नगरनार स्टील प्लांट
जिला मुख्यालय जगदलपुर से 18 किमी दूर जगदलपुर उड़िसा मार्ग पर नगरनार स्टील प्लांट की स्थापना की जा रही है इस दिषा में कोक आवन बैटरी की हिटींग की प्रकिया भी आरम्भ हो चुकी है। यह प्लांट अगर तैयार हो जाता है।तो तीन मिलिअन टन सालाना उत्पादन होगा हालांकि इसमें अभी देर है। इसके बाद ब्लाॅस्ट फर्नेंस की कमीषनिंग की जाएगी। इसकी कुल लागत बीस हजार करोड़ रूपये से अधिक है। इस प्लांट के लिए 211 हेक्टेअर जमीन अधीकृत की गई है और यह जमीन छत्तीसगढ़ सरकार के पास है जिसमें सिर्फ 27 हैक्टअर जमीन को एनएम डीसी को के पास है । जानकारी के लिए यह जानना आवश्यक है कि एनएमडीसी जो भारत सरकार की उत्खनन इकाई है उसे नगरनार स्टील प्लांट का के उत्पादन कार्य का जिम्मा सौंपा गया है जो निष्चित ही एनएमडीसी के लिए मुष्किल है।
प्लांट अगर बनेगा तो निम्नलिखित उत्पादन होगा जानिए।
एच आर प्लेट्स और एच आर शीट्स बनाए जाऐगें जिससे लम्बे डायमिटर के पाईप, षिप्स, स्टोर करने वाले टैंक,रेल्वे के वैगन, प्रेषर बर्तन तैयार किए जाते हैं
ए पीआई 5 क्वालिटी प्लेट्स बनेगें जिससे गैस या तरल पदार्थ सप्लाई की जाने वाली पाईप बनाई जाती है,
एलपीजी सिलेण्डर
एच आर काॅईल्स जिससे ट्रकों के चक्के, इंजीनियरिंग और मिलिट्री में उपयोग की जाने वाली चीजें बनाई जाती है
हाई कार्बन स्टील बनाई जाएगी जो हाॅट वाटर रेडिएटर, पाईप इत्यादि बनाए जाएंगी
जनरेटर, मोटर, और ट्रांसफार्मर इत्यादि बनाने के लिए सिलिकाॅन स्टील बनाई जाएगी ।
और Automobile उद्योग में प्रयुक्त की जाने वाली सभी प्रकार की Automotive Steel बनाई जाएगी ।
आज नगरनार फिर से चर्चाओं में है? आखिर क्यों
जब से नगरनार को सरकार निजी हाथों में सौंपने का इरादा किया तो बस्तर में हलचल होना स्वाभाविक है। अब तक नगरनार को भारत सरकार की खनन करने वाले संस्था एनएमडीसी के हवाले किया गया था। मगर अब सरकार इसे निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहीं है । मोदी सरकार ने इसके संकेत जब से दिए है। तो राज्य सरकार केन्द्र सरकार से लगातार गुहार लगा रही है कि इस विचार पर दोबारा मंथन करे क्योंकि इससे स्थानीय हितों की बात आती है।
खास बात यह है बस्तर में पेसा कानून और छठवीं अनुसूचि लागू है। बावजूद इसके केन्द्र सरकार निजी हाथों में सौंपने पर आमादा है।
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क्या होगा अगर यह निजी हाथों में चला गया तो
केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा मिलने वाली वो तमाम सुविधाओं से आरक्षित वर्ग वंचित हो जाएगा जिसकी बाहुल्यता बस्तर में है।
बस्तर में राजनीतिक नेतृत्व क्या करे?
इस बात को लेकर वे अदालत में जा सकते हैं। बस्तर में आदिवासी हितों की रक्षा के लिए पेसा कानून और छठवीं अनुसूचि लागू है। इसे ढाल बनाकर निजीकरण पर सरकार को पुर्नविचार के लिए दबाव बनाया जा सकता है। सरकार के पक्ष पर अगर हम गौर करें तो कुछ बाते निकल कर आती है। उन्हें समझना जरूरी है।
निजीकरण क्यों जरूरी है
बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था के पटरी पर लाने के लिए निजीकरण जरूरी है। निजीकरण का इतिहास भारत में नया नहीं है 1951 में रेल्वे के निजीकरण के साथ इसकी शुरूआत हो चुकी थी । भोपाल का हबीब गंज रेल्वे स्टेषन पहला निजी स्टेशन है। बंदरगाह और नौवहन, विमानतल और विमानन कंपनियां तथा यात्री बस और ट्रक सेवाएं इसका उदाहरण हैं। केवल रेलवे पर ही सरकार का एकाधिकार रहा। जो बाद में बदलता गया । क्यों जरूरी है निजीकरण इसका उद्देष्य क्या है?
निजीकरण के उद्देश्य
व्यापार करना राज्य का काम नहीं है राज्य के काम को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी है व्यापार पर सरकार का कम से कम नियंत्रण हो। जब से ग्लोबलाईजेषन हुआ है और पंूजीवाद को बढ़ावा मिला है तब से इस प्रकार की सोच ने अपनी पैठ बना ली है। इसके अलावा भी निजीकरण की जरूरत को लेकर ये बातें समझी जा सकती है। सरकार को शासन की कुषलता पर अपना ध्यान अधिक केंन्द्रित करने के लिए निजीकरण जरूरी है। इसके लिए बड़ी धनराशि को सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक षिक्षा तथा सामाजिक आधारभूत संरचना में लगाना आवश्यक है।
स्वास्थ्य और शिक्षा जिसमें निजी और सार्वजनिक दोनों ही कार्य कर रहें है। इसमें बेहिसाब तन्ख्वाह पर मौजूद लोग काम कर रहें हैं जिन्हें अपने कार्य के बारे में न तो जानकारी है न ही वे निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले चिकित्सक या षिक्षकों के मुकाबले वे फिट बैठते हैं मगर सरकार का पैसा यानि जनता का धन सिर्फ बर्बाद कर रहें है। ऐसे कई उदाहरण है जहाँ निजीकरण के कारण सरकार का पैसा बच सकता है।
ऐसे उपक्रमों का निजीकरण करना जरूरी है जिसमें करदाताओं का धन लगा हुआ है और निजीक्षेत्र उन उपक्रमों में आगे आने को उत्सुक हैं। इसीलिए काॅर्पोरेट क्षेत्रों में लगाए जा रहे धन की मात्रा पर विचार करना जरूरी हो जाता है।
निजीकरण के फायदे क्या हैं
किसी निजी बीमा कंपनी,बैंक या स्कूल में अगर आप जाएं और सरकार द्वारा पोषित इस प्रकार की किसी भी कंपनी में जाएं तो फर्क साफ दिखता है। कार्यकुषलता सिर्फ निजी क्षेत्रों में दिखाई देती है। जनता के लिए बने इन उपक्रमों में जनता का ही काम नहीं होता है। जन सामान्य के लिए बनाई गई कई योजनाएं हैं जो केवल कागजों में ही हैं। निजीकरण से केवल काबिल लोग ही काम करेंगे जो किसी भी देष के विकास के लिए काबिल लोगों का होना जरूरी है। छोटे बड़े निवेषकों के आने से षक्ति और प्रबंधन का बंटवारा ठीक ठाक होगा। और केवल कबिल और योग्य ही बने रहेंगे । दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
निजीकरण की कठिनाईयां
श्रमिकों का विरोध इसकी निजीकरण की सबसे बड़ी कठिनाई है। निजीकरण के बाद उनकी मुनाफे और संपत्तियों का उपयोग जनसामान्य के लिए नहीं किया जा सकेगा। और निगमीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा। बाजार में स्वास्थ प्रतियोगिता का अभाव होगा। भारत में निजीकरण को अर्थव्यवस्था की वर्तमान सभी समस्याओं को एकमात्र उपाय नहीं माना जा सकता। निजीकरण के पश्चात् कंपनियों का तेजी से अंतर्राष्ट्रीयकरण होगा और इन दुष्प्रभावों का प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।