Sankhya darshan अत्यंत प्राचीन और प्रमुख दार्शनिक विचार और संप्रदाय है सांख्य शब्द का आशय सम्यक ज्ञान से है।
सम्यक ज्ञान का आशय पुरुष और प्रकृति के मध्य की भिन्नता के ज्ञान से है और सांख्य दर्शन का आधार कार्य कारण सिद्धांत है।
इस सिद्धांत को सत्कार्यवाद के नाम से भी जाना जाता है कार्य कारण सिद्धांत के द्वारा उठाए जाने वाला सबसे प्रमुख और मूल प्रश्न है कि क्या कार्य की सत्ता उत्पत्ति के पूर्व उपादान (प्राप्त करना) कारण में विद्यमान रहती है ?
Sankhya darshan का सत्कार्यवाद भावात्मक ही इस प्रश्न का उत्तर है। इसके अनुसार कार्य उत्पत्ति के पूर्व उपादान(प्राप्त करना) कारण में अव्यक्त(अदृश्य) रूप में मौजूद रहता है इस प्रकार सत्कार्यवाद उत्पत्ति उत्पत्ति के पूर्व कारण में कार्य की सत्ता स्वीकार करता है।
कार्य और कारण में सिर्फ आकार का भेद है। कारण अव्यक्त कार्य और कार्य अभिव्यक्त कारण है वस्तु के निर्माण का अर्थ है अव्यक्त कार्य का जो कारण में निहित है।
कार्य में पूर्णता अभिव्यक्त होना उत्पत्ति का अर्थ अव्यक्त को व्यक्त होना और विनाश का अर्थ व्यक्त का अव्यक्त होना अर्थात उत्पत्ति, आविर्भाव (प्रकट होना) और विनाश, तिरोभाव (अदृश्य हो जाना) है।
Sankhya darshan के प्रवर्तक :–
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल थे, जिन्होंने संभवत सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में इस दर्शन के सूत्रों की रचना की थी।
इन सूत्रों में महर्षि कपिल ने इस दर्शन की विस्तार से व्याख्या की है। इस दर्शन में ईश्वर और अनीश्वर वाद की झलक दिखाई देती है किंतु मुख्यतः अनीश्वरवाद की ओर ही झुका हुआ प्रतीत होता है।
Sankhya darshan क्या है :–
Sankhya darshan क्या है यह समझने के लिए सांख्य दर्शन की विचारधारा को समझना आवश्यक है।
Sankhya darshan के अनुसार संपूर्ण विश्व कार्य का प्रवाह है, जहां तक विश्व के कारण का प्रश्न है तो Sankhya darshan ना तो परमाणु को मानता है और ना ही चेतना को, बल्कि इसका आधार या मूल कारण प्रकृति को मानता है।
प्रकृति जड़ और सूक्ष्म दोनों है, परंतु यह स्वयं कारणहीन है। सांख्य दर्शन में प्रकृति को प्रधान, जड़, माया, शक्ति आदि कहा गया है।
वह एक अदृश्य अव्यक्त अचेतन व्यक्तिहीन और शाश्वत है। यद्यपि प्रकृति एक ही है लेकिन उसमें तीन प्रकार के विशेष गुण हैं सत्व, रजस और तमस गुण प्रकृति के तत्व या द्रव्य हैं। गुण अत्यंत सूक्ष्म है जिनका ज्ञान अनुमान से प्राप्त होता है।
विश्व की प्रत्येक वस्तु में सुख-दुख और उदासीनता का भाव उत्पन्न करने की शक्ति मौजूद है।
इन तीनों का कारण तीन गुण वही है सत्व, रजत और तमस। सत्व ज्ञान का प्रतीक और सफेद रंग का है, जिससे सभी प्रकार की सुखात्मक अनुभव होते हैं।
रजत क्रिया प्रेरक है जो वस्तुओं को उत्तेजित करता है इस का रंग लाल है और तमस अज्ञान या अंधकार का प्रतीक है जो निष्क्रियता और जड़ता का परिचायक है।
इस कारण निश्चित रूप से काला है। यह तीनों गुण प्रकृति के अलावा विश्व की प्रत्येक वस्तु में अंतर्निहित हैं।
इसलिए प्रकृति तथा विश्व की सभी वस्तुओं को त्रिगुणात्मक कहा जाता है लेकिन किसी वस्तु में कोई एक गुण जो किसी अन्य वस्तु में अन्य गुण प्रबल होता है और यह गुण निरंतर परिवर्तनशील भी होते हैं।
Sankhya darshan की व्याख्या :–
Sankhya darshan पुरुष की व्यापक और विस्तार से व्याख्या करता है। वास्तव में अन्य दर्शनों ने जिसे आत्मा कहा है उसे ही सांख्य ने पुरुष कहा है।
पुरुष चेतन है वह सत्व रजस और तमस से शून्य है, इसलिए इसे त्रिगुणातीत कहा गया है।
वह त्राता ( रक्षा करने वाला, शरण देने वाला) है। सक्रिय है ,अनेक है ,कार्य कारण से मुक्त है ,उसकी सत्ता स्वयंसिद्ध है, आत्मा अर्थात पुरुष शरीर से भिन्न है जहां शरीर भौतिक है वहीं पुरुष अभौतिक अर्थात आध्यात्मिक है वह पाप पुण्य से मुक्त अर्थात निर्गुण है।
Sankhya darshan विश्व की उत्पत्ति के लिए ईश्वर को उत्तरदाई नहीं मानता उसके अनुसार यह संसार विकास का फल है।
प्रकृति ही वह मूल तत्व है जिसने संसार की समस्त वस्तुएं विकसित होती है इस प्रकार सांख्य दर्शन विकासवाद का समर्थक है।
विकास की प्रक्रिया तभी आरंभ हो सकती है जब पुरुष और प्रकृति का संयोग हो अर्थात अकेली प्रकृति या अकेला पुरुष विकास नहीं कर सकते क्योंकि वे क्रमशः अचेतन और निष्क्रिय हैं।
प्रकृति देखे जाने के लिए पुरुष पर और पुरुष केवल्य अर्थात मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रकृति पर आश्रित है दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है परंतु विरोधी गुणों से युक्त होने के कारण दोनों का मिलन अत्यंत कठिन कार्य है।
इस कठिनाई के समाधान के लिए सांख्य दर्शन उपमा का प्रयोग करता है। सांख्य का मत है कि, पुरुष और प्रकृति के बीच यथार्थ सहयोग नहीं होता अपितु सिर्फ निकटता का संबंध होता है, जैसे ही पुरुष प्रकृति के समीप आता है प्रकृति की साम्यवस्था भंग हो जाती है, और उनके गुणों में वीरूप (कई रूपों वाला)परिवर्तन प्रारंभ हो जाता है और उसके तीनों गुणों में परिवर्तन होने लगता है।
इसके बाद नए पदार्थों का आविर्भाव(प्रकट होना) होता है।
Sankhya darshan संसार को दुखमय मानता है उसके अनुसार तीन प्रकार के दुख हैं आध्यात्मिक, अधिभौतिक और अधिदैविक इन तीनों दुखों से छुटकारा ही मोक्ष है।
मोक्ष का साधन ज्ञान है ज्ञान के द्वारा ही आत्मा और अनात्मा का भेद स्पष्ट होता है। अज्ञान ही बंधन का कारण है इस बंधन को कर्म से नहीं जोड़ा जा सकता बल्कि इसके लिए ज्ञान मार्ग ही अपनाना होगा मोक्ष की अवस्था त्रिगुणातीत है।
ईश्वर के संबंध में Sankhya darshan स्पष्ट नहीं है। कुछ विद्वान इसे अनिश्वर वादी और कुछ ईश्वर वादी मानते हैं परंतु इसका अनिश्वर वादी पक्ष ही अधिक मजबूत और व्यापक व्याख्या वाला है।
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