छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिला में अत्यंत प्राचीन भित्ति चित्र नाट्यशाला और गुफाएं पाए गए हैं। प्रमुख ऐतिहासिक स्थानों में Jogimara caves, Sita bengra की नाट्यशाला और लक्ष्मण बेंगरा की गुफाएं प्रमुख हैं।
इन स्थानों की ऐतिहासिक महत्व को इस तथ्य से और बेहतर समझा जा सकता है कि Jogimara caves में पाए गए भित्ति चित्र विश्व के सबसे प्राचीनतम भित्ति चित्रों में से एक हैं और सीता बेंगरा की नाट्यशाला विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला मानी जाती है।
इतने ऐतिहासिक स्थानों के बारे में विस्तार से जानना आवश्यक है।
कहां स्थित है Jogimara caves and Sita bengra :–
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से उत्तर दिशा में लगभग 280 किलोमीटर की दूरी पर सरगुजा जिला का मुख्यालय अंबिकापुर स्थित है और अंबिकापुर से 45 किलोमीटर दूर रामगढ़ स्थित है ।
रामगढ़ की पहाड़ी पर स्थित अनेक मंदिर खंडहर गुफाएं तथा मूर्तियां है और इन सब में सबसे प्रसिद्ध पहाड़ी के शिखर पर स्थित मौर्यकालीन सीता बेंगरा Jogimara caves और लक्ष्मण बंगरा प्रमुख है।
इन गुफाओं की खोज अचानक ही शिकार के दौरान कर्नल आउस्ले ने 1848 में की थी और डॉक्टर जे ब्लॉश ने इसे 1904 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट में प्रकाशित करवाया था।
इस स्थान का वर्णन ब्रिटिश कालीन स्टैटिकल अकाउंट ऑफ़ बंगाल और छत्तीसगढ़ फैऊडेटरी विजिटर और कनिंघम के आर्कियोलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट के भाग 13 में भी मिलता है।
Jogimara caves :–
Jogimara caves अपने प्राचीनतम भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है इन भित्ति चित्रों के विषय धार्मिक हैं, और हजारों वर्षों पूर्व बनाए गए थे ।
कैप्टन टी. ब्लॉश ने सन 1904 में इन चित्रों का अवलोकन कर इन्हें 2 हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन बताया था।
प्रसिद्ध लेखक आर ए अग्रवाल ने भारतीय चित्रकला के विकास में इन्हें ईसा पूर्व 300 ईसवी में चित्रित होने की संभावना व्यक्त की है ।
ऐतिहासिक रूप से जोगीमारा की गुफा को भारतीय चित्रकला में वरुण का मंदिर माना गया है। इस स्थान पर सूतनुका देवदासी रहती थी और संभवत सूतनुका ने ही सीता बेंगरा नाट्यशाला का निर्माण अपनी सखियों के विश्राम के लिए करवाया था।
बड़े पत्थरों और शिलाओं को तराशकर जिस प्रकार से चैत्र, बिहार, मंदिर बनाने की परंपरा थी कमोवेश यहां भी यही निर्माण प्रक्रिया दिखाई देती है।
इस गुफा में ब्राह्मी लिपि और पाली भाषा में अंकित एक लेख प्राप्त हुआ है जो सूतनुका नामक देवदासी और रूपदक्ष देव हीन के प्रेम का वर्णन करता है।
ऐसा माना जाता है कि देव हीन ने अपने प्रेम को स्थायित्व देने के लिए अपनी भावनाओं को दीवार पर उत्कीर्ण कराया था। यह लेख छत्तीसगढ़ में मौर्यकालीन और पाली भाषा का एकमात्र गुफा लेख है ।
संभवत छत्तीसगढ़ में प्राप्त यह प्राचीनतम अभिलेख है। इस गुफा से महाकवि कालिदास को भी जोड़ा जाता है, कालिदास के मेघदूत का यक्ष इसी गुफा में निवासरत था, यही से उसने अपनी प्रेमिका को संदेश भेजा था।
मेघदूत में वर्णित प्राकृतिक सौंदर्य एवं जल कुंड की स्थिति और अंकित लेख मेघदूत के कथानक से बहुत समानता रखते हैं किंतु, उक्त लेख कालिदास के पूर्व का माना जाता है अतः यह संभव हो सकता है कि कवि ने अपने कथानक की प्रेरणा इस स्थान और लेख से ही ली हो।
साथ ही इस कथन के पक्ष में यह भी कहा जा सकता है कि कालिदास महान नाटककार थे एवं रामगढ़ एक प्रसिद्ध नाट्यशाला थी जो कालिदास के समय अर्थात चौथी शताब्दी तक आबाद रही हो और कालिदास यहां अपने नाटको के मंचन के लिए आए हो और तभी इस लेख से उन्होंने प्रेरणा ली हो।
अंततः जोगी मारा गुफा के भित्ति चित्र अत्यंत प्राचीन काल से निर्मित और मानवीय कला के प्राचीन स्रोत हैं।
Jogimara caves paintings :–
गुफा के दीवारों को चुने आदि से प्लास्टर द्वारा चिकना बनाकर उस पर चित्र बनाए गए हैं ।
गुफा की छत पर चित्रित आकर्षक रंग- बिरंगे चित्रों में तोरण, पत्र, फूल, पशु, पक्षी, नर नारी, देवता, दानव, योद्धा, पेड़ और हाथी के चित्र प्रमुख हैं।
इस गुफा में चारों और चित्रकारी के मध्य में कुछ नव युवतियों के चित्र हैं जो बैठी हुई मुद्रा में है, इनके सामने वृक्ष के नीचे शांत मुद्रा में उपदेश देता हुआ एक व्यक्ति बैठा है जो वेशभूषा से सन्यासी या साधु ज्ञात होता है।
Sita bengra (गुफा):–
रामगढ़ की पहाड़ी पर ही स्थित इस गुफा को विश्व की सबसे प्राचीन नाट्यशाला माना गया है। अनुमानित है कि ईसा पूर्व तीसरी से दूसरी शताब्दी में पहाड़ी को तराश कर इस नाट्यशाला का निर्माण किया गया था।
सन 1848 में कर्नल हाउस्ले द्वारा इसे प्रकाश में लाया गया था और डॉक्टर जी ब्लॉश ने 1903- 04 में इसे आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में प्रकाशित करवाया था।
रिपोर्ट में दिए गए विवरण के अनुसार इस गुफा की लंबाई 44.5 फिट और चौड़ाई 15 फीट है। प्रवेश द्वार गोलाकार और उसकी ऊंचाई लगभग 6 फीट है। प्रवेश द्वार से लगी हुई दीवारें लंबवत स्थित है और छत को पालिश द्वारा चिकना बनाया गया है।
यहां पर 30 लोगों के बैठने की क्षमता है, प्रवेश द्वार पर बाई ओर ब्राह्मी लिपि तथा मांघी भाषा में दो लाइन पत्थरों पर उकेरी गई है।
प्रत्येक पंक्ति या लाइन की लंबाई 3 फीट 8 इंच की है और अक्षरों के आकार 2.5 इंच के हैं। अक्षर क्षरण का शिकार हो गए हैं फिर भी शेष अक्षरों की व्याख्या से यह ज्ञात होता है कि यहां रात में काव्य संगीत और नृत्य का आयोजन होता था।
गुफा का आकार ग्रीक में पाए गए प्राचीन थियेटरों से मिलता जुलता है।
लक्ष्मण बेंगरा :–
Jogimara caves के सामने स्थित इस गुफा का संबंध लक्ष्मण जी से है। ऐसा माना जाता है कि यह गुफा लक्ष्मण जी के सयन और विश्राम के लिए प्रयोग में लाई जाती थी और यही से वे श्री राम और सीता जी की रखवाली किया करते थे ।
इस प्रकार सीता बेंगरा जोगी मारा गुफा और लक्ष्मण बेंगरा तीनों ही रामायण कालीन अवशेष माने जाते हैं।
यहां एक लकीर खींची हुई दिखती है जिसे लक्ष्मण रेखा कहा जाता है और सीता बेंगरा में जो पद चिन्ह दिखाई देते हैं उसे रावण का पद चिन्ह बताया जाता है।
यह सभी तथ्य यह प्रमाणित करते हैं कि यह सभी गुफाएं अत्यंत प्राचीन काल से अस्तित्व में है।
साथ ही स्थानीय मान्यताओं के अनुसार सरगुजा ही बाली और सुग्रीव का राज्य था और यही से राम ने वानर सेना बनाकर सीता की खोज के लिए दक्षिण की ओर प्रस्थान किया था।
यहां स्थित किष्किंधा पहाड़ ही रामायण कालीन किष्किंधा पर्वत है ऐसा स्थानीय लोगों का मत है।