लोकतांत्रिक देशों में नीति निर्माण व्यवस्था का सर्वोच्च संसद मे निहित होता है, संसदीय प्रणाली में संसद देश के लिए कानूनों का निर्माण तो करती ही है, साथ ही प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण भी लगाती है | देश की आर्थिक नीतियों का निर्धारण संसद करती है, और संसदीय व्यवस्था में सरकार की आय और व्यय का निर्धारण संसद के ही माध्यम से होता है |
आज के इस लेख के माध्यम से यह जानने का प्रयास करेगें कि संसद Sansad moneycontrol (आय और व्यय ) कैसे करती है |
भारत और भारत जैसे संसदीय व्यवस्था वाले देशों में वित्त व्यवस्था का प्रबंधन केंद्रीय स्तर पर संसद द्वारा और राज्य स्तर पर राज्य विधानसभा अथवा विधान मंडल द्वारा किया जाता है |
भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था होने के कारण भारत में केंद्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर वित्तीय प्रशासन का संचालन होता है | देश के समस्त वित्तीय व्यवस्था का संचालन की जिम्मेदारी संसद पर ही होती है | देश के वित्त के सुचारू संचालन के लिए संसद द्वारा मनीकंट्रोल की विधि अपनाई जाती है | जिसमें संसद मनी अथवा धन के आय और व्यय को कंट्रोल करती है |
संसद वित्त पर नियंत्रण लगाने अथवा मनी कंट्रोल करने के लिए मुख्यतः दो माध्यमों का प्रयोग करती है |
1) प्रत्यक्ष विधि |
2) अप्रत्यक्ष विधि |
प्रत्यक्ष मनीकंट्रोल –:
मनीकंट्रोल या वित्त नियंत्रण के लिए संसद का निम्न माध्यमों का प्रत्यक्ष प्रयोग करती है |
i) वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) |
ii) संसदीय समितियां |
iii) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक |
अप्रत्यक्ष मनीकंट्रोल –:
अप्रत्यक्ष मनी कंट्रोल या अप्रत्यक्ष सार्वजनिक वित्त नियंत्रण के लिए संसद निम्न माध्यमों का प्रयोग करती है |
i) वित्त मंत्रालय |
ii) नीति आयोग |
iii) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया |
iv) वित्त सलाहकार |
v) वित्त आयोग |
प्रत्यक्ष मनी कंट्रोल
संसद वित्त पर नियंत्रण लगाने के लिए या मनी कंट्रोल करने के लिए निम्न प्रत्यक्ष माध्यमों का प्रयोग करती है |
i) वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट)–:
सरकार की आय और व्यय का समस्त विवरण वार्षिक वित्तीय विवरण में संसद के समक्ष अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाता है, जिसे संसद विचार-विमर्श करके अनुमोदित करती है साथ ही सरकार के गैर जरूरी खर्च पर रोक लगाती है |
संवैधानिक रूप से अनुच्छेद 112 के अधीन राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए संसद के समक्ष एक वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) प्रस्तुत करवाता है | इस बजट पर संसद में व्यापक विचार-विमर्श होता है और जनविरोधी आय और खर्च की कटौती का सुझाव सांसद देते हैं | और सर्वश्रेष्ठ आय और व्यय की नीतियों को अनुमोदन संसद द्वारा दिया जाता है | इस प्रकार Sansad moneycontrol के लिए सरकार के आय और व्यय पर नियंत्रण लगाती है |
ii) संसदीय समितियां –:
Sansad moneycontrol में संसद की वित्तीय समितियां प्रत्यक्ष भूमिका में होती है संसद की वित्तीय समितियों की संख्या कुल 3 है |
प्राक्कलन समिति |
सरकारी उपक्रम समिति |
लोक लेखा समिति |
A) प्राक्कलन समिति –
30 सदस्यों वाली लोकसभा की इस समिति को स्थाई मितव्ययिता समिति भी कहा जाता है, यह समिति बजट में सरकारी अपव्यय को रोकने की सिफारिश करती है, यह समिति निम्न प्रकार से संसद को मनीकंट्रोल करने में मदद देती है |
- बजट अनुमानों की जांच कर यह बताना कि क्या उसमें शामिल नीति से मितव्ययिता, संगठन में सुधार, कार्य कुशलता, और क्या प्रशासनिक सुधार किए जा सकते हैं |
- यह समिति यह भी सिफारिश करती है कि, प्रशासन में कुशलता और मितव्ययिता लाने के लिए और किन वैकल्पिक नीतियों को स्वीकार किया जा सकता है |
- यह समिति यह भी जांच करती है कि, बजट अनुमानों में शामिल नीति की सीमाओं में रहकर धन को उचित ढंग से खर्च किया गया है |
इस प्रकार उपर्युक्त वित्तीय समितियां Sansad moneycontrol करने के लिए आंख कान और नाक का काम करती है |
B) सरकारी उपक्रम समिति –:
22 सदस्यों की यह संसदीय समिति (Government Undertaking) या लोक उपक्रमों के संबंध में महत्वपूर्ण सुझाव संसद को देती है, जैसा कि लोक उपक्रम सरकार की आय और व्यय का बड़ा स्रोत होते हैं| यह समिति निम्न कार्य करती है |
- सरकारी उपक्रमों की रिपोर्ट और लेखाओ की और उन पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट की जांच करना |
- सरकारी उपक्रमों की स्वायत्तता और कार्यकुशलता के संदर्भ में यह जांच करना कि क्या सरकारी उपक्रमों के कार्य व्यापार सिद्धांतों और विवेकपूर्ण वाणिज्यिक प्रथाओं के अनुसार चलाए जा रहे हैं
इस प्रकार यह समिति संसद को यह सुझाव देती है कि लोक उपक्रमों की कार्यकुशलता को बढ़ाकर कैसे आय अधिकतम की जा सकती है |
C ) लोक लेखा समिति –:
22 सदस्यों की यह संसदीय समिति प्राक्कलन समिति की जुड़वा कही जाती है,
इस समिति का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि, इसका अध्यक्ष विपक्ष का सदस्य होता है जो इस समिति के प्रभाव को और अधिक बढ़ा देता है इस समिति के निम्न कार्य हैं |
1) भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ( CAG ) द्वारा दी गई लेखा परीक्षण संबंधी रिपोर्ट की जांच करना |
2 ) भारत सरकार के व्यय लिए सदन द्वारा प्रदत्त की गई राशियों का व्यय दर्शाने वाले खातों का जांच करना, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि, क्या धन संसद द्वारा प्राधिकृत रूप से खर्च किया गया है, और उसी उद्देश्य के लिए खर्च किया गया है जिस उद्देश्य के लिए दिया गया था |
3) यदि किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उसके प्रयोजन के लिए संसद द्वारा प्रदान की गई धनराशि से अतिरिक्त धनराशि को व्यय किया गया हो तो, समिति उन परिस्थितियों की जांच करती है, जिसके कारण ऐसा अतिरिक्त व्यय करना पड़ा है और इस संबंध में ऐसी सिफारिश करती है |
4 ) समिति राष्ट्र के वित्तीय मामलों के संचालन में अपव्यय भ्रष्टाचार और अकुशलता या कार्य चालन में कमी के किसी भी प्रमाण की भी खोज करती है |
III ) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ( CAG ) –:
भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का उल्लेख किया गया है | संविधानिक पद संघ और राज्यों के खातों की जांच करता है, इस प्रकार यह संवैधानिक सम परीक्षा और लेखा प्रणालियों का प्रधान होता है, जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत संसद की ओर से लेखाओ की जांच करता है | सार्वजनिक वित्त के संबंध में निम्न प्रकार से संसद की आंख कान और नाक का कार्य करता है |
लोक लेखा समिति नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट का परीक्षण करके एक और रिपोर्ट तैयार करती है, जिसे संसद में रखा जाता है| इस रिपोर्ट के आधार पर संसद मनीकंट्रोल के अंतिम चरण की प्रक्रिया को पूर्ण करती है, किसी भी भ्रष्टाचार उजागर होने पर सरकार की कटु आलोचना संसद द्वारा की जाती है और ऐसा दोबारा ना हो उसके उपाय भी किए जाते हैं |
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अप्रत्यक्ष नियंत्रण –:
सार्वजनिक वित्त नियंत्रण या प्रत्यक्ष मनीकंट्रोल के अलावा संसद द्वारा सार्वजनिक वित्त पर नियंत्रण के लिए अप्रत्यक्ष माध्यमों का भी प्रयोग महत्वपूर्ण है, प्रत्यक्ष माध्यमों से यह अप्रत्यक्ष माध्यम इस प्रकार से भिन्न है कि, इन पर प्रत्यक्ष नियंत्रण सरकार का होता है किंतु, अंततः यह माध्यम भी कहीं ना कहीं संसद को वित्त नियंत्रण करने में मदद ही करते हैं, निम्न अप्रत्यक्ष नियंत्रण के साधन का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है |
A) वित्त मंत्रालय –:
यह संस्था भारत सरकार के अधीन कार्य करती है, भारत के लोक वित्त प्रबंधन में इस संस्था की भूमिका महत्वपूर्ण है | बजट अनुमान से लेकर उसे संसद में पास होने तक वित्त मंत्रालय प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता है| संसद की आकांक्षाओं के अनुरूप बजट तैयार करने का कार्य वित्त मंत्रालय ही करता है, यह संस्था एक विशेषज्ञ की भूमिका में होती है, जो जन आकांक्षाओं के अनुरूप बजट का निर्माण करती है |
B )नीति आयोग –:
नीति आयोग एक विशेषज्ञ संस्था है, जिसमें अर्थशास्त्री नीति निर्माता और विभिन्न क्षेत्रों के ख्याति मान विशेषज्ञ सदस्य होते हैं | यह संस्था देश के विकास के लिए नीतियों का निर्माण करती है, इस संस्था का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है, यह आयोग जो नीतियां बनाता है उस पर अंतिम सहमति संसद ही प्रदान करती है, अर्थात संसद की इच्छा अनुसार नीतियों का निर्माण नीति आयोग द्वारा किया जाता है |
C ) रिजर्व बैंक –:
Sansad moneycontrol में रिजर्व बैंक की भूमिका महत्वपूर्ण है, रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है| संसद की इच्छा अनुरूप सरकार द्वारा दिए गए निर्देश पर रिजर्व बैंक देश में मुद्रा आपूर्ति के नियमों का निर्धारण करता है ! ( CRR,SLR,OMO,रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, बैंक रेट आदि )
D) वित्त सलाहकार –:
वित्त सलाहकार या इकोनामिक एडवाइजर की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है| आर्थिक मामलों पर सरकार को राय देने के साथ ही अर्थव्यवस्था के रास्ते में आने वाली बाधाओं का पता लगाना और उन्हें दूर करने के लिए सरकार को उचित सलाह देना ही इकोनामिक एडवाइजर का मुख्य कार्य है, साथ ही केंद्रीय बजट से पहले आर्थिक सर्वेक्षण तैयार करना भी वित्त सलाहकार का ही कार्य है, जो संसद की इच्छा अनुरूप ही होता है |
E) वित्त आयोग–:
संस्था भी Sansad moneycontrol में एक सहायक की भूमिका में होती है, संविधान के अनुच्छेद 280 में इसके गठन का प्रावधान किया गया है, कार्यपालिका प्रमुख राष्ट्रपति द्वारा गठित होने वाले इस आयोग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है, और संसद ही इस आयोग द्वारा निर्धारित नीतियों पर अंतिम सहमति देता है वित्त आयोग के मुख्य कार्य निम्न है |
i ) केंद्र और राज्य के मध्य करो कि शुद्ध आय के वितरण के बारे में और राज्यों के बीच ऐसे आए के भाग के आवंटन के बारे में सिफारिश करना |
ii) भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शामिल करने वाले सिद्धांतों के बारे में सिफारिश करना |
Iii ) मजबूत वित्तीय हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपी गए किसी अन्य विषय के बारे में सिफारिश करना |
निष्कर्ष –:
प्रत्येक राष्ट्र की सफलता उसके वित्तीय प्रबंधन से जुड़ी हुई है, आधुनिक युग में हमने देखा है कि जो राष्ट्र आर्थिक रूप से मजबूत हैं, वह विकसित राज्यों या राष्ट्रों में सम्मिलित किए जाते हैं ,तो इस प्रकार कार्य कुशल वित्तीय प्रबंधन का महत्व सार्वभौमिक है| इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन के लिए संसद को अधिकृत किया है, साथ ही उन्होंने इस बात की भी व्यवस्था की है कि यह प्रबंधन सुचारू रूप से बिना किसी भेदभाव और भ्रष्टाचार के संपन्न हो जाए |
भारतीय संसदीय इतिहास के 70 वर्षों में संसद ने लोक वित्त या सार्वजनिक वित्त पर अच्छा कंट्रोल किया है, हम दूसरे शब्दों में कहें तो संसद ने देश की Sansad moneycontrol का कार्य अत्यंत कार्यकुशलता से किया है और राष्ट्र इसी की सहायता से उन्नति के शिखर की ओर अग्रसर है |
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