राष्ट्रीय गान

राष्ट्र गान किसी भी देश के गौरवशाली इतिहास संस्कृति और परंपराओं की पहचान होती है।

रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा रचित जान गण मन को भारत के राष्ट्रीय गान के रूप में 24 जनवरी 1950 को संविधान द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई थी।

रविंद्र नाथ टैगोर की इस रचना में पूरे 5 पद हैं परंतु इसके सिर्फ प्रथम पद को जिसमें 13 पंक्तियां हैं को ही राष्ट्रगान के रूप में गाया जाता है।

राष्ट्रीय गान की रचना गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने दिसंबर 1911 में की थी।

इस को सर्वप्रथम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 27 दिसंबर 1911 को गाया गया था।

यह रचना जनवरी 1912 में तत्वबोधिनी नामक पत्रिका में भारत भाग्य विधाता शीर्षक से सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ था।

रविंद्र नाथ टैगोर ने वर्ष 1919 में इस रचना का अंग्रेजी रूपांतरण द मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया (The morning song of india) शीर्षक से किया था।

राष्ट्रगान के गायन में लगने वाला समय 52 सेकंड का होता है।

कुछ अवसरों पर इसे संक्षिप्त रूप से भी गाया जाता है जिसमें प्रथम और अंतिम पंक्तियां गाई जाती हैं जिसमें 20 सेकंड का समय लगता है।

राष्ट्रगान में देश के गौरवशाली इतिहास और आत्मसम्मान का बखान किया जाता है।

देश के राष्ट्रगान को अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों जैसा ही सम्मान और आदर दिया जाता है।

राष्ट्रगान के दौरान नागरिकों से यह आशा की जाती है कि वे सावधान की मुद्रा में खड़े होकर इसे सम्मान देंगे।

राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर सार्वजनिक रूप से इसे गाया और इसकी धुन बजाई जाती है।

संसद के प्रत्येक बैठक के आरंभ में और सत्र की समाप्ति होने पर इसे गाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में विजय होने पर राष्ट्र गान की धुन बजाई जाती है।

राष्ट्रगान में भारत के समस्त भूभाग का वर्णन है।

भारत का राष्ट्र गान निम्न प्रकार है

“जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।
“पंजाब सिंध गुजरात मराठा, द्राविड़ उत्कल बंग।
“विंध्य हिमाचल यमुना गंगा, उच्छल जलधि तरंग।
“तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे।
“गाहे तव जय गाथा।
“जन गण मंगलदायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।
जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे।

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रविंद्र नाथ टैगोर की इस रचना में पूरे 5 पद –:

जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग।
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग।
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जयगाथा।
जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार बाणी।
हिन्दु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्तानी।
पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पासे।
प्रेमहार हय गाथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री।
हे चिरसारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे।
संकटदुःखत्राता।
जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यविधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे।
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता।
जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यविधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले।
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे।
तव चरणे नत माथा।
जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

राष्ट्रगान को लेकर हुए विवाद –:

राष्ट्रगान को लेकर हुए विवाद में सबसे बड़ा यह प्रश्न उत्पन्न हुआ इसका सार्वजनिक रूप से राष्ट्रगान के समय में राष्ट्रगान नहीं गाना उसका अपमान तो नहीं है।

इस संबंध में केरल राज्य में हुए विवाद के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि सार्वजनिक रूप से राष्ट्रगान के समय उसे नहीं गाना राष्ट्रगान का अपमान नहीं है इस कार्य के लिए किसी भी व्यक्ति को दंडित

नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रगान के समय प्रत्येक नागरिक से यह आशा की जाती है कि वह सावधान की मुद्रा में सीधा खड़ा होगा और राष्ट्रगान के दौरान किसी भी प्रकार की अनावश्यक गतिविधि नहीं करे।

 

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