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कलेक्टर या जिलाधीश (जिलादंडाधिकारी) का पद अंग्रेजों के समय से ही अत्यंत प्रतिष्ठा का माना जाता है जो आज भी अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप जिला स्तर का प्रमुख पद बना हुआ है।
अंग्रेजों के शासन व्यवस्था के काल से ही यह पद जिला प्रशासन की धुरी है, अंग्रेजी शासनकाल में कलेक्टर जिला स्तर पर प्रशासन पुलिस और न्याय व्यवस्था का प्रमुख होता था।
कलेक्टर या जिलाधीश अखिल भारतीय सेवा भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है, जो सिविल सेवाओं के माध्यम से चयनित और प्रशिक्षित होता है।
अंग्रेजों के समय से आजादी प्राप्त होने के बाद भी जिला स्तर पर कलेक्टर की भूमिका सर्वे सर्वा की होती थी जो कि संविधान के 72 में पंचायती राज और 73वें नगरी स्वायत्त संस्थाओ के संशोधन के बाद अधिकारों में कमी
आई है।
जिलाधिकारी –:
जिलाधिकारी जिला प्रशासन का प्रमुख होता है, एवं वह उस जिला में राज्य सरकार के अधिकारिक एजेंट के रूप में भी कार्य करता है।
जिलाधिकारी का पद इस रूप में विशिष्ट है कि ऐसा पद किसी दूसरे देश में नहीं पाया जाता। सिर्फ फ्रांस में प्रीफेक्ट का पद इसके सामानांतर कहा जा सकता है।
उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में जिलाधिकारी को जिला मेजिस्ट्रेट भी कहा जाता है, वहीं जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा एवं कर्नाटक में इसे उपायुक्त भी कहते हैं।
प्रशासकीय विभाग सोधे जिलाधिकारी के अधीन होता है।
जिलाधिकारी राज्य सरकार के प्रशासकीय विभाग से जुड़ा होता है जिसका राजनैतिक मुखिया मुख्यमंत्री एवं प्रशासकीय मुखिया मुख्य सचिव होता है।
जिलाधिकारी प्रमंडल (संभाग)आयुक्त के अधीन कार्य करता है।
राज्य की प्रशासनिक प्रणाली में जिलाधीश के स्थान के निर्धारण को हम निम्न सारणी द्वारा समझ सकते हैं।
1) राज्य सरकार <-> मुख्यमंत्री
2) राज्य सचिवालय <-> मुख्य सचिव
3) सम्भाग <-> सम्भागीय आयुक्त
4) जिला <-> जिलाधीश
कार्य एवं भूमिका –:
• जिलाधिकारी का सर्वप्रमुख कार्य राजस्व वसूल करना होता था।
• वह आज भी जिला में राजस्व प्रशासन का प्रमुख होता है।
• राज्य सरकार का कर वसूलने का दायित्व उसके उपर होता है जो वह महाराष्ट्र एवं गुजरात में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के द्वारा करता है एवं पंजाब, हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर में फाइनेंसियल कमीशन के द्वारा करता है।
• जिला में प्रशासन के प्रमुख के तौर पर जिलाधिकारी के निम्नलिखित प्रमुख कार्य है-
• राजस्व वसूल करना।
• सरकार का बकाया वसूल करना।
•. कर्ज का आवंटन एवं वसूली।
• ग्रामीण आँकड़े इकट्ठा करना।
• उद्योग एवं आवास के लिए भूमि की व्यवस्था करना तथा गैर कानूनी झुग्गी-झोपड़ी को खाली कराना।
• भूमि सुधार करना।
• प्राकृतिक आपदा जैसे आग, बाढ़, सुखा के दौरान फसल के नुकसान का मूल्यांकन करना तथा सहायता कार्य का अनुशंसा करना ।
• कोषागार की निगरानी करना।
• कानून को लागू करवाना।
• पुर्नवास के लिए राशि प्रदान करना।
• सरकारी संपत्तियों की देखरेख करना ।
• अपने से छोटे अधिकारियों के खिलाफ अपील सुनना।
कानून व्यवस्था –:
जिला में कानून व्यवस्था कायम रखना जिलाधिकारी का प्रमुख कार्य है।
इस कार्य के लिए जिला अधीक्षक द्वारा नियंत्रित जिला पुलिस बल को निर्देशित एवं नियंत्रित करना।
आजादी से पहले जिलाधिकारी एक कार्यकारी मैजिस्ट्रेट और न्यायिक मैजिस्ट्रेट दोनों होता था।
कार्यकारी मैजिस्ट्रेट के तौर पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी उसकी होती थी।
आजादी के बाद राज्यनीति के निदेशात्मक नियम में वर्णित अनुच्छेद 50 के अनुसार कार्यकारी एवं न्यायिक को अलग-अलग कर दिया गया।
इस प्रकार न्यायिक मैजिस्ट्रेट के रूप में जिलाधिकारी की भूमिका समाप्त हो गयी। न्यायिक मैजिस्ट्रेट के रूप में जिलाधिकारी निम्नलिखित कार्य का संपादन करता है।
अपने अधीन न्यायपालिका पर नियंत्रण एवं उसका पर्यवेक्षण करता।
जन शांति के खतरे की स्थिति में धारा 144 लागू करना।
सरकार द्वारा प्राप्त किए याचिकाओं का निपटारा करना।
पैरोल पर कैदियों को छोड़ना।
जेल का निरीक्षण करना।
सरकार को वार्षिक अपराध रिपोर्ट सौंपना।
हथियार, होटल, विस्फोटक पदार्थ, पेट्रोलियम एवं अन्य चीजों का लाइसेंस निर्गत स्थगित या निरस्त करना।
मनोरंजन कर कानून एवं प्रेस कानून लागू करना।
. किसी विशेष परिस्थिति में लोक प्रशासन के मदद के लिए सैन्य बल को बुलाना।
फैक्टरी कानून एवं ट्रेडमार्क कानून का उलंघन करने वालों पर जुर्माना करना ।
विकास प्रशासन –:
. आजादी के बाद विकास योजनाओं के शुरूआत के साथ जिलाधिकारी विकास कार्यक्रमों का केन्द्र बिंदु है।
बहुत से राज्यों में जिलाधिकारी जिला विकास अधिकारी भी होता है।
वह जिला ग्रामीण विकास एजेंसी का भूतपूर्व अध्यक्ष है जिसकी स्थापना 1980 में भारतीय समाज पंजीकरण कानून के तहत हुई थी।
विकास प्रशासन के क्षेत्र में जिलाधिकारी की भूमिका एक समन्वयक की होती है।
1992 में 73वें संविधान संशोधन कानून एवं 1993 में पंचायती राज कानून ने कई राज्यों में जिलाधिकारी की भूमिका सीमित कर दी है।
अन्य अधिकार एवं कार्य –:
• वह जिला योजना क्रियान्वन समिति का अध्यक्ष होता है।
• वह जिला में मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी होता है।
• वह प्रशासन एवं नागरिकों के बीच पुल का काम करता है।
• वह नगरपालिका के कार्य का निरीक्षण करता है।
• वह सरकार के जनसंपर्क अधिकारी के रूप में भी कार्य करता है।
• वह जिला के औपचारिक समारोहों में राज्य सरकार का अधिकारिक प्रतिनिधि होता है।
• प्राकृतिक आपदा एवं अन्य आपातकालों में वह आपदा प्रशासक प्रमुख होता है।
• वह जन वितरण के लिए जिम्मेवार होता है।
• जन सुरक्षा के कार्यों का वह संचालन करता है।
• वह सैन्य अधिकारियों से संबंध बनाकर रखता है तथा कार्यरत एवं सेवानिवृत सैनिकों की देखरेख की जिम्मेदारी निभाता है।
• वह लोक सभा एवं विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव अधिकारी होता है।
• वह जिला स्तर पर चुनावों का संचालन करता है। • वह जिला मतगणना अधिकारी होता है।
कलेक्टर ऑफिस/ जिलाधीश कार्यालय –:
कलेक्टर ऑफिस जिसे कलेक्ट्रेट या जिलाधीश कार्यालय भी कहा जाता है जिला कलेक्टर का कार्यालय होता है। यह कार्यालय जिला स्तर पर सभी विभागों का प्रमुख केंद्र भी होता है।
कलेक्ट्रेट या जिलाधीश कार्यालय कई अनुभागों और विभागों में बटा होता है।
जिला स्तरीय प्रत्येक विभाग का एक प्रमुख होता है और वह तकनीकी विशेषज्ञ होता है, विभागों के प्रमुख अधिकारी तकनीकी विशेषज्ञ होते हैं जो आमतौर पर राज्य सेवा से चयनित और प्रशिक्षित होते हैं।
विभागों के प्रमुख राज्य प्रशासन के निदेशालय के प्रमुख निदेशक या आयुक्त के नियंत्रण और पर्यवेक्षण में कार्य करते हैं यह विभाग प्रमुख जिलाधीश के भी सीधे नियंत्रण और परीक्षण में भी कार्य करते हैं।
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