लेखा परीक्षा का अर्थ :–
वित्तीय प्रशासन पर विधायिका के नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण साधन है लेखा परीक्षा यह विधायिका के प्रति प्रशासन की जवाब दे ही को लागू करने का एक प्रमुख साधन है यह प्रशासन पर बाहरी नियंत्रण का अंग है।
लेखक परीक्षा लेखा की छानबीन है जिसका उद्देश्य यह पता लगाना और विधायिका को संसूचित करना है कि प्रशासन की ओर से कौन-कौन से अनाधिकृत अव्वैधानिक या अनियमित व्यय किए गए हैं और उसने कौन- कौन से वित्तीय कार्य उचित नहीं है।
इसका उद्देश्य यह देखना है कि वह सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृतियों से और उन्हीं कार्यों के लिए किए गए हैं जिसके लिए इनको विधायिका ने अधिकृत किया था।
यदि दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार के व्यय की इस रूपरेखा में जांच होती है कि किए गए समस्त व्यय विधायिका की स्वीकृति के अनुरूप सक्षम प्राधिकारी द्वारा उचित मद में किया गया है अथवा नहीं।
लेखा परीक्षा या तो उत्तर लेखा परीक्षा हो सकती है अथवा पूर्व लेखा परीक्षा अगर लेखा परीक्षा धन व्यय करने के बाद होती है तो इसे उत्तर लेखा परीक्षा कहते हैं और यदि धन खर्च होने से पहले होती है तो इसे पूर्व लेखा परीक्षा कहते हैं।
दूसरी ओर यदि लेखा परीक्षा धन खर्च होने के पहले अथवा खर्च की प्रक्रिया के दौरान होती है तो इसको पूर्व लेखा परीक्षा अथवा समवर्ती लेखा परीक्षा कहा जाता है।
लेखा परीक्षा की भूमिका (Role of Audit) :–
आधुनिक वित्तीय व्यवस्था में लेखा परीक्षा की भूमिका स्पष्ट है लेखा परीक्षा निम्न प्रकार की हो सकती है।
निष्पादन लेखा परीक्षा (Performance Audit)
इस प्रकार के लेखा परीक्षा का संबंध उपलब्धियों के मूल्यांकन से होता है यह खर्च के बदले में प्रशासन के कार्यों के उपलब्धियां का मापन करता है अतः इसको कुशलता लेखा परीक्षा भी कह सकते हैं।
नियात्मक लेखा परीक्षा (Regulatory Audit)
इसका प्रमुख उद्देश्य प्रशासन द्वारा किए गए खर्चों के वैज्ञानिक और तकनीकी पक्ष से है।
यह सुनिश्चित करता है कि खर्च विधायिका द्वारा स्वीकृत नियमों और विनियमों के अनुसार किए गए हैं साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि वह व्ययों के लिए पर्याप्त और उपयुक्त वाउचर संलग्न है।
इसलिए इसको विधिक लेखा परीक्षा कहा जाता है।
औचित्य लेखा परीक्षा (Propriety Audit)
इस लेखा परीक्षा का उद्देश्य ईमानदारी निष्ठा और मितव्ययिता से व्यय करने से है यह सार्वजनिक धन के अपव्यय और बर्बादी के मामलों की उस स्थिति की खोज करता है जब खर्च स्वीकृति नियम और विनियम के अनुसार न किए गए हो।
संसदीय शासन प्रणाली में लेखा परीक्षा का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है यह व्यक्तियों की कार्य प्रणाली संबंधी और तकनीकी अनियमिताओं को सामने लाती है चाहे वे निर्णय लापरवाही के कारण हो अथवा बदनियति के कारण।
भारत मे लेखा परीक्षा (Audit in india)
संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार भारत में सार्वजनिक वित्त के लेखा और नियंत्रण के लिए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की व्यवस्था की गई है।
वह भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग का प्रमुख है वह सार्वजनिक निधि का संरक्षण करता है और केंद्र तथा राज्य दोनों के स्तर पर देश की समूची वित्त प्रणाली को नियंत्रित करता है अतः इस कार्यालय की प्रकृति अखिल भारतीय है।
संविधान के अनुच्छेद 149 में संसद को यह अधिकार है कि वह केंद्र और राज्यों और किसी अन्य प्राधिकरण अथवा निकाय के लेखे के संबंध में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कार्यभार एवं उसकी शक्तियों का निर्धारण कर सके।
इस अधिनियम में वर्ष 1976 में संशोधन किया गया और केंद्र के मामलों में लेखा को लेखा परीक्षा से अलग कर दिया गया।
भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यह सुनिश्चित करता है कि जो धन लेखों में खर्च हुआ दिखाया गया है वह वैधानिक रूप से उस सेवा अथवा उद्देश्य के लिए खर्च हुआ है जिसकी अनुमति विधायिका से प्राप्त हुई थी।
वैधानिक और नियामक लेखा परीक्षा के अतिरिक्त औचित्य लेखा परीक्षा भी कर सकता है वह सरकारी खर्च की बुद्धिमत्ता निष्ठा और मित्व्ययता से हुए खर्च की भी जांच कर सकता है और ऐसे खर्च की बर्बादी और अपने पर टीका टिप्पणी कर सकता है।
वैधानिक नियामक लेखा परीक्षा जो कैग के लिए अनिवार्य है और औचित्य लेखा परीक्षा उसके लिए विवेकाधीन है।
कैग की भूमिका वित्तीय प्रशासन में भारत के संविधान और संसदीय कानूनों की मर्यादा को बनाए रखती है।
वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में संसद के प्रति कार्यपालिका या मंत्रिमंडल की जवाबदेही कैग के लेखा परीक्षा रिपोर्ट में सुरक्षित होती है ।
संसद के एजेंट के रूप में कार्य करता है और यह लेखा परीक्षा संसद की ओर से की जाती है अतः CAG संसद के प्रति उत्तरदाई है।
भारत के संविधान के अनुसार कैग, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक दोनों की भूमिका में है परंतु व्यवहार में कैग केवल महालेखा परीक्षक की ही भूमिका निभाता है, नियंत्रक का नहीं जैसा कि संवैधानिक विशेषज्ञ डीडी बसु ने कहा था ।
समेकित निधि से जारी होने वाले धन पर कैग का कोई नियंत्रण नहीं होता और अनेक विभागों को कैग से विशेष प्राधिकार प्राप्त किए बिना चेक जारी करके धन निकालने का अधिकार है।
कैग की भूमिका केवल लेखा परीक्षा की दशा में ही होती है जब खर्च हो चुका हो इस मामले में भारत का सीएजी ब्रिटेन के कैग से पूरी तरह भिन्न है जिसको नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक दोनों शक्तियां प्राप्त हैं।