राष्ट्रीय ध्वज किसी भी राष्ट्र का गौरव और पहचान होता है। भारत के तिरंगे की शान और पहचान तो सारे विश्व के झंडों में अलग ही दिखाई देती है।
हमारा राष्ट्रध्वज भारत की सांस्कृतिक सामाजिक एवं उच्च माननीय भाव का प्रतीक है जो हमारी ऐतिहासिक विरासत को प्रतिबिंबित करता है।
इस लेख में विस्तार से जानेंगे राष्ट्रीय तिरंगे के बारे में।
राष्ट्रीय ध्वज के बारे में 10 लाइन –:
1) भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा कहा जाता है जो मुख्यतः 4 रंगों से मिलकर बना है केसरिया, सफेद, हरा और नीला।
2) राष्ट्रीय ध्वज में तीन पट्टी या ऑडी (horizontal) और समान चौड़ाई की होती है। केसरिया सबसे ऊपर सफेद रंग बीच में और हरा रंग सबसे नीचे होता है, साथ में नीले रंग का चक्र झंडे के बीच में अंकित होता है।
3) तिरंगे में केसरिया रंग शौर्य साहस बल त्याग एवं निस्वार्थ की भावना का घोतक है।
श्वेत रंग सत्य व शांति का तथा हरा रंग विश्वास एवं धरा की हरियाली तथा राष्ट्र की खुशहाली का प्रतीक है। मध्य में अंकित चक्र धर्म अर्थात सत्य की प्रगति का प्रतीक है।
4) राष्ट्रीय ध्वज आयताकार होता है जिसमें चौड़ाई की अपेक्षा लंबाई अधिक होती है ध्वज की लंबाई चौड़ाई का अनुपात 3 : 2 में है।
5) झंडे के बीच में लगा चक्र अशोक स्तंभ से लिया गया है, नीले रंग के इस चक्र में चौबीस तीलियां हैं, जो दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
6) राष्ट्रीय ध्वज को संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को अधिकारिक रूप से मान्यता दी थी।
7) राष्ट्रीय ध्वज का अधिकारिक ध्वजारोहण 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को किया गया था।
8) भारतीय ध्वज संहिता 2002 के अनुसार सभी भारतीय नागरिकों एवं निजी संस्थाओं को भी राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार है।
9) राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई है जिसमें ध्वजारोहण के लिए नियम निर्धारित किए गए हैं।
10) सिर्फ संवैधानिक पदाधिकारियों की मृत्यु के दशा में ही झंडे को आधा झुकाया जाता है।
पहली बार भारत का राष्ट्रीय ध्वज कब और कहां फहराया गया –:
अधिकारिक रूप से वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज को सबसे पहले 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि में फहराया गया था।
यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो सर्वप्रथम 7 अगस्त 1860 को कोलकाता के पार सी बागान चौराहे पर हरा पीला और लाल तीन रंगों की ऑडी पत्तियों वाले तिरंगे ध्वज को राष्ट्र ध्वज के रूप में फहराया गया था।
राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का इतिहास –:
सर्वप्रथम राष्ट्रीय ध्वज को 22 जुलाई 1947 को आधिकारिक मान्यता दी गई और 14 अगस्त 1947 के मध्य रात्रि में इसे फहराया गया था लेकिन तिरंगे का निर्माण कई चरणों से होकर गुजरा और वर्तमान स्वरूप में हमारे सामने हैं।
सर्वप्रथम 7 अगस्त 1860 को कोलकाता में हरा पीला और लाल रंग से निर्मित आड़े पट्टियों वाले तिरंगे जिसके बीच में वंदे मातरम अंकित था को फहराया गया था।
22 अगस्त 1860 को जर्मनी की स्टुटगार्ट में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस के सम्मेलन में मैडम कामा ने इसी ध्वज का परिवर्तित रूप फहराया था।
1917 में होमरूल आंदोलन के दौरान लोकमान्य तिलक और एनी बेसेंट ने एक पूर्व के झंडे से पूरी तरह से अलग ध्वज प्रस्तुत किया जिसमें सप्त ऋषि चांद तारा और ब्रिटिश यूनियन जैक भी अंकित था।
1921 के विजयवाड़ा कांग्रेस अधिवेशन में आंध्र प्रदेश के युवक पिंगली वेंकैय्या द्वारा प्रस्तुत तिरंगे ध्वज को गांधीजी ने अपनी स्वीकृति दी जिसमें एक चरखा भी अंकित था।
1931 में कांग्रेस द्वारा गठित एक समिति ने एक केसरिया रंग के ध्वज को राष्ट्र ध्वज के रूप में अपनाने का विचार रखा जिसके कोने में एक चरखा भी अंकित था बाद में डिजाइन अस्वीकृत हो गया।
इसके पश्चात तिरंगे जिसमें केसरिया सफेद और हरे रंग की ऑडी पट्टिया और बीच में अशोक चक्र अंकिता को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकृति प्रदान की गई और यह देश की पहचान बन गया।
ध्वज संहिता (ध्वज फहराने के नियम) –:
राष्ट्रध्वज अत्यंत गौरवशाली और सम्मानजनक राष्ट्रीय प्रतीक है, इसलिए ध्वजारोहण और ध्वज को फहराने के लिए व्यावहारिक नियम निर्धारित हैं।
ध्वज का प्रयोग और प्रदर्शन ध्वज संहिता के अनुसार सरकारी इमारतों पर यह प्रतिदिन फहराया जाता है नवीन ध्वज संहिता 2002 के लागू होने से पूर्व आम लोगों और स्थानों पर सिर्फ राष्ट्रीय त्योहारों पर ही झंडा फहराया जा सकता था।
राष्ट्रीय शोक की दशा में राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है।
राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मृत्यु होने पर संपूर्ण देश में झंडे को आधा झुका दिया जाता है।
लोकसभा के अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की मृत्यु होने पर दिल्ली में झंडे को आधा झुका दिया जाता है।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री की मृत्यु होने पर संबंधित समस्त राज्य में झंडे को आधा झुका दिया जाता है।
इन सभी संवैधानिक पदाधिकारियों के मृत्यु होने के बाद अंतिम संस्कार के स्थान पर अंतिम संस्कार होने तक राष्ट्रीय ध्वज झुका होता है।
यदि संविधानिक पदाधिकारियों की मृत्यु की घटना गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस या महात्मा गांधी जयंती जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर होती है तो सिर्फ उसी भवन पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका या जाएगा जहां मृतक को रखा गया है।
शेष भवनों पर ध्वज पूरी तरह सामान्य रूप से फहराया जाता है।
राष्ट्रीय ध्वज संहिता के कुछ सामान्य नियम –:
राष्ट्रीय ध्वज रोहन के लिए कुछ सामान्य नियम बनाए गए हैं राष्ट्रीय ध्वज के गौरव और सम्मान के लिए यह नियम अत्यंत आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ध्वज संहिता के बारे में वर्ष 2002 में दिए गए निर्णय से ध्वज संहिता की कठोरता को कुछ कम किया गया ।
सामान्य नियम निम्न है।
1) राष्ट्रीय ध्वज को साफ-सुथरे स्थान पर ऐसे फहराया जाना चाहिए कि वह सभी ओर से स्पष्ट दिखाई दे।
2) सरकारी भवन पर झंडा अवकाश के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है विशेष अवसरों पर यह रात में भी फहराया जा सकता है इसके लिए पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था करना अनिवार्य है।
3) झंडे का रंग और आकार सही होना चाहिए रंग ध्वज संहिता के अनुरूप और आकार भी आयताकार 3 : 2 में होना चाहिए।
4) राष्ट्रीय ध्वज के रोहन और उतारते समय सावधानी बरतनी चाहिए ध्वज को धरती पर नहीं लगना चाहिए और उसे धीरे-धीरे आदर पूर्वक उतारना चाहिए।
5) रोहण किए जाने वाले झंडे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।
6) फटा हुआ या गंदा मेला झंडा नहीं कराया जाना चाहिए।
7) किसी दूसरे झंडे को राष्ट्रीय झंडे के ऊपर नहीं लगाया जाना चाहिए।
8) विकृत हो चुके और कटे फटे झंडे को एकांत स्थान पर पूरी तरह से नष्ट करना चाहिए।
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