hadappa sabhyata ki khoj :–
पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रांत की माँटगोमरी जिले में स्थित hadappa के रहने वाले लोगों को आज से 90 वर्ष पूर्व इस बात का थोड़ा सा भी आभास नहीं रहा होगा कि उनके इलाके में और उनके घरों के आसपास की जमीन में दबी जिन चीजों का प्रयोग हुए अपने मकानों के निर्माण में कर रहे हैं यह कोई साधारण इंटे नहीं है बल्कि लगभग 5000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह से विकसित एक सभ्यता का अवशेष है।
इस सभ्यता का पहला आभास और ज्ञान तब हुआ जब 1856 ईसवी में ब्रिटिश भारत की अंग्रेज सरकार ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछाने के लिए ईटों की आपूर्ति के लिए इन खंडहरों की खुदाई आरंभ करवाई।
खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए और इसे Hadappa sabhyata का नाम दिया गया।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने यहां की खुदाई करवाई इसलिए इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय उन्हें दिया जाता है।
इस स्थान की खुदाई के बाद पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले के मोहनजोदड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई 1922 में रखलदास बनर्जी के नेतृत्व में की गई जिससे एक और हड़प्पा सभ्यता के स्थल का पता चला।
इस नए स्थान के प्रकाश में आने के बाद यह मान लिया गया कि यह प्राचीन सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित है अतः इस सभ्यता का नाम सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) रख दिया गया।
परंतु बाद में ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी बताएं और इस सभ्यता के अवशेष सिंधु नदी घाटी की सीमाओं से बाहर भी मिलने लगे तो इस सभ्यता को Hadappa sabhyata का नाम दिया गया।
Hadappa sabhyata नाम देने का प्रमुख कारण यह था कि इस प्राचीन सभ्यता के प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से ही प्राप्त हुए थे इसलिए इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा जाने लगा।
इस प्राचीन सभ्यता के प्रथम स्थल का ज्ञान होने के 90 वर्ष के उपरांत लगभग इस सभ्यता के 1000 और स्थानों का पता चला है। इनमें से ऐसे स्थान थे जो पूरी तरह से नगरीय सभ्यता का प्रतिनिधित्व करते थे हुए हैं हड़प्पा ,मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, लोथल ,कालीबंगा, हिसार और बनमाली।
Hadappa sabhyata ka vistar :–
अभी तक इस सभ्यता के अवशेष भारत और पाकिस्तान की पंजाब सिंध बलूचिस्तान गुजरात राजस्थान हरियाणा पश्चिम उत्तर प्रदेश जम्मू कश्मीर आदि प्रदेशों में पाए जा चुके हैं।
इस सभ्यता का विस्तार उत्तर के जम्मू में स्थित मांदा से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने भगतराव तंक और पश्चिम में मकराना समुद्र तट पर सुतकागेन्डोर से लेकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ तक है।
त्रिभुजाकार वाले इस सभ्यता के विस्तार में सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुतकागेंडोर पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर तथा उत्तरी पुरास्थल मांदा तथा दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद है।
सिंधु सभ्यता के स्थल अब निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं
i) बलूचिस्तान
मकराना तट प्रदेश पर मिलने वाले अनेक स्थलों में से पुरातात्विक दृष्टि से केवल तीन स्थल महत्वपूर्ण है सुतकागेंडोर (दाश्क नदी के मुहाने पर) सुतकाकोह (शादी कौर के मुहाने पर) और बालाकोट (सोन मियानी खाड़ी के पूर्व में बिदार नदी के मुहाने पर)
ii) उत्तर पश्चिम सीमांत क्षेत्र
क्षेत्र की सभी पुरातात्विक अवशेष गोमल घाटी में मिले हैं जो अफगानिस्तान जाने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है गुमला जैसे स्थानों पर सिंधु पूर्व सभ्यता के निक्षेपों के ऊपर सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
iii) सिंधु
इनमें कुछ प्रसिद्ध स्थल जैसे मोहनजोदड़ो चहूंदड़ो जुडेर जोदड़ो (कच्छ मैदान में जो कि सीबी और जकोबाबाद के बीच सिंधु की बाढ़ की मिट्टी का विस्तार है) अमरी (जिसमें सिंधु पूर्व सभ्यता के निक्षेपों के ऊपर सिंधु सभ्यता के निक्षेप मिलते हैं इत्यादि) सिंधु के मुहाने पर कोई स्थल प्राप्त नहीं हुआ है।
iv) पश्चिम पंजाब
क्षेत्र में बहुत ज्यादा स्थल नहीं है इसका कारण अब तक अज्ञात है हो सकता है पंजाब की नदियों ने अपना मार्ग बदल कर कुछ पुरातात्विक स्थलों को नष्ट कर दिया था।
इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्थल हड़प्पा है जो और रवि नदी के सूखे हुए मार्ग पर स्थित है।
बहावलपुर
यहां के स्थल सूखी हुई सरस्वती नदी के मार्ग पर स्थित है इस मार्ग का स्थानीय नाम हकरा है इस इलाके में अनेक सिंधु सभ्यता के स्थल मिलते मिलते हैं किंतु इस क्षेत्र में अभी तक किसी स्थल का उत्खनन संभव नहीं हुआ है।
इस स्थल का नाम कुडवाला थेर है जो बहुत बड़े इलाके में स्थित है।
राजस्थान
यहां के प्रमुख स्थल बहावलपुर के स्थलों के निरंतर क्रम में है जो प्राचीन सरस्वती नदी के सूखे हुए मार्ग पर स्थित है इस क्षेत्र में सरस्वती नदी को घग्घर कहा जाता है कुछ स्थल प्राचीन द्वषद्वती नदी के सूखे हुए मार्ग के साथ- साथ भी स्थित हैं जिसे अब चौटांग नदी कहा जाता है।
इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्थल कालीबंगा है राजस्थान के समस्त सिंधु सभ्यता के स्थल आधुनिक गंगानगर जिले में स्थित है।
हरियाणा
सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल हरियाणा के वनमाली जो कि वर्तमान हिसार जिले में स्थित है पाए जाते हैं।
पूर्वी पंजाब
पूर्वी पंजाब मैं स्थित हड़प्पा सभ्यता स्थल का नाम रोपण संगोल है और साथ ही वर्तमान में चंडीगढ़ नगर में भी हड़प्पा संस्कृति के अवशेष पाए गए हैं।
गंगा यमुना दोआब
यहां के स्थल मेरठ जिले के आलमगीर तक फैले हुए हैं एक अन्य स्थल सहारनपुर जिले में भी स्थित है जिसका नाम हुलास है।
जम्मू
हड्डापा सभ्यता के एक स्थल का पता चला है जो कि अखनूर के निकट मांदा में स्थित है।
गुजरात
कच्छ और काठियावाड़ में अनेक हड़प्पा कालीन स्थल है कच्छ के प्रमुख स्थल सुरकोटड़ा में है जिसका उत्खनन कार्य हो चुका है।
काठियावाड़ में लोथल प्रसिद्ध स्थल है गुजरात की मुख्य भूमि पर दक्षिणतम स्थल भगतराव है जो किम सागर के संगम पर स्थित है।
उत्तरी अफ़गानिस्तान
आश्चर्यजनक रूप से यह स्थल सिंधु सभ्यता के विस्तृत क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आता है किंतु शोरतुंगाई नामक स्थल पर सिंधु सभ्यता के (मृदभांड मिट्टी के बर्तन) पाए गए हैं।
सिंधु सभ्यता के निर्माता और निवासी :–
सिंधु सभ्यता काल के सर्वाधिक अनिश्चित और विवादित विषयों में से एक यह भी है कि सिंधु सभ्यता के निर्माता और निवासी कौन लोग थे इसलिए इस बारे में कुछ भी कह पाना निश्चित नहीं है फिर भी इस विवाद पर कुछ विद्वानों ने अपने मत दिए हैं और इस सभ्यता के निवासियों को पहचानने का प्रयास किया है।
गार्डन चाइल्ड सिंधु सभ्यता के निर्माता सुमेरियन लोगों को मानते हैं।
रखलदास बनर्जी के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता द्रविड़ थे।
हीलर के अनुसार ऋग्वेद में वर्णित दस्यु एवं दास सिंधु सभ्यता के निर्माता थे।
डॉ लक्ष्मण स्वरूप और रामचंद्र ने सिंधु सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता दोनों के निर्माता के रूप में आर्यों को सुनिश्चित किया है।
hadappa sabhyata ka kal nirdharan :–
सिंधु सभ्यता के काल को निर्धारित करना निसंदेह कठिन कार्य है और इस संबंध में विद्वानों में एकमत भी नहीं रहा है ।
काल निर्धारण का सबसे पहला प्रयास जॉन मार्शल ने किया था और उन्होंने 1931 में इस सभ्यता का काल लगभग 3250 ईसा पूर्व से 2750 ईसा पूर्व बताया था।
आधुनिक रेडियो कार्बन जैसी नवीन विशेषण पद्धति के द्वारा Hadappa sabhyata का कॉल 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया है।
hadappa sabhyata ka pramukh sthan : —
हड़प्पा
यह स्थान पाकिस्तान के पंजाब राज्य के माटगोमरी जिले में स्थित है रावी नदी के बाएं तट पर स्थित इस स्थल की सबसे पहली जानकारी 1826 ईसवी में चार्ल्स मार्शल द्वारा दी गई थी।
वर्ष 1921 में जॉन मार्शल के नेतृत्व में दयाराम साहनी द्वारा इस स्थल का उत्खनन करवाया गया यह नगर करीब 5 किलोमीटर के क्षेत्र में बसा हुआ था इस स्थल से प्राप्त भवन अवशेष जिन्हें पूर्वी जिलों को नगर टीला तथा पश्चिमी किले को दुर्ग किले के नाम से संबोधित किया गया है।
यहां पर 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित 12 कक्षा वाले एक अन्ना गार का अवशेष प्राप्त हुआ है जिसमें प्रत्येक का आकार 50 x 20 मीटर का है जिसका कुल क्षेत्रफल 2745 वर्ग मीटर से भी अधिक है।
श्रमिक आवास के रूप में विकसित 15 मकानों दो पंक्तियां मिली है जिनमें उत्तरी पंक्ति में 7 और दक्षिणी पंक्ति में 8 मकानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं प्रत्येक मकान का आकार लगभग 17 x 7.5 मीटर का है।
श्रमिक आवास के नजदीक ही करीब 14 भट्ठो के अवशेष मिलते हैं इसके अतिरिक्त यहां से प्राप्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण अवशेष है शंख का बना बैल, पीतल का बना एक्का ,ईटों के वृत्ताकार चबूतरे, साथ ही एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र ।
अनाज के रूप में गेहूं और जौ के दानों के अवशेष कहां से मिले हैं।
हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में ऐसा कब्रिस्तान स्थित है जिसे समाधि आर 37 का नाम दिया गया है। हड़प्पा में सन 1934 में एक अन्य समाधि मिली थी जिसे समाधि H का नाम दिया गया था इसका संबंध सिंधु सभ्यता के बाद के काल से है ऐसा प्रतीत होता है।
मोहनजोदड़ो
इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर पाए गए हैं मोहनजोदड़ो के टीलों को 1922 में खोजने का श्रेय राखल दास बनर्जी को प्राप्त हुआ है लगभग 5 किलोमीटर के क्षेत्र में यह नगर फैला हुआ था।
यहां पूर्व और पश्चिम दिशा में प्राप्त टीलों के अतिरिक्त सार्वजनिक स्थलों में एक विशाल स्नानागार एवं महत्वपूर्ण भवनों में एक विशाल अन्नागार जिसका आकार 150 x 75 मीटर है के अवशेष मिले हैं।
पुरातत्व विदो के अनुसार यह अन्ना गार मोहनजोदड़ो के सबसे बड़े भवनों में से एक था इसके अतिरिक्त सभा भवन एवं पुरोहित आवास के अवशेष भी सार्वजनिक स्थलों की श्रेणी में प्राप्त हुए हैं।
मोहनजोदड़ो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग किले को स्तूप टीला भी कहा गया है क्योंकि यहां पर कुषाण शासकों ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्य अवशेषों में कुंभकारों के 6 भट्ठो के अवशेष सूती कपड़ा, हाथी का सर, गले हुए तांबे के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं कांसे की नृत्यक नारी की मूर्तियों के अवशेष मिले हैं।
इस नगर में शव दाह के लिए दो प्रकार के अवशेष मिलते हैं आंशिक शवधान और पूर्ण समाधिकरण ( दफनाना)।
चहूंदड़ो
मोहनजोदड़ो के दक्षिण में यह पुरातात्विक स्थल स्थित है यहां प्राप्त होने वाले प्रमुख अवशेष हैं एक मोहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण यहां होता था।
इस हड़प्पा कालीन नगर के खोज का श्रेय 1931 में गोपाल मुजूमदार को जाता है यहां पर गुड़िया निर्माण हेतु एक कारखाने के अवशेष मिले हैं यह प्राक हड़प्पा कालीन झुकर संस्कृति एवं झांगर संस्कृति के अवशेष कहां से प्राप्त हुए हैं
यहां से प्राप्त अवशेषों में अलंकृत हाथी एवं कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते हुए पद चिन्ह प्राप्त हुए हैं सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपस्टिक के अवशेष भी यहां से मिलते हैं चहूंदड़ो एकमात्र ऐसा पूरा स्थल है जहां से
वक्राकार ईंटें मिली है और इस नगर में किसी भी दुर्ग का अस्तित्व नहीं था।
लोथल
यह गुजरात के अहमदाबाद जिले में भगवा नदी के किनारे सरागवाला नामक ग्राम के पास स्थित था खुदाई का श्रेय रंगनाथ राव को है जिनके नेतृत्व में वर्ष 1957 58 में यहां खुदाई हुई थी।
यहां का सर्वाधिक प्रसिद्ध उपलब्धि हड़प्पा कालीन बंदरगाह है इसके अतिरिक्त विशेष प्रकार के मृदभांड, उपकरण, मोहरे, बाट तथा माप के अन्य पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं।
यहां 3 युग में समाधि के भी उदाहरण मिले हैं लोथल के पूर्वी भाग में स्थित बंदरगाह का औसत आकार 214 x 36 मीटर और गहराई 3.3 मीटर की लोथल में घड़ी और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे।
अवशेषों में धान, चावल, पारस की मोहरे एवं घोड़ों की लघु मृणमूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं समुद्र समुद्र के तट पर स्थित सिंधु सभ्यता का यह स्थान पश्चिम एशिया के साथ व्यापार के द्वारा जुड़ा हुआ था।
रोपड़
पंजाब प्रदेश के रोपड़ जिले में सतलज नदी के किनारे यह स्थल स्थित है। यहां पर हड़प्पा कालीन संस्कृतियों के अतिरिक्त हड़प्पा सभ्यता से पूर्व के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं इस स्थल की खुदाई का श्रेय यज्ञदत्त शर्मा को है।
जिनके नेतृत्व में 1953-56 में यहां पर खुदाई की गई थी प्राप्त होने वाले प्रमुख अवशेष है मिट्टी के बर्तन, आभूषण, चार्ट फलक और तांबे की कुल्हाड़ी यहां से मिले मकानों के अवशेषों से लगता है कि यहां के मकान पत्थर और मिट्टी से बनाए गए थे।
कालीबंगा
स्थल राजस्थान के वर्तमान श्रीगंगानगर जिले में स्थित है घग्गर नदी के तट पर स्थित इस स्थल की खुदाई का श्रेय डी डी लाल और बी के थापड़ को जाता है जिनके नेतृत्व में वर्ष 1953 में यहां खुदाई हुई थी ।
यहां पर प्राप्त हड़प्पा और हड़प्पा कालीन सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं यहां से प्राप्त अनेक टीलो के चबूतरो के शिखर पर हवन कुंड होने के साक्ष्य मिले हैं यहां के भवनों के अवशेष से स्पष्ट होता है कि यहां भवन कच्ची ईंटों के बने थे।
कालीबंगा में प्राप्त हिंदू संस्कृति की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है यहां पर एक जूते हुए खेत का साथ मिलना जिसमें कुंडो के बीच का फासला पूर्व से पश्चिम की ओर 30 सेंटीमीटर और उत्तर से दक्षिण की ओर 1.10 मीटर
पर है कम दूरी की खेतों में चना और अधिक दूरी के खेतों में सरसों बोई जाती थी यहां पर लघु पाषाण उपकरण माणिक और मिट्टी के मनके संग कांच एवं मिट्टी की चूड़ियां खिलौना गाड़ी के पहिए सांड की खंडित मूर्ति
सिलबट्टे आदि पूरा अवशेष मिले हैं कालीबंगा की प्रातः कालीन बस्तियों में प्रयुक्त होने वाली कच्ची 23 x 20 x 10 सेंटीमीटर के आकार की थी
घरों में प्रयुक्त होने वाली ईटे कच्ची थी परंतु नाली और कुओ में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया था।
सुरकोतड़ा
यह स्थल गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है इसकी खोज 1964 में जगपति जोशी ने की थी, स्थल से सिंधु सभ्यता के पतन के अवशेष प्राप्त हुए हैं यहां से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण है घोड़े की अस्थियां और एक
अनोखी कब्रगाह है सुरकोटड़ा से दुर्ग एवं नगर क्षेत्र दोनों एक ही रक्षा दीवार से घिरे हुए थे यहां पर एक कब्र बड़े आकार की शिला से ढकी हुई मिली है या कब्र अभी तक हड़प्पा सभ्यता की शव विसर्जन परंपरा से सर्वथा
अलग प्रकार की है।
आलमगीरपुर
वर्तमान पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हिंडन नदी के किनारे यह पुरातात्विक स्थल स्थित है इसकी खोज का श्रेय यज्ञदत्त शर्मा को है जिनके नेतृत्व में 1958 में यहां की खुदाई हुई थी यह स्थान हड़प्पा संस्कृति का सबसे
पूर्वी छोर है यह स्थल हड्डापा सभ्यता के अंतिम अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है यहां मिट्टी के बर्तन मनके एवं पिंड मिले हैं।
रंगपुर
गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप मांदर नदी के समीप स्थित इस स्थल की खुदाई 1953-54 में रंगनाथ राव द्वारा की गई थी यहां पर पूर्व कालीन हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिले हैं यहां मिले कच्ची ईंटों के दुर्ग, नालियां,
मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्वपूर्ण है यह धान की भूसी के ढेर मिले हैं यहां उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के साथ मिलते हैं।
वनमाली
वर्तमान हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस स्थल की खुदाई का श्री रविंद्र सिंह बिष्ट को प्राप्त है जिनके नेतृत्व में 1973-74 में यहां पर खुदाई हुई थी इस स्थान से प्राप्त प्रमुख पूरा अवशेष है अनाज जो मिट्टी के बर्तन
गोलियां मनके मनुष्यों और पशुओं की मूर्तियां,चर्ट के फलक, तांबे के औजार, हल् की आकृति के खिलौने आदि वनमाली में जल निकासी प्रणाली का अभाव था।
अलीमुराद
सिंध प्रांत में स्थित इस नगर से कुआं मिट्टी के बर्तन, मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं, इसके अतिरिक्त स्थल से बैल की एक छोटी मूर्ति और कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है।
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