इस लेख मे
महाराणा प्रताप परिचय –
महाराणा प्रताप का इतिहास |
महाराणा प्रताप की वापसी |
महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था ?
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक |
हल्दीघाटी की लड़ाई की पृष्ठभूमि
हल्दीघाटी की लड़ाई 18जून 1576
महाराणा प्रताप और भामाशाह |
महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी ?
महाराणा प्रताप की तलवार और कवच कितने किलो के थे ?
महाराणा प्रताप और उनका घोड़ा चेतक |
महाराणा प्रताप को किसने मारा/ मृत्यु कैसे हुई ?
“महाराणा प्रताप” परिचय –
भारत भूमि में अनेकों वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है। जिन्होंने मां भारती की सेवा में अपना समस्त जीवन न्योछावर कर दिया, इन्हीं वीर योद्धाओं में से एक हैँ, क्षत्रिय कुल गौरव महान योद्धा जिनकी ख्याति से मध्य भारत का
इतिहास जगमगाता है | वह है “महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया” ।
16 वीं शताब्दी में जब पूरे देश पर विदेशी आक्रांनताओ ने लूटमार मचा रखी थी, उस दौर में इन आक्रांताओ से महाराणा प्रताप ने न सिर्फ लड़ाई लड़ी बल्कि उनको अपनी सैनिक शक्ति से कमजोर किया और उनकी
मनमानी पर रोक लगाया।
भारतीय इतिहास के इस महान सपूत के साथ इतिहासकारों ने कभी भी न्याय नहीं किया, आज भी मुगलों के इतिहास से सभी परिचित हैं किंतु महाराणा प्रताप के विषय में बहुत कम लोग परिचित हैं ।
महाराणा प्रताप के विषय में कम ऐतिहासिक तथ्य होने के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी हो सकता है की, उस दौर में साहित्यकार और इतिहासकार राजाओं के दरबार के दरबारी होते थे ,और राजाओं पर निर्भर होते थे
महाराणा प्रताप ने जीवन का एक लंबा समय जंगलों में अज्ञातवास के रूप में बिताए जहां ना तो दरबार था और ना ही दरबारी ।
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महाराणा प्रताप का इतिहास |
महाराणा प्रताप, मेवाड़ जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी, के राजा थे | इनके पिता उदय सिंह द्वितीय के बाद वे मेवाड़ के राजा बने हालांकि परंपरा अनुसार बड़े पुत्र का सिंहासन पर प्रथम अधिकार होता था और महाराणा के
बड़े भाई जगमल सिंह ने सिंहासन पर अपना दावा भी किया किंतु, राज्य के मंत्रियों ने महाराणा प्रताप की योग्यता को पहचानते हुए उन्हें मेवाड़ का राजा बनाया |
मेवाड़ का राजा बनते ही महाराणा को अपने बड़े भाई जगमल सिंह के विरोध का सामना करना पड़ा, बाद में मुगल शासक अकबर में जगमल सिंह को अपनी ओर मिला लिया ।
मुस्लिम आक्रांता अकबर सारे देश पर कब्जा जमाने की फिराक में था, उसने राजस्थान के कई राजपूत राजवाड़ो से वैवाहिक संबंध स्थापित किया और कई राजवाडो को सैनिक शक्ति से डराकर राजस्थान के एक बड़े भू-
भाग पर कब्जा जमा लिया, लेकिन संपूर्ण राजस्थान को जीतने के उसके ख्वाब को महाराणा ने कभी भी पूरा नहीं होने दिया |
हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद महाराणा का अधिकांश जीवन जंगल में एकाकी की ही बीता, हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद मुगलों ने धोखे से उन्हें मारने के कई प्रयास किए, जो विफल रहे उनका सारा परिवार अभाव में जंगल
में जीवन गुजारता रहा लेकिन उन्होंने कभी भी मुगलों के आगे घुटने नहीं टेके ।
जंगल में घास की रोटियां के सहारे महाराणा प्रताप और उनके परिवार ने दिन गुजारे, जब एक बार उनकी पुत्री के हाथ से एक जंगली बिल्ला भाखरी का टुकड़ा छीन कर ले गया और वह भूख से बिलखती रही यह देखकर
महाराणा ने अकबर से समझौते का मन बनाया, परंतु पृथ्वीराज नाम की एक कवि ने उन्हें राजस्थानी भाषा में कविता के माध्यम से मनोबल बढ़ाया और अकबर से समझौता नहीं करने की सलाह दी |
इसके बाद भामाशाह की मदद से उन्होंने सेना तैयार की, साथ ही जंगल में रहने के दौरान उन्होंने गोरिल्ला लड़ाई में भी महारत हासिल कर ली थी, और कई बार मुगलों को इन्हीं जंगलों में हराया भी था |
महाराणा प्रताप की वापसी |
भामाशाह से प्राप्त सहायता से महाराणा प्रताप सेना का पुनर्गठन किया उसी समय उनको तकदीर की भी सहायता मिली जब पंजाब, बिहार, बंगाल में हुए विद्रोह में अकबर व्यस्त हो गया | 1582 में देवर में मुगल पोस्ट पर
महाराणा ने हमला करके उस पर कब्जा जमा लिया |
सन 1584-85 में जब अकबर वर्तमान पाकिस्तान की ओर घुसपैठ रोकने गया तो वहां वर्षों तक उलझा रहा, इस स्थिति का लाभ महाराणा प्रताप ने उठाया और गोगुंदा, कुंभलगढ़ और उदयपुर सहित पश्चिमी मेवाड़ पर
अधिकार कर लिया और डूंगरपुर के निकट अपनी नई राजधानी चावड का निर्माण किया।
महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था ?
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ किले में जयवंता बाई और उदय सिंह द्वितीय के यहां हुआ था, उनका बड़ा भाई जगमल और 23 छोटे भाई और 2 सौतेली बहने थी |
बचपन में महाराणा ने अपना समय जंगल में आदिवासियों के साथ बिताया, ऐसा कहा जाता है कि राणा का पालन पोषण भीलो की कूका जाति में हुआ था | राणा की सेना में भील योद्धाओं की भरमार थी |
बचपन से ही महाराणा स्वाभिमानी और सैनिक स्वभाव के थे, जब वे 17 वर्ष के थे तब मुगलों ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया, उनके पिता उदय सिंह ने चित्तौड़ से अपने परिवार को लेकर गोगुंदा की तरफ चले जाने का
निर्णय लिया, उनके इस फैसले से महाराणा प्रताप सहमत नहीं थे, उन्होंने मुगलों का सामना करने का सलाह अपने पिता को दि , लेकिन पिता और अन्य लोगों के समझाने पर उन्होंने चित्तौड़ छोड़कर चले जाने की बात मान
ली ।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक (फरवरी 1572 )
ऐसा माना जाता है की “महाराणा प्रताप” का राजभिषेक दो बार किया गया था | इस तरह महान मराठा सम्राट “छत्रपती शिवाजी महाराज” से कई मामलो मे महाराणा प्रताप की समानता है | दोनों का राज्याभिषेक दो बार
हुआ, दोनों ने आजीवन मुस्लिम आक्रांताओ से संघर्ष किया (महाराणा प्रताप ने अकबर से और शिवाजी महाराज ने औरंगजेब से) दोनों को ही गोरिल्ला युद्ध में महारत हासिल थी | दोनों ने ही मुगलों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी
| दोनों का ही जीवन संघर्ष मय था |
हल्दीघाटी की लड़ाई की पृष्ठभूमि |
मुस्लिम आक्रांता अकबर संपूर्ण राजस्थान को जीतना चाहता था और इस कार्य में सबसे बड़ा रोड़ा महाराणा प्रताप और चित्तौड़गढ़ थे |
राजस्थान की ज्यादातर रियासतों को अकबर ने अपने अधीन कर लिया था। चित्तौड़ या मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए उसने 1572 से 1573 में कई लोगों को समझौता करने और अकबर की अधीनता स्वीकार करने
के लिए महाराणा को समझाने हेतु भेजा। किंतु महाराणा प्रताप टस से मस नहीं हुए ,उन्होंने मुगल आक्रांताओं का सामना करने का पूरा मन बना लिया था और इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी ।
हल्दीघाटी की लड़ाई 18जून 1576 |
जब समझौते के सारे रास्ते बंद हो गए तो अकबर ने चित्तौड़ पर हमला करने के लिए आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में 10 हजार सैनिकों की विशाल सेना को चित्तौड़ भेजा, इसके विपरीत 5 हजार लोगों की सेना के
साथ महाराणा प्रताप इस युद्ध में उतरे, हालांकि इस युद्ध की सैनिक संख्या के बारे में इतिहासकारों में एकमत नहीं है।
कुछ घंटों के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप जख्मी हो गए और उन्हें रणभूमि छोड़नी पड़ी, यह युद्ध बेनतीजा रही और मुगल संपूर्ण मेवाड़ पर कब्जा जमाने में असफल रहे ।
महाराणा प्रताप और भामाशाह |
हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद महाराणा जब जंगलों में रहने लगे थे तब मेवाड़ के दरबार में मंत्री की सेवाएं दे चुके भामाशाह से महाराणा की मुलाकात हुई महाराणा प्रताप की दशा देखकर भामाशाह द्रवित हो गए, और
महाराणा को अपनी समस्त संपत्ति देने की पेशकश की ताकि महाराणा प्रताप फिर से अपनी सेना खड़ी कर सकें ।
भामाशाह के प्रस्ताव को महाराणा ने विनम्रता से टाल दिया, परंतु भामाशाह की जिद पर अड़ जाने पर उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर ली,
महाराणा प्रताप ने भामाशाह से भेंट स्वरूप मिले धन से सेना का विस्तार किया और मेवाड़ राज्य के बड़े हिस्से को मुगलों से मुक्त करा लिया ।
महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी ?
महाराणा प्रताप की कुल 14 पत्नियां थी । सबसे पहली पत्नी महारानी अजबंदे पवार थी जिसे महाराणा प्रताप का विवाह 1557 में हुआ था, और उन्हीं से उनके पहले पुत्र अमर सिंह का जन्म हुआ था, जो बाद में उत्तराधिकारी
बना ।इसके अलावा उनकी 17 बेटे और पांच बेटियां भी थी ।
महाराणा प्रताप की इतनी पत्नियों के पीछे मुख्य कारण राजपूत एकता के लिए वैवाहिक संबंध स्थापित करना था। अजबंदे पवार के अलावा अन्य पत्नियां निम्नलिखित थीं रानी लखबाई, रानी चंपा बाई, रानी शाहमति बाई
हाडा, रानी रत्नावती बाई परमार, रानी सोलंखिनीपुर, रानी अगर बाई राठौर, रानी फूलबाई राठौर, आदि ।
महाराणा प्रताप की तलवार और कवच कितने किलो के थे ?
ऐसा कहा जाता है कि, बड़े-बड़े बलशाली भी महाराणा प्रताप की तलवार और भाले को नहीं उठा पाते थे।
*महाराणा का वजन 110 किलो और ऊंचाई 7 फीट 5 इंच थी ।
* उनका लोहे का कवच 70 किलोग्राम से भी ज्यादा भारी था ।
*महाराणा प्रताप की ढाल, भाला, तलवार और कवच का कुल भार 200 किलोग्राम से भी ज्यादा था ।
महाराणा प्रताप और उनका घोड़ा चेतक |
इतिहास में अमर हो चुके कुछ जानवरों में से एक चेतक नाम का वह घोड़ा भी है, जिस की सवारी महाराणा प्रताप करते थे ।
चेतक अत्यंत वफादार घोड़ा था, जो महाराणा के इशारे पर हवाओं से बात करता था चेतक अत्यंत शक्तिशाली घोड़ा था, जो महाराणा और उनके अस्त्र-शस्त्र के साथ युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों की उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज गति
से दौड़ता था ।
हल्दीघाटी युद्ध के दौरान जब मुग़ल सेना संख्या बल के कारण भारी पड़ने लगी तो महाराणा को रणभूमि छोड़नी पड़ी, वे तेजी से चेतक पर सवार होकर विपरीत दिशा में जाने लगे, तब मुगल सेना के घुड़सवार सैनिक
उनका पीछा करने लगे रास्ते में आई 21 फीट लंबी नदी पर छलांग लगाकर चेतक ने महाराणा को सुरक्षित कर लिया, परंतु स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गया, चेतक की मृत्यु से महाराणा प्रताप को गहरा आघात लगा ।
चेतक के अलावा एक और जानवर महाराणा प्रताप को अत्यंत प्रिय था, और वह था ‘रामप्रसाद’ नाम का एक हाथी जिसने भी हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया, युद्ध क्षेत्र में मुगल सेना द्वारा
रामप्रसाद को बंदी बना लिया गया था ।
महाराणा प्रताप को किसने मारा/ मृत्यु कैसे हुई ।
महाराणा को युद्ध क्षेत्र में कई चोटें लगी थी, वही शिकार के लिए धनुष पर डोरी चढ़ाने के दौरान उन्हें गहरी चोट लगी, जिसके परिणाम स्वरूप 29 जनवरी 1597 को 56 वर्ष की आयु में इस वीर योद्धा का निधन चावड़
नामक स्थान पर हो गया ।
अपने 56 वर्ष की आयु में उन्होंने एक लंबा समय वीराने और जंगल में व्यतीत किए, जहां राजस्थान की सभी बड़ी रियासतें और राजवाड़े मुगलों के अधीन हो गए थे, वहीं महाराणा ने मुगलों को नाकों चने चबवाए और
आजीवन चैन से बैठने नहीं दिया । अकबर ने तो सारे उपाय करके महाराणा को झुकाने का प्रयास किया जो अंततः असफल ही सिद्ध हुआ ।
महाराणा प्रताप ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने देश समाज संस्कृति के लिए सारा जीवन संघर्ष किया और ऐसे वीर योद्धा मरा नहीं करते, बल्कि इतिहास में सदा के लिए अमर हो जाते हैं ।
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