छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदियों में Indravati river का विशेष महत्व है, यह नदी छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग के अपवाह क्षेत्र में प्रमुख स्थान रखती है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश की नदियों में लंबाई की दृष्टि से महानदी के बाद इंद्रावती का दूसरा स्थान है, प्रायद्वीपीय भारत की नदी होने के बावजूद वर्ष भर इस नदी में पानी रहता है, हालांकि गर्मियों में नदी के बीच में भी रेत के टीले देखे जा सकते हैं।
इंद्रावती नदी छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग के संभाग बस्तर को बीच से बांटती हुई प्रवाहित होती है, यह नदी बस्तर संभाग की जीवन रेखा है।
इंद्रावती नदी का उद्गम स्थल –:
Indravati river का उद्गम स्थल उड़ीसा राज्य के कालाहांडी जिले के धरमगढ़ तहसील में स्थित मुंगेर की पहाड़ी से होता है, इस पहाड़ी की ऊंचाई समुद्र तल से 4 हजार फिट की है।
यह नदी अपने उद्गम स्थल से पश्चिम दिशा में प्रवाहित होते हुए छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग में प्रवेश करती है और बस्तर जिले में प्रवाहित होते हुए आगे बढ़ती है और दक्षिण दिशा में मुड़कर छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के मध्य सीमा बनाती है।
इंद्रावती नदी गोदावरी नदी की सहायक नदी है छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित भोपालपटनम से दक्षिण की ओर कुछ दूरी पर भद्रकाली के समीप गोदावरी नदी में यह नदी मिल जाती है।
इस नदी का प्रमुख प्रवाह क्षेत्र छत्तीसगढ़ में है और छत्तीसगढ़ प्रदेश में इस की कुल लंबाई 264 किलोमीटर है।
इंद्रावती नदी की सहायक नदियां–:
Indravati river की सहायक नदियां निम्न है
उत्तर दिशा से मिलने वाली– कोटरी, निम्बरा, बोरडिंग और नारंगी।
दक्षिण दिशा से मिलने वाली– नंदी राज, चिंता बागू, शंखिनी, डंकिनी ।
इस प्रकार यह नदी छत्तीसगढ़ के दक्षिण क्षेत्र के अपवाह तंत्र की सबसे प्रमुख नदी है।
इंद्रावती नदी के किनारे बसे प्रमुख नगर–:
उड़ीसा राज्य से उद्गम के पश्चात यह नदी घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवाहित होती है उड़ीसा राज्य का कोई भी बड़ा नगर किस नदी के तट पर स्थित नहीं है।
छत्तीसगढ़ के दक्षिण भाग में बस्तर संभाग का मुख्यालय शहर जगदलपुर इस नदी के तट पर बसा हुआ है इसके आगे बारसूर नगर भी इस नदी के तट पर स्थित है।
इंद्रावती नदी पर स्थित प्रमुख पर्यटन स्थल–:
इस नदी के किनारे कई प्राचीन मंदिर और राजवंशों की राजधानियों के अवशेष पाए गए हैं।
पर्यटन और दर्शनीय स्थानों की दृष्टि से यह नदी अद्वितीय है निम्न पर्यटन स्थल विश्व प्रसिद्ध है।
चित्रकोट जलप्रपात –:
इस जलप्रपात का निर्माण Indravati river द्वारा होता है इस जलप्रपात को भारत का नियाग्रा भी कहा जाता है और यह जलप्रपात भारत का सबसे चौड़ा जलप्रपात है।
मुख्यालय जगदलपुर से 40 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में यह जलप्रपात स्थित है इस वाटरफॉल को देखने लाखों की संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक हर वर्ष यहां पहुंचते हैं।
बारसूर–:
Indravati river के तट पर जगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह प्राचीन नगर ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का है।
11वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं का यह नगर राजधानी हुआ करती थी अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उस समय इस क्षेत्र को चक्र कूट या भ्रमर कोर्ट कहा जाता था।
नागवंशी राजाओं के नेतृत्व में इस क्षेत्र में धर्म, दर्शन में व्यापक उन्नति हुई थी और साथ ही स्थापत्य कला की उन्नति का आभास मंदिरों और भवनों के निर्माण और अवशेषों से होता है। अनुमान है कि बारसुर में 147
मंदिर और तालाब थे आज भी नाग युगीन तीन मंदिर अपनी भव्यता से लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं।
i)मामा भांजा मंदिर ।
ii)बत्तीसा मंदिर ।
iii)चंद्रादित्यश्वर मंदिर।
इंद्रावती नदी पर नदी घाटी परियोजना–:
1) indravati dam या जिसे खातीगुडा बांध के नाम से भी जाना जाता है का लाभ विशेष रूप से उड़ीसा राज्य को हुआ है, इस बाध के परिणाम स्वरूप न सिर्फ सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हुआ है बल्कि जल विद्युत शक्ति के उत्पादन का भी लाभ उड़ीसा राज्य को प्राप्त हो रहा है।
विश्व बैंक की सहायता से वर्ष 1978 में इस बांध का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और वर्ष 2001 में यह बाध पूरी तरह से निर्मित हो गया था।
उड़ीसा राज्य के लिए indravati dam सिर्फ इंद्रावती बांध न होकर एक परियोजना का रूप ले चुका है। इसके अंतर्गत इंद्रावती और उसकी सहायक नदियों जैसे तेलंगीरी और भस्केल आदि पर भी बांध का निर्माण किया गया है।
2) इस नदी पर सन 1979 बारसूर ( chhattisgarh ) में बोध घाट परियोजना के नाम से तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा शिलान्यास किया गया था।
475 करोड़ की लागत से इस परियोजना में 90 मीटर ऊंचा बांध बनाकर सिंचाई सुविधाओं के साथ ही साथ 124 मेगा वाट की चार बिजली संयंत्रों की स्थापना का भी लक्ष्य रखा गया था।
कालांतर में इस परियोजना में कोई विशेष कार्य नहीं हुआ और परियोजना का कार्य पूरी तरह से रुक गया।
बारसूर में इस परियोजना के दौरान निर्मित चौड़ी सड़कें पुल भवन के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
इस परियोजना को फिर से प्रारंभ करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नई पहल की है।
इंद्रावती नदी पर अस्तित्व का संकट –:
Indravati river पिछले कुछ वर्षों से अस्तित्व के संकट से जूझ रही है उसका मुख्य कारण निम्नलिखित है।
उड़ीसा राज्य में कई बांध और एनीकट बनाकर सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप इंद्रावती नदी के प्रवाह में कमी आ रही है।
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की सीमा पर स्थित जोरा नाला स्थान पर दो नदियां अलग होती हैं जिनमें दाई ओर का प्रवाह इंद्रावती नदी का है और बाएं और का प्रवाह सबरी नदी का है।
इस स्थान पर स्थल आकृतियों के अपरदन के फल स्वरुप शबरी नदी की ओर प्रवाह बढ़ गया था जिससे इंद्रावती नदी पर अस्तित्व का संकट आ गया है।
कुछ वर्षों पूर्व जोरा नाला पर डिवाइडर बनाकर नदी के प्रवाह को इंद्रावती की ओर मोड़ने का प्रयास किया गया है जो फिलहाल सफल होता दिख रहा है।
लेकिन आने वाले वर्षों में इस नदी पर अस्तित्व का संकट बना रह सकता है।
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