अलाउद्दीन खिलजी | श्रापित हीरा “कोहेनूर” खिलजी के पास कैसे पहुचा ?

इतिहास में अलाउद्दीन खिलजी की पहचान क्रूर और कठोर शासक के रूप में की गई है । उसने हिंदू जनता पर बहुत ज्यादा अत्याचार किया, हिंदुओं के घर नष्ट कर देना, उनकी जमीन जप्त कर लेना साथ ही उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाना या फिर मुस्लिम धर्म न ग्रहण करने पर  मौत के घाट उतार देना सामान्य सी बात थी ।

उसने मथुरा और दक्षिण भारत में हिंदुओं के बड़े-बड़े मंदिरों को तोड़ा और उन में जमकर लूटपाट की हिंदुओं पर इस बेतहाशा अत्याचार के अलावा उसे उसकी बाजार व्यवस्था, दक्षिण भारत के विजय और  कठोर शासन व्यवस्था के लिए इतिहास में याद रखा जाता है ।

अलाउद्दीन खिलजी का आरंभिक जीवन :–          

मूलतः  अफगानिस्तान के निवासी जो हेलमंद नदी के तट में रहते थे; उन्हें खिलजी कहा जाता था वहीं से इस खिलजी वंश का इतिहास जोड़ा जाता है ।

अलाउद्दीन खिलजी के प्रारंभिक जीवन मे जन्म को लेकर इतिहासकारों में एकमत नहीं है, वैसे यह माना जाता है कि इसका जन 1250 से 1255 ईसवी के मध्य बंगाल में हुआ था, यह एक सुन्नी मुसलमान था जिसके पिता का नाम शहाबुद्दीन मसूद था ।

                               अलाउद्दीन की अल्प आयु में ही पिता की मृत्यु होने के बाद, उसके चाचा और खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी ने उसका पालन पोषण किया बचपन का नाम अली और गुरशास्प था ।

अलाउद्दीन के चाचा जलालुद्दीन खिलजी के तख्त नशीन होने के बाद अलाउद्दीन को अमीर ए तुजुक का पद दिया , साथ ही उसने मलिक छज्जू के विद्रोह का दमन किया इससे खुश होकर उसके चाचा जलालुद्दीन ने उसे कड़ा मानिकपुर की  सूबेदारी सौंप दी ।

इसके बाद उसने अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी से अनुमति लेकर भिलसा, चंदेरी, और देवगिरी का सफल अभियान किया जिसमें उसने अपार धन और संपत्ति प्राप्त हुई ।

ताजपोशी :–

भिलसा, चंदेरी और देवगिरी के सफल अभियान के बाद जब अलाउद्दीन वापस कड़ा मानिकपुर आया तो उसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी अपनी राजधानी किले खोरी से उससे मिलने के लिए और उसके सफल अभियान पर उसको बधाई देने के लिए कड़ा मानिकपुर पहुंचा।

जहां पर अलाउद्दीन ने धोखे से अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या (22 अक्टूबर 1296 ) कर दी, जिसने उसे पाल पोस कर बड़ा किया और सत्ता में भागीदारी भी दी।

 इतिहासकारों के अनुसार जब जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन से मिलने के लिए कड़ा मानिकपुर जाने लगा तो उसके सलाहकार और मंत्रियों ने उसे ऐसा करने से रोका, पर उसने उन्हें यह कहकर  चुप करा दिया कि अलाउद्दीन मेरा पुत्र  है, और पिता को पुत्र से मिलने से कोई नहीं रोक सकता ।

              इस प्रकार 22 अक्टूबर 1296 को अलाउद्दीन ने बलबन के लाल महल में अपना राज्य अभिषेक कराया ।

अपनी प्रारंभिक सफलताओं से प्रभावित अलाउद्दीन ने द्वितीय सिकंदर (सानी))की उपाधि धारण की, और उसका उल्लेख सिक्कों पर भी करवाया ।

साथ ही उसने एक नए धर्म को चलाने का प्रयास भी किया किंतु अत्यधिक विरोध होने पर और दिल्ली के कोतवाल अलाउल मूलक के समझाने के  बाद उसने अपना यह विचार त्याग दिया ।

आरंभिक विद्रोह :– 

ताजपोशी के बाद अलाउद्दीन को कुछ विद्रोह का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से दमन कर लिया जिसमें से प्रमुख है।

1299 ईसवी में गुजरात के सफल अभियान के बाद प्राप्त हुए अपार धन संपत्ति के बंटवारे को लेकर नवीन मुसलमानों द्वारा विद्रोह किया गया था । दूसरा विद्रोह अलाउद्दीन के भतीजे अकत खान द्वारा किया गया उसने मंगोलों की मदद से अलाउद्दीन पर प्राणघातक हमला किया।

अलाउद्दीन तो बच गया, पर उसने अकत खान को पकड़वा कर उसकी हत्या करवा दी तीसरा विद्रोह अलाउद्दीन के भांजे मलिक उमर या मंगू खा ने किया इस विद्रोह का भी दमन कर मंगू खा की हत्या कर दी गई ।

                इन सब विद्रोह से अलाउद्दीन चौकन्ना हो गया, और उसने विद्रोह को रोकने के लिए शासन पर कठोर नियंत्रण लगाए जिसके लिए उसने चार मुख्य आदेश जारी किया !

I ) अमीरों (मंत्रियों ) पर नियंत्रण के लिए उन्हें दान, उपहार और पेंशन के रूप में मिलने वाली भूमि को जप्त कर लिया गया और जो थोड़ी बहुत भूमि बची उस पर भी कर लगाया गया  

ii)  गुप्तचर विभाग का गठन किया गया ।

iii) नशे और जुए पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया ।

Iv ) अमीरों के आपसी मेलजोल और वैवाहिक संबंधों पर भी रोक लगाई गई ।

                  इस प्रकार यह कठोर शासन व्यवस्था लागू करके अलाउद्दीन खिलजी अपने मकसद में कामयाब हुआ, क्योंकि  फिर दोबारा कोई विद्रोह उसके शासनकाल के दौरान नहीं हुआ ।

                   अलाउद्दीन खिलजी सल्तनत काल में सबसे सफल सुल्तानों में से एक था, उसने गुजरात, राजस्थान जैसलमेर, रणथंबोर, चित्तौड़, मालवा और जालौर आदि को सफलता पूर्वक जीता

मगर उसकी सबसे बड़ी सफलता मलिक काफूर के नेतृत्व में हुई, जब उसकी सेना भारत के सबसे दक्षिणी छोर तक पहुंची और उसका साम्राज्य देश के एक बड़े भूभाग में स्थापित हो गया ।

प्रमुख उपलब्धियां  (विजय अभियान ) :–       

अलाउद्दीन शुरू से ही साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था, अपने जीवन काल में उसने  राज्य के भौगोलिक सीमाओं को लगातार बढ़ाया, उसने उत्तर भारत के राज्यों को जीत कर उस पर प्रत्यक्ष शासन किया जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों को अपने अधीन करके उनसे कर वसूला अलाउद्दीन द्वारा जीते गए मुख्य राज्य निम्न है ।

गुजरात विजय :–      

 1298 ईस्वी में अलाउद्दीन के सेनापति उल्ग खा और नुसरत खा गुजरात विजय के लिए एक सेना लेकर अहमदाबाद की ओर बढ़े, गुजरात के राजा और अलाउद्दीन की सेना के बीच संघर्ष हुआ।

जिसमें राजा कर्ण पराजित हुआ, उसने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ भागकर देवगिरि के शासक राम चंद्र देव के यहां शरण ली, खिलजी सेना  ने राजा करण की सारी संपत्ति और पीछे छूट गई उसकी पत्नी कमला देवी को साथ लेकर वापस दिल्ली आए ।

बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने कमला देवी से विवाह करके उसे अपनी रानी बना लिया ,इसी अभियान के दौरान सेनापति नुसरत खा ने एक्स जेंडर गुलाम मलिक काफूर को 1 हजार दिनार में खरीदा और अलाउद्दीन खिलजी को तोहफे के रुप में पेश कर दिया ।

 जैसलमेर विजय :–      

अलाउद्दीन की सेना ने जैसलमेर के शासक दुदा और उसके सहयोगी तिलक सिंह के ऊपर 1299 ईस्वी में आक्रमण किया और उसे पराजित कर दिया और जैसलमेर खिलजी के प्रत्यक्ष नियंत्रण में आ गया !

रणथंबोर विजय :–

रणथंबोर के राजा हम्मीर देव ने अपने यहां विद्रोही मंगोल नेता मोहम्मद शाह एवं केहम को शरण दे रखी थी, साथ  ही सामरिक दृष्टि से रणथंबोर राजस्थान का प्रमुख केंद्र था।

बगैर रणथंबोर विजय के राजस्थान विजय संभव नहीं था, इसलिए खिलजी सेना ने 1301 पर रणथंबोर पर आक्रमण किया और किले को अपने कब्जे में कर लिया राजा हमीर देव की मृत्यु किले की रक्षा करते हुए हो गई।

उस दौर की दो मशहूर किताबें तारीखे अलाई और हम्मीर महाकाव्य से यह ऐतिहासिक विवरण मिलता है कि हम्मीर देव के समस्त परिवार ने जोहर करके अपनी मृत्यु को प्राप्त हुए ।

मेवाड़ विजय :–      

राजस्थान के प्रमुख राज्यों में से एक मेवाड़ जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी, के शासक रतन सिंह था, चित्तौड़ का किला सामरिक दृष्टि से बहुत ही सुरक्षित माना जाता था।

जनवरी 1303 ईस्वी में खिलजी सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया 7 महीने के  संघर्ष और धूर्तता के बाद अगस्त 1303 में खिलजी सेना ने चित्तौड़ किले पर अधिकार कर लिया।

इस युद्ध में राणा रतन सिंह मृत्यु को प्राप्त हुए और उनकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जोहर कर लिया, इसके बाद किले पर अधिकार होने के बाद खिलजी सेना ने 30,हजार राजपूत वीरों का कत्ल कर दिया ।

                      कई इतिहासकार इस युद्ध का कारण रानी पद्मिनी को मानते हैं उनके अनुसार अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के सौंदर्य से मोहित होकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया था ! लेकिन इस विषय में इतिहासकारों में एकमत नहीं है साथ ही ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव भी है ।

मालवा विजय :–      

                  1305 ईस्वी में खिलजी सेना ने मालवा पर आक्रमण किया, वहां शासन करने वाले राजा महालक देव ने खिलजी सेना का सामना किया किंतु इस युद्ध में महालक देव और उनके सेनापति हर नंद की मृत्यु हो गई और 1305 में मालवा के साथ ही उज्जैन धार नगरी चंदेरी आदि पर खिलजी का अधिकार हो गया ।

जालौर विजय :–     

जालौर के शासक कानहर देव   के ऊपर 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन के सेनापति कमला दूरबीनकमला दिन गुरु ने आक्रमण किया और युद्ध में कान धनदेव की मृत्यु हो गई और जालौर भी खिलजी  के प्रत्यक्ष नियंत्रण में आ गया ।

             इस प्रकार 1311 ईस्वी तक उत्तर भारत के समस्त क्षेत्रों पर खिलजी का नियंत्रण हो गया था, सिर्फ नेपाल कश्मीर और असम के ऐसे भाग भूभाग बचे थे जिन पर अधिकार करना अत्यंत दुष्कर कार्य था ।

दक्षिण भारत पर विजय :–            

सल्तनत काल में अलाउद्दीन ही एकमात्र  शासक था, जिसकी सेना सुदूर दक्षिणी भारत तक पहुंची और खिलजी राज्य का फैलाव सिंधु नदी से रामेश्वरम तक हो गया। वास्तव में यह जीत उसके थर्ड जेंडर सेनापति मलिक काफूर की योग्यता से ही संभव हो पाया था ।

मलिक काफूर के नेतृत्व में खिलजी सेना ने दक्षिण भारत के लगभग समस्त राज्यों को जीतकर खिलजी राज्य के अधीन कर लिया था ।

   देवगिरी          

 अपने दक्षिण भारत के प्रथम अभियान में मलिक काफूर के नेतृत्व में 1307- 8 में देवगिरी पर आक्रमण किया गया, जो वर्तमान मध्य महाराष्ट्र के हिस्से में अवस्थित था।

वहां के राजा राम चंद्र को हरा क्या बंदी बना लिया गया और इस तरह देवगिरी खिलजी राज्य के अधीन हो गया !

    तेलंगाना          

    अपने द्वितीय अभियान में 1309 ईसवी में मालिक कफूर के नेतृत्व में तेलंगाना पर आक्रमण किया गया जिसकी राजधानी वारंगल थी ।

आक्रमण सफल रहा और वहां के राजा रूद्र प्रताप देव ने समर्पण कर दिया साथी उसने सैकड़ों हाथी घोड़े सोने चांदी और जवाहरात के ढेर उपहार स्वरूप मालिक कफूर को दिए साथ ही वार्षिक कर देने का भी वादा किया ।

   होयसल          

वर्तमान कर्नाटक राज्य में स्थित इस प्रदेश की राजधानी द्वार समुद्र थी और वहां का राजा बीर बलाल तृतीय था ! मलिक काफूर के नेतृत्व में 1310 ईस्वी में यहां आक्रमण किया गया और खिलजी सेना विजय हुई और होयसल पर खिलजी का अधिकार हो गया ।

पांडेय     

        मालाबार क्षेत्र वर्तमान केरल के हिस्से में पांडे राज्य अवस्थित था ! 1311 ईस्वी में खिलजी सेना ने यहां आक्रमण किया।

राज्य पर अधिकार तो नहीं हो पाया लेकिन लूट में ढेर सारा धन दौलत खिलजी को प्राप्त हुआ, इसी दौरान दक्षिण भारत के अनेक हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया और  मंदिर की संपत्तियों को लूट लिया गया ।

इस तरह अलाउद्दीन खिलजी ने लगभग संपूर्ण उत्तर भारत और दक्षिण भारत को अपने अधिकार में कर लिया उसका राज्य सिंधु नदी से लेकर बंगाल तक और गुजरात से लेकर रामेश्वरम तक फैल गया था ।

अलाउद्दीन खिलजी और मालिक कफूर 

अलाउद्दीन खिलजी के सफलता के पीछे उसके एक्स जेंडर सेनापति मलिक काफूर का बहुत बड़ा हाथ था ।

मलिक काफूर एक गुलाम था,जिसे अलाउद्दीन खिलजी के ही एक अन्य सेनापति नुसरत खा ने 1298 में हुए गुजरात विजय से लौटते समय हजार दिनार में खरीदा था, और उसने  तोहफे के रुप में अलाउद्दीन खिलजी को सौंप दिया।

हजार दिनार में खरीदे गए मलिक काफूर को इसलिए हजार दिनारी भी कहते थे,अपनी योग्यता और गुलाम परस्ती के दम पर मलिक काफूर बहुत ही जल्दी अलाउद्दीन खिलजी का खास बन गया।

उसने अलाउद्दीन खिलजी की हर तरह से खिदमत  की और आजीवन वफादार बना रहा,इतिहासकारों ने इस बात को प्रमुखता से स्वीकार किया है कि दक्षिण भारत का विजय मलिक काफूर के योग्य नेतृत्व से ही संभव हो पाया ।

मलिक काफूर के धर्म को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है, कुछ उसे हिंदू धर्म का जबकि कुछ उसे मुस्लिम बताते हैं , लेकिन दक्षिण भारत के अभियान के दौरान जिस तरह से मलिक काफूर ने मंदिरों को तोड़ा और लूटा इससे इस बात को बल मिलता है कि,वह संभवत मुस्लिम रहा होगा ।

अलाउद्दीन खिलजी और कोहिनूर हीरा 

विश्व में पाए गए सबसे बड़े हीरो में से एक कोहिनूर हीरे को तेलंगाना राज्य के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदानों से निकाला गया था ।

1309 ईस्वी में जब मलिक काफूर ने तेलंगाना राज्य की राजधानी वारंगल पर आक्रमण किया तो वहां के राजा रूद्र प्रताप देव ने समर्पण कर दिया, और बहुत सारे धन संपत्ति हीरे जवाहरात के साथ ही यह कोहिनूर हीरा भी उपहार स्वरूप मलिक काफूर को दिया।

मलिक काफूर से यह हीरा अलाउद्दीन खिलजी के पास पहुंचा, जैसा कि अनेक इतिहासकारों का मानना है कि यह हीरा शापित है, जिसके पास भी गया उसका दुर्भाग्य शुरू हो गया, कुछ ऐसा ही कोहिनूर हीरा प्राप्त करने के बाद अलाउद्दीन खिलजी के साथ भी हुआ ।

अलाउद्दीन खिलजी का परिवार 

अलाउद्दीन के परिवार की बात करें तो उसकी तीन रानियों का उल्लेख इतिहास में होता है ,वैसे तो खिलजी के हरम में 50,हजार से अधिक स्त्री और पुरुष थे ।

उसकी प्रथम पत्नी उसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी की बेटी मल्लिका ए जहां थी, फिर दूसरी मेहरून्निसा थी और तीसरी पत्नी गुजरात के राजा करण की पत्नी विमला देवी थी। जिसे गुजरात विजय के दौरान अलाउद्दीन के सेनापति नुसरत खान ने अपने कब्जे में कर लिया और उसे एक उपहार के तौर पर अलाउद्दीन खिलजी को सौंप दिया, जिससे अलाउद्दीन खिलजी ने निकाह करके अपनी बेगम बनाया !

                ज्ञात पुत्रों की बात करें तो उसके तीन पुत्रों का विवरण इतिहास में उल्लेखित है, जिसमें से खिज्र खां शिहाबुद्दीन  उमर और मुबारक खिलजी का नाम प्रमुख है ।

 अलाउद्दीन खिलजी का बाजार नियंत्रण 

महंगाई की समस्या प्राचीन काल से ही बनी हुई है, ऐसा ही कुछ अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में भी हुआ जब खाने पीने की वस्तुओं  के साथ दैनिक उपभोग की वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ने लगे, तो अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार व्यवस्था का निर्माण किया और बाजार में मिलने वाली वस्तुओं के दाम को निर्धारित कर बाजार नियंत्रण प्रणाली को लागू  किया ।

         बाजार व्यवस्था या मूल्य नियंत्रण प्रणाली की जानकारी अमीर खुसरो की पुस्तक खजनी फतु और इब्नबतूता की पुस्तक रिहाला और इशानी की पुस्तक सुतला तनी से मिलती है ।

खिलजी सल्तनत में सैनिकों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई थी साथ ही 50,हजार से अधिक दास भी सुल्तान की सेवा में थे, इन सब के खर्चों को नियंत्रित और नियमित करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने, नई कर  और बाजार व्यवस्था को लागू किया ।

बाजार नियंत्रण प्रणाली के अंतर्गत अलाउद्दीन ने दैनिक उपभोग की वस्तुओं और अनाजों के मूल्य निर्धारित कर दिए साथ ही उसने राशनिंग की नई व्यवस्था भी आरंभ की ।

             इस प्रकार बाजार नियंत्रण प्रणाली की व्यवस्था से आम नागरिकों और सैनिकों को बहुत  लाभ हुआ साथ ही राज्य के खजाने में  वृद्धि भी हुई ।

खिलजी कालीन वास्तुकला 

अलाउद्दीन के समय मुख्यतः दो भवनों का उल्लेख आता है जिस का निर्माण  करवाया था, जिसमें से पहला है अलाई दरवाजा जिसका निर्माण 1310- 11 में आरंभ हुआ था यह दरवाजा कुतुब मस्जिद में प्रवेश का द्वार था।

इसके अंतर्गत 4 प्रवेश द्वार बनाए गए जो ऊंचे स्थान पर थे । इस दरवाजे में लाल पत्थर और संगमरमर को मिलाकर निर्माण को साकार किया गया है । इस दरवाजे के संबंध में पर्सी ब्राउन ने कहा था कि अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

इस अलाई दरवाजे के  साज सज्जा में बौद्ध तत्वों का मिश्रण पाया गया है, इस तरह से शुद्ध इस्लामी स्थापत्य कला के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह भी लग गए थे ।

                दूसरा भवन जमात खा मस्जिद थी इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने निजामुद्दीन औलिया के दरगाह के समीप कराया था । इस मस्जिद के कोनों में बने कमल पुष्प से इसके भी शुद्ध  इस्लामी स्थापत्य कला से निर्मित होने के तथ्य पर प्रश्न चिन्ह  लग गए थे।

इस मस्जिद में हिंदू शैली का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है इस मस्जिद में लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है मस्जिद में कुल 3 कमरे हैं साथ  ही आश्चर्यजनक रूप से यह भी माना जाता है कि पूर्ण रूप से इस्लामिक परंपरा से निर्मित यह भारत की पहली मस्जिद है ।

अलाउद्दीन की मृत्यु कैसे हुई/ किसने मारा 

 अलाउद्दीन की मृत्यु कैसे हुई इस संबंध में ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव है, साथ ही इतिहासकारों में भी एक मत नहीं है कुछ इतिहासकारों ने लिखा है, कि अपने अंतिम समय में जलोदर रोग और त्वचा के कोड रोग से उसकी मृत्यु 5 जनवरी 1316 में हो गई ।

वहीं कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन की मृत्यु उसके सबसे विश्वासपात्र गुलाम मलिक काफूर के हाथों हुई, अलाउद्दीन का मकबरा कुतुब मीनार परिसर में स्थापित है ।

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