राज्य सभा क्या है :–
भारतीय संसदीय व्यवस्था में कानून के निर्माण में संसद का विशेष महत्व होता है। संसद का निर्माण राष्ट्रपति Rajya Sabha और लोकसभा से मिलकर होता है।
राज्यसभा को उच्च सदन अथवा द्वितीय सदन भी कहा जाता है, इसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
राज्यों का प्रतिनिधित्व समानता के आधार पर नहीं है बल्कि, यह जनसंख्या के आधार पर होता है। बड़े राज्यों के प्रतिनिधि अधिक संख्या में तथा जनसंख्या में छोटे राज्यों के कम प्रतिनिधि इस सदन में होते हैं।
कई मामलों में लोकसभा को राज्यसभा से अधिक शक्तियां प्राप्त होती है फिर भी Rajya Sabha को कुछ विशिष्ट शक्तियां प्राप्त हैं, जिनके विषय में आगे इस लेख में चर्चा करेंगे।
Rajya Sabha का इतिहास :–
भारतीय संविधान की लागू होने के बाद काउंसिल ऑफ स्टेट (राज्यसभा) का गठन 3 अप्रैल 1952 को किया गया था और इसकी पहली बैठक 13 मई 1952 को हुई थी।
इसके बाद 23 अगस्त 1954 को सभापति ने संसद में घोषणा की थी कि काउंसिल ऑफ स्टेट को अब राज्यसभा के नाम से जाना जाएगा।
इस प्रकार तब से भारतीय संसदीय व्यवस्था में राज्यसभा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रही है।
राज्य सभा में कितने सदस्य होते हैं :–
संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा का गठन 250 सदस्यों के योग से होता है।
इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित किए जाते हैं, और शेष बचे 238 सदस्यों का चुनाव राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा होता है।
राज्यसभा में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभाओं के लिए आवंटित स्थान को संविधान की चौथी अनुसूची में उल्लेखित किया गया है।
इस अनुसूची के अनुसार 233 स्थान के संबंध में उल्लेख किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान समय में राज्यसभा की प्रभावी संख्या 245 (राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्यों सहित) है।
12 सदस्य जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए नाम निर्देशित किया जाता है वह साहित्य, विज्ञान, कला तथा समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति होते हैं।
राज्यों और संघ राज्य क्षेत्र का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व
S. N. | राज्य और केंद्र शासित प्रदेश | स्थानों की संख्या |
1 |
आंध्र प्रदेश | 11 |
2 | तेलंगाना |
7 |
3 |
असम | 7 |
4 | बिहार |
16 |
5 |
झारखंड | 6 |
6 | गोवा |
1 |
7 |
गुजरात | 11 |
8 | हरियाणा |
5 |
9 |
केरल | 9 |
10 | मध्य प्रदेश |
11 |
11 |
छत्तीसगढ़ | 5 |
12 | तमिलनाडु |
18 |
13 |
महाराष्ट्र | 19 |
14 | कर्नाटक |
12 |
15 |
उड़ीसा | 10 |
16 | पंजाब |
7 |
17 |
राजस्थान | 10 |
18 | उत्तर प्रदेश |
31 |
19 |
उत्तरांचल | 3 |
20 | पश्चिम बंगाल |
16 |
21 |
जम्मू कश्मीर | 4 |
22 | नागालैंड |
1 |
23 |
हिमाचल प्रदेश | 3 |
24 | मणिपुर |
1 |
25 |
त्रिपुरा | 1 |
26 | मेघालय |
1 |
27 |
सिक्किम | 1 |
28 | मिजोरम |
1 |
29 |
अरुणाचल प्रदेश | 1 |
30 | दिल्ली |
3 |
31 |
पांडिचेरी | 1 |
Total |
233 |
Rajya Sabha का चुनाव :–
Rajya Sabha के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमण्य मत द्वारा होता है।
संघ राज्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों का चुनाव उसी तरीके से किया जाता है जिसे संसद विधि बनाकर निर्धारित करती है।
राज्यसभा में केवल दो संघ राज्य क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और पुडुचेरी के लिए ही स्थान का आवंटन किया गया है ।
Rajya Sabha की अवधि :–
राज्यसभा का पूर्ण विघटन कभी नहीं होता, इसके सदस्य 6 वर्षों के लिए चुने जाते हैं।
इसके कूल सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष पद मुक्त हो जाते हैं, तथा पद मुक्त होने वाले सदस्यों के स्थान को भरने के लिए प्रत्येक दूसरे वर्ष राज्यसभा के चुनाव आयोजित होते हैं।
यदि कोई सदस्य त्यागपत्र दे देता है या उसकी आकस्मिक मृत्यु हो जाती है तो, इस कारण से कोई स्थान रिक्त हो गया तो इस रिक्त स्थान के लिए उपचुनाव होता है।
राज्यसभा के सदस्य राज्यसभा के सभापति को अपना त्यागपत्र किसी भी समय देकर सदस्यता से मुक्त हो सकते हैं।
Rajya Sabha का अधिवेशन :–
राज्यसभा का 1 वर्ष में दो बार अधिवेशन होता है लेकिन इसके अधिवेशन की अंतिम बैठक तथा आगामी अधिवेशन की प्रथम बैठक के लिए निर्धारित तिथि के बीच 6 माह का अंतर नहीं होना चाहिए।
सामान्यतः राज्यसभा का अधिवेशन तभी बुलाया जाता है जब लोकसभा का भी अधिवेशन बुलाया गया हो।
परंतु संविधान के अनुच्छेद 352, 356 और 360 के अनुसार आपातकाल की घोषणा के बाद तब राज्यसभा का विशेष अधिवेशन बुलाया जा सकता है जब लोकसभा का विघटन हो गया हो।
ऐसी एक परिस्थिति 1977 में हुई थी। जब लोकसभा का विघटन हो गया था और तमिलनाडु तथा नागालैंड में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने की आवश्यकता थी।
उस दौरान राज्यसभा का इस प्रकार का विशेष अधिवेशन बुलाया गया था।
राज्यसभा के पदाधिकारी :–
सभापति (उपराष्ट्रपति)
संविधान के अनुच्छेद 89 के अंतर्गत भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है।
वह राज्यसभा की कार्रवाइयों के संचालन तथा सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए उत्तरदाई होता है।
सभापति नए सदस्यों को शपथ दिलाता है, सभापति को सभा में मतदान करने का तो अधिकार नहीं है लेकिन वह निर्णायक मत दे सकता है।
इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति के कर्तव्य और दायित्वों का भी निर्वाह किया जाता है।
राज्यसभा का उपसभापति
राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी एक सदस्य को उपसभापति निर्वाचित करती है और उपसभापति सभापति की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का निर्वहन करता है।
राज्यसभा का महत्त्व :–
राज्यसभा ऐसी सभा है जिसमें देश के योग्य और अनुभवी राजनीतिज्ञ चुनाव की आपाधापी के बिना ही सदस्य बनाए जा सकते हैं और इस प्रकार देश को उनके अनुभव तथा ज्ञान का लाभ प्राप्त होता है जैसा कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे।
कानून के निर्माण में होने वाली किसी भी जल्दबाजी पर राज्यसभा अंकुश लगती है। लोकसभा द्वारा पारित होने वाले कानून को वह पुनर्विचार का अवसर देती है, जिससे कानून के निर्माण में होने वाली जल्दबाजी से बचा जा सकता है।
राज्यसभा राज्यों की प्रतिनिधि और उनके हितों का संरक्षण करने वाली सभा है। जो संघ के सिद्धांतों की अनुरूप है किंतु, व्यावहारिक रूप से राज्यसभा अब तक राज्य के हित के लिए ही कार्य नहीं कर रही थी बल्कि राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर ही राज्यसभा द्वारा कार्य किया जाता है।
राज्यसभा की कार्य और शक्तियां :–
संविधान द्वारा राज्यसभा तथा लोकसभा को अधिकांश मामलों में समान कार्य तथा समान शक्तियां दी गई है लेकिन कुछ मामलों में राज्यसभा तथा कुछ मामलों में लोकसभा को अधिक शक्तियां दी गई है।
निम्नलिखित मामलों में राज्यसभा को कुछ अधिक शक्तियां प्रदान की गई है।
राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्यसभा अपने दो तिहाई बहुमत से यह संकल्प पारित कर दे की राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक है कि, संसद राज्य सूची में वर्णित किए गए विषयों के संबंध में कानून बनाए तो संसद को उसे विषय के संबंध में कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
इस प्रकार बनाया गया कानून केवल एक वर्ष तक लागू रहता है परंतु राज्यसभा पुनः संकल्प पारित करके एक वर्ष के समय को 1 वर्ष तक और बढ़ा सकती है और यह संकल्प बार-बार भी पारित किया जा सकता है।
इस अधिकार का अब तक दो बार प्रयोग किया गया है।
i) वर्ष 1952 में राज्यसभा ने संकल्प पारित करके संसद को व्यापार वाणिज्य उत्पादन वस्तुओं की उपलब्धि तथा वितरण के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया था।
ii) वर्ष 1986 में राज्यसभा ने संकल्प पारित करके संसद को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ सुरक्षा क्षेत्र की व्यवस्था करने के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया था।
अखिल भारतीय सेवाओं का गठन
अनुच्छेद 312 (1) के अनुसार यदि राज्यसभा अपने उपस्थिति तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यह संकल्प पारित कर दे की राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक है कि संघ और राज्यों के लिए सम्मिलित एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन किया जाए तो संसद को ऐसा करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
राज्यसभा ने अपनी इस शक्ति का प्रयोग करके 1961 में भारतीय अभियंता सेवा, भारतीय वन सेवा और फिर 1965 में भारतीय कृषि सेवा और भारतीय शिक्षा सेवा का गठन किया था।
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