Guru Nanak Dev ji.

भारत भूमि अनेक संप्रदायों की जन्मदाता रही है ! इन्हीं संप्रदायों में से एक प्रमुख पंथ सिक्ख भी है, पंथ की स्थापना Guru Nanak Dev ji  ने की थी ।

       कबीर के बाद समाज को प्रभावित करने वालों में नानक का महत्वपूर्ण स्थान है, उन्होंने बिना किसी वर्ग पर आरोप लगाए ही उसके अंदर छिपे कुंसंस्कारों को समाप्त करने का प्रयास किया। उन्होंने धर्म के बाह्य

आडंबर जात पात छुआछूत ऊंच नीच उपवास मूर्ति पूजा अंधविश्वास बहू देव वाद आदि की आलोचना की

        उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता, सच्ची ईश्वर भक्ति एवं सत्चरित्रता पर विशेष जोर दिया उनका दृष्टिकोण विशाल मानवतावादी था, उनके उपदेशों को सिक्ख पंथ के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया है।

           तो चलिए आज जानते हैं सिक्ख पंथ के संस्थापक और प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी के बारे में ।

               बाल्यावस्था से ही नानक जी का पढ़ाई में मन नहीं लगा, पर वे अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे और उनका धर्म और दर्शन में विशेष रूचि थी, अपने तर्को से किसी को भी अनुत्तरित कर देते थे ।

Guru Nanak Dev ji. का जन्म –:

          रावी नदी के तट पर बसे तलवंडी नामक गांव में Guru Nanak Dev ji. का जन्म हुआ था, यह स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से संबोधित किया जाता है। जन्म तिथि 15 अप्रैल  1469 मानी गई है । गुरु नानक देव जी के जन्म को सिक्ख समुदाय द्वारा प्रकाश पर्व के रूप में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है ।

Guru Nanak Dev ji. का परिवार –:

            Guru Nanak Dev ji. के पिता का नाम मेहता कालू चंद खत्री था, माता का नाम तृप्ता देवी था, वही उनकी बहन का नाम नानकी था । बाल्यावस्था में ही नानक देव जी का विवाह सुलखन से हो गया था जिससे उन्हें 2 पुत्र हुए श्री चंद्र और दूसरा लक्ष्मी दास ।

Guru Nanak Dev ji. के शिष्य –:

              सिक्ख पंथ में गुरु शिष्य परंपरा का विशेष महत्व है। नानक देव जी के चार शिष्य थे, जो सदा बाबा जी की सेवा में रत रहते थे। बाबा जी ने अपनी सभी उदासियां (तीर्थ) चारों शिष्यों के साथ पूरी कि यह 4 शिष्य थे मर्दाना, लहना, बाला और रामदास इन्हीं शिष्यों के साथ उन्होंने मक्का की भी यात्रा की थी ।

उदासियां (तीर्थ )–:

1499 नानक देव जी ने अपना संदेश देना शुरू किया और यात्रा प्रारंभ कर दी जब वे 30 साल के थे । 1507 ईस्वी में वे अपने परिवार को छोड़कर यात्रा और तीर्थ पर निकल पड़े 1525 तक उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग सभी प्रमुख देशों जैसे भारत अफगानिस्तान फारस और अरब के प्रमुख स्थानों  की यात्रा पूरी कर ली।

इस भ्रमण को ही तीर्थ या उदासियां कहा जाता है। इस भ्रमण के दौरान उनके शिष्य उनके साथ रहते थे ।

Guru Nanak Dev ji.

नानक देव जी के सिद्धांत –:

        नानक देव जी ने समाज की कुरीतियों पर कठोर कुठाराघात किया और सभी को निम्न सिद्धांतों को मानने हेतु प्रेरित किया । प्रमुख 10 सिद्धांत निम्न है ।

     1  ईश्वर एक है।

     2 एक ही ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।

     3 ईश्वर कण कण में है और वह सभी जीवित प्राणियों में भी मौजूद है 

      4 ईमानदारी और मेहनत से आजीविका कमानी चाहिए।

       5 ईश्वर के अलावा और किसी से भी नहीं डरना चाहिए।

       6  ईश्वर से सदा दया और क्षमा मांग चाहिए।

       7 बुरा कार्य नहीं करना चाहिए और  प्राणी मात्र  के लिए दया होनी चाहिए 

       8 मेहनत से कमाकर जरूरतमंदों को कुछ दान करना चाहिए।

       9 सभी मनुष्य बराबर है।

      10 लोभ लालच और संग्रह वृत्ति बुरी आदत है ।

गुरु नानक देव जी ने मनुष्यों की समानता पर विशेष बल दिया, उनके अनुसार ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा ना कोई उंचा है ना कोई  नीच, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण गुरुद्वारे में लंगर के रूप में दिखाई देता है जिसमें सभी

लंगर प्रसाद को एक पंक्ति में बैठकर ग्रहण करते हैं ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा ।

दर्शन –:

      नानक देव जी सर्वेश्वर वादी थे, हिंदू धर्म की मूर्ति पूजा के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग मानवता को दिया ! इसका सिक्ख संप्रदाय में बड़ा महत्व है ।

 महाप्रयाण –:

गुरु नानक देव जी ने आपके जीवन का एक लंबा समय करतारपुर साहिब में बिताए थे, जहां वे लगभग 16 वर्षों तक रहे और अपने शिष्यों को उपदेश दिया। इसी स्थान पर 22 सितंबर 1539 ईस्वी को  परब्रह्म में विलीन हो

गए। उन्होंने अपना उत्तराधिकारी अपने शिष्य लहना को घोषित किया, जो बाद में सिक्ख संप्रदाय के दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

करतारपुर साहिब –:

         भारत के  तीर्थयात्री पहले करतारपुर साहिब फिर ननकाना साहिब जाते हैं। नानक देव जी ने अपनी तीर्थ यात्रा पूरी करने के बाद 1525 में करतार साहिब में रहने लगे थे, और अपने जीवन की अंतिम 16 वर्ष का समय यही व्यतीत किया।

यह स्थान पाकिस्तान के नारोंवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान भारतीय सीमा से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है !

बंटवारे के समय अंग्रेज अधिकारी की गलती से भारत का यह प्रमुख तीर्थ स्थान पाकिस्तान में चला गया था जिसे हाल ही में एक कॉरिडोर के द्वारा भारत के साथ जोड़ा गया है जहां तीर्थयात्री बिना वीजा के करतारपुर साहिब के दर्शन को जा सकते हैं !

गुरु परंपरा –:

       सिक्ख संप्रदाय में गुरु शिष्य परंपरा का विशेष महत्व है कुल 10 गुरुओं में से प्रथम गुरु नानक देव जी थे और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी थे समय काल परिस्थितियों के अनुसार इस पंथ में गुरुओं ने कुछ नई

परंपराओं और मान्यताओं की वृद्धि की ।

सिक्खों के गुरु की लिस्ट –:

क्रमांक  गुरु  काल प्रमुख उपलब्धियां
1 गुरु नानक देव जी  1469-1538 ईसवी  सिक्ख धर्म के प्रवर्तक 
2 गुरु अंगद  1538-1552 ईसवी  गुरमुखी लिपि के जनक 
3 गुरु अमर दास  1552-1574 ईसवी 
4 गुरु रामदास  1574-1581 ईसवी  अमृतसर के संस्थापक 
5 गुरु अर्जुन देव 1581-1606  ईसवी स्वर्ण मंदिर की स्थापना गुरु ग्रंथ व हरमिंदर साहब का संकलन 
6 गुरु हरगोविंद सिंह  1606-1645 ईसवी  अकाल तख्त की स्थापना तथा सिक्खों को एक लड़ाकू जाति में बदला 
7 गुरु हर राय  1645-1661  ईसवी
8 गुरु हरकिशन  1661-1664  ईसवी
9 गुरु तेग बहादुर  1664-1675  ईसवी
10 गुरु गोविंद सिंह 1675-1708  ईसवी खालसा सेना का संगठन 

 

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