Hanuman singh. छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे

हड़प नीति के अनुसार जब अंग्रेजों ने 13 मार्च 1854 को नागपुर राज्य पर कब्जा जमा लिया तो नागपुर राज्य के अधीन होने के कारण संपूर्ण छत्तीसगढ़ क्षेत्र भी अंग्रेजी शासन के नियंत्रण में आ गया।

अंग्रेजों की शोषण वादी नीतियों के परिणाम स्वरूप समस्त देश में विद्रोह की लहर उठने लगी थी और इसके प्रभाव से छत्तीसगढ़ क्षेत्र भी अछूता नहीं था।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में देश के सभी भागों में सशस्त्र सैनिक विद्रोह हुए छत्तीसगढ़ में इस विद्रोह के नायक थे वीर Hanuman singh

नागपुर का अस्थाई सैनिक दल जो रायपुर में स्थित था उसकी तीसरी टुकड़ी में Hanuman singh मैगजीन लश्कर के पद पर नियुक्त थे।

लेफ्टिनेंट स्मिथ ने वीर Hanuman singh की कद काठी का विवरण निम्नानुसार दिया था।

वह सुगठित कद का साफ और गोल चेहरे वाला बड़ी आंखें ऊंचा मस्तक छोटी गर्दन बड़ी और रोबदार मूछ वाला था तेज आवाज में बोलता था लेकिन शांत प्रकृति का था और चलते समय नीची निगाह रखता था और वैसवार का रहने वाला था।

Hanuman singh का विद्रोह :–

10 दिसंबर 1857 को अमर शहीद वीर नारायण सिंह के बलिदान ने Hanuman singh को अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया और वह उचित अवसर तलाशने लगे और यह अवसर उन्हें 18 जनवरी 1858 की रात में मिल गया।

पैदल सेना की तृतीय रेजीमेंट का सार्जेंट मेजर सिडवेल शाम के लगभग 8 बजे अपने कक्ष में बैठा था।

Hanuman singh ने मौका देखकर अपने दो साथियों के साथ सिडवेल के कमरे में घुस गए और तलवार के वार से उसकी हत्या कर दी।

इसके बाद Hanuman singh अपने साथियों के साथ छावनी में दाखिल हुए और सैनिकों को इस विद्रोह में शामिल होने के लिए आह्वान किया।

तोपखाने का हवलदार और उसके सिपाही साथियों ने तोपों को अपने कब्जे में कर कर अंग्रेजों पर आक्रमण करने की तैयारी कर ली।

अंततः यह विद्रोह लंबे समय तक नहीं चला क्योंकि यह विद्रोह बिना किसी योजना स्वस्फूर्त प्रारंभ हुआ था और सैन्य दल के सभी सिपाहियों ने इस विद्रोह में भाग नहीं लिया, कुछ घंटों की झड़प के बाद विद्रोहियों ने हार स्वीकार कर ली और आत्मसमर्पण कर दिया।

लेफ्टिनेंट रे वाट और स्मिथ विद्रोह के समय छावनी में ही थे, विद्रोह की सूचना मिलने पर उसने अपने विश्वस्त सैनिकों को बुलाया और विद्रोह का दमन करने में जुट गए ।

तोपखाने के हवलदार, 14 बाहरी व्यक्ति और तृतीय रेजीमेंट के दो सिपाही, कैदी बनाए गए इस दौरान लश्कर हनुमान सिंह वहां से भागने में सफल हुए।

विद्रोह के बंदियो को राजद्रोह के अपराध में 22 जनवरी 1858 को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई।

Hanuman singh द्वारा प्रारंभ और नेतृत्व किए गए इस विद्रोह के 17 शहीदों को ना सिर्फ मृत्युदंड दिया गया बल्कि उनकी संपूर्ण चल अचल संपत्ति भी अंग्रेजी सरकार ने जप्त कर ली।

स्मिथ के अनुसार जिस तरह से हनुमान सिंह ने डिप्टी कमिश्नर के बंगले मैं घुसकर आक्रमण किया वह अत्यंत साहसिक कारनामा था।

यदि उसे अपने उद्देश्यों में सफलता मिल जाती तो निश्चित ही अंग्रेजी हुकूमत का इस शहर से सफाया हो जाता किंतु दुर्भाग्य से Hanuman singh को अपनी योजना में सफलता नहीं मिली और हनुमान सिंह वहां से फरार हो गए जिसके बाद उनकी कोई भी सूचना प्राप्त नहीं हुई।

वीर Hanuman singh ने मंगल पांडे की ही तरह रायपुर स्थित छावनी के सैनिकों में क्रांति का आवाहन किया था यह अलग बात है कि इस क्रांति या विद्रोह में उन्हें सफलता नहीं मिली अन्यथा रायपुर भी देश के क्रांति काल में हुए विद्रोह के महत्वपूर्ण नगरों में से एक होता।

अंग्रेजों ने उनकी गिरफ्तारी हेतु पुरस्कार की घोषणा की किंतु वे अंततः अंग्रेजों की गिरफ्त में नहीं आए अंग्रेजों के विरुद्ध उनका यह साहसिक कारनामा छत्तीसगढ़ अंचल के लोगों को गौरवान्वित करता रहेगा।

छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे के नाम से विख्यात Hanuman singh ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अभूतपूर्व योगदान दिया था उनके अदम्य साहस और देशभक्ति ने अंग्रेजों को अचंभित कर दिया था ।

हनुमान सिंह और अमर शहीद मंगल पांडे में कई समानताएं के कारण वीर Hanuman singh को छत्तीसगढ़ का मंगल पांडे कहते हैं दोनों में निम्न समानताएं थी।

1) दोनों की कद काठी लगभग समान थी।

2) दोनों ही अंग्रेजी सेना में सिपाही थे।

3) दोनों ने ही 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाए थे।

4) दोनों ने अपने अंग्रेज अधिकारियों पर आक्रमण किया था।

इन सब समानताओं के अतिरिक्त एक प्रमुख असमानता इन दोनों के बीच यह थी कि विद्रोह के बाद जहां मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया था वही वीर हनुमान सिंह कभी भी अंग्रेजों की गिरफ्त में नहीं आए।

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