Kakori kand

वर्तमान में घटने वाली सभी घटनाओं के बीज इतिहास में बोए गए होते हैं तो Kakori kand की भी घटना की जो बीज

है वह इतिहास में बोए गए थे तो चलिए देखते हैं इस घटना की पृष्ठभूमि क्या थी।

महात्मा गांधी के आदर्शों और विचारों ने सारे देश को प्रभावित किया सभी देशभक्त गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता

आंदोलन में कूद पड़े थे वर्ष 1922 में गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन से सारा देश आंदोलन हो गया था सभी

वर्ग आयु और क्षेत्र तक इस आंदोलन का विस्तार हो गया।

5 फरवरी 1922 को चोरी चोरा घटना के प्रभाव से जब आंदोलन अपने शिखर पर था इसे स्थगित करने की घोषणा

गांधी जी ने कर दी इस घोषणा से सारे देश में मायूसी का वातावरण निर्मित हो गया पेश कर युवाओं को आंदोलन के

स्थगित होने पर गहरा धक्का लगा।

यह भारतीय युवा वर्ग जल्दी से जल्दी अंग्रेजी शासन से आजादी चाहता था इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए 1924 ईस्वी

में हिंदुस्तान पब्लिक संगठन की स्थापना की गई इसके मुख्य कार्यकर्ताओं में सचिंद्रनाथ सानयाल राम प्रसाद बिस्मिल

योगेंद्र चंद्र चटर्जी अशफाक उल्ला खान रोशन सिंह भगत सिंह राजेंद्र लहरी आदि प्रमुख थे।

हिंदुस्तान पब्लिक संगठन में अपनी मीटिंग में अंग्रेजों से आजादी के लिए संगठित क्रांतिकारी घटनाओं की योजना

बनाई इन योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए हथियारों और धन की आवश्यकता थी परिणाम स्वरुप यह धन अंग्रेजों से

ही डकैती के माध्यम से प्राप्त करने की पहली योजना बनी।

Kakori kand

योजना के अनुसार 9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना लेकर जा रही सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को काकोरी

जोकि लखनऊ के समीप स्थित एक ग्राम था में ट्रेन को रोक कर इस लूट की घटना को अंजाम दिया गया इस घटना के

फिर की कॉपी के अनुसार लूट की कुल रकम 4601 रुपए 15 आने और 6 पाई थी इस घटना में 20 से 25 क्रांतिकारी

सम्मिलित हुए थे जिनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ खजाने को लूटना था कुछ क्रांतिकारी के पास जर्मन माउजर गन थी

जिससे वह खजाने की रखवाली करने वालों को सिर्फ डराना चाहते थे लेकिन इस पूरी घटना में एक व्यक्ति की

दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु भी हुई जब गलती से चली गोली से ट्रेन के यात्री अहमद अली की मृत्यु हो गई।

लूट की घटना को अंजाम देने के बाद सभी क्रांतिकारी अलग-अलग दिशाओं में कुछ कर गए वह किसी भी तरह से

अंग्रेज के हाथ नहीं आना चाहते थे साथी वह लुटे हुए खजाने की भी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते थे।

इस घटना के पूर्व तक अंग्रेज इस आत्मविश्वास से भरे हुए थे कि उनके खजाने को किसी के भी हाथ लगाने तक की

हिम्मत नहीं है लेकिन इस घटना में हुई खजाने की लूट से अंग्रेजी सरकार बौखला गई और अपने दामन का चक्र प्रारंभ

किया क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर अंग्रेजी सरकार ने लगा दिया और वह इसे अपने नाक का

भी प्रश्न बन बैठे थे।

अंग्रेजी सरकार ने राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान रोशन सिंह राजेंद्र लहरी समिति प्रमुख क्रांतिकारियों को

गिरफ्तार कर लिया उन पर मुकदमा चलाया गया और ट्रेन की डकैती और क्रांतिकारी गतिविधियों के संबंध में उनके

ऊपर आरोप लगाए और उन्हें कठोर से कठोर सजा देने का प्रयास किया कुछ क्रांतिकारी को मौत की सजा दी गई

जबकि कुछ क्रांतिकारी को उम्र कैद के लिए जेल में डाल दिया गया लिखनी है कि 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद

बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई और उसके एक दिन ही बात रोशन सिंह

और राजेंद्र लहरी को भी फांसी पर लटका दिया गया

Kakori kand का प्रभाव

इस छोटी सी क्रांतिकारी घटना का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में व्यापक प्रभाव हुआ था।

जहां अंग्रेजी सरकार के बारे में यह मुहावरा प्रचलित था कि उनकी सरकार की सत्ता में सूरज कभी नहीं डूबता उन्हें

साधारण से क्रांतिकारी ने ऐसी चुनौती दी थी जिसने अंग्रेजो के आत्मविश्वास को ही हिलाकर रख दिया था

इस घटना के बाद से लोगों में यह संदेश भी गया कि अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी जा सकती है सिर्फ शांतिपूर्ण तरीके

से ही नहीं बल्कि क्रांतिकारी तरीके से भी हम अंग्रेजों का विरोध कर सकते हैं

इस घटना ने कई युवा लोगों को देश सेवा के लिए प्रेरित किया

घटना के बाद अंग्रेजी सरकार द्वारा चलाए गए उत्पीड़न और अन्याय के विरुद्ध लोगों में अंग्रेजों के विरुद्ध वातावरण

तैयार हुआ और उन्हें में से कई नए क्रांतिकारियों का जन्म हुआ

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