दलपत सागर
बस्तर के इतिहास पर यदि नजर डालें तो दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी से तालाबों का समृद्ध इतिहास मिलता है। छोटे-छोटे रियासत, जमींदारियों में अथवा रियासतकालीन राजधानियों में तालाबों का उल्लेख आता है। उन ऐतिहासिक तालाबों में से आज भी कुछ तालाब विद्यमान हैं। रियासतकालीन छिंदक नागवंशीय राजाओं की राजधानी हो या फिर चालुक्यवंशीय राजाओं की राजधानी । जब भी राजाओं ने अपनी राजधानी बसाई है, अपनी जनता के मूलभूत आवश्यकताओं को प्राथमिकता के आधार पर सुलभ कराया है। छोटे-छोटे रियासत, जमींदारियों के आपसी कलह अक्सर लड़ाई के कारण बनते, परिणाम स्वरूप राजधानी जल्दी-जल्दी बदले जाते और राजधानी बदले जाने पर पुनः मूलभूत समस्याएं सामने आ खड़ी होती। इन्द्रावती के किनारे जल संकट से बचने जगदलपुर को राजधानी बनाया और बसाया गया। जगदलपुर राजधानी बसाए जाने के पूर्व पूर्ववर्ती राजधानियों में तालाबों की संख्या बहुत अधिक होती थी। तालाबों का जिक्र पं. केदारनाथ ठाकुर के पुस्तक बस्तर भूषण में बारसूर, बड़ेडोंगर, कुरूसपाल तथा बस्तर में ‘‘सात आगर सात कोड़ी’’ अर्थात् 147 तालाबों का उल्लेख आता है। उन्होने लिखा है कि बड़़ेडोंगर में 140 तालाबों का निर्माण किया गया था। अकेले बारसूर में 147 देवालय तथा 147 तालाबों की मान्यता है, जिनमें से कुछ आज भी बारसूर में मौजूद हैं। बस्तर के इतिहास में अधिक तालाब निर्माण के पीछे समय-समय पर पड़ने वाला अकाल एक महत्वपूर्ण कारण है। पूरे बस्तर अंचल में तालाबों की संख्या हजारों में गिनी जाती थी, किन्तु वर्तमान में ऐतिहासिक तालाबों की संख्या घटती चली गई और आज उनकी संख्या अंगुलियों में ही गिनने लायक रह गई है। आज भी तालाबों का अस्तित्व है। अधिकांश तालाब इस्तेमाल में नहीं हैं और वे उपेक्षा के शिकार हैं। इन तालाबों में वर्षा जल ही भरा रहता हैयदि मौजूदा सभी तालाबों को संरक्षित किया जाता है तो वे निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में पानी की समस्या सुलझाने में मददगार साबित होते। अंग्रेजी राज के प्रारंभिक दौर में ऐसे अनेक ब्रितानी विशेषज्ञ हमारी सिंचाई की परंपरागत पद्धति को देखकर चकित रह गए थे। यह बात और है कि कालान्तर में उन्हीं के हाथों इसकी उपेक्षा प्रारंभ हुई, जो बाद में उनके द्वारा रखे गए ‘आधुनिक राज’ की नींव के बाद बढ़ती ही गई। आजादी के बाद भी यह उपेक्षा जारी रही। तालाब निर्माण की प्रक्रिया में देसी रियासतों और राजाओं ने भरपूर कार्य किया, कहना उचित होगा कि आधुनिक राज्य से कहीं बेहतर कार्य किया।
कहानी दलपत सागर की
बस्तर रियासत के राजा रक्षपाल देव की मृत्यु 1713 में हुई, उनके मृत्यु के उपरांत दलपतदेव को राजा बनाया गया। राजा दलपत देव की मृत्यु सन् 1775 में हुई । बस्तर रियासत में दलपत देव का कार्यकाल 1713 से 1775 तक था। समय-समय पर राजाओं की राजधानी बदलती रही, इस संदर्भ में जगदलपुर राजधानी के पूर्व ग्राम बस्तर में राजधानी स्थापित थी। 1770 ई में राजा दलपत देव ने जगदलपुर को राजधानी बनाया। वर्तमान जगदलपुर पहले जगतूगुड़ा के नाम से जाना जाता था। राजधानी स्थापित करने के बाद राजा दलपत देव पेयजल की समस्या को लेकर चिंतित थे, उन्होंने स्थानीय जनता की मदद से श्रमदान के फलस्वरूप एक बड़ा सा तालाब खुदवाया तथा तालाब के बीच छोटा सा शिवमंदिर भी बनवाया। यह तालाब उस दौर में रियासत का और विलीनीकरण के बाद राज्य का सबसे बड़ा तालाब होने का दर्जा प्राप्त हुआ। बस्तर भूषण में पं. केदारनाथ ठाकुर ने दलपत सागर के बारे उल्लेख करते हुए लिखा है कि यह तालाब दो मील लम्बा और एक मील चैड़ा था। 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस तालाब में स्त्री और पुरूषों के लिए अलग-अलग स्नान घाट निर्माण कराए गए। स्त्रियों के लिए दरवाजों के साथ पक्का घाट आज भी मौजूद है। तालाब के बीच स्थित शिवालय में वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालु शिवजी के दर्शनार्थ नाव के सहारे पहंुचते हैं। तालाब के दूसरे छोर में आइलैण्ड का निर्माण कराया गया है, जहां सुबह-शाम पैदल घूमने के लिए लोग नियमित रूप से आते हैं। जिला प्रशासन के द्वारा यहां म्यूजिकल फाउन्टेन भी लगाया गया था किन्तु कुछ समय के बाद खराब हो गया है। आज दलपत सागर का क्षेत्रफल सिमट कर रह गया है। तालाब के सौंदर्य को खरपतवार नुकसान कर रहे हैं।
तालाबों के निर्माण के पीछे कई धारणाएं विद्यमान हैं। पौराणिक आधार पर मंदिर निर्माण के साथ-साथ उस देवता या देवालय को समर्पित तालाब खुदवाए जाते थे। कई श्रद्धालुओं के द्वारा तालाब खुदवा कर मंदिरों को अर्पित करने का उल्लेख भी मिलता है। बस्तर अंचल की लक्ष्मी जगार गाथा में तालाब खुदवाने संबंधी मान्यता और उसकी सुदीर्घ परम्परा का संकेत मिलता है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बाराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है।
साभार :- विरासतः जगदलपुर की (जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित)