Veer narayan singh. छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद ।

भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में भारत माता के कई सपूतों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया फिर भी उन्हें वह सम्मान और पहचान आज तक नहीं प्राप्त हुई जिसके वे हकदार हैं।

आजादी के यज्ञ में अपना सब कुछ न्योछावर करने वालों में से एक नाम छत्तीसगढ़ के महान सपूत Veer narayan singh का भी है।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया था।

उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों की नीतियों का विरोध किया बल्कि अपनी सैन्य शक्ति से अंग्रेजों को नाकों चने चबवाये लेकिन अंततः वे अपने ही लोगों की गद्दारी और नफरत का शिकार होकर शहीद हो गए।

Veer narayan singh ka परिचय :–

छत्तीसगढ़ अंचल में इस अमर शहीद Veer narayan singh का नाम अत्यंत आदर से लिया जाता है और इन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी माना जाता है अपनी जनता को न्याय दिलाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए उन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

Veer narayan singh सोनाखान (वर्तमान बलौदाबाजार जिला) जमीदारी के जमीदार थे वह बिंझवार जनजाति से संबंधित थे।

सोनाखान की जमीदारी मराठों के समय से ही अंचल की एक प्रमुख जमीदारी थी।

वीर नारायण सिंह के पिता राम राय थे जिनसे जमीदारी विरासत में इन्हें प्राप्त हुई थी वीर नारायण सिंह के परिवार के विषय में अधिक विवरण प्राप्त नहीं है फिर भी ऐसा माना जाता है कि उनके तीन पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र का नाम गोविंद सिंह था जो उनके बाद उत्तराधिकारी बने।

अंग्रेजों से संघर्ष की शुरुआत :–

1857 से पहले ही सोनाखान के जमीदार और Veer narayan singh के पिता राम राय ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था।

परिस्थिति अनुरूप अंग्रेजों ने रामराय से समझौता कर लिया और इस समझौते से उन्हें खालसा तालुका देना पड़ा था।

छत्तीसगढ़ अंचल में सोनाखान एकमात्र ऐसी जमीदारी थी जिसे टकोली (जमीदारी कर) नहीं देनी पड़ती थी और कंपनी से नामनुक के 565 रुपये वार्षिक अलग प्राप्त होते थे।

इन सब कारणों से अंग्रेज सोनाखान जमीदारी के प्रति घृणा और बद्नियति की भावना रखते थे जिसका बदला उन्होंने Veer narayan sing से लिया।

वर्ष 1856 में देश के कई भागों में सूखा पड़ा इसका प्रभाव छत्तीसगढ़ पर भी पड़ा सोनाखान जमीदारी के लोग अन्न को तरसने लगे।

कसडोल नामक स्थान पर माखन नाम के व्यापारी के पास गोदाम में अन्न के भंडार थे। गरीब किसानों को उधार में अनाज देने से माखन ने मना कर दिया जिससे किसानों ने Veer narayan sing से गुहार लगाई।

किसानों की परेशानी देखकर उन्होंने माखन के गोदाम से अनाज निकालकर गरीब और भूखे किसानों में बांट दिया।

इस घटना की सूचना माखन ने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर को दी। डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखान के जमीदार वीर नारायण सिंह की इस कार्रवाई को देशद्रोह की घटना मानते हुए उनके विरुद्ध वारंट जारी कर दिया।

वारंट पर उपस्थित नहीं होने के परिणाम स्वरूप उन्हें 14 अक्टूबर 1856 को संबलपुर से गिरफ्तार कर लिया गया।

Veer narayan sing पर चोरी और डकैती के आरोप लगाकर अंग्रेजों ने उन्हें रायपुर जेल में बंद कर दिया।

कसडोल में अनाज लूट की हुई घटना से ज्यादा अंग्रेज नारायण सिंह की राजनीतिक जागरूकता और जनता से प्राप्त समर्थन से ईर्ष्या करते थे और उन्हें अपने मार्ग से हटाकर संपूर्ण जमीदारी पर कब्जा जमाना चाहते थे।

अंग्रेजों से सैनिक संघर्ष :–

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आरंभ हो गया और इस विद्रोह से छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं था। 10 माह से रायपुर जेल में बंद Veer narayan sing और उनके साथ तीन कैदियों ने जेल में सुरंग बनाकर भाग निकले।

28 अगस्त को सुबह डिप्टी कमिश्नर को इसकी सूचना दी गई।

जेल से भागने के बाद Veer narayan sing  सोनाखान पहुंचे और वहां 500 लोगों की सेना का संगठन तैयार किया इधर अंग्रेजों ने कर्नल स्मिथ के नेतृत्व में नारायण सिंह को पकड़ने के लिए एक सैनिक टुकड़ी को सोनाखान के लिए रवाना किया।

स्मिथ की सेना में रायपुर के अलावा बिलासपुर से भी बुलाए गए सैनिक सम्मिलित होकर 29 नवंबर 1957 को खरौद से सोनाखान को रवाना हुए इस दौरान भटगांव बिलाईगढ़ और देवरी की जमीदारियों ने अंग्रेजों की मदद की।

देवरी के जमीदार महाराज साए जो Veer narayan sing के रिश्ते में चाचा थे ने अंग्रेजों का पथ प्रदर्शन किया और अंग्रेजी सेना को सोनाखान और वीर नारायण सिंह तक पहुंचाया।

1 दिसंबर 1857 को देवरी से अंग्रेजी सेना सोनाखान की ओर रवाना हुई सोनाखान से पहले वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया ।

अचानक हुए आक्रमण से अंग्रेजी सेना कुछ समय के लिए बिखर गई और पीछे हटने पर विवश हो गई लेकिन अन्य जमीदारियों के सहयोग से अंग्रेजी सेना ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली और Veer narayan sing को अपने बचाव में भागने के लिए बाध्य होना पड़ा

स्मिथ ने सोनाखान पहुंचकर गांव में आग लगा दी पूरा गांव आग में जलकर नष्ट हो गया इसका विवरण स्वयं स्मिथ ने दिया है।

अगले दिन दोपहर को अंग्रेजी सेना ने उस स्थान को घेर लिया जहां वीर नारायण सिंह छिपे हुए थे लंबे संघर्ष के बाद  Veer narayan sing  सिंह को गिरफ्तार करके फिर से रायपुर की जेल में डाल दिया गया।

Veer narayan sing की मृत्यु :–

9 दिसंबर 1857 को  Veer narayan sing को इलियट की अदालत में पेश किया गया 1857 के अधिनियम के एक्ट 14 और सेक्शन 7 के अंतर्गत अभियोग लगाकर उन्हें मृत्यु दंड दिया गया।

10 दिसंबर 1857 को रायपुर के वर्तमान जय स्तंभ चौक पर उन्हें तोप से उड़ा दिया गया और इस प्रकार भारत माता के महान सपूत और छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद का अंत हो गया।

अंग्रेजों का सहयोग करने वालों को पुरस्कार :–

Veer narayan sing की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उन सभी लोगों को पुरस्कृत किया जिन्होंने अंग्रेजों की मदद की थी।

व्यापारी माखन को नारायण सिंह की संपत्ति से लूटे गए अनाज के मुआवजे के रूप में 1370 और 50 पैसे दिए गए ।

नारायण सिंह के विरुद्ध किए गए जांच में शामिल अधिकारियों को सौ सौ रुपए और सैनिक संघर्ष में शामिल सैनिकों को बीस बीस रुपये का इनाम कंपनी की ओर से दिया गया।

सोनाखान के जमीदारी पर अंग्रेजों के सहयोग से उनके चाचा महाराज साय ने कब्जा जमा लिया भटगांव बिलाईगढ़ की जमीदारियों को कर में रियायतें दी गई।

इस प्रकार वीर नारायण सिंह के विरुद्ध अंग्रेजों का सहयोग करने वाले सभी लोगों को कंपनी ने पुरस्कृत किया।

Veer narayan singh के बाद सोनाखान :–

Veer narayan sing की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी और पुत्र गोविंद सिंह को गिरफ्तार करके नागपुर की जेल में डाल दिया गया 1860 में जेल से रिहा होने पर के बाद गोविंद सिंह ने देखा कि सोनाखान की रियासत पर तो महाराज साय ने कब्जा कर लिया है।

संबलपुर के जमीदार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुरेंद्र साय की मदद से गोविंद सिंह ने एक सेना तैयार की और सोनाखान पर कब्जे के लिए महाराज साय पर हमला कर दिया और इस हमले में महाराज साय पकड़ा गया और गोविंद सिंह ने अपने पिता के साथ हुए विश्वासघात का बदला लेते हुए महाराज साय की हत्या कर दी।

इसके बाद गोविंद सिंह और सुरेंद्र साय के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध कई अभियान किये रायपुर से लेकर दक्षिण में बस्तर तक उन्होंने अंग्रेजों को चैन से बैठने नहीं दिया।

जनवरी 1864 में अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान के दौरान सुरेंद्र साय को अंग्रेजो ने धोखे से गिरफ्तार कर लिया और असीरगढ़ के किले में आजीवन के लिए कैद कर दिया।

गोविंद सिंह ने अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति से समझौता कर लिया और अंग्रेजों ने भी विद्रोह शांत करने के लिए सोनाखान की जमीदारी उनको वापस सौंप दी।

निष्कर्ष :–

Veer narayan sing के इतिहास से अंग्रेजों की कुटिलता, रियासतों और जमीदारियों के मतभेद और देश के गुलामी का कारण और परिणाम सभी का ज्ञान होता है

माखन के गोदाम से निकाले गए आनाज जिसे गरीब किसानों में वीर नारायण सिंह में बांट दिया था कोई बड़ा अपराध नहीं था।

क्योंकि इसकी सूचना स्वयं उन्होंने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर को दी थी इस घटना के लिए Veer narayan sing पर चोरी और डकैती का आरोप लगाकर जेल में बंद कर देने से अंग्रेजों की नियत साफ तौर पर जमीदारी पर कब्जा जमाने की थी।

क्योंकि इस अपराध के लिए उन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता था जो न्यायोचित होता।

इस संपूर्ण ऐतिहासिक घटना से पता चलता है कि कैसे अंग्रेजों ने भारतीयों के मतभेद का लाभ उठाया और छोटे-छोटे लालच देकर आपस में लड़वाया और कुछ लोगों की छोटी सोच और लालच से देश पर विदेशी सत्ता का अधिकार हो गया जिसका परिणाम सैकड़ों वर्षो की गुलामी उत्पीड़न और शोषण था।

अंग्रेजों ने हमेशा अपनी स्वार्थ सिद्धि की थी वीर नारायण सिंह के विरुद्ध उनके चाचा महाराज साय ने अंग्रेजों की भरपूर मदद की थी लेकिन जब Veer narayan sing के पुत्र गोविंद सिंह ने महाराज साय पर आक्रमण किया तो अंग्रेजों ने उनकी कोई मदद नहीं की।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के विफल होने का एक प्रमुख कारण कई रियासत और राजाओं ने भारतीय लोगों के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ दिया।

देश में ग्वालियर के सिंधिया हों या छत्तीसगढ़ के देवरी, बिलाईगढ़, भटगांव आदि रियासतें सभी ने अपने स्वार्थ और लालच के कारण उस बड़े खतरे को नजरअंदाज कर दिया जिसने पूरे देश को सैकड़ों वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया।

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