Nagar nigam

भारत में प्राचीन समय से ही नगरों के विकास के लिए समितियां की गठन की व्यवस्था रही है जैसा कि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि, नगर विकास के लिए किसी प्रकार की समिति वहां कार्यरत थी।

यदि इसे आधुनिक परिपेक्ष में देखें तो भारत में सबसे पहले वर्ष 1687 में Nagar nigam की स्थापना वर्तमान चेन्नई या प्राचीन मद्रास शहर में हुई थी।

इसके बाद वर्ष 1726 में मुंबई और कोलकाता में भी नगर निगम का गठन किया गया था। इसके बाद स्थानीय शहरी शासन के विकास में उस समय तेजी आई जब स्थानीय स्वशासन से जुड़ी संस्थाओं का विकास वित्तीय विकेंद्रीकरण से संबंधित लॉर्ड मेयो के प्रस्ताव को 1870 में लाया गया।

इसके बाद लार्ड रिपन के प्रस्ताव 1882 द्वारा स्थानीय स्वशासन को कई प्रकार के स्वायत्तता प्रदान की गई।

वर्तमान में नगर निगम और शहरी स्थानीय शासन का जो स्वरूप, व्यवस्था और अधिनियम हमारे सामने है उसे वर्ष 1991 में पी वी नरसिम्हा राव सरकार के दौरान पारित किया गया था।

जिसे संविधान के 74 में संशोधन के नाम से जाना जाता है और यह अधिनियम 1 जून 1993 से प्रभावी हुआ था।

नगर निगम का गठन दिल्ली मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और अन्य महानगरों में कुशल प्रशासन के लिए किया गया है।

राज्यों में नगर निगमों का गठन संबंधित राज्य के विधान मंडल के अधिनियम द्वारा तथा संघ राज्य क्षेत्रों में नगर निगमों का गठन संसदीय अधिनियम द्वारा होता है।

नगर निगमो के लिए एक अधिनियम भी हो सकता है तथा प्रत्येक नगर निगम के लिए अलग-अलग अधिनियम भी हो सकता है। किसी नगर निगम में तीन प्राधिकरण होते हैं परिषद, स्थाई समितियां और आयुक्त।

निगम परिषद में जनता द्वारा चुना गया पार्षद तथा नगर पालिका प्रशासन से संबंधित कार्य अनुभव और ज्ञान रखने वाले कुछ नामित व्यक्ति हो सकते हैं,

संक्षेप में कहें तो निगम परिषद की संरचना अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और महिलाओं के लिए आरक्षण सहित 74 में संविधान संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही होती है निगम परिषद का प्रधान महापौर या मेयर होता है।

शहरी स्थानीय स्वयत्त शासन :–

74 वें संविधान संशोधन द्वारा प्रत्येक राज्य में तीन प्रकार के स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के गठन का प्रावधान किया गया है जो निम्नलिखित है

i) नगर पंचायत जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच स्थित है अर्थात वो ना तो पूरी तरह से ग्रामीण हो और ना ही शहरी।

ii) नगर पालिका या नगर परिषद छोटे और कम जनसंख्या वाले शहरी क्षेत्र के लिए।

iii) नगर निगम बड़े और अधिक जनसंख्या वाले शहरी क्षेत्रों के लिए।

संक्रमण क्षेत्र, छोटा शहरी क्षेत्र, या फिर बड़े शहरी क्षेत्र का निर्धारण राज्यपाल द्वारा निम्न तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकारी अधिसूचना द्वारा निर्धारित किया जाता है। अर्थात निम्न आधार पर नगर पंचायत नगर पालिका और नगर निगम  का निर्माण होता है।

i) क्षेत्र की आबादी।

ii) जनसंख्या का घनत्व ।

iii) स्थानीय प्रशासन के लिए करो के रूप में प्राप्त होने वाले राजस्व।

iv) गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार का प्रतिशत।

v) आर्थिक महत्व या राज्यपाल द्वारा उचित समझे जाने वाले अन्य कोई भी कारण।

नगर निगम की संरचना :–

नगर निगम के सभी स्थानीय प्रतिनिधियों का चुनाव वहां के क्षेत्र के लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।

इसके लिए प्रत्येक नगर निगम क्षेत्र को स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र या वार्डों में बांटा जाता है। नगर निगम के अध्यक्ष के चुनाव पद्धति का निर्धारण राज्य विधान मंडल द्वारा किया जाता है।

नगर निगम में यह निम्नलिखित लोगों के प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया है।

i) नगर निगम प्रशासन का विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले व्यक्ति किंतु उन्हें नगर निगम के बैठकों में मत देने का अधिकार नहीं होगा।

ii) लोकसभा और राज्य विधान मंडल के वे सदस्य जो उसे चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिसमें नगर निगम का पूरा अथवा कुछ भाग सम्मिलित होता हो।

iii) राज्यसभा या राज्य विधान परिषद की वे सदस्य जो नगर निगम क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत किए गए हैं।

iv) विभिन्न समितियों के अध्यक्ष (वार्ड समितियों को छोड़कर)।

नगर निगम वार्ड समितियाँ :–

संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नगर निगम के एक या एक से अधिक वार्ड को सम्मिलित कर वार्ड समिति गठित की जाएगी।

राज्य का विधान मंडल वार्ड समिति का संचालन भौगोलिक क्षेत्र और समिति के स्थानों को भरने के तरीकों से संबंधित प्रावधान निर्धारित कर सकता है।

राज्य का विधान मंडल वार्ड समिति के गठन के अतिरिक्त समितियों के गठन के लिए भी किसी तरह का प्रावधान कर सकता है।

Nagar nigam में आरक्षण :–

इस अधिनियम के अंतर्गत नगर निगम क्षेत्रों की कुल आबादी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आबादी के अनुपात में नगर निगम में सीटों को आरक्षित रखने का प्रावधान है।

इसके अतिरिक्त अधिनियम में किसी नगर निगम क्षेत्र में कुल सीटों की संख्या में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं ।(अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणी की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों सहित रखने का भी प्रावधान है)।

राज्य विधान मंडल नगर निगम के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षित करने की पद्धति का निर्धारण भी कर सकता है।

राज्य विधानमंडल किसी नगरपालिका में पिछड़े वर्गों की लिए सीटों अथवा नगर पालिकाओं के अध्यक्ष पद के आरक्षण के लिए भी व्यवस्था कर सकता है।

Nagar nigam की अवधि :–

इस अधिनियम में प्रत्येक Nagar Nigam का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है किंतु इस समय से पहले अर्थात कार्यकाल पूरा होने से पहले भी  भंग किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त Nagar Nigam के गठन के लिए नए चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष की अवधि की समाप्ति से पहले या Nagar Nigam भंग होने की स्थिति में भंग होने की तिथि से 6 माह की अवधि की समाप्ति से पहले कर लिए जाने का प्रावधान है।

अयोग्यता :–

कोई वह व्यक्ति Nagar Nigam का सदस्य चुने जाने के लिए अपात्र होगा जिसे।

i) राज्य विधान मंडल के चुनाव के प्रयोजन से उस समय लागू किसी कानून के अधीन अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

ii) राज्य विधान मंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के अंतर्गत अयोग्य घोषित किया गया हो।

इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति को इस आधार पर आरोग्य नहीं ठहराया जाएगा कि उसने 25 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है लेकिन उसकी उसकी आयु 21 वर्ष से कम ना हो, और योग्यता से संबंधित सभी विवाद राज्य विधान मंडल द्वारा निर्धारित प्राधिकारी को निर्णय हेतु भेजें जाएंगे।

राज्य चुनाव आयोग :–

Nagar Nigam के सभी चुनाव के आयोजन तथा मतदाता सूचियां की तैयारी के कार्य की निगरानी निर्देशन तथा उस पर नियंत्रण रखने का अधिकार राज्य चुनाव आयोग को प्राप्त है।

इस प्रकार राज्य चुनाव आयोग Nagar Nigam के चुनाव प्रक्रिया का सर्व प्रमुख अभिकरण है।

Nagar nigam के अधिकार और कार्य :–

राज्य विधान मंडल द्वारा Nagar Nigam को ऐसी शक्ति और प्राधिकार प्रदान किए जाएंगे जो स्वशासन से जुड़ी संस्थाओं को उनके कार्य निर्धारण के लिए आवश्यक है। इस के अंतर्गत निम्न अधिकार और कार्य निर्धारित है।

i) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं की तैयारी से संबंधित और

ii) Nagar Nigam को सीधे सौपे जाने वाली आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय जिसमें 12वीं अनुसूची में सम्मिलित 18 विषय भी शामिल है से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन की दायित्व देने और उनके क्रियान्वयन की शक्ति प्रदान करने की भी व्यवस्था की जाएगी।

वित्तीय प्रबंध :–

राज्य विधान मंडल नगर निगम के वित्तीय पोषण के लिए निम्न प्रावधान कर सकती है।

नगर निगम को कर, शुल्क, पथ कर, लगाने उनका संग्रहण और विनियोजन (खर्च) करने की शक्ति और अधिकार दे सकता है।

ii) वह राज्य सरकार द्वारा लगाए जाने और संग्रहित करो, शुल्क और पथ करों को नगर निगम को सोंप सकता है।

iii) राज्य की समेकित निधि से नगर निगम को सहायता अनुदान की व्यवस्था कर सकता है।

iv) नगर निगम की समस्त धनराशि को एकत्र करने के लिए कोष का निर्माण कर सकता है।

वित्त आयोग :–

नगर निगम के वित्तीय आधार के लिए प्रत्येक 5 वर्षों के अंतराल पर, वित्त आयोग वित्तीय स्थिति की समीक्षा करेगा और राज्यपाल को निम्नलिखित सिफारिशें भी की जाएंगी।

i) राज्य द्वारा लगाए गए कर शुल्क को पथ करों से हुई शुद्ध आय को राज्य और नगर निगमों के बीच विभाजित करने के सामान्य सिद्धांतों का निर्धारण।

ii) नगर निगमों को सोंपे जाने वाले करो शुल्कों और पथकरों के निर्धारण के लिए लागू होने वाले सामान्य सिद्धांत।

iii) राज्य की समेकित निधि से नगर निगमों को सहायता अनुदान दिए जाने वाले सिद्धांतों का निर्धारण।

वित्तीय स्थितियों पर वित्त आयोग निम्न सुझाव की राज्यपाल को देता है।

i) नगर निगमों की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने के लिए आवश्यक उपाय।

ii) नगर निगमों की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को प्रेषित अन्य कोई विषय।

राज्यपाल आयोग की सिफारिशों को अनुवर्ती कार्रवाई रिपोर्ट के साथ राज्य विधानमंडल में रखेगा।

केंद्रीय वित्त आयोग भी राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर नगर निगमों को संसाधनों की पूर्ति करने की दृष्टि से राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए जरूरी उपाय सुझाएगा ।

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