Guru Ghasidas. छत्तीसगढ़ के महान संत गुरु ।

भारत भूमि संत महात्माओं की भूमि है समय-समय पर संत महात्माओं ने देश और समाज के उत्थान और उन्नति की के लिए ना सिर्फ कार्य किया बल्कि उन्हें सही दिशा भी दिखाई है।

संत गुरु नानक, रामानंद, कबीर ,रैदास आदि ने समाज को एक नई दिशा दी थी ऐसे ही संतो में से एक महान संत Guru Ghasidas भी थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में सामाजिक उत्थान का कार्य किया और समाज को एक नई दिशा भी प्रदान की ।

18 वीं शताब्दी के मध्य में छत्तीसगढ़ कई समस्याओं से जूझ रहा था छोटी-छोटी रियासतों का प्रभाव था, जो जनता से मनमाना कर वसूलते थे, पिंडारी गांव में लूटपाट मचाते थे और आम लोगों का जीवन आर्थिक कठिनाइयों से घिरा हुआ था।

समाज में भेदभाव ऊंच-नीच छुआछूत चरम पर था, धर्म के नाम पर कर्मकांड, यज्ञ, बलि प्रथा, तंत्र मंत्र, जादू टोना का बोलबाला था।

ऐसे मुश्किल हालात में समाज को एक नई दिशा देने की आवश्यकता थी तभी संत गुरु घासीदास ने अवतरित होकर समाज को एक नई दिशा प्रदान की।

मूलतः Guru Ghasidas द्वारा प्रवर्तित सतनाम पंथ मध्यकालीन प्रसिद्ध धर्म सुधारक रामानंद के शिष्य रैदास से मिलता है किंतु रैदास के छत्तीसगढ़ में आने की कोई प्रमाण नहीं है और सतनामी शब्द का प्रयोग नया नहीं है बल्कि इसके पूर्व भी तीन प्रमुख समाज सुधारकों ने (नानक, कबीर, जगजीवन दास) सतनाम शब्द का प्रयोग किया था।

जगजीवन दास का जन्म ग्राम सरदहा जिला बाराबंकी उत्तर प्रदेश में हुआ था, इतिहासकार और विद्वानों का मत है कि गुरु घासीदास ने इन्हीं से प्रेरणा लेकर सतनाम शब्द का प्रयोग किया था जो भी हो सत्य की प्राप्ति गुरु घासीदास को आत्मज्ञान से ही हुई थी और सतनाम जीवन के मूल मंत्र के रूप में सबसे पहले मानव मात्र के सामने उन्होंने ही प्रस्तुत किया था।

गुरु  का नाम Guru Ghasidas
जन्म 18 दिसंबर 1756
जन्म स्थल गिरोद ग्राम बलौदाबाजार
कर्म स्थली छत्तीसगढ़ राज्य
पंथ सतनाम पंथ
ज्ञान प्राप्ति औरा धौरा आंवला और धावड़ा वृक्ष
पिता का नाम महंगू दास
माता का नाम अमरौतीन् बाई
पत्नी सुफरा बाई (सिरपुर)
संतान सहोदरा माता, गुरु अमर दास और गुरु बालक दास।
समाधी (मृत्यु)

1836  (भंडारपुरी)

Guru Ghasidas ka janm :–

Guru Ghasidas का जन्म 18 दिसंबर 1756 को रायपुर के समीप स्थित बलौदाबाजार जिले के गिरोद ग्राम में हुआ था।

Guru Ghasidas ka priwar :–

गुरु घासीदास के पिता का नाम महंगू दास था और माता का नाम अमरोतिन् बाई था बाल्यावस्था में ही इनका विवाह सिरपुर निवासी सुफरा बाई से हो गया था।

इनकी कुल तीन संताने थी सहोदरा माता, गुरु अमर दास और गुरु बालक दास।

गुरु की ज्ञान प्राप्ति :–

ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु घासीदास में गृह त्याग कर दिया था और सोनाखान के जंगलों में जाकर ध्यान लगाया, लंबे ध्यान और महीनों के बाद औरा धौरा आंवला और धावड़ा वृक्षों के नीचे गुरु को सत्य ज्ञान की अनुभूति हुई।

इसके बाद वे वापस अपने गांव आ गए और यहीं से कई चमत्कार और आश्चर्यजनक घटनाक्रम से उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

Guru Ghasidas ki shiksha aur updesh :–

ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने लोगों को नीति ज्ञान और धर्म का उपदेश देना प्रारंभ कर दिया सतनामी समाज को हिनता और अज्ञानता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए।

उन्होंने अपने शिष्यों को मांस मदिरा का त्याग करके सात्विक और सत्य जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित किया उन्होंने सतनामी समाज में फैली हिनता को दूर करने के लिए सत्य नाम जपने की आज्ञा दी और उनके मतानुसार सभी मनुष्य बराबर है।

ऊंच-नीच कोई जाति नहीं है और न हीं मूर्ति पूजा में कोई सार है, अहिंसा परम धर्म है इसलिए हिंसा करना पाप है।

सतनामी संप्रदाय से संबंधित लोग एक दूसरे को “जय सतनाम” कहकर अभिवादन करते हैं।  छत्तीसगढ़ के मध्य भाग जहां सतनामी संप्रदाय के लोग निवासरत हैं वहां गांव गांव में सतनाम स्तंभ या चौका या चैत् स्तंभ बनाए गए हैं।

Guru Ghasidas से जुड़े प्रमुख स्थल :–

गिरौध पुरी

बलौदा बाजार जिले के ग्राम गिरौदपुरी में सोमवार माघ पूर्णिमा 18 दिसंबर 1756 को गुरु घासीदास जी का जन्म हुआ था।

गुरु निवास

गिरौदपुरी में संत गुरु घासीदास का निवास स्थान है यहां 60 वर्ष प्राचीन जैत् स्तंभ है और गुरु की गद्दी भी स्थित है यहां दर्शन के लिए हजारों पर्यटक और सतनामी समाज के लोग आते हैं।

तपोभूमि

गिरोधपुरी से 2 किलोमीटर पूर्व दिशा में पहाड़ी पर औरा और धोरा वृक्ष के नीचे गुरु घासीदास ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए तप् किया था इसलिए इस स्थान को तपोभूमि के नाम से जाना जाता है।

हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक इस स्थल पर मेला लगता है जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।

छाता पहाड़

तपोभूमि से 8 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित पहाड़ी के ढलान में एक बहुत बड़ा शिला( पत्थर) है जिसका आकार छाता के जैसा है जिससे इसे छाता पहाड़ कहते हैं ।

गुरु घासीदास ने इस शिला की ओट में बैठकर 6 माह तक ध्यान और समाधि लगाई थी।

सुफरा मठ

गुरु घासीदास के जन्म स्थल ग्राम गिरौदपुरी के पूर्व दिशा में एक जलाशय् स्थित है इसके समीप ही गुरु घासीदास की पत्नी सुफरा माता का मठ है।

इस् मठ को लेकर मान्यता है कि गुरु घासीदास के बड़े पुत्र अमर दास के जंगल में खो जाने के फलस्वरूप माता सुफरा को गहरा आघात लगा और उन्होंने यहां समाधि लगा ली थी।

जब माता को लोगों ने समाधि में देखा तो उन्होंने मृत समझकर उन्हें उस स्थान पर दफना दिया

गुरु घासीदास ने समाधि समाप्त होने पर माता सुफरा को पुनः जीवित कर दिया था। प्रतिवर्ष यहां मेले का आयोजन होता है।

गुरु की समाधी :–

सन 1836 के आस-पास महान संत ग्राम भंडार (भंडारपुरी) में ब्रह्मलीन हो गए इसी गांव में पंथ की गुरु गद्दी स्थापित हुई है यहां प्रत्येक वर्ष उनके जन्मदिवस 18 दिसंबर को जन्मोत्सव मनाने के लिए सतनामी समाज का एक बहुत बड़ा मेला लगता है।

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