Pathar. पृथ्वी के भू सतह पर पाई जाने वाली आकृति पठार

Pathar kise kahate hain :–

पृथ्वी के भू सतह पर पाई जाने वाली आकृतियों को यदि हम उनके ऊंचाई के अनुसार विभाजित करें तो इसके मुख्यतः तीन भाग होते हैं।

1) मैदान, 2) पठार और 3) पर्वत।

इन सभी स्थल रूपों में Pathar का अपना ही महत्व है जो हमारे पृथ्वी के संपूर्ण धरातल के 33% भाग पर फैला हुआ है।

सामान्यतः विश्व में पाए जाने वाले पठार अपने सीमावर्ती धरातल से पर्याप्त ऊंचे सपाट तथा चौड़े शीर्ष भाग वाले स्थल आकृतियां होती है।

चुकी यह अपने आसपास की भूमि से कुछ ऊंचाई पर स्थित होती है अतः इन्हें मेज आकार की भू आकृति (Tableland ) के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

परंतु यही एकमात्र आधार पर्याप्त नहीं है क्योंकि कभी- कभी तुलनात्मक रूप से Pathar मैदानों से नीचे तथा पर्वतों से भी ऊंचे हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी भाग में स्थित पीड़मंत पठार जहां मध्यवर्ती विशाल मैदान से भी नीचा है, वही तिब्बत का पठार अपनी सीमावर्ती पर्वत श्रृंखलाओं से कहीं अधिक ऊंचा है।

इसलिए Pathar की परिभाषा को समझना आवश्यक है। पठार को परिभाषित करते हुए भूगोल विद स्ट्रालर ने लिखा है कि Pathar लगभग समतल उच्च प्रदेश हैं जो तलछटी चट्टानों या लावा प्रवाह पर आधारित है और जिनके किनारे भृगु के (समुद्री जल की सतह से ऊपर लगभग ऊर्ध्वाधर उठे हुए ऊंचे पथरीले तटों को भृगु कहा जाता है) आधार के हैँ  ।

तथ्यों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि Pathar धरातल के ऊंचे उठे हुए ऐसे भू आकृतियां है जिनका शीर्ष सपाट तथा जो अपने सीमावर्ती भूभाग से एक या एक से अधिक तरफ से तीव्र ढाल द्वारा अलग हो गए हो।

Pathar में अधिकांश  परतों में वलन या मोड़ों का अभाव पाया जाता है तथा वह क्षैतिज रूप में व्यवस्थित होते हैं।

यदि सरल शब्दों में पठारों की व्याख्या की जाए तो वह यह है कि पठार भू सतह् के ऐसे आकार हैं जो मैदाने से ऊँचे और पर्वतों से ऊंचाई में काम होते हैं और इनका आकार बड़ी समतल मेज की तरह होता है।

पठारों की उत्पत्ति :–

निम्न प्राकृतिक घटनाओं और प्रक्रिया द्वारा पठारों की उत्पत्ति होती है

1) भू सतह पर होने वाली ऐसी हलचलें जिनके कारण सीमावर्ती भू-भाग नीचे चला जाता है और कोई समतल भाग ऊपर ही रह जाता है।

2) भूगर्भ में होने वाली ऐसी हलचल जिनके कारण कोई समतल भूभाग अपने सीमावर्ती धरातल से अधिक ऊपर उठ जाता है।

3) जब ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निकाला लावा किसी समतल भूमि पर जमा होकर उसे अपनी समीप वर्ती भू भाग से ऊपर उठा देता है।

4) कई बार पर्वतों के निर्माण प्रक्रिया के समय समीपवर्ती भाग के अधिक ऊपर ना उठाने के कारण पर्वत की बजाय पठार की उत्पत्ति भी होती है।

5) पर्वत निर्माण कार्य शक्तियों के अधिक तीव्र ना होने पर भू सतह के ऊपर उठने की प्रक्रिया बीच में ही रुक जाती है तो ऐसी दशा में भी पठार की उत्पत्ति होती है।

6) अनाच्छादन (Denudation) के परिणाम स्वरूप पर्वतों का क्षय होने पर वह पठार के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।

7) हवाओं की क्रियाशीलता के कारण किसी भाग में उसके द्वारा उड़ा कर लाए गए पदार्थों या धूल आदि के जमाव से भी पठारो का निर्माण होता है।

पठारों की उचाई :–

पठारों की ऊंचाई के बारे में कोई निश्चित निर्धारक पैमाना नहीं है वैसे इस विषय में फिंच और टिवार्था ने धरातल से 500 फीट या 154 मीटर ऊंचे भूभाग को पठार माना है परंतु सामान्य इसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से 300 से 1000 मीटर तक मानी जाती है।

विश्व में भी अनेक पठार ऐसे हैं जिनकी ऊंचाई 2000 मीटर से भी अधिक है जैसे कोलोराडो पठार जोकि 2500 मीटर से भी अधिक ऊंचा है।

भारत का दक्कन का पठार जिसका ढाल पूर्व की ओर है यह एक झुके हुए स्तरों वाला पठार है।

पठारों का वर्गीकरण :–

भूसत्त्व पर पाए जाने वाले पठारों का वर्गीकरण निम्न आधार पर किया जाता है।

उत्पत्ति के आधार पर पठारो का वर्गीकरण

पठारो की उत्पत्ति में पृथ्वी के आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार की बलों का योगदान होता है लेकिन आंतरिक

बल के प्रभाव से ऊंचे और बड़े पठारो का निर्माण होता है वही बाह्य बलों के प्रभाव से पठारो का अपरदन और

विनाश होता है क्योंकि इनका मुख्य कार्य ही धरातल पर समानता और एकरूपता स्थापित करना होता है।

फिर भी कुछ छोटे पठारो का निर्माण इनके द्वारा होता है उत्पत्ति के आधार पर पठार निम्न प्रकार के होते हैं

A) पृथ्वी के आंतरिक बलो से उत्पन्न पठार

पृथ्वी के आंतरिक बलों द्वारा उत्पन्न पठारों को पटल विरूपण पठार (Diastrophic Plateaus) भी कहते हैं।

पृथ्वी के आंतरिक बलों द्वारा भू सतह में परिवर्तन लाने वाली शक्तियों के कारण विश्व में सर्वाधिक ऊंचे और

विस्तृत पठारों की उत्पत्ति हुई है क्योंकि इससे चट्टानों में लंबवत और क्षैतिज संचालन बड़े पैमाने पर होता है।

इससे निर्मित प्रमुख पठार स्थिति के अनुसार निम्नलिखित है।

i) अन्तरापर्वतीय पठार (Intermonatane Plateau)

ऐसी पठारों का निर्माण भूगर्भ की आंतरिक बलों के परिणाम स्वरूप उच्च पर्वत श्रेणियां के निर्माण के साथ ही होता है तथा यह चारों ओर से पर्वतों से घिरे होते हैं।

किसी बड़े भू-भाग में आंतरिक बलों के प्रभाव से जब वह हिस्सा ऊंचाई को प्राप्त करता है लेकिन उसका

मध्यवर्ती भाग इस आंतरिक शक्ति के प्रभाव से कम प्रभावित होता है तो वह कम ऊंचाई तक ही ऊपर उठ

पाता है जिससे इस प्रकार के अंतरपर्वतीय पठारो का निर्माण होता है।

तिब्बत, बोलीविया, पेरू, कोलंबिया और मेक्सिको के पठार ऐसे ही पठारो के उदाहरण हैं।

ii) पीड़मांट अथवा पर्वतपादीय पठार (Piedmont Plateau)

इस प्रकार के पठारों को गिरी पद पठार के नाम से भी जाना जाता है और यह पठार पर्वत तल तथा मैदानी

भागों और पर्वतों से समुद्रों के बीच ऊपर उठे हुए भाग होते हैं इनका विस्तार सामान्य और ढाल खड़ा होता है

संयुक्त राज्य अमेरिका का पीड़मांट पठार तथा दक्षिण अमेरिका का पेटागोनिया का पठार ऐसे ही पठारो के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

iii) तटीय पठार (Coastal Plateau)

समुद्र तटीय क्षेत्रों के समीप स्थित पठारो को तटीय पठार कहा जाता है और ऐसे पठारो का निर्माण समीपवर्ती भू भाग के ऊपर उठ जाने से होता है प्रायद्वीपीय भारत का कोरोमंडल का पठार ऐसे ही पठारो का सर्वोत्तम उदाहरण है।

iv) गुम्बदाकार पठार (Dome-shaped- Plateau)

पृथ्वी के आंतरिक भाग से उठने वाले हलचल के कारण जब भी भू सतह पर गुंबद के आकार का उभार निर्मित होता है तब ऐसे पठारो को गुंबदकर पठार कहते हैं।

ज्वालामुखी लावा के नीचे से उभार के कारण ऐसे पठारो का अधिक निर्माण होता है गुंबद आकार पर्वत तथा पठार में मूलभूत अंतर उनके विस्तार एवं ऊंचाई का होता है।

क्योंकि ऐसे पर्वत जहां काफी ऊंचाई पर और विस्तृत भू-भाग पर फैले होते हैं वहीं इसी प्रक्रिया से निर्मित पठार

कम ऊंचे और कम भूभाग पर फैले होते हैं संयुक्त राज्य अमेरिका का ओजार्क पठार ऐसे ही पठार का बेहतरीन

उदाहरण है।

V) महाद्वीपीय पठार (Continental Plateau)

इस प्रकार के पठारो का निर्माण भू सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों द्वारा धरातल के किसी विस्तृत भूभाग

को ऊपर उठाये जाने से होता है। कभी-कभी ज्वालामुखी लावा का बड़े क्षेत्र पर विस्तार हो जाने से भी इस प्रकार

के पठारो का निर्माण होता है यह समुद्र तटीय अथवा मैदानी क्षेत्र से घिरे रहते हैं भारत का प्रायद्वीपीय पठार

इसका प्रमुख उदाहरण है इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया का पठार अरब का पठार दक्षिण अफ्रीका का पठार आदि

जो प्राचीन महाद्वीपीय पठार ही है। इस तरह से निर्मित पठारो की ऊंचाई 600 से 1500 मीटर के बीच होती है।

B) ज्वालामुखी से उत्पन्न पठार (Volcanic Plateau)

पृथ्वी के आंतरिक भाग से होने वाली ज्वालामुखी जैसी क्रिया के परिणाम स्वरूप निर्मित होने वाले पठारो

को ज्वालामुखी पठार कहते हैं। यह पठार ज्वालामुखी उद्गार के समय धरातल के बड़े क्षेत्र पर लावा का प्रवाह

हो जाने के परिणाम स्वरूप निर्मित होते हैं ऐसे पत्थरों को संचयित पठार भी कहते हैं।

कई बार इस प्रक्रिया के दौरान लावा बिना किसी विस्फोट के भू सतह के अंदर से निकलकर भू सतह पर फैल

जाता है और एक ऊंचे भूभाग का निर्माण करता है इसे ही ज्वालामुखी से उत्पन्न पठार कहते हैं। भारत का

प्रायद्वीपीय पठार इसी प्रकार का पठार है इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, अर्जेंटीना, आइसलैंड, फ्रांस,

साइबेरिया, न्यू जीलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलंबिया का पठार जो कि लगभग 1 लाख वर्ग

किलोमीटर क्षेत्र में फैला है किसी प्रकार का पठार है।

C) बाहरी बलों के कारण उत्पन्न होने वाले पठार

जहां पृथ्वी के आंतरिक बल भू सतह में असमानता उत्पन्न करते हैं वहीं बाहरी बल धरातल पर समानता लाने

का कार्य करता है अतः इसके द्वारा पठारो का अपरदन अधिक किंतु निर्माण कम होता है कभी-कभी इसके

अपरदन एवं निक्षेपण के कारण पठारो का निर्माण हो जाता है जो निम्न प्रकार के होते हैं।

i) जलीय पठार (Plateaues of Acqueous Origin)

नदियों द्वारा समुद्र में मिलने से पूर्व अपने द्वारा बहा कर ले गए निक्षेपो जैसे मिट्टी कंकड़ पत्थर आदि के

जमाव से इस प्रकार के पठार बनते हैं और जिनकी उत्पत्ति कालांतर में ऐसे निक्षेपण के शैलों में परिवर्तित हो

जाने से होती है।

भारत में विंध्यन पठार चेरापूंजी का पठार म्यांमार के शान का पठार आदि इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

ii) वायु द्वारा निर्मित पठार (Plateaues of Aeolin Origin)

ऐसे पठारो का निर्माण हवा के परिवहन और निक्षेपण के फल स्वरुप होता है जब तेज हवाएं किसी एक स्थान

से मिट्टी कंकड़ पत्थर को उड़ाकर दूसरे स्थान पर जमा करती है तो इससे निर्मित होने वाले पठारो को वायु

पठार कहते हैं चीन के उत्तर पश्चिम में स्थित लोएस का पठार पाकिस्तान का कोटवार का पठार ऐसे ही

पठारो के उत्तम उदाहरण है।

iii) हिमानी निर्मित पठार (Plateaues of Glacial Origin)

पर्वतीय क्षेत्रों में  भूभाग हिमानी क्रिया से अपरदन एवं निक्षेपण के कारण पठारो में परिवर्तित हो गए हैं

बड़े-बड़े हिम् नदियों द्वारा जब किसी भू सतह का घर्षण और निक्षेपण होता है तो इस तरह के पठारो का

निर्माण होता है ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के पठार ऐसे ही निर्मित हुए हैं यदि भारत में देखें तो उत्तराखंड

राज्य का गढ़वाल पठार हिमानी निर्मित पठार ही है।

जलवायु के आधार पर पठारों का वर्गीकरण

जलवायु के आधार पर हम पठारों को तीन भागों में बांट सकते हैं

i) शुष्क पठार (Arid Plateau)

पृथ्वी के अत्यंत सूखे प्रदेशों में स्थित पठारों को शुष्क पठार कहते हैं।

पाकिस्तान का कोटवार का पठार वायु पठार के अलावा एक शुष्क पठार भी है।

ii) आद्र पठार (Humid Plateau)

भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में स्थित पठारो को आद्रा पठार कहते हैं जैसे असम का पठार ।

iii) हिम् पठार (Ice Plateau)

ध्रुवीय प्रदेशों या हम आच्छादित भागों में पाए जाने वाले पठारो को हिम् पठार कहा जाता है जैसे ग्रीनलैंड और

अंटार्कटिका का पठार।

भारतीय पठार :–

भारत के प्रायद्वीपीय भाग में अनेक पठार स्थित है इसकी प्राचीन भूखंड के उत्तर पूर्वी भाग में भी अनेक पठार

हैं जिन्हें सामूहिक रूप से छोटा नागपुर का पठार कहा जाता है। इस पठार में रांची हजारीबाग और कोडरमा का

पठार सम्मिलित है। ग्रेनाइट नाइस से निर्मित इन पठारो का ढाल उत्तर दिशा की ओर है रांची पठार के पश्चिम

में ऊंचे पठारो का एक समूह है। जिसके समतल शीर्ष लेटराइट से ढके हुए हैं जिन्हें ‘पत्’ कहा जाता है। छोटा

नागपुर पठार की दामोदर घाटी में भारत के सबसे विशाल कोयला क्षेत्र स्थित है।

प्रायद्वीपीय भारत के बाहर लद्दाख का सबसे ऊंचा पठार स्थित है। इसी प्रकार दक्कन में तीन विस्तृत पठारी

क्षेत्र पाए जाते हैं। यह क्षेत्र हैं महाराष्ट्र का लावा जमाल वाला पठार और कर्नाटक और तेलंगाना में स्थित

महाद्वीपीय पठार हैं।

विश्व के प्रमुख पठार :–

विश्व में स्थित प्रमुख कुछ पठार निम्न है।

तिब्बत का पठार

मध्य एशिया में स्थित यह Pathar हिमालय और क्युनलून पर्वतों के बीच स्थित है औसत ऊंचाई 5 हजार

मीटर है।

इस पठार के पश्चिम में हिंदू कुश और काराकोरम पर्वत श्रेणियां स्थित है अंतरा पर्वतीय पठार का यह

सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, मीकांग तथा हांग हो नदियों का उद्गम इसी पठार से होता है

इसके अतिरिक्त ऊंचाई पर स्थित कई झिले भी इस Pathar में स्थित है।

भारत का प्रायद्वीपीय Pathar

भारत के दक्षिणी भाग में स्थित यह Pathar अत्यंत प्राचीन शैलो से निर्मित गोंडवाना लैंड का भाग है। लावा

निर्मित है पूर्वी घाट पूर्व में तथा पश्चिम घाट पश्चिम में इसे घेरे हुए हैं। उत्तर पश्चिम में विंध्याचल तथा

सतपुड़ा श्रेणियों का विस्तार है नदियों की घाटियां द्वारा अनेक भागों में यह विखंडित हुआ है।

अरब का Pathar

दक्षिण पश्चिम एशिया और सऊदी अरब में यह पठार स्थित है इस पठार के पूर्व में भारत की खाड़ी है दक्षिण में

अरब सागर पश्चिम में लाल सागर तथा उत्तर पश्चिम में भूमध्य सागर स्थित है यह पठार भी अत्यंत प्राचीन

कठोर चट्टानों से निर्मित है इस पठार का ढाल दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व दिशा में है चट्टानों के टूटने के कारण

वर्तमान में यहां मरुस्थल पाए जाते हैं।

कोलोरेडो का Pathar

संयुक्त राज्य अमेरिका के उटाह और एरीजोना राज्य में यह पठार ग्रेट बेसिन पठार के दक्षिण में स्थित है इस

पठार की औसत ऊंचाई डेढ़ हजार से 3000 मीटर के बीच है मध्य में कोलोरेडो नदी का प्रवाह क्षेत्र है जिससे

अनेक गहरी घाटियों और खाइयों (Canyans) का निर्माण हुआ है।

विश्व प्रसिद्ध ग्रैंड कैनयन इसी Pathar में स्थित है।

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