्तर से सांसद बलीराम कश्यप को अपनी ओर मिलाने और भाजपा के विधायकों की खरीद-फरोख्त का प्रयास किया।

इन सभी गतिविधियों की मीडिया ने लाइव कवरेज की और अजीत जोगी और कांग्रेस की बहुत बदनामी हुई इन सब अनैतिक प्रयासों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की सरकार का गठन हो गया।

झीरम घाटी हत्याकांड

25 मई 2013 को झीरम घाटी हत्याकांड में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सभी शीर्ष नेता नक्सली हमले में मारे गए कांग्रेस पार्टी के अंदर से ही इस घटना के लिए उंगलियां Ajit jogi की ओर उठने लगी थी।

कुछ कांग्रेसी नेताओं ने दबी जुबान में कई प्रश्न उठाए थे जैसे रैली का मार्ग क्यों बदला गया खुद जोगी सड़क मार्ग की बजाए हेलीकॉप्टर से क्यों गए आदि।

घटना की दसवीं बरसी के मौके पर वर्ष 2023 में इस घटना में शहीद हुए कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा के पुत्र छविंद्र कर्मा ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए इस घटना के लिए अजीत जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी और कोंटा सुकमा से विधायक कवासी लखमा पर नक्सलियों से सांठगांठ के आरोप लगाए और इस घटना की सच्चाई सामने लाने के लिए इन लोगों के नार्को टेस्ट की भी बात कही।

इस घटना के लिए गठित न्यायिक आयोग अभी तक किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया है। घटना में शामिल कई नक्सली मारे जा चुके हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि यह घटना भी समय के गर्त में अनसुलझी पहेली ही बनकर रह जाएगा।

नई राजनीतिक पार्टी का गठन

वर्ष 2016 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उनके पुत्र अमित जोगी को कांग्रेस पार्टी से 6 वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया गया।

पार्टी के इस निर्णय से Ajit jogi सहमत नहीं हुए और स्वयं पार्टी का त्याग कर एक नई पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का गठन किया।

विधानसभा चुनाव 2018 में उनकी इस नई पार्टी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा इस चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के लोग यहां तक कहने लगे थे कि जोगी का कोई भी जनाधार छत्तीसगढ़ में नहीं है जो भी वह है कांग्रेस पार्टी की वजह से ही है।

इस प्रकार राजनीति में आने के बाद से ही Ajit jogi लगातार संघर्ष करते रहे लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि विधानसभा चुनाव 2003, 2008,फिर 2013 उनके नेतृत्व में लड़ा गया फिर भी लगातार तीनों चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार आश्चर्य में डालने वाली थी।

और इससे भी ज्यादा आश्चर्य तो तब हुआ जब वर्ष 2016 में अजीत जोगी द्वारा कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बंपर बहुमत प्राप्त हुआ।

इस संबंध में कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने यहां तक कहा कि भारतीय जनता पार्टी के शासन से छत्तीसगढ़ के लोग खुश नहीं थे फिर भी उन्होंने कांग्रेस को वोट इसलिए नहीं दिया कि अजीत जोगी फिर से मुख्यमंत्री बन जाएंगे और ऐसा प्रदेश की जनता बिल्कुल भी नहीं चाहती थी।

कहीं न कहीं यह तथ्य महत्वपूर्ण हो जाता है कि अजीत जोगी एक कुशल प्रशासक तो थे पर कुशल राजनेता नहीं बन पाए जिसके पीछे उनका अड़ियल और तानाशाही रवैया जिम्मेदार था।

मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जो जनता और स्वयं कांग्रेस पार्टी के लोगों को नागवार गुजरी, उनकी ही पार्टी के लोगों ने उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे।

एक प्रशासक से राजनेता बने जोगी ने छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री के रूप में 3 वर्षों तक नेतृत्व किया वाक्य पटुता और हाजिर जवाबी के तो उनके विरोधी भी कायल थे।

कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और पदाधिकारी साथ ही प्रदेश भर के पत्रकार बताते हैं कि वे सभी को उनके नाम से पहचानते थे और वे जब भी उनसे मिलते थे तो पिछली बातों को संदर्भ में रखकर वे उन्हें आश्चर्य में डाल देते थे यानी उनकी याददाश्त क्षमता अदभुद थी।

अंततः अजीत जोगी एक कुशल प्रशासक जुझारू और कर्मठ राजनेता योग्य सांसद और छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे।

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