रजिया सुल्तान

 

सल्तनत काल के पुरुष प्रधान और महिलाओं के प्रति संकुचित सोच रखने वाले तुर्क मुस्लिम वातावरण में भी यदि कोई महिला सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाती है तो उसकी योग्यता नेतृत्व क्षमता और भाग्य का अभूतपूर्व सहयोगी ऐसा संभव बना सकता है रजिया सुल्तान का शासन अधिक लंबा तो नहीं था पर उसके शासनकाल में विद्रोह का लगातार दमन करने के अलावा रजिया ने लोगों की भलाई और उन्नति के भी कार्य किए

रजिया ने अपने शासन के प्रारंभ कल से ही तुर्क ऑन के चहलगाम के तुर्की सरदारों का विरोध झेलना पड़ा इस संगठन की स्थापना उसके पिता ने की थी जिसमें उसके 40 गुलाम तुर्क लड़के थे इस चार्जन के नाम से भी जाना जाता था शुरुआत में इन तुर्क सरदारों के षडयंत्रों को रजिया ने आसानी से प्रभावहीन कर दिया लेकिन कहीं ना कहीं उसका महिला होना ही उसका सबसे बड़ा दुर्भाग्य सिद्ध हुआ

मध्य कल में जब मुस्लिम शासको का दौर था कुछ समय किसी महिला का सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचना किसी आश्चर्य से काम नहीं है उसे दौर में मुस्लिम महिलाएं पर्दा के अंदर रहकर घरेलू कामकाज करती थी और शासन में उनका योगदान शून्य के बराबर ही था उसे दौर में रजिया सुल्तान ने न सिर्फ सप्ताह की बागडोर अपने हाथों में ली बल्कि सैनिक शक्ति को भी मजबूत किया और दिल्ली के जनता के लिए काम भी किया
रजिया सुल्तान दिल्ली की जनता तथा अमीरों के सहयोग से राज सिंहासन पर बैठी और चुकी रजिया को सुल्तान बनाने का अधिकार सिर्फ दिल्ली के अमीरों को मिला इसलिए अन्य तुर्क आमिर जैसे निजामुल मुल्क जुनैदी मलिक अलाउद्दीन जानी मलिक सैफुद्दीन कोच्चि मलीकुद्दीन कबीर खान और मालिक इजुद्दीन सैलरी आदि रजिया के प्रबल विरोधी बन गए थे रजिया ने जूझुद्दीन सैलरी और इजुद्दीन कबीर खान को अपनी तरफ करके विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया

सुल्तान की शक्ति और सम्मान में वृद्धि करने के लिए रजिया ने अपने व्यवहार में परिवर्तन किया वह पर्दा प्रथा को त्याग कर पुरुषों की तरह कुवा यानी कोर्ट और खुला यानी टोपी पहन कर राज दरबार में बिना मुंह ढके ही जाने लगी उसने अपने कुछ विश्वासपात्र सरदारों को कुछ पदों पर नियुक्त किया जिसमें इख्तियारूद्दीन को अमीर अजी मालिक जमालुद्दीन याकूब अभिषेक को अमीर अकुर मलिक इज्जाउद्दीन कबीर खान को लाहौर का हकदार और इख्तियारूद्दीन अल दुनिया को टावर हिंद या भटिंडा का हकदार नियुक्त किया गया

1240 ईस्वी में टाबर हिंद के अकड़ आधार दुनिया द्वारा किए गए विद्रोह को कुचलना के लिए रजिया को टाबर हिंद की ओर जाना पड़ा तुर्क अमीरों ने याकूत की हत्या कर रजिया को बंदी बना लिया तथा दिल्ली के सिंहासन पर इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र मोहिउद्दीन बहराम शाह को बैठाया गया तब हिंदी के हकदार इस दुनिया से विवाह कर रजिया ने पुनः दिल्ली के तहत को प्राप्त करने का प्रयत्न किया पर परम सनी कैथल के समीप दोनों की हत्या कुछ डाकुओं द्वारा करवा दी

रजिया दिल्ली सल्तनत की प्रथम तुर्क महिला शासकीय शासिका थी उसने अपने विरोधी गुलाम सरदारों पर पूर्ण नियंत्रण रखा रजिया की असफलता के कर्म में कुछ इतिहासकारों का विचार है कि रजिया का स्त्री होना ही उसकी असफलता का मुख्य कारण था परंतु कुछ आधुनिक इतिहासकार कामत है कि उसकी असफलता के पीछे गुलाम तुर्क सरदारों जिसे तुर्की चहलगामी का नाम दिया गया था उनकी महत्वाकांक्षा ही थी

मध्य कल में जब मुस्लिम शासको का दौर था कुछ समय किसी महिला का सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचना किसी आश्चर्य से काम नहीं है उसे दौर में मुस्लिम महिलाएं पर्दा के अंदर रहकर घरेलू कामकाज करती थी और शासन में उनका योगदान शून्य के बराबर ही था उस दौर में रजिया सुल्तान ने न सिर्फ सप्ताह की बागडोर अपने हाथों में ली बल्कि सैनिक शक्ति को भी मजबूत किया और दिल्ली के जनता के लिए काम भी किया
रजिया सुल्तान दिल्ली की जनता तथा अमीरों के सहयोग से राज सिंहासन पर बैठी और चुकी रजिया को सुल्तान बनाने का अधिकार सिर्फ दिल्ली के अमीरों को मिला इसलिए अन्य तुर्क आमिर जैसे निजामुल मुल्क जुनैदी मलिक अलाउद्दीन जानी मलिक सैफुद्दीन कोच्चि मलीकुद्दीन कबीर खान और मालिक इजुद्दीन सैलरी आदि रजिया के प्रबल विरोधी बन गए थे रजिया ने जूझुद्दीन सैलरी और इजुद्दीन कबीर खान को अपनी तरफ करके विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया

सुल्तान की शक्ति और सम्मान में वृद्धि करने के लिए रजिया ने अपने व्यवहार में परिवर्तन किया वह पर्दा प्रथा को त्याग कर पुरुषों की तरह कुवा यानी कोर् और खुला यानी टोपी पहन कर राज दरबार में बिना मुंह ढके ही जाने लगी उसने अपने कुछ विश्वासपात्र सरदारों को कुछ पदों पर नियुक्त किया जिसमें इख्तियारूद्दीन को अमीर अजी मालिक जमालुद्दीन याकूब अभिषेक को अमीर अकुर मलिक इज्जाउद्दीन कबीर खान को लाहौर का हकदार और इख्तियारूद्दीन अल दुनिया को टावर हिंद या भटिंडा का हकदार नियुक्त किया गया

रजिया सुल्तान कौन थी

प्रथम गुलाम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक रजिया सुल्तान के नाना थे और पिता इल्तुतमिश थे इस प्रकार रजिया सुल्तान एक तुर्क महिला थी जिसका जन्म बदायूं में 1205 में हुआ था रजिया सुल्तान ने 1236 से 1240 तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया था और उसके पति का नाम इख्तियारूद्दीन अलतुनिया था।

रजिया सुल्तान किसकी बेटी थी/ पिता का नाम

रजिया सुल्तान गुलाम शासक इल्तुतमिश की पुत्री थी इल्तुतमिश प्रथम गुलाम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम और दामाद था इल्तुतमिश शासन में तुर्कों के बढ़ते प्रभाव और दबाव के कारण तुर्कों का एक संगठन जिसे तुर्की चहलगामी का नाम दिया गया का गठन किया और यह प्रभावशाली संगठन भविष्य में शासन की अस्थिरता का केंद्र बिंदु बन गया था रजिया सुल्तान के शासन व्यवस्था में भी तुर्की चहलगामी का प्रभाव दिखाई देता है

रजिया सुल्तान की प्रेम कहानी

तत्कालीन ऐतिहासिक स्रोतों से ऐसा ज्ञात होता है कि रजिया सुल्तान का सलाहकार याकूत नाम का व्यक्ति था कुछ इतिहासकार उसे घुड़साल का अध्यक्ष भी बताते हैं
रजिया सुल्तान और याकूत के मध्य कुछ नजदीकियां अवश्य थी जिसे प्रेम कहानी का नाम दे दिया गया बरहाल जो भी हो इस संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि रजिया सुल्तान और याकूब प्रेमी प्रेमिका थे लेकिन इस अफवाह का प्रभाव रजिया सुल्तान के ऊपर अवश्य पड़ा जहां इसका विरोध उसके ही लोगों द्वारा किया जाने लगा और इसी विरोध का परिणाम था की साजिश के तहत याकूत की हत्या कर दी गई।