भारत का मध्यकालीन इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है और उस काल की गौरव गाथा निर्मित मंदिर और भवनों में आज भी जीवंत है।
विभिन्न शैलियों में निर्मित मंदिर आज भी लोगों को आश्चर्य में डालते हैं कि बिना किसी मशीन की सहायता से इतने बड़े और बारीक नक्काशी से भरे हुए मंदिर कैसे निर्मित किए गए।
ऐसे ही मंदिरों में से एक मंदिर है Bhoramdev का मंदिर जो अपनी भव्यता और पत्थर पर बारीक नक्काशी के लिए जाना जाता है।
यहां के शिल्प में विभिन्न काम मुद्राओं में अनुरक्त जोड़ों का कलात्मक चित्रांकन उकेरा गया है इसी कारण इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।
Bhoramdev मंदिर कहाँ स्थित है :–
Bhoramdev मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा जिले में स्थित है यह स्थान रायपुर जबलपुर मार्ग पर कवर्धा से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यह मंदिर चौरा गांव नामक गांव में स्थित है इस मंदिर से पूर्व दिशा में मैकल पर्वत श्रेणी स्थित है।
Bhoramdev मंदिर किसने और कब बनवाया :–
11 वीं शताब्दी के अंत में 1089 ईसवी के आसपास छठवे नागवंशी शासक गोपाल देव द्वारा यह Bhoramdev मंदिर निर्मित कराया गया था।
Bhoramdev मंदिर किसका मंदिर है :–
Bhoramdev मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जैसा कि खजुराहो के मंदिरों में है भोरमदेव मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है नागर शैली की अन्य मंदिरों की भांति यह 5 फीट ऊंचे चबूतरे पर निर्मित है।
गोंड आदिवासियों द्वारा भगवान शिव के एक रूप भोरमदेव के रूप में इसकी पहचान हुई है।
Bhoramdev मंदिर की विशेषताएं :–
A) चंदेल शैली अथवा नागर शैली का यह मंदिर 5 फीट ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किया गया है।
B) इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।
C) इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है इसलिए यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
D) इस मंदिर का नामकरण गोंड देवता भोरमदेव के नाम से लिया गया है।
E) यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल पर स्थित है मंदिर के चारों ओर पर्वत श्रृंखलाएं और घने वन क्षेत्र स्थित है।
F) मंदिर की बाहरी दीवारों पर मैथुनरत आकृतियां उकेरी गई हैं।
G) 1 हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी मंदिर अपनी मूल अवस्था में विद्यमान है। कुछ स्थानों पर क्षरण के लक्षण अवश्य दिखते हैं। किंतु फिर भी यह मंदिर अपनी मूल अवस्था में ही है।
कुछ प्रमुख मंदिरों से तुलना :–
Bhoramdev मंदिर की तुलना खजुराहो के मंदिरों और कोणार्क (उड़ीसा) के सूर्य मंदिरों से की जाती है। इन सभी मंदिरों के बाहरी दीवारों पर मैथुनरत आकृतियां उकेरी गई है, जो कई मायनों में आश्चर्य में डालने वाला है।
फिर भी आकार प्रकार में यह मंदिर खजुराहो के मंदिरों की अनुकृति प्रतीत होता है, पर खजुराहो के मंदिरों और भोरमदेव के मंदिरों को अलग-अलग राजवंशों ने बनवाया था।
जहां खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेल राजाओं ने कराया था वही भोरमदेव के मंदिर का निर्माण नागवंशी राजाओं द्वारा कराया गया था।
आधुनिक विवरण :–
18 वीं शताब्दी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रथम महानिदेशक कनिंघम सबसे पहले भोरमदेव पहुंचने वालों में थे । इस स्थान के अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख कनिंघम आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट में मिलता है।
पहुंच मार्ग/ पर्यटन :–
यह मंदिर दर्शन के लिए वर्ष भर खुला रहता है कभी भी यहां दर्शन के लिए पहुंचा जा सकता है, फिर भी मई से सितंबर के मध्य या गर्मी और बरसात का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए इन महीनों में यहां आने से बचना ही बेहतर होगा।
भोरमदेव मंदिर तक पहुंचने के विभिन्न साधन और उपलब्धता निम्न है।
सड़क मार्ग
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर इस स्थान के लिए प्राइवेट टैक्सी और सार्वजनिक परिवहन के साधन बस आदि उपलब्ध है।
एक ही दिन में रायपुर से इस मंदिर का दर्शन करके वापस लौटा जा सकता है, यह मंदिर रायपुर जबलपुर राज्य मार्ग पर स्थित है।
रेल मार्ग
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दुर्ग और रायपुर है। यहां तक रेल से पहुंचने के बाद सड़क मार्ग द्वारा भोरमदेव तक आसानी से पहुंचा जा सकता है
वायु मार्ग
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा माना रायपुर में स्थित है, जहां से सड़क मार्ग से यहां तक पहुंचा जा सकता है।
अन्य पर्यटन स्थल :–
भोरमदेव मंदिर के समीप कई अन्य पर्यटन स्थल है जिन्हें भी एक बार अवश्य विजिट करना चाहिए कुछ प्रमुख निम्न है।
मंडवा महल
Bhoramdev से 1 किलोमीटर दूर कबीरधाम मार्ग पर मंडवा महल स्थित है, मडवा महल को दूल्हा देव भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि यहां एक ऐतिहासिक विवाह हुआ था।
शिलालेख के आधार पर भी सिद्ध होता है कि नागवंशी राजा ने हैहय वंशीय राजकुमारी से यहां विवाह किया था इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचंद्र देव द्वारा 1349 ईस्वी में कराया गया था, इस महल के दो प्रमुख भाग हैं।
मंडप और गर्भगृह मंडवा महल की बाहरी दीवारों पर 54 विभिन्न मैथुनरत आसन आकृतियों को पत्थरों पर उकेरा गया है, इनमें खजुराहो और कोणार्क की दुर्लभ कला का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह स्थान एक विशेष महत्व रखता है।
छेरका महल
मंडवा महल से 1 किलोमीटर दूर और भोरमदेव मंदिर से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में यह छेरका महल स्थित है।
वस्तुतः यह महल ना होकर बल्कि शिव मंदिर है 14 वी सदी के इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है।
मंदिर के गर्भ गृह में बकरी (छेरी) के शरीर से आने वाली गंध लगातार आती रहती है ऐसा क्यों होता है यह अब तक रहस्य बना हुआ है, जबकि वहां कोई बकरी नहीं है संभवत इसीलिए इस मंदिर का नाम छेरका महल पड़ा है।
भोरमदेव अभयारण्य
वर्ष 2001 में निर्मित यह छत्तीसगढ़ का सबसे नवीनतम वन अभयारण्य है। 164 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में यह फैला हुआ है यहां बाघ तेंदुआ चीतल सांभर और नीलगाय को आसानी से देखा जा सकता है।
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