बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित वंदे मातरम को भारत के राष्ट्र गीत के रूप में मान्यता दी गई है।
बंकिमचंद्र के प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ का यह गीत भाग है।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इस गीत से राष्ट्रप्रेम और आत्म बलिदान की प्रेरणा लेते थे।
इस गीत की रचना उपन्यास आनंदमठ के साथ ही सितंबर अक्टूबर 1874 में हुई थी।
उपन्यास में इस गीत के 5 पद हैं परंतु इसका प्रथम पद ही राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता प्राप्त है।
सर्वप्रथम 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इसे गाया गया था।
राष्ट्रीय गीत के गायन की अवधि 1 मिनट और 5 सेकेंड है।
राष्ट्रीय गीत को सर्वप्रथम यदुनाथ भट्टाचार्य ने स्वर बद्ध किया था।
वर्ष 1949 में मास्टर कृष्णा राय ने राष्ट्रीय गीत को बैंड पर बजाने के लिए धुन बनाई थी जिनके निर्देशन में मास्टर गणपत सिंह ने पहली बार इसे बजाया था।
आकाशवाणी दूरदर्शन के दैनिक कार्यक्रमों का शुभारंभ राष्ट्रगीत से ही किया जाता है।
संसद सत्र के आरंभ और समापन पर इस गीत से किया जाता है।
राष्ट्रगीत का अंग्रेजी में अनुवाद श्री अरविंदो द्वारा किया गया था।
मूल रूप से राष्ट्रगीत को संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
भारत का राष्ट्रीय गीत –:
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
मूल रूप से संस्कृत में लिखित इस रचना का हिंदी अनुवाद निम्न प्रकार है।
मैं आपके आगे शीश झुकाता हूं, माता तुम्हें प्रणाम।
जल से सीची फलों से भरी।।
पर्वतों की ठंडी और शांत हवा सी।
तैयार फसलों के वरदान के साथ माता।
चांदनी रातों में फूलों की गरिमा से।
धरा पर खिलने वाले फूलों और वृक्षों से सुशोभित।।
हंसमुख और मधुर भाषी।
सुख और आशीर्वाद देने वाली माता तुम्हें प्रणाम।।
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उपन्यास में इस गीत के 5 पद इस प्रकार हैं।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥
कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले।
बहुबलधारिणीं
नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं
मातरम्॥ २॥
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम्
नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम्
मातरम्॥४॥
वन्दे मातरम्
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं
मातरम्॥ ५॥
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