पारसी धर्म या जरथुस्ट्र विश्व के प्राचीन धर्म में से एक है जिसकी स्थापना आर्यों की ईरानी शाखा के एक संत जरथुस्ट्र ने की थी।
इस्लाम धर्म के अस्तित्व में आने के बाद पूर्व प्राचीन ईरान में पारसी धर्म का ही प्रचलन था, सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया और पारसी धर्म के लोगों को जबरन इस्लाम में धर्मान्तरित करने का प्रयास किया ।
ऐसी मान्यता है कि कुछ पारसियों में इस्लाम धर्म को स्वीकार नहीं किया और वह एक नाव पर सवार होकर भारत आ गए और यहां गुजरात के तट पर नवसारी में आकर बस गए।
वर्तमान में भारत में इनकी जनसंख्या 50 हजार है जिसमें से लगभग 70% आबादी मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में बसी हुई है।
भारत में माइग्रेट होने के बाद से जरथुस्ट्र ने नई पहचान इस देश में बनाई है।
सबसे अल्पसंख्यक धर्म होने के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा योगदान इस धर्म के लोग देते हैं।
वर्तमान में इस धर्म के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है क्योंकि इनकी आबादी भारत में मात्र 50 हजार है और इस धर्म के युवा युवती विवाह बंधन में बंधने से परहेज कर रहे हैं और पारसियों की आबादी लगातार कम होती जा रही है।
संत जरथुस्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालीन माना गया है परंतु ऋग वैदिक ऋषियों के विपरीत जरथुस्ट्र ने एक संस्थागत धर्म का प्रतिपादन किया।
संभवत किसी संस्थागत धर्म के वे पहले पैगंबर थे इतिहासकारों के अनुसार वे 1700 – 1500 ईसा पूर्व के बीच अवतरित हुए थे।
वह ईरानी आर्यों की स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे. उनकी माता का नाम दूधधोवा था। 30 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन के आयु में हुई थी।
पारसी धर्म की मान्यता :–
पारसी या जरथुस्ट्र धर्म एकैकाधिदेववादी धर्म है, जिसका अर्थ यह है कि जरथुस्ट्र लोग एक ईश्वर अहुरमजद में आस्था रखते हुए भी अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं नकारते हैं।
यद्यपि अहुरमजद उनके सर्वोच्च देवता है और दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्म कांडो में अग्नि उनके प्रमुख देवता के रूप में स्थापित हैं। इसलिए पारसियों को अग्नि पूजक भी कहा जाता है।
जरथुस्ट्र धर्म में दो शक्तियों की मान्यता है (i)स्पेन्त मैन्यू जो विकास और प्रगति की शक्ति है। (ii) अंग्र मैन्यू जो विघटन और विनाशकारी शक्ति है।
पारसी धर्म के लोग सात देवदूतों की कल्पना करते हैं जिनमें से प्रत्येक सूर्य, चंद्रमा, तारे, पृथ्वी, अग्नि तथा सृष्टि के अन्य तत्वों पर शासन करते हैं इनकी स्तुति करके लोग अहुरमजद को प्रसन्न कर सकते हैं ऐसी मान्यता है।
पारसी धर्म के पवित्र चिन्ह :–
पारसी धर्म के दो अत्यंत पवित्र चिन्ह है सदरो (पवित्र कुर्ती) और पवित्र धागा धर्म दीक्षा संस्कार के रूप में पारसी बालक तथा बालिका दोनों को एक विशेष समारोह में यह पवित्र चिन्ह दिए जाते हैं, जिन्हें वे आजीवन धारण करते हैं।
मान्यता अनुसार इन्हें धारण करने से व्यक्ति दुष्प्रभाव और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षित रह सकता है।
विशेष आकृति वाली सदरो का निर्माण सफेद सूती कपड़े के 9 टुकड़ों से किया जाता है इसमें एक जेब होती है जिसे किस्म-ए-कर्फ़ कहते हैं।
पवित्र धागा जिसे कुश्ती कहते हैं ऊन के 72 धागों को पिरोकर बनाई जाती है और उसे कमर के चारों ओर बांध दिया जाता है, जिसमें दो गांठे सामने और दो गांठे पीछे की ओर बांधी जाती है।
पारसी मंदिर :–
पारसी मंदिरों को फायर टेम्पल या अगियारी कहा जाता है । जहां पर अग्नि की पूजा होती है।
ऐसा माना जाता है कि पारसी मंदिरों में पूजी जाने वाली अग्नि को पारसी लोग अपने साथ ईरान से लेकर आए थे।
पारसी धर्म मे अंतिम संस्कार :–
इस धर्म में अंतिम संस्कार की सबसे विचित्र पद्धति देखी गई है। शव को किसी ऊंची मीनार पर खुला छोड़ दिया जाता है जहां गिद्ध चील जैसे पक्षी उसे नोच कर खा जाते हैं।
बाद में मृतक की अस्थियों को एकत्र कर दफना दिया जाता है। परंतु हाल के वर्षों में इस परंपरा में कमी आ गई है और शव को अब सीधे ही दफना दिया जाता है।
पारसी धर्म ग्रंथ :–
पारसियों का पवित्र धर्म ग्रंथ जेंद अवेस्ता है, जो ऋग वैदिक संस्कृत का ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखी गई है।
ईरान के सासनी काल में जेंद अवेस्ता का पहलवी भाषा में अनुवाद किया गया था जिसे पंजद कहा जाता है, परंतु इस ग्रंथ का सिर्फ पांचवा भाग ही आज उपलब्ध है।
इस उपलब्ध ग्रंथ को पांच भागों में बांटा गया है, जो निम्न है।
1) यस्ता (यज्ञ)– अनुष्ठानों और संस्कारों के मंत्रों का संग्रह।
2) विसपराद– राक्षसों और पिशाचों को दूर रखने के नियम।
3) येष्ठ– पूजा– प्राथना,।
4) खोरदा अवेस्ता — दैनिक प्राथना पुस्तक।
5) अमेश स्पेन्ता — यज्ञतो की स्तुति।