संविधान संशोधन लिस्ट । 120 संशोधनों की लिस्ट

भारतीय संविधान में नम्यता और और अनम्यता दोनों के लक्षण विद्यमान हैं।

भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से अब तक उस में 120 से अधिक संविधानिक संशोधन किए जा चुके

हैं। संवैधानिक संशोधनों का मुख्य उद्देश्य संविधान को और अधिक प्रभावी और समय अनुकूल बनाना है।

आइए जानते हैं अब तक हुए संविधान संशोधन लिस्ट के बारे में।

संविधान संशोधन लिस्ट –:

संविधान (प्रथम संशोधन 1) अधिनियम, 1951-

इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 15, 19, 85, 87, 174, 176, 314, 342, 372, और 376 में

संशोधन किये गये तथा दो नये अनुच्छेद 31-क तथा 31-ख और नवीं अनुसूची को संविधान में जोड़ा गया।

इस संशोधन अधिनियम द्वारा किये गये प्रावधानों में मुख्य प्रावधान निम्न प्रकार है. (i) अनुच्छेद 31 क को

जोड़कर जमींदारी उन्मूलन को वैधानिकता प्रदान किया तथा अनुच्छेद 31-ख जोड़कर यह प्रावधान किया गया

कि संविधान की नवी सूची में शामिल किये गये अधिनियमों की वैधानिकता को न्यायालय में चुनौती दी जा

सकती है। (ii) अनुच्छेद 19 (2) में संशोधन करके लोक व्यवस्था, विदेशी राज्यों से मैत्री सम्बन्ध तथा अपराध

के उद्दीपन के आधार पर वाक्य एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर रोक लगायी गयी। (ii) अनुच्छेद 15 (4) को

जोड़कर सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए लोगों के सम्बन्ध में विशेष कानून निर्माण हेतु राज्य को

अधिकार दिया गया।

संविधान (द्वितीय संशोधन 2) अधिनियम, 1952-

इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 81 (1) (ख) में संशोधन करके 1951 की जनगणना के आंकड़ों के

आधार पर लोकसभा की अधिकतम संख्या निश्चित की गयी।

 संविधान (तीसरा संशोधन 3) अधिनियम, 1954-

इस अधिनियम द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची (समवर्ती सूची) की प्रविष्टि 33 में

विस्तार किया गया, जिससे आवश्यकता पड़ने पर संघ सरकार आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति तथा

वितरण के सम्बन्ध में कानून बना सके।

संविधान (चतुर्थ संशोधन 4) अधिनियम, 1955-

इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 31, 31 तथा 305 में संशोधन करके यह व्यवस्था की गयी कि यदि राज्य

सार्वजनिक प्रयोजन के लिए कानून द्वारा किसी व्यक्तिगत सम्पत्ति के अर्जन के लिए प्रतिकर निर्धारण का

अधिकार प्राधिकारी को प्रदान कर दे, तो प्राधिकारी द्वारा निर्धारित प्रतिकर को न्यायालय में चुनौती नहीं दी

जा सकती।

 संविधान (पांचवां संशोधन 5) अधिनियम, 1955-

इस संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 3 में संशोधन करके यह व्यवस्था की गयी कि राज्यों की सीमा में

परिवर्तन करने के सम्बन्ध में राज्य विधानसभा को अपनी राय प्रकट करने का जो अधिकार संविधान द्वारा

प्रदत्त है, उसके बारे में राय प्रकट करने का समय राष्ट्रपति द्वारा निश्चित कर दिया जाय और यदि राष्ट्रपति

द्वारा निहित समय सीमा के अन्तर्गत राज्य विधानसभा अपनी राय न दे, तो संसद उस सम्बन्ध में कानून

बना सकती हैं।

संविधान (छटवां संशोधन 6) अधिनियम, 1956 –

इसके द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रथम सूची (संघ सूची) में संशोधन करके एक नयी प्रविष्टि, 92

क, को जोड़ा गया और इसके द्वारा केन्द्र के. अन्तर्राज्यिक क्रय तथा विक्रय के सम्बन्ध में कानून बनाने का

अधिकार दिया गया। इसके अतिरिक्त इस संशोधन द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में

वृद्धि की गयी तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उचतम न्यायालय में वकालत करने की अनुज्ञा दी गयी।

संविधान (सातवां संशोधन 7) नियम 1956

इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुच्छेद सूची में संशोधन करके राज्यों को 14 राज्यों तथा 6 संघराज्य क्षेत्रों

में पुर्नगठित किया गया।

 संविधान (आठवां संशोधन 8) अधिनियम 1960

इस संशोधन द्वारा प्रावधान किया गया कि अनुच्छेद 334 में संशोधन करके अनुसूचित जातियों तथा

जनजातियों के लिए लोकसभा तथा राज्यसभा विधानसभाओं में आरक्षण की अवधि को 20 वर्ष तक के लिए

बढ़ाया गया।

 संविधान (नौवां संशोधन 9) अधिनियम, 1960-

संशोधन द्वारा भारत द्वारा पाकिस्तान के मध्य भूमि हस्तान्तरण के लिए किये ये मौते को कार्यान्वित करने

के लिए भारत के भू-भाग को हस्तान्तरित करने का अधिकार दिया गया।

संविधान ( दसवां संशोधन 10) अधिनियम, 1961-

इसके द्वारा दादरा तथा नागर हवेली नामक दोनों बस्तियों को भारत संघ राज्य क्षेत्र के रूप में शामिल किया

गया।

संविधान (ग्यारहवां संशोधन 11) अधिनियम, 1961-

इस संशोधन द्वारा प्रावधान किया गया कि (i) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती

नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मण्डल अपूर्ण है, तथा (ii) उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए संसद के दोनों सदनों

की संयुक्त बैठक बुलाना आवश्यक नहीं है।

संविधान (बारहवां संशोधन 12) अधिनियम, 1962-

इस संशोधन द्वारा गोवा, दमन तथा दीव को भारत का संघ राज्य क्षेत्र पोषित किया गया।

द्वारा नागालैण्ड को राज्य की श्रेणी में रखकर संविधान की प्रथम अनुसूची में

 संविधान (तेरहवां संशोधन 13) अधिनियम, 1962-

इसके शामिल किया गया तथा संविधान में अनुच्छेद 371 के अन्तःस्थापित करके नागालैण्ड के सम्बन्ध में

विशेष प्रावधान किया गया।

संविधान (चौदहवां संशोधन 14) अधिनियम, 1962-

इसके द्वारा पाण्डचेरी को भारत का अंग तथा संघ राज्य क्षेत्र में विधान सभा तथा मन्त्रिपरिषद की स्थापना

का अधिकार दिया गया और अनुछेद 239-क जोड़कर पाण्डिचेरी के लिए विधान सभा तथा मन्त्रिमण्डल के

गठन हेतु प्रावधान किया गया।

 संविधान (पन्द्रहवां संशोधन 15) अधिनियम, 1963-

इसके द्वारा उच्च न्यायालयों की अधिकारिता में वृद्धि की गयी तथा उम्र न्यायालयों के न्यायाधीशों की

सेवानिवृत्ति आयु को 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।

संविधान (सोलहवां संशोधन 16) अधिनियम, 1963-

इस संशोधन द्वारा निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं

(i) राज्य की संप्रभुता तथा अखण्डता की रक्षा हेतु राज्य मूलाधिकारों पर युक्तियुक्त निर्वन्धन लगा सकते हैं,

(ii) किसी भी राज्य के भारत संघ से पृथक होने तथा संघ को भंग करने के प्रयास को अवैध घोषित कर दिया

गया, तथा

(iii) संसद तथा राज्य विधानमण्डल के सदस्यों को भारत की अखण्डता बनाये रखने के तथा प्रभुत्वसम्पन्नता

की रक्षा की शपथ ग्रहण करनी होगी।

संविधान (सत्रहवां संशोधन 17) अधिनियम, 1964-

इसके द्वारा नवीं अनुसूची में 44 अधिनियम जोड़े गये तथा सम्पत्ति के अधिकार को स्पष्ट किया गया।

 संविधान (अठारहवां संशोधन 18) अधिनियम, 1966-

इसके द्वारा अनुच्छेद 3-क को जोड़कर यह प्रावधान किया गया कि संसद किसी

राज्य का या संघ राज्य क्षेत्र के एक भाग का गठन कर सकती है तथा पंजाब को पुर्नगठित करके पंजाब एवं

हरियाणा राज्य तथा हिमाचल संघ राज्य क्षेत्र की स्थापना की गयी।

 संविधान (उन्नीसवां संशोधन 19) अधिनियम, 1966 –

इसके द्वारा निर्वाचन न्यायाधिकरणों को समाप्त करके व्यवस्था की गयी कि निर्वाचन

संबंधी विवादों को सीधे उच्च न्यायालय में दाखिल किया जा सकता है।

 संविधान (बीसवां संशोधन 20) अधिनियम 1966

इसके द्वारा जिला न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानान्तरणों को वैधता प्रदान की गयी तथा

अनुच्छेद 233-क को जोड़ा गया।

 संविधान (इक्कीसवां संशोधन 21) अधिनियम, 1967-

आठवीं अनुसूची में राजभाषा की सूची में सिन्धी भाषा को जोड़ा गया।

 संविधान (बाईसवां संशोधन 22) अधिनिमय, 1969-

इसके द्वारा मेघालय राज्य की स्थापना गयी तथा अनुच्छेद 244 क, 371-ख तथा 275 (1-ख) जोड़ा गया।

 संविधान (तेइसवां संशोधन 23) अधिनियम, 1970-

इसके द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा तथा विधानसभाओं में

आरक्षण की अवधि को और दस वर्ष तक बढ़ाया गया।

 संविधान (चौबीसवां संशोधन 24) अधिनियम, 1971-

इसके द्वारा अनुच्छेद 13 में खण्ड (4) को जोड़कर तथा अनुच्छेद 368 को संशोधित करके संसद को संविधान

संशोधन का असीमित अधिकार दिया गया।

 संविधान (पच्चीसवां संशोधन 25) अधिनियम, 1971-

इसके द्वारा अनुच्छेद 31 के खण्ड (2) का संशोधन किया गया तथा अनुच्छेद 31 ग जोड़ा गया।

 संविधान (छब्बीसवां संशोधन 26) अधिनियम, 1971 –

इसके द्वारा भूतपूर्व नरेशों के विशेषाधिकारों तथा शिवी पर्स के अधिकार को समाप्त किया गया।

संविधान (सत्ताईसवां संशोधन 27) अधिनियम, 1971-

इसके द्वारा भारत के पूर्वी राज्यों का पुर्नगठन करके तीन नये राज्यों, मेघालय, मणिपुर तथा त्रिपुरा और दो

संघ राज्य क्षेत्रों मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश का गठन किया गया तथा मणिपुर राज्य के सम्बन्ध में विशेष

प्रावधान किया गया और पूर्वोत्तर राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासन में सहयोग तथा समन्वय के लिए

पूर्वोत्तर सीमान्त परिषद की स्थापना की गयी।

 संविधान (अठ्ठाईसवां संशोधन 28) अधिनियम, 1972-

इस संशोधन द्वारा संसद को कुछ प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों की सेवा शर्तों में परिवर्तन करने तथा

उनकी सेवाओं को समाप्त करने का अधिकार दिया गया तथा भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारियों के

विशेषाधिकारों को समाप्त किया गया।

संविधान (उन्नतीसवां संशोधन 29) अधिनियम, 1972-

इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान की 9 वीं अनुसूची में कुछ अधिनियमों को जोड़ा गया।

 संविधान (तीसवां संशोधन 30) अधिनियम, 1972-

इस संशोधन का उद्देश्य अनुच्छेद 133 का संशोधन करके उसमें निर्धारित 20,000 रुपये की मूल्यांकन परीक्षा

समाप्त करना तथा उसके स्थान पर सिविल कार्यवाही में उच्चतम पायालय में अपील की व्यवस्था करना है।

जो केवल उच्च न्यायालय के इस प्रमाण-पत्र पर ही की जा सकेगी कि उस मामले में सामान्य महत्व की विधि

का सारवान प्रश्न अंतर्ग्रस्त है और उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय द्वारा

निर्णय लिये जाने की आवश्यकता है।

 संविधान (इकतीसवां संशोधन 31) अधिनियम, 1973 –

इस संशोधन द्वारा 1971 की जनगणना के आधार पर लोक सभा की सदस्य संख्या 545 निश्चत की गयी,

जिनमें से 525 राज्यों की जनता द्वारा तथा संघ राज्य क्षेत्रों की जनसंख्या द्वारा निर्वाचित किये जायेंगे और

आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामजद किये जायेंगे।

 संविधान (बत्तीसवां संशोधन 32) अधिनियम, 1974-

इसके द्वारा अनुच्छेद 371-घ तथा 371- जोड़कर आन्ध्र प्रदेश के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान किया गया।

 संविधान (तैतीसवां संशोधन 33) अधिनियम, 1974-

इसके द्वारा संविधान के अनुच्छेद 101 तथा 191 में संशोधन करके यह व्यवस्था की गयी कि संसद या राज्य

विधान मण्डलों के सदस्यों से बलपूर्वक त्यागपत्र नहीं दिलवाया जा सकता।

 संविधान (चौतीसवां संशोधन 34) अधिनियम, 1974-

इसके द्वारा नवीं अनुसूची में कुछ अधिनियमों को जोड़ा गया।

 संविधान (पैतीसवां संशोधन 35) अधिनियम, 1974-

इसके द्वारा सिक्किम को सह राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।

 संविधान (छत्तीसवां संशोधन 36) अधिनियम, 1975-

इस संशोधन द्वारा सिक्किम को भारत के साथ मिला लिया गया और उसे भारत का बाईसवां राज्य बनाया गया।

 संविधान (सैतीसवां संशोधन 37) अधिनियम 1975 –

संघ राज्य क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद के गठन की व्यवस्था की गयी।

 संविधान (अड़तीसवां संशोधन 38) अधिनियम, 1975-

इसके द्वारा यह व्यवस्था की गयी कि राष्ट्रपति, राज्यपालों तथा उपराज्यपालों द्वारा घोषित आपात स्थिति वाले अध्यादेशों की वैधानिकता की जांच न्यायालय नहीं कर सकते।

 संविधान (उन्तालीसवां संशोधन 39) अधिनियम, 1975-

इस संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गयी कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभाध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री के निर्वाचन को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसे 44 वें संशोधन द्वारा समाप्त कर दिया गया है।

 संविधान (चालीसवां संशोधन 40) अधिनियम 1976-

इसके द्वारा नवीं अनुसूची में कुछ अधिनियमों को जोड़ा गया है।

 संविधान (इक्तालीसवां संशोधन 41) अधिनियम, 1976-

इसके द्वारा अनुच्छेद 316 (2) में संशोधन करके राज्यों के लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों तथा सदस्यों के सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष की गयी।

संविधान (बयालीसवां संशोधन 42) अधिनियम, 1976-

इसके द्वारा संविधान में निम्नलिखित परिवर्तन किये गये–

(i) संविधान की उद्देशिका में “पंथ निरपेक्ष, समाजवादी तथा अखण्डता ” शब्दों को जोड़ा गया।

(ii) अनुच्छेद 31-ग जोड़कर यह प्रावधान किया गया कि नीति निदेशक तत्त्वों को प्रभावी करने के लिए

मूलाधिकार में संशोधन किया जा सकता है।

(iii) भाग 4-क तथा अनुच्छेद 51-क जोड़कर नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया।

(iv) लोकसभा तथा विधानसभाओं के कार्य काल में एक वर्ष की वृद्धि की गयी।

(v) संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया।

(vi) केन्द्र को यह अधिकार दिया गया कि वह चाहे, तब राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकता है।

(vii) संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह यह निर्धारण कर सकती है कि कौन सा पद लाभ का पद है।

(viii) यह प्रावधान किया गया कि संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के लिए गणपूर्ति आवश्यक नहीं है।

 संविधान (तैंतालीसवाँ संशोधन 43) अधिनियम, 1977-

इसके द्वारा 42वें संवैधानिक संशोधन की कुछ धाराओं को निरस्त किया गया।

 संविधान (चौवालीसवां संशोधन 44) अधिनियम, 1978-

इस संशोधन अधिनियम द्वारा निम्नलिखित प्रावधान किये गये –

(i) सम्पत्ति के मूलाधिकार को समाप्त करके इसे विधिक अधिकार बना दिया गया। (ii) लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि पुनः 5 वर्ष कर दी गयी।

(iii) राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद को हल करने के लिए उच्चतम न्यायालय को अधिकार दिया गया। (iv) राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि यह मंत्रिमण्डल की सलाह, जो उसे दी गयी है, को पुनः

मंत्रिमण्डल के विचारार्थ वापस भेज सकता है तथा पुनः दी गई सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।

(v) राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा तभी करेगा, जब उसे

इसकी लिखित सूचना दी जाय। (vi) राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपात की उद्घोषणा का अनुमोदन संसद द्वारा एक मास के अन्तर्गत किया जाना चाहिए। (vii) राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा ‘आन्तरिक अशान्ति के आधार

पर नहीं की जा सकती बल्कि ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण की जा सकती है।

 संविधान (पैंतालीसवां संशोधन 45) अधिनियम, 1980-

इसके द्वारा लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के आरक्षण में दस वर्ष की वृद्धि की गयी।

 संविधान (छियालीसवां संशोधन 46) अधिनियम, 1982-

इसके द्वारा कुछ वस्तुओं के सम्बन्ध में विक्रीकर की समान दरें और बसूली

की एक समान व्यवस्था को अपनाया गया।

 संविधान (सैंतालीसवां संशोधन 47) अधिनियम 1982-

इसके द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों को जोड़ा गया।

 संविधान (अड़तालीसवां संशोधन 48) अधिनियम, 1984-

इसके द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 (5) में परिवर्तन करके यह व्यवस्था की कि पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि को दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

 संविधान (उनचासवां संशोधन 49) अधिनियम, 1984-

इसके द्वारा अनुच्छेद 244 तथा पांचवीं और छठीं अनुसूची में संशोधन करके त्रिपुरा में स्वायत्तशासी जिला परिषद की स्थापना का प्रावधान किया गया।

 संविधान (पचासवां संशोधन 50) अधिनियम, 1984-

इसके द्वारा अनुच्छेद 33 को पुनः स्थापित करके सुरक्षा बलों के मूलाधिकारों को प्रतिबन्धित किया गया।

 संविधान (इक्यावनवां संशोधन 51) अधिनियम 1984-

इस संशोधन द्वारा मेघालय, नागालैण्ड अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसूचित जनजातियों को लोकसभा में आरक्षण प्रदान किया गया तथा नागालैण्ड और मेघालय की विधानसभाओं में जनजातियों के लिए

आरक्षण की व्यवस्था की गयी।

संविधान (बावनवां संशोधन 52) अधिनियम, 1985 –

इसके द्वारा संविधान के अनुच्छेद 101, 102, 190 तथा 192 में संशोधन करके तथा संविधान में दसवीं अनुसूची को जोड़कर दल-बदल को रोकने के लिए इ कानून बनाया गया।

 संविधान (तिरपनवां संशोधन 53) अधिनियम, 1986-

इसके द्वारा मिजोरम को राज्य की श्रेणी में रखा गया तथा अनुच्छेद 371-छ को जोड़कर मिजोरम राज्य के लिए विशेष व्यवस्था की गयी।

 संविधान (चौवनवां संशोधन 54) अधिनियम 1986-

इसके द्वारा उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन तथा सेवा शर्तों में सुधार किया गया।

 संविधान (पचपनवां संशोधन 55) अधिनियम, 1986-

इसके द्वारा अरुणाचल प्रदेश को राज्य की श्रेणी में रखा गया तथा अनुच्छेद 371-ज को जोड़कर अरुणाचल प्रदेश के लिए विशेष व्यवस्था की गयी।

 संविधान (छप्पनवां संशोधन 56) अधिनियम, 1987-

इसके द्वारा गोवा को राज्य की श्रेणी में तथा दमन और दीव को गोवा से अलग करके संघ राज्य क्षेत्र की श्रेणी में रखा गया।

 संविधान (सत्तावनवां संशोधन 57) अधिनियम, 1987-

इसके द्वारा मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश की विधान सभाओं में जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी।

संविधान (अठावनवां संशोधन 58) अधिनियम, 1987-

इसके द्वारा संविधान में अनुच्छेद 394-के जोड़कर संविधान के हिन्दी में प्राधिकृत पाठ को प्रकाशित करने की व्यवस्था की गयी।

 संविधान (उनसटवां संशोधन 59) अधिनियम, 1988-

इस संशोधन के द्वारा राज्यों में राष्ट्रपति शासन को 3 वर्ष तक बढ़ाने की व्यवस्था की गयी।

 संविधान (साठवां संशोधन 60) अधिनियम, 1988-

इसके द्वारा अनुच्छेद 276 में संशोधन करके नगरपालिकाओं द्वारा लगाये जाने वाले वृत्तिकर की अधिकतम सीमा 250 से बढ़ाकर 2500 रु. कर दी गयी।

 संविधान (इकसठवां संशोधन 61) अधिनियम, 1989-

इसके द्वारा अनुच्छेद 326 में संशोधन करके लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में मतदान करने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से कम कर 18 वर्ष कर दी गयी।

 संविधान (बासठवां संशोधन 62) अधिनियम, 1989-

इसके द्वारा लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के आरक्षण में 10 वर्ष की और वृद्धि की गयी।

 संविधान (तिरसठवां संशोधन 63) अधिनियम, 1990-

इसके द्वारा संविधान के 59वें संशोधन की व्यवस्था को समाप्त किया गया।

 संविधान (चौसठवां संशोधन 64) अधिनियम, 1990-

इसके द्वारा पंजाब में राष्ट्रपति शासन में वृद्धि की गयी।

 संविधान (पैंसठवां संशोधन 65) अधिनियम, 1990-

इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गयी।

 संविधान (छियासठवां संशोधन 66) अधिनियम, 1990-

इसके द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों को जोड़ा गया।

 संविधान (सरसठवां संशोधन 67) अधिनियम, 1990-

इसके द्वारा अनुच्छेद 356 में संशोधन करके पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि 4 वर्ष तक बढ़ायी गयी।

 संविधान (अरसठवां संशोधन 68) अधिनियम, 1991 –

इसके द्वारा अनुच्छेद 356 में संशोधन करके पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि 5 वर्ष तक बढ़ा दी गयी।

 संविधान (उनहत्तरवां संशोधन 69) अधिनियम, 1991-

इसके द्वारा संविधान में अनुच्छेद 239-कक तथा 239-खख जोड़कर दिल्ली का नाम राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली किया गया तथा इसके लिए 70 सदस्यीय विधानसभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिमण्डल के गठन का

प्रावधान किया गया।

संविधान (सत्तरवां संशोधन 70) अधिनियम, 1992-

इसके द्वारा दिल्ली तथा पाण्डिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों के विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन मण्डल में शामिल करने का प्रावधान किया गया।

 संविधान (इकहत्तरवां संशोधन 71) अधिनियम, 1992-

इसके द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में 3 और भाषाओं मणिपुरी, नेपाली तथा कोंकणी को जोड़ा गया।

संविधान (बहत्तरवां संशोधन 72) अधिनियम, 1992-

इसके द्वारा लोकसभा तथा राज्यसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन के लिए परिसीमन आयोग के गठन की व्यवस्था की गयी है।

 संविधान (तिहत्तरवां संशोधन 73) अधिनियम, 1993-

इसके द्वारा संविधान में भाग 9 तथा अनुच्छेद 243-243-क और अनुसूची II को जोड़कर सम्पूर्ण भारत में पंचायती राज की स्थापना का प्रावधान किया गया है ।

 संविधान (चौहत्तरवां संशोधन 74) अधिनियम, 1993-

इसके द्वारा संविधान में भाग 9-क, अनुच्छेद 243-त, 243-यछ और बारहवीं अनुसूची जोड़कर नगरीय स्थानीय शासन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है।

 संविधान (पचहत्तरवां संशोधन 75) अधिनियम, 1994-

इसके द्वारा राज्य स्तर पर मकानों के रेंट से संबंधित ट्रिब्यूनलों के गठन की व्यवस्था की गयी है ।

संविधान (छिहत्तरवां संशोधन 76) अधिनियम, 1994 –

इसके द्वारा संविधान के नौवीं अनुसूची में तमिलनाडु बैकवर्ड क्लासेस, शिड्यूल कास्ट्स एंड शिड्यूल ट्राइस (रिजर्वेशन ऑफ सीट्स इन एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस एंड अपोयंटमेंट आफ पोस्ट्स फार सर्विसेज अंडर स्टेट

एक्ट्स) 1993 में को शामिल किया गया। इस संविधान संशोधन द्वारा तमिलनाडु में स्थित शिक्षण संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 69% आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। यह संशोधन अधिनियम 31 अगस्त 1994 को प्रभावी हुआ।

 संविधान ( सतहत्तरवां संशोधन 77) अधिनियम, 1995-

संविधान के अनुच्छेद 16, में एक नया उपखण्ड (4 क) जोड़कर एक उपबंध किया गया है जिसके अनुसार राज्य के अधीन सेवाओं में पदोन्नति के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण प्रदान किया जा सकेगा।

संविधान (अठहत्तरवां संशोधन 78) अधिनियम, 1995-

इसके द्वारा संविधान की नींवीं अनुसूची में भूमि सुधार से संबंधित 27 अतिरिक्त अभिनियम जोड़ दिए गए ताकि उन्हें मूल अधिकारों या अतिक्रमण करने के आधार पर अमान्य नहीं किया जा सके। इस प्रकार 9वीं

अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गयी है।

 संविधान (उन्नासीवां संशोधन 79) अधिनियम, 1999-

इसके द्वारा संविधान के अनुच्छेद 330 में संशोधन कर 50 वर्ष के स्थान पर 60 वर्ष शब्द रखा गया है। इस प्रकार इस संशोधन के द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए लोकसभा व राज्य

विधानसभाओं में आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष के लिए और बढ़ा दिया गया है। अब यह व्यवस्था संविधान लागू होने की तिथि से 60 वर्ष अर्थात् 2010 तक बनी रहेगी।

 संविधान (अस्सीवां संशोधन 80) अधिनियम, 2000-

यह संशोधन 10वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर किया गया है, जिसने कुछ केन्द्रीय करों तथा शुल्कों में से होने वाली आय में से राज्यों को 29% देने के लिए सिफारिश किया है। इस संशोधन के द्वारा

अनुच्छेद 269 के खण्ड (1) और (2) के स्थान पर नया खण्ड तथा अनुच्छेद 270 के स्थान पर नया अनुच्छेद रखा गया है जबकि अनुच्छेद 272 को समाप्त कर दिया गया है। ये संशोधन 1 अप्रैल, 1996 से लागू माना गया है।

 संविधान (इक्कासीवां संशोधन 81) अधिनियम, 2000-

इस संशोधन के द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की 50% की सीमा, जो उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया था, को समाप्त कर दिया

गया है। इस प्रकार अब एक वर्ष में न भारी जाने वाली बकाया रिक्तियों को एक पृथक वर्ग माना जाएगा और अगले वर्ष में भरा जाएगा भले ही उसकी सीमा 50% से अधिक हो। इसके लिए अनुच्छेद 16 में खण्ड (4क) के

बाद एक नया खण्ड (4ख) जोड़ा गया है।

संविधान (बयासीवां संशोधन 82) अधिनियम, 2000-

इस संविधान संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नतियों के मामले में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांकों में छूट प्रदान

करने की अनुमति प्रदान की गई है। इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के परिणामस्वरूप 1997 में इस छूट को वापस ले लिया गया था।

 संविधान (तिरासीवां संशोधन 83) अधिनियम, 2000-

इस संशोधन के तहत अरुणाचल प्रदेश को पंचायतीराज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की

छूट प्रदान की गई है। ध्यातव्य है कि अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होन के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।

 संविधान (चौरासीवां संशोधन 84) अधिनियम, 2001 –

इस संशोधन द्वारा 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 में निर्वाचन क्षेत्रों में परिसीमन पर लगे प्रतिबंध को समाप्त करने का प्रावधान किया गया हैं। तथा 1991 की जनगणना के आधार पर राज्य के भीतर

परिसीमन की अनुमति प्रदान की गयी है। साथ ही संबंधित अनुच्छेदों के प्रावधान में भी संशोधन करते हुए लोकसभा एवं विधानसभा सीटों की संख्या निर्धारण पर लगे प्रतिबंध को 2000 से 2026 तक बढ़ा दिया गया है।

 संविधान (पच्चासीवां संशोधन 85) अधिनियम, 2002 –

इस संशोधन के द्वारा सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण की सुविधा उपलब्ध हो गई है। इस संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 16 (4)-ए में

संशोधन करते हुए यह प्रावधान किया गया है कि अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को 17 जून, 1995 से नियमानुसार पदोन्नति दी जाएगी।

संविधान (छियासीवां संशोधन 86) अधिनियम, 2002 –

संविधान का 86 वां संविधान संशोधन वर्ष 2002 में किया गया था इस संशोधन  के अंतर्गत अनुच्छेद 21 ए 45

और 51 ए (के) में संशोधन किए गए थे और इसके द्वारा यह व्यवस्था की गई थी कि राज्य द्वारा 6 से 14

साल के सभी बच्चों को निशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।

संविधान (सतासीवां संशोधन 87) अधिनियम, 2003 –

संविधान का 87 वां संविधान संशोधन वर्ष 2003 में किया गया था इस संशोधन में अनुच्छेद 81 (3) II, 82 (II) , 170 (I) , 330 में संशोधन किया गया था।

इस संशोधन के द्वारा परिसीमन में जनसंख्या का आधार वर्ष 1991 की जनगणना के स्थान पर वर्ष 2001 की जनगणना पर कर दी गई है।

संविधान (अठासीवां संशोधन 88) अधिनियम, 2003

संविधान का 88 वां संविधान संशोधन वर्ष 2003 में किया गया था संविधान के इस संशोधन के द्वारा

अनुच्छेद 268, 269, 270 और सातवीं अनुसूची में संघीय सूची और 92 (C) में संशोधन किए गए।

संघ और राज्य संघ द्वारा लगाए गए सेवा करो को एकत्र करने के विषय में प्रावधान इस संशोधन द्वारा किए गए हैं।

संविधान (नवासीवां संशोधन 89) अधिनियम, 2003

संविधान का 89 वां संविधान संशोधन वर्ष 2003 में किया गया था संविधान के इस संशोधन के द्वारा

अनुच्छेद 338, में संशोधन किए गए। 338 A को जोड़ा गया है।

इस संशोधन के द्वारा  राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में विभाजित किया गया था।

संविधान (नब्बेवां संशोधन 90) अधिनियम, 2003

संशोधित धारा 332 में संशोधन किए गए

बोडोलैंड क्षेत्र क्षेत्र से संबंधित असम विधानसभा में आरक्षण  प्रावधान।

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