लोक सभा क्या है :–
लोकसभा लोकतांत्रिक व्यवस्था में केंद्र बिंदु के समान है क्योंकि, लोकतंत्र में संसद का निर्माण राष्ट्रपति राज्यसभा और लोकसभा से मिलकर होता है।
इस व्यवस्था में राष्ट्रपति और राज्यसभा का चुनाव अप्रत्यक्ष मतदान द्वारा होता है जबकि लोकसभा का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से सीधे जनता द्वारा होने के कारण इसका महत्व बढ़ जाता है और यह प्रभाव लोकसभा की शक्तियों में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है।
भारतीय संविधान निर्माता ने लोकसभा को उसके प्रतिनिधित्व के आधार पर अधिक शक्तियां प्रदान की है कई मामलों में तो लोकसभा सर्वोपरि है।
लोकसभा में जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुने गए प्रतिनिधि देश के आवश्यक और अपरिहार्य कानून का निर्माण जनसाधारण की इच्छा और आकांक्षा के अनुरूप करते हैं।
यदि सरल शब्दों में लोकसभा क्या है यह समझने का प्रयास करें तो लोकसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने गए प्रतिनिधियों का ऐसा संगठन और समूह है जो देश के लिए सर्वमान्य ऐसे कानून का निर्माण करती है जो देश को उन्नति के मार्ग की ओर अग्रसर करें।
Lok sabha का इतिहास :–
भारत सरकार अधिनियम 1919 जिसे मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है, के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किया इस अधिनियम के अंतर्गत ही केंद्रीय विधान परिषद (संसद ) को द्विसदनीय बनाया गया केंद्रीय विधानसभा अर्थात लोकसभा और राज्यसभा।
केंद्रीय विधान परिषद (लोक सभा) की सदस्य संख्या 145 थी जिसमें से 104 निर्वाचित या चुने जाते थे और 41 सदस्य मनोनीत किए जाते थे।
इस अधिनियम की व्यवस्था के अनुरूप सर्वप्रथम फरवरी 1921 को प्रथम लोकसभा का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष फ्रेड्रिक व्हाइट थे।
इसके बाद ब्रिटिश शासन के दौर में समय-समय पर लोकसभा का गठन होता रहा प्रथम लोकसभा के बाद गठित होने वाले अन्य सभी लोकसभा के अध्यक्ष भारतीय थे।
स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा का गठन मुख्य दो उद्देश्यों को लेकर किया गया था पहला संविधान का निर्माण और दूसरा प्रथम आम चुनाव तक राष्ट्रीय व्यवस्थापिका अर्थात संसद के रूप में कार्य करना।
26 जनवरी 1950 को इस संविधान सभा ने अस्थाई संसद के रूप में प्रथम आम चुनाव (1952) होने तक कार्य किया।
स्वतंत्रता के बाद प्रथम आम चुनाव वर्ष 1952 में संपन्न हुए और आजाद भारत की प्रथम लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ और प्रथम बैठक 13 में 1952 को संपन्न हुई ।
स्वतंत्रता के बाद गठित होने वाले लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर थे ।
लोकसभा में कितने सदस्य होते हैं :–
लोकसभा के गठन या सदस्य संख्या के विषय में अनुच्छेद 81 और अनुच्छेद 331 में व्यवस्था दी गई है।
मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निर्धारित की गई थी जिसमें समय-समय पर वृद्धि की गई है।
वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 81(i) क और ख के अनुसार लोकसभा का गठन राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए 530 से अधिक नहीं होने वाले सदस्यों और संघ राज्य क्षेत्र के प्रतिनिधित्व करने वाले 20 से अधिक नहीं होने वाले सांसदों द्वारा किया जाएगा।
इस आधार पर लोकसभा में भारत की जनता द्वारा निर्वाचित 550 सदस्य हो सकते हैं अनुच्छेद 331 के अनुसार राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय समुदाय के दो सदस्यों को लोकसभा में मनोनीत कर सकता है।
इस प्रकार लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 होती है लेकिन यह संख्या लोकसभा के सदस्यों की सैद्धांतिक गणना है और व्यावहारिक रूप से वर्तमान में लोकसभा की प्रभावी संख्या 530 राज्यों में 13 संघ शासित क्षेत्रों से और दो राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं इस प्रकार कुल सदस्य संख्या 545 होती है।
स्थान का आवंटन :–
लोक सभा में स्थान का आवंटन करने के लिए दो प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
i) प्रतीक राज्य को लोकसभा में स्थान का आवंटन ऐसी विधि से किया जाता है कि स्थान की संख्या से उसे राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासंभव एक ही हो।
ii) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में ऐसी रीति से विभाजित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आवंटित स्थान की संख्या से अनुपात समस्त राज्यों में यथा संभव एक ही हो।
किसी राज्य को लोक सभा में स्थान का आवंटन और प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक क्षेत्र में विभाजित करने का कार्य परिसीमन आयोग की सिफारिश पर होता है जिसकी नियुक्ति प्रत्येक जनगणना के बाद करने का प्रावधान है।
परिसीमन के संबंध में 42 में संविधान संशोधन 1976 द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि वर्ष 2000 तक लोक सभा में स्थान का आवंटन और निर्वाचन क्षेत्र का विभाजन स्थिर रहेगा।
इसके बाद 84 में संविधान संशोधन वर्ष 2001 द्वारा इस वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया गया है अर्थात जनसंख्या के अनुपात में परिसीमन का कार्य वर्ष 2026 से पहले नहीं किया जाएगा।
निर्वाचन/ चुनाव :–
लोक सभा का निर्वाचन अथवा चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर भारतीय जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है।
मूल संविधान में वयस्क मताधिकार की आयु 21 वर्ष निर्धारित थी वर्ष 1988 में संविधान के 61 में संशोधन द्वारा मतदान की आयु 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है।
लोकसभा का चुनाव और अवधि :–
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार लोकसभा का चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष की अवधि पर होता है दूसरे शब्दों में लोक सभा का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है।
प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा इस 5 वर्ष के पूर्व भी भंग किया जा सकता है लोकसभा भंग होने पर उसकी भंग होने की स्थिति से 6 माह के अंदर फिर से चुनाव करके नई लोकसभा का गठन अनिवार्य है।
आमतौर पर पूरे देश के लिए एक साथ लोकसभा के चुनाव संपन्न होते हैं जो सामान्यत 7 से 10 चरणों में हो सकते हैं।
चुनाव संपन्न होने के बाद जिला और संभाग मुख्यालय में वोटो की गिनती होती है और विजय सांसदों का प्रमाण होता है और नहीं लोकसभा का गठन संपन्न हो जाता है वर्तमान 17वीं लोकसभा के चुनाव अप्रैल में 2019 में संपन्न हुए थे आगामी लोकसभा के चुनाव अप्रैल में वर्ष 2024 में संपन्न होने की संभावना है।
लोक सभा का अधिवेशन :–
लोक सभा का अधिवेशन 1 वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य होना चाहिए लेकिन लोकसभा के पिछले अधिवेशन की अंतिम बैठक की तिथि तथा आगामी अधिवेशन के प्रथम बैठक की तिथि के बीच 6 माह से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए लेकिन यह अंतराल 6 माह से अधिक का तब हो सकता है जब आगामी अधिवेशन के पहले ही लोकसभा का विघटन हो गया हो।
लोक सभा का विशेष अधिवेशन राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को अस्वीकार करने के लिए तब बुलाया जा सकता है।
जब लोकसभा के अधिवेशन में न रहने की स्थिति में कम से कम 110 सदस्य राष्ट्रपति को अधिवेशन बुलाने के लिए लिखित सूचना दें और ऐसा मांग करें या जब अधिवेशन चल रहा हो तब लोकसभा अध्यक्ष को इस आशय की लिखित सूचना लोकसभा सदस्यों द्वारा दी जाए।
ऐसी लिखित सूचना अधिवेशन बुलाने की तिथि के 14 दिन पूर्व देनी पड़ती है ऐसी सूचना पर राष्ट्रपति या लोकसभा अध्यक्ष अधिवेशन बुलाने के लिए बाध्य होते हैं।
लोकसभा के पदाधिकारी :–
लोक सभा के निम्नलिखित दो पदाधिकारी होते हैं अध्यक्ष और उपाध्यक्ष।
i) अध्यक्ष
अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अपने ही सदस्यों में से अध्यक्ष का चुनाव करती है लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा का प्रमुख पदाधिकारी होता है और लोकसभा की सभी कार्रवाइयों का संचालन करता है।
लोकसभा अध्यक्ष को सदन में साधारण मतदान का अधिकार नहीं है वह केवल मत बराबर होने की दशा में निर्णायक वोट दे सकता है यदि उसे हटाने के प्रस्ताव पर मतदान हो रहा हो तो वह साधारण मतदान दे सकता है क्योंकि उसे समय वह अध्यक्ष की भूमिका में नहीं होता है।
यह महत्वपूर्ण है कि लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेता बल्कि वह सामान्य सदस्य के रूप में ही शपथ लेता है उसे लोकसभा का कार्यकारी अध्यक्ष एक सामान्य सदस्य के रूप में शपथ दिलवाता है।
लोक सभा अध्यक्ष का पद अत्यंत महत्वपूर्ण होता है उसकी स्थिति स्वतंत्रता होती है क्योंकि उसका वेतन और भट्ट भारत की संचित निधि पर आधारित होता है लोकसभा अध्यक्ष सदस्यों को प्राप्त अधिकारों तथा विशेष अधिकारों का रक्षक भी होता है।
उपाध्यक्ष
लोक सभा अध्यक्ष की समान ही उपाध्यक्ष का चुनाव भी लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है उसका कार्यकाल तथा उसे पद मुक्त करने की प्रक्रिया भी अध्यक्ष की भांति ही होता है वह अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को सौंपता है।
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सदन की अध्यक्षता करने और कार्रवाई के नियमानुसार अध्यक्ष के सभी अधिकारों का उपयोग करता है।
सदन की अध्यक्षता नहीं करते समय उपाध्यक्ष को एक सामान्य सदस्य की तरह सदन की कार्रवाइयों में भाग लेने और किसी भी मुद्दे पर मतदान करने का अधिकार प्राप्त होता है।
लोकसभा के कार्य और शक्तियां :–
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन
लोक सभा अपने अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव करती है तथा बहुमत से संकल्प पारित करके उन्हें पद मुक्त भी कर सकती है।
मंत्री परिषद पर नियंत्रण
मंत्री परिषद संयुक्त रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होता है यदि लोकसभा मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना होता है या राष्ट्रपति मंत्री परिषद को बर्खास्त भी कर सकता है।
यदि लोकसभा सरकार द्वारा पेश किए गए बजट को नामंजूर कर दे या राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए उसके धन्यवाद प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दे तो भी मंत्री परिषद को त्यागपत्र देना होता है।
वित्त पर नियंत्रण :–
लोकसभा का वित्त व्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण होता है और राज्यसभा को इस संबंध में बहुत सीमित अधिकार प्राप्त है धन विधेयक हो विनियोग विधेयक हो या फिर वित्त विधेयक सभी लोकसभा में ही पेश किए जाते हैं।
राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा
लोकसभा संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा जारी राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा को भी अस्वीकार कर सकती है ऐसी कार्यवाही लोकसभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर की जाती है।
सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई
यदि लोकसभा का कोई सदस्य अपने कार्यों से सदन की गरिमा और विशेषाधिकारों का उल्लंघन करता है तो लोकसभा उसे सदस्य को सदन से निष्कासित कर सकती है।
इसके साथ ही लोकसभा को सदस्य के निष्कासन को रद्द करने का भी अधिकार प्राप्त है सदन के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को लोकसभा जेल भी भेज सकती है।