मोहम्मद बिन तुगलक | किस्सा तुगलकी फरमान और दिल्ली दूर है का |

हम सभी ने “तुगलकी फरमान” वाले मुहावरे का या तो कभी ना कभी प्रयोग किया है, या इसे सुना तो अवश्य है इस मुहावरे का संबंध सल्तनत काल के मशहूर शासक मोहम्मद बिन तुगलक से है।

इसके अतिरिक्त एक अन्य मशहूर कहावत दिल्ली दूर है का भी संबंध मोहम्मद बिन तुगलक से ही है ! जिसकी चर्चा इस लेख में करेंगे ।

                                 इतिहासकारों ने एकमत से इस तथ्य की पुष्टि की है की सल्तनत काल के शासकों में सबसे अधिक योग्य, शिक्षित, और विद्वान, मोहम्मद बिन तुगलक ही था, लेकिन अपने शासनकाल में उसे भाग्य का साथ कभी भी नहीं मिला और वह सत्ता और सल्तनत के लिए पूरा जीवन संघर्ष ही करता रहा !

                                 दिल्ली सल्तनत काल में खिलजी के बाद तुगलक वंश की सत्ता स्थापित हुई गयासुद्दीन तुगलक 1320 में दिल्ली की गद्दी पर बैठा, उसने 1325 ईसवी तक शासन किया उसके बाद उसका पुत्र जूना खान’ मोहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ !

              शासक बनते ही तुगलक ने अमीरों (मंत्रियों) और सरदारों को विभिन्न उपाधियां प्रदान की, उसने शासन के आरंभ में न तो खलीफा से अपने पद की स्वीकृति ली और ना ही उलेमा (मौलवी) वर्ग का सहयोग लिया, परंतु बाद में उलेमा वर्क के दबाव के बाद उसे ऐसा करना ही पड़ा ।

               मोहम्मद बिन तुगलक जब सत्ता नसीम हुआ तो विरासत ने उसे देश के एक बड़े भूभाग की प्राप्ति हुई, उस समय दिल्ली सल्तनत के अधीन कुल 23 प्रांत थे ।

मोहम्मद बिन तुगलक अत्यंत महत्वाकांक्षी शासक था । उसने साम्राज्य का विस्तार और विकास करने के लिए कई योजनाएं बनाई इनमें से  कुछ योजनाएं उल्लेखनीय है, जो यदि सफल हो जाती तो सल्तनत काल का सबसे विकसित और सबसे बड़ा साम्राज्य मोहम्मद बिन तुगलक का ही होता !

 मोहम्मद बिन तुगलक की 5 योजनाएं –:

         i)   दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि  (1326-27 ईसवी )

        ii)   राजधानी परिवर्तन  ( 1326-27 ईसवी )

        iii)   सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन   ( 1329-30 ईसवी )

        iv)   खुरासान और कराजिल का अभियान 

        v)     पहाड़ी राज्यों को जीतने का अभियान 

         i)    दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि –:   

    यह क्षेत्र दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में सम्मिलित होता है ! इस क्षेत्र की उपज उसके सभी 23 प्रांतों में सबसे अधिक थी, इसलिए उसने इस क्षेत्र में फसलों पर लगने वाले कर में वृद्धि कर दी।

इतिहासकारों मे  इस बात को लेकर एकमत नहीं है कि यह वृद्धि कितनी की गई थी, फिर भी 30% से 50% तक की वृद्धि का अनुमान है ।

            वर्ष  1326-27 मैं दोआब  क्षेत्र में बारिश नहीं होने  से भयंकर अकाल पड़ा, और तुगलक के कर  वसूली क्रमचरियों ने जबरदस्ती लगा वसूलने का प्रयास किया ।

जिससे आम जनों ने विद्रोह कर दिया और तुगलक की यह योजना पूरी तरह से असफल सिद्ध हुई।इस असफलता से सबक लेते हुए मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि विकास के लिए “अमीर ए कोही” नाम के एक नवीन विभाग की स्थापना की ।

           ii)  राजधानी परिवर्तन   –:   

तुगलक के शासन काल में मंगोलों के आक्रमण का  खतरा लगातार बना हुआ था ! इसके अलावा दक्षिण भारत के क्षेत्रों में पूर्ण नियंत्रण और साम्राज्य के मध्य भाग में राजधानी स्थापना करने के विचार से मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद (देवगिरी) स्थानांतरित करने का प्रयास किया !

                         राजधानी परिवर्तन की यह योजना पूरी तरह से असफल सिद्ध हुई, क्योंकि दिल्ली से उसने बलपूर्वक लोगों को दौलताबाद भेजने का फरमान जारी किया।

दिल्ली से दौलताबाद की दूरी 1 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है ! इसलिए उस समय इतनी दूरी तक पूरी तरह से विस्थापित होकर पहुंचना असंभव नहीं तो अत्यंत दुष्कर अवश्य था।

इस विस्थापन की विभीषिका को बताने के लिए एक इतिहासकार ने लिखा है कि दिल्ली से सभी लोगों को दौलताबाद कुच करने का आदेश प्राप्त हुआ।

जिसमें भिखारी और अपाहिज भी सम्मिलित थे, इस विस्थापन के परिणाम स्वरुप दौलताबाद किसी की टांग पहुंची तो किसी का हाथ ।

                         यह योजना असफल होने के बाद 1935 में तुगलक ने लोगों को दौलताबाद से वापस दिल्ली जाने की अनुमति दे दी !

            iii)  सांकेतिक मुद्रा का चलन    –:

               सांकेतिक मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसकी कीमत उसकी लागत से कहीं अधिक होती है । उस दौर में चलने वाली मुद्रा की कीमत उसके वास्तविक लागत के बराबर ही होती थी।

एक उदाहरण के रूप में यदि आज की मुद्रा से तुलना करें तो 500 रुपए के नोट की लागत अधिकतम 10 रुपए होती है, पर यह बाजार में 500 रुपए की कीमत रखता है, इसे ही सांकेतिक मुद्रा कहते हैं !

                     तुगलक को सांकेतिक मुद्रा के प्रचलन की प्रेरणा चीन और ईरान से प्राप्त हुई थी। इतिहासकारों ने अलग-अलग धातुओं को सांकेतिक मुद्रा की मान्यता दी है, जिसमें तांबा और पीतल प्रमुख थे जिनका मूल्य चांदी के टका के बराबर होता था !

                       यह योजना भी असफल हो गई, क्योंकि लोगों ने नकली सिक्के ढालने शुरू कर दिए और बाजार में असली से ज्यादा नकली सिक्के प्रचलन में आ गए।

तुगलक को सारे नकली सिक्के वास्तविक मूल्य चुका कर वापस लेने पड़े जिससे उसे भारी आर्थिक क्षति हुई 

                iv)  खुरासान एवं कराजिल का अभियान  –: 

                       इस योजना के अंतर्गत तुगलक ने खुरासान और कराजिल को सैनिक शक्ति से जीतने के लिए 3 लाख 50 हजार  से अधिक सैनिकों की विशाल सेना तैयार की और सारे सैनिकों को 1 वर्ष का वेतन अग्रिम में दे दिया।

लेकिन इस अभियान से पहले ही खुरासान और कराजिल में राजनीतिक परिवर्तन के फल स्वरुप इन देशों से समझौता हो गया, और यह अभियान असामयिक और असफल सिद्ध हुआ ।

                  v)   पहाड़ी राज्यों को जीतने का अभियान –:

            खुरासान और कराजिल का अभियान असफल सिद्ध होने के बाद तुगलक ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में पहाड़ी राज्यों को जीतने के लिए एक बड़ी सेना भेजी।

उसकी यह सेना मार्ग भटक गई और मार्ग में ही सारी सेना मर खप  गई, इस अभियान के बारे में इब्नबतूता ने लिखा है कि मात्र 3 सैनिक ही बच कर वापस दिल्ली आ पाए ।

    इस प्रकार यह सारे अभियान असफल हुए और तुगलक सारा जीवन संघर्ष करता रहा इन योजनाओं के सफल होने पर शायद सल्तनत काल में सबसे बड़ा साम्राज्य तुगलक का ही होता है ।

 मोहम्मद बिन तुगलक से जुड़े हुए दिलचस्प मुहावरे –:

                  तुगलक के जीवन से जुड़े हुए 2 मुहावरे इतिहास में विशिष्ट स्थान रखते हैं जिनका महत्व इसी से समझा जा सकता है कि आज भी इन मुहावरों का प्रयोग व्यापक और आम है और यह मुहावरे हैं 

  •   दिल्ली अभी दूर है !

  •   तुगलकी फरमान 

 दिल्ली अभी दूर है  –:           यह दिलचस्प किस्सा उस समय का है जब मोहम्मद बिन तुगलक का पिता गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत पर आसीन था ।

1324 में बंगाल विजय के लिए गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली से बंगाल की ओर कूच कर गया! उस समय दिल्ली में सूफी संत निजामुद्दीन औलिया का व्यापक प्रभाव था, और जूना खाँ  (मोहम्मद बिन तुगलक) उसका शिष्य बन गया! बंगाल अभियान पर निकले गयासुद्दीन तुगलक को जब इसकी सूचना मिली तो वह यह

सोचकर क्रोधित हुआ की, निजामुद्दीन औलिया उसके पुत्र को बहका रहा है, परिणाम स्वरूप क्रोधित होकर उसने औलिया को धमकी दी कि दिल्ली वापस

आकर वह उसे देख लेगा  इसी धमकी के जवाब में निजामुद्दीन औलिया ने कहा था “हुनुज  दिल्ली दूरस्थ” यानी कि दिल्ली अभी दूर है! और यह बात सच भी

सिद्ध हुई और यही से किसी भी कठिन या दुष्कर कार्य के लिए इस मुहावरे का प्रयोग आम  हो गया !

                            बंगाल के अभियान से लौटते समय तुगलकाबाद के समीप अफगानपुर में मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा बनाए गए लकड़ी के महल के गिरने से उसमें दबकर ज्ञासुद्दीन तुगलक की मौत 1325 ईस्वी में हो गई, और वह कभी भी दिल्ली नहीं पहुंच पाया ।

औलिया की भविष्यवाणी के अनुरूप मोहम्मद बिन तुगलक बादशाह बन गया ! 

                कुछ इतिहासकारों के अनुसार मोहम्मद बिन तुगलक ने जानबूझकर लकड़ी  के महल को ऐसा बनवाया था, कि हाथियों की दौड़ से हुए कंपन से महल भरभरा कर गिर जाए और यह षड्यंत्र सफल भी हुआ वही कुछ इतिहासकार इसे मात्र दुर्घटना ही करार देते हैं 

             गयासुद्दीन तुगलक महल के अंदर बैठकर बाहर चल रही सैनिक परेड को देख रहा था, उसी समय हाथियों की दौड़ हुई, उस दौड़ से हुए कंपन से लकड़ी का महल भरभरा कर गिर गया और उसमें दबने से ज्ञासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गई !

  • तुगलकी फरमान  –:

         

  •        यह मुहावरा  मोहम्मद बिन तुगलक से ही जुड़ा हुआ है ! इसका प्रयोग किसी के ऊपर जबरदस्ती अपनी बात थोपने या ऐसे सरकारी आदेश के लिए प्रयोग होता है जो गैरजरूरी या जबरदस्ती लोगों के ऊपर
  • थोपा  जाए ! दोआब में कर वृद्धि के समय तुगलक का आदेश तुगलकी फरमान ही सिद्ध हुआ, क्योंकि दोआब में अकाल की वजह से जनता ने विद्रोह कर दिया और कर देने से मना कर दिया !

             दूसरा राजधानी स्थानांतरण जो दिल्ली से दौलताबाद किया गया था ! उस समय तुगलक ने अपने अधिकारियों को दिल्ली से सारे लोगों को दौलताबाद रवाना करना सुनिश्चित करने को कहा, यहां तक की  भिखारियों और अपाहिजों को भी नहीं बख्शा गया ।

              यह आदेश भी जनता पर जबरदस्ती थोपा गया और कुछ समय बाद यह आदेश भी तुगलक को वापस लेना पड़ा !

             यहीं से गैर जरूरी और जबरदस्ती थोपे गए सरकारी या गैर सरकारी आदेशों के लिए तुगलकी फरमान मुहावरे का प्रयोग आम हो गया !

          इब्नबतूता –:   

अफ्रीका के देश मोरक्को का निवासी इब्नबतूता 1333 ईसवी में भारत आया था ! इसने अपनी यात्रा का वृतांत भारत की राजनीति  घटनाक्रम और सामाजिक परिवेश का विवरण अपनी पुस्तक “किताब उल रेहला” में किया है ।

उसकी योग्यता से प्रभावित होकर मोहम्मद बिन तुगलक ने उसे  दिल्ली का काजी नियुक्त किया था । बाद में इसे दूत के रूप में चीन भी भेजा था ।

    तुगलक का रिश्वत कांड –:      

ज्ञासुद्दीन तुगलक ने अपने शासनकाल में 29 बार मंगोलों के आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया और उन्हें वापस लौटने को    मजबूर कर दिया ।

इसके विपरीत 1328-29 शरीन जगताई ने एक विशाल सेना लेकर भारत पर आक्रमण किया और लाहौर से लेकर दिल्ली के बाहरी इलाके तक जमकर लूटपाट मचाई।

इस मंगोल आक्रमणकारी का सामना करने के बजाय तुगलक ने रिश्वत देकर वापस भेज दिया इस कृत्य के लिए उसकी  बहुत आलोचना हुई !

           मोहम्मद बिन तुगलक और कोहिनूर हीरा –:        

   खिलजी से यह हीरा मोहम्मद बिन तुगलक तक पहुंचा, जैसा कि अनेक इतिहासकारों का मानना है कि कोहिनूर हीरा शापित था ! वह जिसके पास भी जाता था उसका सुख चैन छीन लेता था 

कमोबेश मोहम्मद बिन तुगलक के साथ भी यही हुआ, सर्वाधिक योग्य  कुशाग्र और बुद्धिमान होते हुए भी उस के शासनकाल में उसकी कोई भी योजना सफल नहीं हुई, और उसका उसे भाग्य का साथ नहीं मिला।

तुगलक सारा जीवन संघर्ष करता रहा, और अंततः मृत्यु को प्राप्त हुआ उसकी मृत्यु पर इतिहासकार बदायूनी ने कहा था, कि “सुल्तान को प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान  से मुक्ति मिल गई” !

तुगलक कालीन स्थापत्य कला –:               

                                       खिलजी कालीन इमारतों की भव्यता और सुंदरता के स्थान पर सादगी और विशालता ने ले लिया था ।

तुगलक काल में गयासुद्दीन तुगलक और मोहम्मद बिन तुगलक सारे जीवन राज्य की सीमाओं को फैलाने में ही लगे हुए थे ,इसलिए उस दौर में वास्तुकला पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया जो भी इमारतें बनाई गई वह सादगी और विशालता से परिपूर्ण है ।

उनमें से कुछ निम्न है ।

तुगलकाबाद –:     गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप पहाड़ियों पर ‘तुगलकाबाद’ नाम से एक नया शहर बनाया इस शहर की शैली रोमन थी ।

इस नगर में एक दुर्ग का निर्माण भी किया गया इस दुर्ग को 56 कोट के नाम से भी जाना जाता है ! दुर्ग की दीवारें मिस्र के पिरामिड की तरह अंदर की ओर झुकी हुई थी और उन्हें सहारा देने के लिए नीव गहरी और दीवारें अत्यंत मोटी थी !

                इस किले का विवरण इब्न बतूता ने अपनी पुस्तक में लिखा है ! जिसमें उसने बताया है कि, राज महल सूर्य के रोशनी से इतना चमकता था, कि कोई भी व्यक्ति उसे एक टक नहीं देख सकता था ! तुगलकाबाद नगर में प्रवेश के लिए कुल 52 द्वार बनाए गए थे, राज महल के निर्माण में टाइल्स का भी प्रयोग हुआ था ।

गयासुद्दीन का मकबरा –:    गयासुद्दीन का मकबरा कृत्रिम झील के अंदर बनाया गया था । मकबरे की दीवारें चौड़ी और मिस्र की पिरामिड  की तरह भीतर की ओर झुकी हुई है ! यह मकबरा चतुर्भुज के आकार का है,और मकबरे के ऊपर संगमरमर का सुंदर गुंबद बना है।

साथ ही मकबरे में आमला और कलश का प्रयोग हिंदू मंदिरों की शैली पर किया गया है। लाल पत्थर से निर्मित इस मकबरे के चारों ओर मीनार का भी निर्माण किया गया है !

आदिलाबाद का किला –:    मोहम्मद तुगलक ने तुगलकाबाद के समीप आदिलाबाद नामक किले का निर्माण करवाया था यह किला भी जल्दी में बनवाया गया लगता है , क्योंकि इसके कमरे और दीवारें बेढंगी बनाई गई थी, वर्तमान में किले का अधिकांश भाग जमींदोज हो चुका है !

जहांपनाह नगर –:     इस नगर के निर्माण में सुंदर भवन निर्माण शैली का प्रयोग किया गया है, मोहम्मद तुगलक इस नगर की स्थापना राय पिथौरा एवं सिरी के मध्य कराया था, नगर के चारों तरफ मोटी सुरक्षा दीवार बनाई गई थी इस नगर के अवशेषों में सतपुर अर्थात साथ मेहराबों का पुल आज भी विद्यमान है !

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु –:   

जैसा कि हमने देखा मोहम्मद बिन तुगलक सारा जीवन संघर्ष करता रहा अंत समय में वह गुजरात के विद्रोह का दमन करके जब सिंध की ओर बढ़ रहा था, तभी थट्टा के निकट गोंडल पहुंचकर वह गंभीर रूप से बीमार हो गया जहां उसकी मृत्यु 20 मार्च 1351 को हो गई !

जानिए अलाउद्दीन खिलजी और उसके x जेंडर सेनापति मलिक काफ़ुर के बारे मे,  ?

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