महमूद गजनबी के बाद मुस्लिम लुटेरा, बर्बर आक्रमणकारी Muhammad Ghori का आक्रमण भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण था।
क्योंकि उसने न सिर्फ लूटपाट और डकैती की बल्कि अपना स्वतंत्र राज्य भी स्थापित किया था।
गजनी साम्राज्य के पश्चात मध्य एशिया में गौर राजवंश का उदय हुआ गौर पहले गजनी के सामन्त थे परंतु गजनी की शक्ति कमजोर पड़ने पर गौर ने अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम कर ली।
इसके कुछ समय के पश्चात गजनी पर भी गौर वंश (शंसवानी वंश) ने अधिकार कर लिया शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी 1173 ईस्वी में गजनी का शासक बना।
Muhammad Ghori का प्रारंभिक आक्रमण :–
12 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में उत्तर पश्चिम भारत में मजबूत राजनीतिक सत्ता का अभाव हो गया था। छोटे-छोटे राजपूत राज्य आपस में संघर्ष कर रहे थे, इस परिस्थिति का पूरा लाभ गोरी ने उठाया।
पंजाब पर गजनी वंश का शासन था और मुल्तान गजनी वंश के प्रभाव से अलग हो चुके थे, इसलिए गौरी ने सबसे पहले सीमांत प्रदेश पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का निर्णय लिया।
1175 ईस्वी में उसने भारत पर अपना आक्रमण किया गोमल दर्रा पार करता हुआ गोरी मुल्तान पहुंच गया। मुल्तान और उच्छ पर बिना किसी प्रतिरोध के उसने अधिकार कर लिया यहां अधिकार करने के बाद उसकी हिम्मत और बढ़ गई और वह गुजरात विजय के लिए आगे बढ़ा।
Muhammad Ghori की सबसे बड़ी हार :–
1178 ईस्वी में गोरी राजपूताना के मार्ग से गुजरात पहुंचने का प्रयास किया, मार्ग में आबू पर्वत के पास चालुक्य वंश के शासक सम्राट मूलराज द्वितीय से उसका जबरदस्त युद्ध हुआ।
इस युद्ध में गोरी बुरी तरह पराजित हुआ और किसी तरह अपनी जान बचाकर गजनी वापस भाग गया।
Muhammad Ghori का दूसरा आक्रमण / Md. Ghori and Prithiviraj Chauhan war :–
राजपूताना में पराजय के बाद मोहम्मद गोरी यह अच्छे से समझ गया था कि, भारत में घुसने के लिए सबसे सुरक्षित और कम प्रतिरोध वाला रास्ता पंजाब से होकर ही जाता है।
Muhammad Ghori ने अपनी सेना का पुनर्गठन करके पंजाब विजय के लिए निकल पड़ा। 1179 ईसवी में उसने पेशावर पर आसानी से अधिकार कर लिया।
पंजाब में गजनी वंश का शासक खुसरो मलिक Muhammad Ghori का मार्ग नहीं रोक सका। 1181 ईस्वी में लाहौर पर अधिकार करने में Muhammad Ghori असफल रहा।
इसके बाद 1186 ईसवी में उसने सियालकोट पर अधिकार कर लिया, फिर पंजाब के शासक खुसरो मलिक को पराजित कर उसकी हत्या करके पंजाब पर भी अधिकार कर लिया।
पंजाब की विजय के बाद गौरी के हौसले बढ़ गए और वह दिल्ली अजमेर विजय की योजनाएं बनाने लगा। लाहौर को केंद्र बनाकर उसने पुनः अपना विजय अभियान आरंभ किया ।
सबसे पहले उसने 1189 ईस्वी में भटिंडा के दुर्ग पर आक्रमण कर इसे जीत लिया। दिल्ली और अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय या राय पिथौरा का शासन था।
उस क्षेत्र में सबसे बड़ी सैन्य शक्ति पृथ्वीराज के पास ही थी। गौरी अति आत्मविश्वास के साथ अपनी सेना को लेकर भटिंडा की तरफ बड़ा थानेश्वर के निकट तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई।
तराइन का प्रथम युद्ध 1191 में Muhammad Ghori और पृथ्वीराज चौहान के बीच में लड़ा गया। इस युद्ध में गोरी बुरी तरह से परास्त हुआ युद्ध क्षेत्र में घायल होने के बाद बड़ी मुश्किल से अपने प्राण बचाकर गोरी पेशावर की ओर भाग निकला।
इस युद्ध के विषय में लेनपुल ने लिखा है कि, इससे पहले कभी मुसलमानों की सेना, हिंदुओं द्वारा इतनी बुरी तरह परास्त नहीं की गई थी।
तराइन का द्वितीय युद्ध :–
तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित होने के बाद Muhammad Ghori शांत नहीं बैठा, पृथ्वीराज से परास्त होकर हुए अपमान का बदला लेने की तैयारी करने लगा।
उसने एक लाख से अधिक सिपाहियों की सेना तैयार की जिसमें 10 हजार घुड़सवार धनुर्धर थे।
गोरी के फिर से आक्रमण की सूचना मिलने पर पृथ्वीराज ने भी युद्ध की तैयारी आरंभ कर दी, साथ ही उत्तर भारत के सभी राजाओं से सैनिक सहायता मांगी लगभग 150 राजपूत राजा अपनी सेनाओं के साथ पृथ्वीराज की मदद के लिए आ गए।
लगभग तीन लाख की राजपूत सेना का Muhammad Ghori की सेना से 1192 ईस्वी में तराइन का दूसरा युद्ध हुआ।
राजपूतों की विशाल सेना के बावजूद गोरी ने अपनी सेना का कुशल संचालन किया और तुर्की घुड़सवारो की तेजी और दक्षता के कारण, पृथ्वीराज पराजित हो गया और गौरी के सैनिकों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
चंद्रवरदाई के पृथ्वीराज रासो के अनुसार Muhammad Ghori ने पृथ्वीराज को अंधा करवा कर उसकी हत्या कर दी।
आधुनिक इतिहासकार जिनकी प्रमाणिकता संदेहो से परे नहीं है, चंद्रवरदाई से सहमत नहीं है। प्रोफेसर सतीश चंद्र का विचार है की पराजय के बाद पृथ्वीराज कुछ समय तक एक अधीनस्थ सामंत के रूप में शासन करता रहा बाद में गोरी के विरुद्ध षड्यंत्र करने के कारण उसकी हत्या कर दी गई।
पृथ्वीराज की पराजय ने जहां राजपूतों की शक्ति समाप्त कर दी वहीं गौरी की महत्वकांक्षाएं और बढ़ गई, उसने शीघ्र ही हांसी, सामाना, मेरठ, कोयल (अलीगढ़) और सरस्वती पर अधिकार कर लिया और दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया।
जयचंद पर आक्रमण :–
तराइन के द्वितीय युद्ध में दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों के लगभग सभी राजपूत राजाओं ने अपनी सेना गौरी के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजी थी लेकिन कन्नौज का राजा जयचंद पृथ्वीराज का कट्टर शत्रु था।
उसने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था, जिसका खामियाजा उसको आगे भुगतना पड़ा जब गौरी ने 1194 में उसके ऊपर आक्रमण किया और चंदावर के युद्ध में जयचंद मारा गया।
तुर्की सेना ने कन्नौज को जी भर कर लूटा जयचंद के पुत्र हरिश्चंद्र ने गोरी की अधीनता स्वीकार कर ली इसके बाद गोरी ने बनारस पर भी आक्रमण कर वहां लूटपाट की और ढेर सारा धन अर्जित किया।
इसके बाद वह वापस गजनी चला गया। उसकी अनुपस्थिति में उसके गुलाम प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ, बरन तथा अलीगढ़ पर अधिकार कर लिया अजमेर पर भी ऐबक की विजय हुई।
गौरी 1195 ईस्वी में फिर से भारत आया, इस बार उसने दिल्ली की दक्षिणी सीमा की सुरक्षा के लिए बयाना तथा ग्वालियर पर अधिकार किया।
Muhammad Ghori के बाद भारत :–
Muhammad Ghori के गजनी लौट जाने के बाद तुर्की सीमा का विस्तार उसके दो गुलामों कुतुबुद्दीन ऐबक और बख्तियार खिलजी ने किया।
ऐबक ने मध्य भारत के अनेक शक्तियों को पराजित किया उसने गुजरात पर आक्रमण कर भीलवाड़ा को लूटा, बनारस तथा कन्नौज पर आक्रमण कर लूट पाट किया और कलिंजर महोबा और खजुराहो पर अधिकार किया।
पूर्व दिशा की ओर तुर्की प्रसार का कार्य बख्तियार खिलजी ने किया, उसने बिहार पर आक्रमण कर उस पर अधिकार किया और इसका नाम बिहार शरीफ रखा।
नालंदा और विक्रमशिला महाविहारो को नष्ट कर दिया गया, बिहार से वह बंगाल की तरफ रवाना हुआ नदिया पर आक्रमण कर उसने वहां के शासक लक्ष्मण सिंह को भागने पर मजबूर कर दिया ।
उसने अपनी राजधानी लखनऊती में स्थापित की, एक प्रकार से वही बंगाल का शासक बन बैठा। बख्तियार खिलजी ने तिब्बत विजय की योजना भी बनाई थी जो सफल नहीं हो सकी । 1206 ईस्वी में उसके ही एक सैनिक ने उसकी हत्या कर दी।
Muhammad Ghori death / death date / who killed Md. Ghori :–
मोहम्मद गौरी अंतिम बार 1205 ईस्वी में भारत आया उसके आने का उद्देश्य पंजाब के खोखर विद्रोह का दमन करना था।
उसने खोखरो को नियंत्रित करने के लिए बड़े पैमाने पर उनकी हत्या करवाई और इस विद्रोह को समाप्त कर दिया, लेकिन गजनी लौटते समय 15 मार्च 1206 ईस्वी को रास्ते में ही उसकी हत्या कर दी गई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्या खोखरो द्वारा ही की गई थी।
गोरी के आक्रमण का महत्व :–
महमूद गजनबी की अपेक्षा मोहम्मद गौरी का आक्रमण ज्यादा स्थाई और दमनकारी सिद्ध हुआ। महमूद एक आक्रमणकारी की तरह भारत को लूट खसोट कर वापस चला गया ।
उसका अधिकार सिर्फ पंजाब और मुल्तान पर ही हुआ परंतु मोहम्मद गौरी का अधिकार पंजाब , मुल्तान राजपूताना, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के एक बड़े हिस्से पर हो गया था ।
उसकी मृत्यु के पश्चात भी भारत में उसका राज्य बना रहा। गोरी के आक्रमणों और विजयों ने राजपूतों की शक्ति नष्ट कर दी और भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
इसके साथ ही प्रशासनिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में नए तत्वों का उदय हुआ और महत्वपूर्ण परिवर्तन भी हुए। तुर्की विजय ने सामंती व्यवस्था का अंत कर दिया। राजपूत सामंतों की जगह अब नए अक्तादार (राजस्व वसूलने और प्रशासन की देखभाल करने वाले सैनिक अधिकारी) अस्तित्व में आए।
एक नई शहरी व्यवस्था का आरंभ हुआ साथ ही धर्मांतरण, लूटपाट, हत्या का एक नया कुचक्र भी प्रारंभ हो गया।
मुस्लिम आक्रमणकारियों ने न सिर्फ धन दौलत लूटने का प्रयास किया बल्कि उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति और स्थापित मान्यताओं को समाप्त करने का भी प्रयास किया, जैसा कि हमें बिहार और बंगाल के आक्रमण पर दिखाई देता है ।
जब इन आतंकियों ने नालंदा और विक्रमशिला जैसे महाविद्यालयों को न सिर्फ लूटा बल्कि उन्हें पूरी तरह से नष्ट भी कर दिया।
गौरी की मृत्यु के बाद उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में अपनी सत्ता स्थापित की और भारत पर शासन करने लगा।
हालांकि वह आजीवन अपने को गोरी का गुलाम ही मानता था और उसने कभी भी स्वयं को बादशाह घोषित नहीं किया।
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