उत्तर भारत के संपूर्ण भाग में मुख्य रूप से बोली जाने वाली और संपूर्ण भारत में मान्यता प्राप्त संपर्क भाषा हिंदी है इस लेख के माध्यम से हम जानने का प्रयास करेंगे की हिंदी साहित्य का इतिहास क्या है।
यह भाषा भारतीय आर्य परिवार की भाषा है खड़ी बोली हिंदी का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है परंतु उसे पश्चिमी हिंदी पूर्वी हिंदी की 8 बोलियों का प्रतिनिधि मानने पर उसका उद्भव शौरसेनी तथा अर्धमगधी अपभ्रंश से हुआ माना जाता है।
हिंदी भाषा का उद्भव काल 1000 ईसवी के लगभग माना जाता है प्राचीन हिंदी व्यापर आरंभिक हिंदी को परिनिष्ठित अपभ्रंश से अलग करने के लिए अवहट्ट नाम दिया गया है।
आमतौर पर हिंदी साहित्य का इतिहास और विकास को चार काल खंडों में विभाजित किया जा सकता है
i) आदि काल या वीर गाथा काल (1050 से 1375 ईस्वी )
ii) पूर्व मध्य काल या भक्ति काल (1375 से 1700 ईस्वी )
iii) उत्तर मध्य काल या रीति काल (1700 से 1900 ईस्वी )
iv) आधुनिक काल (1900 ई से अब तक)
i) आदि काल या वीर गाथा काल (1050 से 1375 ईस्वी ) :–
आदिकाल को वीरगाथा काल, चारण काल, सिद्ध सामंत युग, आदि नाम से भी जाना जाता है।
साहित्य का इतिहास के इस काल में अनेक चारण कवि अपने राजाओं के शौर्य का शृंगारिक रूप से वर्णन किया है।
रासोग्रंथों में पृथ्वीराज रासो, विजयपाल रासो, विसलदेव रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता, कीर्ति पताका, जयमयंकजस चंद्रिका, परमार् रासो, आदि प्रमुख है।
आदिकाल की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना चंद्रवरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो है ।
इस काल में नाथ सिद्धधों ने अनेक रचनाएं रच कर समाज की कुरीतियों एवं पाखंड पर सीधा प्रहार किया गोरखनाथ के नाम से 40 रचनाएं प्राप्त हुई हैं जिनमें से सबदी को सबसे प्रमाणिक माना जाता है।
इसके अलावा चौरंगीनाथ गोपीचंद चुन्कर नाथ भरतरी जालंधरीपा सरहपा आदि नाथ सिद्धओ की रचनाएं मिलती है।
इन रचनाओं में रस का अभाव है परंतु व्यंजना की दृष्टि से यह संपूर्ण है।
इस काल में रचे गए जैन साहित्य को चरित काव्य के नाम से जाना जाता है जिन की भाषा पश्चिमी आवहत्त् है।जम्बूस्वामीरस, रेवंतगीगीरस, कछुलिरास, गौतमरास आदि इस काल की प्रमुख जैन रचनाएं हैं।
विद्यापति ठाकुर जो मिथिला के रहने वाले थे आदिकाल से ही प्रमुख रचनाकारों में गिने जाते हैं उनकी रचनाओं कीर्ति लता, कीर्तिपताका तथा पदमावली आदि में आदि काल तथा भक्ति काल का मेल दिखाई देता है।
आदिकाल में मुक्तक कविताओं की भी रचना हुई थी जिनका संकलन प्राकृतिक पेन्गलम है।
इसमें जज्जल्, बब्बर, विद्याघर आदि कवियों की भक्तिमय् स्तुतियाँ, राजप्रशस्तिपरक तथा शृंगारिक मुक्तक कविताएं संकलित है ।
हिंदी साहित्य का इतिहास के इसी काल में हैदराबाद के आसपास बसने वाले उत्तर भारत के मुसलमानों ने दक्किनी हिंदी का विकास किया जिसके प्रथम लेखक सूफी फकीर ख्वाजा बंदा नवाज गेसूदराज सैयद मोहम्मद हुसैन तथा प्रथम कवि नियाजी थे ।
इस काल की ढोला मारू रा दूल्हा नामक प्रेमगाथा तथा श्रीधर कवि द्वारा रचित रणमलछंद बहुत प्रसिद्ध है।
ii) पूर्व मध्य काल या भक्ति काल (1375 से 1700 ईस्वी ) :–
हिंदी साहित्य का इतिहास के इस काल में हिंदू तथा इस्लाम धर्म में समन्वयी भावना का विकास करने पर जोर दिया गया।
दोनों धर्मों की विचार धाराओं में व्यापक असमानता के फल स्वरुप दोनों का एक दूसरे पर व्यापक प्रभाव पड़ा और उन में विकसित सहयोग और समन्वय की भावनाओं को अभिव्यक्ति अनेक भक्त कवियों एवं संतों की भक्ति रचनाओं में देखने को मिलती है।
शायद इसीलिए इसे भक्ति काल के नाम से भी जाना जाता है इन संतों ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों जातिवाद अंधविश्वास आदि की मुखर होकर आलोचना की भक्ति काल कवियों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है निर्गुण और सगुण।
सगुण भक्त अपने भगवान को राम या कृष्ण के रूप में देखते हैं। जबकि निर्गुण अपने भगवान को कोई निश्चित स्वरूप नहीं देते यद्यपि वे भी कभी-कभी राम या कृष्ण से संबोधित कर देते हैं।
इस काल के शब्दों में अनेक निम्न वर्ग या जातियों से संबंधित थे उनके पद और रचनाएँ स्वता अनुभूत तथा स्वता चिंतित विचार थे अतः इन रचनाओं में व्याकरण छंद अलंकार आदि का न्यूनतम प्रभाव दिखाई पड़ता है भक्ति कालीन कवियों में सधना वेणी नामदेव रामानंद त्रिलोचन आदि प्रमुख कवि थे।
महाराष्ट्र के मराठी भाषी नामदेव और रैदास उत्तर पश्चिम भारत के गुरु नानक देव तथा उनके शिष्य लहना और अंगद देव लाल पंथ के संस्थापक लाल दास दादू पंथ के संस्थापक दादू दयाल विश्नोई संप्रदाय के संस्थापक जंभ नाथ बाबरी पंथ की संस्थापीका बावरी साहिबा भीखा साहिब तथा पलटू साहब मलिक पंथ के संस्थापक मलूक दास संत साईं नाथ तथा मीराबाई राम भक्ति के अमर कवि तुलसीदास कबीर दास आदि इसी काल के प्रमुख कवि थे।
इनके अलावा अब्दुल रहीम खानखाना केशवदास सेनापति आलम चेतन आदि भी इसी काल के प्रमुख कवि हैं वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवि अत्यंत प्रसिद्ध हुए सूरदास को मंदार परमानंद दास कृष्णदास दलित स्वामी रविदास स्वामी चतुर्भुज दास और नंद दास यह 8 कवि इसमें सम्मिलित है।
रामानुजाचार्य वल्लभाचार्य आदि दार्शनिक निर्गुण भक्ति धारा के प्रेरक थे इसी काल में सूफी साहित्य का भी काफी विकास हुआ।
अलग जाली हाफिज जामी उमर खय्याम रूमी आदि फारसी के प्रसिद्ध सूफी दार्शनिक थे हिंदी में सूफी साहित्य का विकास मुल्ला दाऊद (चंदावत के रचयिता) अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी ,उस्मान, कासिम शाह , नूर मोहम्मद आदि ने किया था।
iii) उत्तर मध्य काल या रीति काल (1700 से 1900 ईस्वी ) :–
हिंदी साहित्य का इतिहास में रीतिकाल का आरंभ मुगल सम्राटों के अधीन सामंती राजव्यवस्था के राजा महाराजाओं सामंतो जागीरदारों आदि के संरक्षण में हुआ था।
रीतिकालीन कवियों ने सांसारिक भोग विलास इंद्रिय सुख तथा ऐश्वर्य पूर्ण जीवन को अपना आदर्श माना श्रृंगार रस में डूबी हुई उनकी रचनाएं अलंकृत शैली में जग जाहिर हुई।
इस काल में हिंदी काव्य रचना शैली रसाभीव्यक्ति तथा पद विन्यास की दृष्टि से अपने निकृष्ट रूप में पहुंच गई किंतु विषय वस्तु की दृष्टि से यह काम सिर्फ श्रृंगार और सौंदर्य तक ही सीमित रह गया
कानपुर के चिंतामणि, बिहारी लाल, मोतीराम, मंडन्, श्रीपति, भिखारी दास, भूषण, घनानंद, पद्माकर ,ग्वाल आदि प्रमुख रीतिकाल के कवि थे।
iv) आधुनिक काल (1900 ई से अब तक) :–
हिंदी साहित्य का इतिहास का आधुनिक काल अपनी पूर्ववर्ती कालों की तुलना में इस मायने में अलग था कि इस काल में दो नई प्रवृतियां साहित्य में दिखाई पड़ने लगी एक और खड़ी बोली में गद्य रचना आरंभ हुई और दूसरी ओर ब्रिज तथा अवधी से हटकर खड़ी बोली में काव्य रचना होने लगी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी भाषा को नवीन आयाम दिया खड़ी बोली का पहला उत्कर्ष का आरंभ श्रीधर पाठक की रचनाओं से और द्वितीय उत्कर्ष का पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं से हुआ गुप्त की साकेत तथा यशोधरा प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है
इसके अलावा पंडित गया प्रसाद शुक्ल स्नेही पंडित राम नरेश त्रिपाठी आदि भी उल्लेखनीय है।
प्रताप नारायण मिश्र बद्री नारायण उपाध्याय प्रेमघन् जी, पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, वियोगी हरि, आदि इस काल के प्रसिद्ध कवि थे
आधुनिक काल में उस समय क्रांतिकारी परिवर्तन आए जब बीसवीं सदी के मध्य में हिंदी कविता में छायावाद का उदय हुआ।
छायावाद का तात्पर्य है कि अंत एवं अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से अत्यंत चित्रमय भाषा में प्रेम भाव की कोमल तथा ललित व्यंजना इसे ही समीक्षकों ने रहस्यवाद की संज्ञा दी है।
जयशंकर प्रसाद सूर्यकांत त्रिपाठी निराला सुमित्रानंदन पंत तथा महादेवी वर्मा छायावाद के प्रमुख कवि थे।
इस काल में रहस्यवादी धारा के अतिरिक्त अन्य विषयों पर काव्य रचना करने वालों में माखनलाल चतुर्वेदी सियारामशरण गुप्त बालकृष्ण शर्मा नवीन सुभद्रा कुमारी चौहान हरिवंश राय बच्चन रामधारी सिंह दिनकर आदि बहुत प्रसिद्ध है।
बीसवीं सदी के पांचवें दशक के आसपास अनेक हिंदी कवियों ने परंपरागत रूढ़ियों तथा नीतियों को त्याग कर कुछ नवीन प्रयोग किए हैं।
अज्ञेय द्वारा संपादित “तार सप्तक” के रचनाओं ने कविता की संरचना शैली पद तथा शब्द विन्यास विषय वस्तु आदि में बड़ा परिवर्तन किया था अतः इस काल की रचनाओं को “प्रयोगवाद” कहा जाता है।
हिंदी साहित्य का इतिहास के इस काल के कवियों में गजानन माधव मुक्तिबोध प्रभाकर मच्वे गिरिजाकुमार माथुर रामविलास शर्मा भवानी प्रसाद मिश्र शमशेर बहादुर सिंह नरेश कुमार मेहता धर्मवीर भारती रघुवीर सहाय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि उल्लेखनीय है।
आधुनिक दौर में प्रयोगवाद के पश्चात नई विधा प्रगतिवाद का प्रादुर्भाव हुआ जिसके कवियों ने पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध उभर रही नई चेतना को अपनी आवाज दी।
मजदूर शोषण मध्यम वर्ग के शोषण के खिलाफ उठी आवाज को केदारनाथ अग्रवाल नागार्जुन शिवमंगल सिंह सुमन आदि ने और व्यापक आयाम दी इसके बाद 70 के दशक में नई कविता नाम की नई धारा का जन्म हुआ जो प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का मिश्रित रूप थी।
मार्क्सवाद तथा पश्चिमी विचारों से प्रभावित इस धारा के कवियों में डॉक्टर जगदीश गुप्त अशोक बाजपेई विपिन कुमार अग्रवाल आदि उल्लेखनीय हैं।
हिंदी साहित्य का इतिहास के आधुनिक काल में हिंदी साहित्य की जिस विधा का सबसे अधिक विकास हुआ वह है
गद्य कला उपन्यास कारों में देवकीनंदन खत्री (चंद्रकांता के लेखक) किशोरी लाल गोस्वामी, अयोध्या सिंह उपाध्याय, लज्जाराम मेहता, जैनेंद्र प्रसाद, विशंभर नाथ शर्मा, कौशिक फणीश्वर नाथ रेणु, कहानीकारों में किशोरी लाल गोस्वामी, रामचंद्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, राधिका रमण प्रसाद सिंह, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, चतुरसेन शास्त्री, प्रेमचंद, जनार्दन प्रसाद झा आदि है।
निबंध कारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, माधव प्रसाद मिश्र, बालमुकुंद गुप्त, श्यामसुंदर दास, नाटक कारों में प्रसाद हरि कृष्ण प्रेमी, गोविंद बल्लभ पंत, उपेंद्र नाथ, अश्क भगवती चरण वर्मा, मोहन राकेश धर्मवीर भारती, विष्णु प्रभाकर, रेवती रमण शर्मा, मुद्राराक्षस, शरद जोशी, नरेंद्र कोहली आदि उल्लेखनीय नाम है।