Jwar bhata kise kahate hain

महासागरीय जल में कई प्रकार की गतियाँ पाई जाती है जिनमें लहर, समुद्री धाराएं और ज्वार भाटा प्रमुख है इस लेख में हम जानने का प्रयास करेंगे कि Jwar bhata kise kahate hain और Jwar bhata kya hai

ज्वार भाटा के अंतर्गत एक निश्चित समय अंतराल पर दिन में दो बार महासागरीय जल तटों से ऊपर उठता है और फिर तटों से पीछे की ओर हट जाता है इसे ही ज्वार भाटा (Tide and Ebb ) कहते हैं।

माध्य समुद्र तल (M.S.L. Mean Sea Level ) का निर्धारण इसी गति के औसत के आधार पर किया जाता है।

ज्वार भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण चंद्रमा सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है सूर्य का आकार ग्रहों की तुलना में बड़ा है और चुंबकीय शक्ति भी सौर्य मंडल मे सबसे अधिक है इसलिए पृथ्वी पर इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव सर्वाधिक होता है।

पृथ्वी की सूर्य से दूरी के कारण यह प्रभाव कम भी हो जाता है लेकिन जब कभी भी सूर्य चंद्रमा तथा पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं तो तीनों का सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण प्रभाव काफी प्रभावशाली हो जाता है।

चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी कम है इसलिए ज्वार भाटा की क्रिया में चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव अधिक होता है चंद्रमा की ज्वार उत्पन्न करने की गुरुत्वाकर्षण शक्ति सूर्य की तुलना में 2 गुना अधिक प्रभावी होती है ।

ज्वार भाटा के प्रभाव मे विभिन्न ग्रहों की गति और स्थानों के कारण अंतर पाया जाता है जिसके निम्न कारण है।

i) पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा की गति का तीव्र होना

ii) पृथ्वी से सूर्य और चंद्रमा की असमान स्थितियां

iii) पृथ्वी पर जल राशियों के वितरण में असमानता।

iv) महासागरों की स्थिति और विस्तार में व्यापक समानताएं

यदि उपरोक्त तथ्यों में समानता होती तो प्रत्येक स्थान पर ज्वार भाटा आने के समय और उसका प्रभाव में पर्याप्त समानता हो सकती थी परंतु यह असमानताएं ज्वार भाटा को एक जटिल स्वरूप में पृथ्वी पर प्रदर्शित करती है।

Jwar bhata time :–

सामान्यता ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं फिर भी दो जवारो के बीच का अंतराल ठीक 12 घंटे का नहीं होता बल्कि 12 घंटे 25 मिनट का होता है क्योंकि चंद्रमा पश्चिम से पूर्व की ओर परिक्रमा 29.5 दिन में करता है।

इसलिए किसी भी स्थान पर चंद्रमा आकाश में उस स्थान की देशांतर रेखा को प्रतिदिन एक ही समय पर पार नहीं करता क्योंकि वह 24 घंटे में पूर्व की ओर कुछ आगे खिसक जाता है।

घूर्णन करती हुई पृथ्वी को किसी भी स्थान की देशांतर रेखा को प्रतिदिन चंद्रमा के ठीक नीचे लाने में 24 घंटे और 52 मिनट का समय लगता है, इसलिए एक ज्वार से दूसरे ज्वार के बीच 12 घंटे 25 मिनट का अंतर होता है जबकि एक ही अक्षांश पर दोबारा ज्वार आने में 24 घंटे और 52 मिनट लगते हैं।

सामान्यतः ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं लेकिन इंग्लैंड के दक्षिण तट पर स्थित न्यू साउथेम्तन में ज्वार प्रतिदिन 4 बार आता है ऐसे स्थान पर दो ज्वार इंग्लिश चैनल से आते हैं और दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न समय अंतराल में यहां पहुंचे हैं

jwar-bhata

Jwar bhata  के प्रकार :–

1) उच्च ज्वार दीर्ध ज्वार अथवा पूर्ण jwar bhata (Spring or High Tide)

जब सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं तब उच्च ज्वार आता है ऐसी स्थिति अमावस्या(Now Moon) और पूर्णिमा (Full Moon) के समय होती है।

इन दिनों में सूर्य और चंद्रमा सम्मिलित रूप से पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव डालते हैं इसलिए इन दिनों में उच्च ज्वार आता है।

2)निम्न  Jwar bhata ( Low or Neep Tide)

जब सूर्य और चंद्रमा की स्थितियां पृथ्वी से संपूर्ण होती है तब निम्न ज्वार आता है यह स्थिति शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण से एक दूसरे को संतुलित करने के प्रयास में उसे निष्क्रिय बना देते हैं।

इससे पृथ्वी पर उसके बल का प्रभाव कम हो जाता है परिणाम स्वरूप इन दिनों में कम ऊंचाई वाले ज्वार का निर्माण होता है।

3) दैनिक  Jwar bhata (Daily Tide)

किसी स्थान पर दिन में केवल एक बार ज्वार भाटा आता है तो उसे दैनिक ज्वार भाटा कहते हैं दैनिक ज्वार 24 घंटे 52 मिनट के बाद आता है मेक्सिको की खाड़ी और फिलीपीन दीप समूह में दैनिक ज्वार आते हैं

4) अर्धदैनिक ज्वार (Semi-daily Tide)

जब किसी स्थान पर दिन में दो बार (12 घंटे 26 मिनट मेंल ज्वार भाटा आता है तो इसे अर्ध दैनिक ज्वार कहते हैं ताहिती दीप और ब्रिटिश दीप समूह में अर्थ दैनिक ज्वार आते हैं।

5) उपभु ज्वार (Perigean Tide)

जब पृथ्वी चंद्रमा की दूरी निकटतम होती है तब उपभू ज्वार आता है जो प्रतिवर्ष तीन या चार बार हो सकता है इस स्थिति में पृथ्वी के निकटतम बिंदु से चंद्रमा अपनी 27.3 दिवसीय अंडाकार कक्षा में होता है।

6) अपभू ज्वार (Apogean)

मासिक ज्वार है जो तब आता है जब चंद्रमा पृथ्वी से सर्वाधिक दूरी पर स्थित होती है।

7) भूमध्यरेखीय ज्वार (Equatorial Tide)

भूमध्य रेखीय ज्वार तब आता है जब चंद्रमा भूमध्य रेखा के सबसे करीब होता है।

8) अयंनवर्ती ज्वार (Tropical Tide)

9) मिश्रित ज्वार (Mixed Tide)

जब विभिन्न प्रकार के ज्वार एक साथ आते हैं तब उन्हें मिश्रित ज्वार की संज्ञा दी जाती है यह ज्वार अस्वाभाविक रूप से काफी ऊंचे होते हैं।

10) नदी ज्वार (River Tide)

यह नदी के प्रवाह में आने वाले ज्वार हैं जो पवन प्रवाह अथवा सागरीय जल के दबाव के कारण उत्पन्न होते हैं ज्वार कुछ नदियों को बड़े जल यानो के लिए नौ संचालन योग्य बनाने में सहायता देते हैं हुगली तथा टेम्स नदियों की ज्वारीय धाराओं के कारण क्रम से कोलकाता और लंदन महत्वपूर्ण बंदरगाह गए हैं।

जापान एवं फ्रांस में ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा रहा है।

Jwar bhata  का प्रभाव / ज्वार भाटा का महत्व :–

ज्वार भाटा का महत्व मनुष्यों के अलावा प्राकृतिक समुद्री वनस्पतियों और जनजीवन के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण है ज्वार भाटा का निम्नलिखित महत्व है।

1) ज्वार भाटा के प्रभाव से समुद्रों के तटों पर मैनग्रोव वनों का विस्तार होता है जिसमें विशेष प्राकृतिक पर्यावास का विकास होता है और कई समुद्री और स्थल चर इन वनों में रहते हैं। और यह प्राकृतिक पर्यावास समुद्र के स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं।

2) ज्वार भाटा के प्रभाव से समुद्र के किनारे मत्स्य पालन आसान हो जाता है यूरोप के कई भागों में समुद्रों के किनारे मत्स्य पालन के लिए फॉर्म बना पाना ज्वार भाटा के कारण ही संभव हो पाया है।

3) ज्वार भाटा के प्रभाव से कई समुद्री जीव आसानी से सतह और  समुद्र  में आवागमन कर सकते हैं जिनमें घोंघे, कछुए,केकड़े, मछली आदि।

4) ज्वार भाटा के प्रभाव से नदियों के किनारे स्थित शहर भी बड़े बंदरगाह की सुविधा उपलब्ध करा पाते हैं उदाहरण के तौर पर कोलकाता और लंदन।

5) ज्वार भाटा का उपयोग प्रदूषण मुक्त ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भी हो रहा है जापान और फ्रांस के तटों पर ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा रहा है।

6) ज्वार भाटा के प्रभाव से स्थानीय मौसम में विशेष परिवर्तन होता है जिससे वहां का मौसम सम और रहवास के योग्य बना रहता है।

Jwar bhata ki भूगोलिक शब्दावली :–

युति वियुति या सिजिगी (Syzygy)

जब सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तो उस दशा को ही युति वियुति या सिजिगी कहते हैं।

युति (Conjunction)

जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के एक ही और सीधी रेखा में रहते हैं तब युति की स्थिति होती है इस समय सूर्य ग्रहण लगता है और ज्वार की ऊंचाई अधिकतम हो जाती है।

वियुति (Opposition)

जब पृथ्वी के एक और सूर्य और दूसरी और चंद्रमा सीधी रेखा में होते हैं तब उस दशा को वियुति कहा जाता है इस समय चंद्र ग्रहण लगता है और यह दशा पूर्णिमा को होती है इस स्थिति में भी उच्च ज्वार आता है।

उपभु (perigee)

चंद्रमा अंडाकार पथ पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है अतः पृथ्वी से उसकी दूरियों में अंतर आता रहता है जब चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक होती है तो इसे ही उपभु की स्थिति कहा जाता है यह दूरी पृथ्वी तथा चंद्रमा के केंद्र से 356000 किलोमीटर होती है।

सर्वाधिक करीब होने के कारण चंद्रमा का गुरुत्वीय प्रभाव पृथ्वी पर सर्वाधिक होता है जिससे उच्च ज्वार की स्थिति निर्मित होती है।

अपभू (Apogee)

जब पृथ्वी का केंद्र चंद्रमा के केंद्र से अधिकतम दूरी पर स्थित होता है तो उसे अपभू की स्थिति कहते हैं यह दूरी 407000 किलोमीटर की होती है इस स्थिति में ज्वार की ऊंचाई कुछ कम हो जाती है।

समज्वार रेखा (Cotidal Lines)

एक ही समय पर आने वाले ज्वरो को मिलाने वाली रेखा को सम ज्वार रेखा कहा जाता है इसकी सहायता से सम ज्वार रेखा मानचित्र (Cotidal Lines Maps) तैयार किए जाते हैं।

ज्वार भित्ति (Tidal bore)

महासागर में उठने वाले ज्वार के लहरों के प्रभाव से नदियों के जल में हलचल उत्पन्न होती है और वह एक ऊंचाई तक ऊपर उठ जाते हैं जिससे ज्वारीय भित्ति का निर्माण होता है ।

भारत की हुगली नदी में ज्वारीय भित्ति का निर्माण सामान्यता होता रहता है अमेजन नदी के मुहाने की ओर काफी उच्च ज्वार भित्ति निर्मित होती है।

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