Hindu dharm का वास्तविक संबोधन (नाम) सनातन धर्म है ऐसा धर्म जो आदि अनंत काल से अस्तित्व में है उसे सनातन कहते हैं।
यह धर्म विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म है और इसका प्रमाण इस धर्म के धर्म ग्रंथ हैं जो हजारों वर्ष पहले लिखे गए थे।
Hindu dharm इसका प्रचलित नाम है,यूरोपीय लोग जब भारत आए तो उन्हें सिंधु नदी को पार करना पड़ा, सनातन धर्म के विषय में अधिक जानकारी नहीं होने के कारण इन लोगों ने नदी के नाम से इसे सिंधु धर्म पुकारने लगे जो कालांतर में हिंदू धर्म हो गया।
भारत देश का सबसे प्रमुख धर्म Hindu dharm ही है ।अन्य धर्म (ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि) से हिंदू धर्म इस मायने में अलग है कि इसे किसी पैगंबर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, सनातन धर्म प्राचीन काल से स्थापित विभिन्न धर्म मत, मतअंतरों, आस्थाओं और विश्वासों का संग्रह है।
एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न समय अंतराल पर नए-नए आयाम इस धर्म से जुड़ते चले गए।
सनातन धर्म इतना विशाल और विविध आयामी है कि, इसके अंतर्गत आदिम ग्राम देवताओं, भूत पिचास,स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूंक, तंत्र मंत्र से लेकर त्रिदेव और अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म अत्यंत गुढदर्शन तक सभी बिना किसी अंतर्विरोध के इसमें समाहित हैं।
और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की पूजा और आराधना होती है।
वास्तव में Hindu dharm लघु एवं महान परंपराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है एक और इसमें वैदिक तथा पुराण कालीन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है तो दूसरी ओर कापालिक और अवधूत द्वारा भी अत्यंत भयावह कर्मकांडी आराधना की जाती है।
एक और भक्ति रस से सराबोर भक्त हैं तो दूसरी ओर अनिश्वर् अनात्मवादी और यहां तक कि नास्तिक भी है देखा जाए तो हिंदू धर्म सर्वदा विरोधी सिद्धांतों का भी उत्तम एवं सहज समन्वय है,।
यह हिंदू धर्मावलंबियों की उदारता सर्वधर्म समभाव समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता का श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम और परिचायक है।
वास्तविक रूप से Hindu dharm विश्व का सबसे उदारता धर्म है, जिसने अन्य सभी धर्म जैसे ईसाई, मुस्लिम, पारसी, जैन, बौद्ध आदि को बिना किसी भेद भाव के प्रश्रय दिया और उन्हें अपना मत और धर्म का प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता और अधिकार भी प्रदान की जो कालांतर में इस धर्म के लिए ही आघात सिद्ध हुआ है।
Hindu dhram कितना पुराना है :–
नाम के अनुरूप यह धर्म अत्यंत प्राचीन काल से विद्यमान है कोई भी तिथि निश्चित करना असंभव है क्योंकि यह ज्ञात इतिहास के पूर्व से ही अस्तित्व में है।
यह निश्चित है कि जब भी मनुष्य ने स्थाई रूप से समूह में जीवन यापन करना आरंभ किया और दैनिक क्रियाकलापों में किसी नियम और निर्बंधन की आवश्यकता उत्पन्न हुई तब से सनातन धर्म मनुष्य के साथ है।
जब सारा विश्व आदिम परिस्थितियों में जंगलों में रह रहा था उस समय हिंदुओं ने ज्ञान और विज्ञान के ग्रंथों की रचना कर डाली थी , हजारों वर्ष पुराने वेद और अन्य साहित्य हैं।
ज्ञात इतिहास में विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी अथवा हड़प्पा सभ्यता में शिवलिंग की पूजा के प्रमाण मिले हैं, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिंदू धर्म हजारों वर्ष पुराना है और विश्व का सबसे प्राचीन धर्म भी है।
Hindu dharm के स्रोत :–
Hindu dharm की परंपराओं का अध्ययन करने के लिए हजारों वर्ष पीछे वैदिक काल का अवलोकन करना पड़ेगा हिंदू धर्म की परंपराओं का मूल वैद् है वैदिक धर्म प्रकृति पूजक बहू देव वाद तथा अनुष्ठानपरक् धर्म था।
उस काल में प्रत्येक भौतिक तत्व का अपना विशेष अधिष्ठाता देवता या देवी की मान्यता प्रचलित थी परंतु देवताओं में वरुण, पूषो, मित्र, सविता, सूर्य, अश्विन, उषा, इंद्र, रूद्र, पर्जन्य, अग्नि, बृहस्पति, सोम आदि प्रमुख थे।
इन देवताओं की आराधना यज्ञ तथा मंत्रोचार के माध्यम से की जाती थी, मंदिर तथा मूर्ति पूजा का अभाव था।
उपनिषद काल में हिंदू धर्म के दार्शनिक पक्ष का विकास हुआ साथ ही एकेश्वरवाद की अवधारणा भी प्रबल हुई ईश्वर को अजर अमर अनादि सर्वत्र व्यापी कहा गया। इसी समय योग्, सांख्य, वेदांत आदि षड दर्शनों का विकास हुआ।
निर्गुण तथा सगुण का भी अवधारणा उत्पन्न हुई 9 से 14वीं शताब्दी के मध्य विभिन्न पुराणों की रचना हुई पुराणों में पांच विषय (पंच लक्षण) का वर्णन है।
(1) सर्ग (जगत की सृष्टि)
(2) प्रतिसर्ग (सृष्टि का विस्तार लोप और पुन:सृष्टि
(3) वंश (राजाओं की वंशवाली)
(4) मन्वंतर (भिन्न- भिन्न मनुओ के काल की प्रमुख घटनाये)
(5) वंशानुचरित (अन्य गौरवपूर्ण राजवंशो का विस्तृत वर्णन)
इस प्रकार पुराणों में मध्ययुगीन धर्म ज्ञान विज्ञान तथा इतिहास का वर्णन मिलता है। पुराणों ने ही हिंदू धर्म में अवतारवाद की अवधारणा का विमोचन किया था।
इसके अलावा मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा, व्रत आदि इसी काल की देन है।पुराणों के पश्चात भक्ति काल का आगमन हुआ था जिसमें विभिन्न संत एवं भक्तों ने साकार ब्रह्म की आराधना पर जोर दिया और जन सेवा परोपकार और प्राणी मात्र की समानता एवं सेवा को ईश्वर आराधना का ही रूप बताया फल स्वरुप प्राचीन दुरुह् कर्मकांड के बंधन कुछ ढीले पड़ गए ।
दक्षिण भारत के अलवार संतो गुजरात के नरसी मेहता महाराष्ट्र के तुकाराम बंगाल में चैतन्य् उत्तर में तुलसी कबीर सूर और गुरु नानक के भक्ति भाव से ओतप्रोत भजनों ने जनमानस पर अपनी गहरी और अमिट छाप छोड़ी।
Hindu dharm की अवधारणा एवं परंपराएं :–
हिंदू धर्म की प्रमुख अवधारणाएं और परंपराएं निम्नलिखित हैं।
1) ब्रम्हा
ब्रह्म को सर्वव्यापी एकमात्र सत्ता निर्गुण तथा सर्वशक्तिमान माना गया है वास्तव में यह एकेश्वरवाद के परब्रह्म है जो अजर अमर अनंत और इस जगत का जन्मदाता पालनहार व कल्याण करता है।
2 आत्मा
ब्रह्म को सर्वव्यापी माना गया है अतः जीवो में भी उसका अंश विद्यमान है जीवो में विद्यमान ब्रह्मा के यह अंश ही आत्मा है जो जीव की मृत्यु के बावजूद समाप्त नहीं होती और किसी नवीन देह को धारण कर लेती है अंततः मोक्ष प्राप्ति के पश्चात वह ब्रह्म में लीन हो जाती है।
3 पुनर्जन्म
आत्मा के अमरत्व की अवधारणा से ही पुनर्जन्म की भी अवधारणा बलवती होती है एक जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा नवीन देह् को धारण करती है अर्थात उसका पुनर्जन्म होता है इस प्रकार देह् आत्मा का माध्यम मात्र है।
4 योनि
आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं ऐसी 84 करोड़ योनियों की कल्पना की गई है जिसमें कीट पतंगे पशु पक्षी वृक्ष और मानव आदि सभी सम्मिलित हैं योनि को आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जैव प्रजातियां कहा जा सकता है।
5 कर्मफल
प्रत्येक जन्म के दौरान जीवन भर किए गए कृत्यों का फल आत्मा को अगले जन्म में भुगतना पड़ता है अच्छे कर्मों के फल स्वरुप अच्छी योनि में जन्म होता है।
इस दृष्टि से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ योनि है परंतु कर्म फल का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति अर्थात आत्मा का ब्रह्मलीन हो जाना ही होता है।
6 स्वर्ग नर्क
यह कर्म फल से संबंधित दो लोक हैं स्वर्ग में देवी-देवता अत्यंत ऐश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं जबकि नर्क अत्यंत कष्टदायक अंधकार में और निकृष्ट होता है।
अच्छे कर्म करने वाला प्राणी मृत्यु के बाद स्वर्ग में और बुरे कर्म करने वाला नर्क में स्थान पाता है।
7 मोक्ष
मोक्ष का आशय है आत्मा का जीवन मरण के दुष्चक्र से मुक्त हो जाना अर्थात परम ब्रह्म में लीन हो जाना इसके लिए निर्विकार भाव से सत्कर्म करना और ईश्वर की आराधना करना Hindu dharm में मार्ग बताए गए हैं।
8 चार युग
हिंदू धर्म में काल (समय) को चक्रीय बताया गया है इस प्रकार एक कालचक्र में चार युग होते हैं — कृत (सतयुग), त्रेता, द्वापर, तथा कलयुग।
इन चारों युगों में कृत सर्वश्रेष्ठ और कलयुग निकृष्ट तम माना गया है इन चारों युगों में मनुष्य की शारीरिक और नैतिक शक्ति क्रमशः क्षीण होती जाती है।
चारों युगों को मिलाकर एक महायुग बनता है, जिसकी अवधि 4320000 वर्ष होती है, जिसके अंत में पृथ्वी पर महाप्रलय होता है और फिर से सृष्टि की नवीन रचना ईश्वर द्वारा होती है।
9 चार वर्ण
हिंदू समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है— ब्राह्मण, क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र यह वर्ण प्रारंभ में कर्म के आधार पर विभाजित किए गए थे ब्राह्मण का कर्तव्य विद्यार्जन शिक्षण पूजन कर्मकांड संपादन आदि होता था।
क्षत्रिय का धर्मानुसार शासन करना तथा देश व धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करना था वैश्य का कृषि और व्यापार द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताएं पूर्ण करना तथा शूद्रों का अन्य तीनों वर्णों की सेवा करना एवं अन्य जरूरतें पूरी करना दायित्व था।
कालांतर में वर्ण व्यवस्था जटिल होती गई और यह वंशानुगत तथा शोषण परक् हो गई शुद्रो को अछूत माना जाने लगा।
बाद में विभिन्न वर्णों के बीच दैहिक संबंधों से अन्य मध्यवर्ती जातियों का जन्म हुआ वर्तमान में जाति व्यवस्था अत्यंत विकृत रूप में विद्यमान है।
10 चार आश्रम
प्राचीन Hindu dharm ग्रंथ में मानव जीवन को 100 वर्ष की आयु का माना गया है और इसी आधार पर उसे 4 चरणों या आश्रमों में विभाजित किया गया है।
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास प्रत्येक की अवधि 25 वर्ष निर्धारित है ।
ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति गुरु के आश्रम में जाकर विद्या अध्ययन करता है। गृहस्थ आश्रम में विवाह संतानोत्पत्ति अर्थ उपार्जन दान तथा अन्य भोग विलास करता है।
वानप्रस्थ में व्यक्ति धीरे-धीरे सांसारिक उत्तरदायित्व अपने पुत्रों को सौंपकर उनसे विरक्त होता है, और अंततः सन्यास आश्रम में गृह त्याग कर निर्विकार होकर ईश्वर की उपासना में लीन हो जाता है।
11 चार पुरुषार्थ
ग्रंथों में चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन का वांछित उद्देश्य बताया गया है ।उपयुक्त आचरण व्यवहार और कर्तव्य परायणता ही धर्म है अपनी बौद्धिक और शारीरिक क्षमता अनुसार परिश्रम तथा धन अर्जित करना और उनका उचित उपभोग करना अर्थ है।
शारीरिक आनंद भोग ही काम है तथा धर्मानुसार आचरण करके जीवन मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है।
धर्म मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शक होता है जबकि अर्थ और काम गृहस्थाश्रम के दो मुख्य कार्य हैं और मोक्ष संपूर्ण जीवन का अंतिम लक्ष्य।
12 चार योग
ज्ञान योग भक्ति योग कर्म योग और राजयोग यह 4 योग हैं जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं जहां ज्ञान योग दार्शनिक एवं तार्किक विधि का अनुसरण करता है वही भक्ति योग आत्मसमर्पण और सेवा भाव का कर्म योग समाज के दिन हीन् की सेवा तथा राजयोग शारीरिक एवं मानसिक साधना का अनुसरण करता है यह चारों परस्पर विरोधी नहीं है बल्कि एक दूसरे के सहायक और पूरक हैं।
13 चार धाम
चारों दिशाओं में पूर्व पश्चिम उत्तर और दक्षिण स्थित चार हिंदू धाम क्रमशः बद्रीनाथ रामेश्वरम जगन्नाथ पुरी और द्वारका है यहां की यात्रा करना प्रत्येक हिंदू का पुनीत और मोक्ष से जुड़ा हुआ कर्तव्य है।
14 हिंन्दू धर्मग्रन्थ
हिंदू धर्म में प्रमुख ग्रंथ है चार वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद 13 उपनिषद है 18 पुराण है रामायण, महाभारत और गीता, रामचरितमानस, आदि प्रमुख ग्रंथ हैं इसके अलावा अनेक कथाएं, अनुष्ठान ग्रंथ, आदि भी हैं।
15 सोलह संस्कार
मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 अथवा 17 पवित्र संस्कार किए जाते हैं यह संस्कार मनुष्य के मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं।
i) गर्भाधान
ii) पुंसवन (गर्भ के तीसरे माह तेजस्वी पुत्र प्राप्ति हेतु किया गया संस्कार)
iii) सीमंतोनयन (गर्भ के चौथे महीने में गर्भवती स्त्री के सुख और शांति बना हेतु)
iv) जातकर्म (जन्म के समय)
v) नामकरण
vi) निष्क्रमण (बच्चे के प्रथम घर से बाहर लाने पर)
vii) अन्नप्राशन (5 महीने की आयु में सर्वप्रथम अन्न् ग्रहण करवाने पर)
viii) चूड़ाकरण (मुंडन)
ix) कर्नछेदन
x) विद्यारंभ
xi) उपनयन (यगोपवित धारण एवं गुरु आश्रम की और प्रस्थान)
xii) वेद आरंभ
xiii) केशांत अथवा गोदान (दाढ़ी को सर्वप्रथम काटना)
xiv) सावित्री
xv) समावर्तन (शिक्षा समाप्त करके ग्रह की वापसी)
xvi) विवाह
xvii) अंत्येष्टि
इस प्रकार विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म हिंदू धर्म बहु आयामी है। इसमें विविधता जटिलता और सरलता का बेजोड़ सम्मिश्रण है।
वर्तमान वैज्ञानिक शोधो से Hindu dharm की वैज्ञानिक पद्धति और विचार से सारा विश्व प्रभावित हो रहा है। धर्म के जानने वाले विद्वानों के अनुसार भविष्य में यह धर्म और अधिक विकसित होगा और सारे विश्व को जीवन जीने का मार्ग दिखाएंगा।
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