भारत में पंचायतों की कार्यप्रणाली और अस्तित्व के प्रमाण वैदिक युग से ही मिलने लगते हैं महाजनपद काल में भी पंचायत अपने कार्यप्रणाली और अस्तित्व के साथ विद्यमान थी इस प्रकार से प्राचीन काल से ही
पंचायती राज व्यवस्था भारत में विद्यमान है।
मुस्लिम शासकों और फिर मुगल काल में भी गांव में पंचायती व्यवस्था कायम थी।
ब्रिटिश काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया था।
ब्रिटिश युग में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की स्थिति पर जांच करने और उनके गठन के संबंध में सिफारिश करने के लिए 1882 और फिर 1907 में शाही आयोगों का गठन किया गया था।
इन आयोगों ने स्वायत्त संस्थाओं के विकास पर बल दिया जिसके फलस्वरूप 1920 में संयुक्त प्रांत असम, बंगाल, बिहार, मद्रास और पंजाब में पंचायतों की स्थापना के लिए कानून बनाए गए।
पंचायतों के संबंध में संवैधानिक प्रावधान –:
संविधान के भाग 4 के नीति निर्देशक तत्वों में अनुच्छेद 40 के अंतर्गत राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है, इसके अतिरिक्त संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लेखित राज्य सूची की प्रविष्टि नंबर 5 में
ग्राम पंचायतों को शामिल करके इसके संबंध में कानून बनाने का अधिकार राज्य को दिया गया है। 1993 में संविधान में 73 वा संविधान संशोधन करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है।
संविधान के भाग 9 को पुनः जोड़ कर तथा इस भाग में 16 नए अनुच्छेदों (243 से 243-O तक) और संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायतों के संबंध में व्यापक प्रावधान किए गए हैं।
पंचायतों के गठन की पृष्ठभूमि –:
स्वतंत्रता के बाद ग्राम स्वराज की भावना के साथ केंद्र में पंचायती राज और सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई, आम जन को इस व्यवस्था से जोड़ने के लिए 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास
कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम में विकासखंड को इकाई बनाकर विकास के लिए सरकारी कर्मचारियों के साथ आम जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास था।
यह कार्यक्रम असफल हुआ और असफल होने का मुख्य कारण था कि, जनता को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं दिया गया और यह सिर्फ सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों तक सीमित रह गया।
इसके बाद 2 अक्टूबर 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा को आरंभ किया गया यह कार्यक्रम भी असफल ही सिद्ध हुआ।
अब तक तत्कालीन सरकार को यह समझ आ चुका था कि पंचायती राज व्यवस्था को सफल बनाने के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता है। फिर विस्तृत अध्ययन और सुझाव के लिए बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया।
बलवंत राय मेहता समिति –:
ग्रामीण पंचायत स्वशासन की स्थापना के लिए शुरू किए गए सामुदायिक विकास कार्यक्रम और फिर राष्ट्रीय प्रसार सेवा के असफल होने के बाद पंचायती राज व्यवस्था को नए सिरे से स्थापना के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन किया गया।
समिति की सिफारिशों के अनुसार देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया गया ।
i) ग्राम या नगर पंचायत
ii) तहसील पंचायत और
iii)जिला पंचायत
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की मूल इकाई प्रखंड और समिति के स्तर पर होने की सिफारिश की गई, गांव के समूहों के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचित पंचायतें खंड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली पंचायत समितियों
और जिला स्तर पर जिला परिषद गठित करने का सुझाव दिया गया।
समिति के सिफारिशों को 1 अप्रैल 1958 को लागू किया गया समिति के सुझाव के अनुरूप 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा पंचायती राज व्यवस्था का उद्घाटन किया गया।
इसके बाद कई अन्य राज्यों में भी पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ हुआ।
अशोक मेहता समिति –:
बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियां उत्पन्न हो गई, जिन्हें समाप्त करने के लिए 1977 में अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।
13 सदस्यों वाली इस समिति ने 1978 में कुल 132 सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट सौंप दी इस समिति में दो स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की थी।
डॉ. पी वी के राव समिति –:
1985 में डॉ राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया और उसे यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा गरीबी को दूर करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफारिश करें।
इस समिति में राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद जिला स्तर पर जिला परिषद मंडल स्तर पर मंडल पंचायत तथा गांव स्तर पर ग्राम सभा के गठन की सिफारिश की।
इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की सिफारिश की लेकिन इस समिति की सिफारिशों को कभी भी लागू नहीं किया गया।
डॉ एल एम सिंघवी समिति –:
पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा करने तथा उनमें सुधार करने के संबंध में सिफारिश करने के लिए सिंघवी समिति का गठन किया गया।
इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गांव के पुनर्गठन की सिफारिश की तथा साथ ही सुझाव भी दिया कि गांव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराई जाए।
पी के थुंगन समिति –:
1988 में पी के थुंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ जिसे पंचायती राज संस्थाओं पर सुझाव देने का दायित्व दिया गया इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि पंचायती राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए।
इस समिति की सिफारिशों के आधार पर पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64 वां संविधान संशोधन लोकसभा में प्रस्तुत हुआ किंतु दुर्भाग्य से राज्यसभा द्वारा पारित नहीं किया गया।
16 दिसंबर 1991 को 72 वा संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति प्रवर समिति को सौंप दिया गया, इस समिति ने विधेयक पर अपनी सहमती जुलाई 1992 में दे दी, और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वां संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया।
22 दिसंबर 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसंबर 1992 को राज्यसभा ने इसे पारित कर दिया।
17 राज्य की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किए जाने पर इसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा गया।
राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल 1993 को इस पर अपनी सहमति दे दी और इस प्रकार 24 अप्रैल 1993 से विधेयक कानून के रूप में लागू हो गया।
पंचायती राज संबंधी संवैधानिक उपबंध –:
1 | अनुच्छेद 243 | परिभाषाएं | |
2 | अनुच्छेद 243 | A | ग्राम सभा |
3 | अनुच्छेद 243 | B | ग्राम पंचायतों का गठन |
4 | अनुच्छेद 243 | C | पंचायतों की संरचना |
5 | अनुच्छेद 243 | D | स्थानों का आरक्षण |
6 | अनुच्छेद 243 | E | पंचायतों की अवधि |
7 | अनुच्छेद 243 | F | सदस्यता के लिए अयोग्यताएं |
8 | अनुच्छेद 243 | G | पंचायतों की शक्तियां प्राधिकार और उत्तरदायित्व |
9 | अनुच्छेद 243 | H | पंचायतों द्वारा कर लगाने की शक्तियां और उनकी निधियां |
10 | अनुच्छेद 243 | I | वित्तीय स्थिति के पुनरावलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन |
11 | अनुच्छेद 243 | J | पंचायतों के लेखाओं की सम परीक्षा |
12 | अनुच्छेद 243 | K | पंचायतों के लिए निर्वाचन |
13 | अनुच्छेद 243 | L | संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना |
14 | अनुच्छेद 243 | M | इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू ना होना |
15 | अनुच्छेद 243 | N | विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना |
16 | अनुच्छेद 243 | O | निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन |
पंचायती व्यवस्था से संबंधित प्रावधान –:
पंचायत व्यवस्था के संबंध में विस्तृत विवरण संविधान के भाग 9 में 16 अनुच्छेदों में दिया गया है जो निम्न प्रकार है।
1) पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्रामसभा होगी इसमें एक या एक से अधिक गांवों को सम्मिलित किया जा सकता है ग्राम सभा की शक्तियों के संबंध में राज्य विधान मंडल द्वारा कानून का निर्माण किया जाएगा।
2) जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है उनमें दो स्तरीय पंचायत का गठन होगा जिला स्तर पर और गांव स्तर पर और 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायतों का गठन होगा गांव स्तर पर तहसील स्तर पर और जिला स्तर पर।
3) सभी स्तर की पंचायतों के सभी अध्यक्षों का चुनाव व मतदाताओं द्वारा प्रत्येक 5 वर्ष में किया जाएगा गांव स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष और मध्यवर्ती तहसील स्तर साथ ही जिला स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा।
4) पंचायत के सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए उनके अनुपात में आरक्षण प्रदान किया जाएगा तथा महिलाओं के लिए 30% आरक्षण की व्यवस्था होगी।
5) सभी स्तर की पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा लेकिन इनका विघटन 5 वर्ष के पहले भी किया जा सकता है परंतु विघटन होने की दशा में 6 माह के भीतर ही इन सभी स्तर की पंचायतों का चुनाव कराना अनिवार्य होगा।
6) पंचायतों को कौन सी शक्तियां प्राप्त होंगी और वह किन उत्तरदायित्व का धारण करेंगी इसकी सूची संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में दी गई है इस सूची में पंचायतों के कार्य निर्धारण के लिए 29 कार्य क्षेत्रों को
चिन्हित किया गया है जो निम्न प्रकार है।
ग्यारहवीं सूची –:
इसमें 29 ऐसे विषय हैं जो पंचायत के अधिकारों के अंदर आते हैं-
i) कृषि एवं कृषि विस्तार।
ii) भूमि सुधार, भूमि संरक्षण।
.iii) लघु सिंचाई, जल प्रबंधन एवं नहर विकास।
iv) पशुपालन एवं मुर्गीपालन ।
v) मत्स्यपालन ।
vi) वनविज्ञान ।
vii) लघु वन उत्पादन ।
viii) लघु उद्योग ।
ix) खादी, ग्राम एवं कुटीर उद्योग ।
.x) ग्रामीण आवास ।
xi) पेयजल ।
xii)इंधन एवं चारा ।
xiii) सड़क, पुल, जलमार्ग एवं यातायात के अन्य साधन ।
xiv) ग्रामीण विद्युतीकरण एवं विद्युत आबंटन ।
xv) पारंपरिक उर्जा स्रोत ।
xvi) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम ।
xvii) शिक्षा, प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय ।
xviii) तकनीकी प्रशिक्षण एवं व्यवसायिक शिक्षा ।
xix) वयस्क एवं अनौपचारिक शिक्षा ।
xx) पुस्तकालय ।
xxi) सांस्कृतिक कार्यक्रम ।
xxii) बाजार एवं मेला ।
xxiii) स्वास्थ्य एवं सफाई, हॉस्पीटल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र।
xxiv) परिवार कल्याण ।
xxv) महिला एवं बाल विकास।
xxvi)सामाजिक कल्याण एवं शारीरिक, मानसिक विकलांग कल्याण ।
xxvii) कमजोर वर्ग खासकर अनुसूचित जाति जनजाति का कल्याण।
xxviii) जन वितरण व्यवस्था ।
xxix) सामुदायिक वस्तुओं का रख-रखाव और संरक्षण ।