बस्तर दशहरा के बारे में विस्तार से मैंने अपने ब्लॉग में चर्चा की है , बस्तर में मनाया जाने वाला दशहरा कई मायनों में अन्य त्योहारों से जुदा है दृ इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए
कृपया बस्तर दशहरा ब्लॉग पढिये
बस्तर जिले में दशहरा के बाद जिस पर्व का बेसब्री से इंतजार होता है वह है दृगोंचा , इस ब्लॉग के माध्यम से मै आज इसी गोंचा पर्व के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहा हूँ ।
बस्तर गोंचा पर्व के महत्त्व बहुयामी है जिसमे पौराणिक मान्यताओं के आलावा आम जनमानस के लिए सफल,एवम सुखी जीवन के लिए आध्यात्मिक सन्देश एवम जनकल्याण कारी प्रभाव के कारण इसका बड़ा महत्त्व है । गोंचा पर्व को मनाये जाने के कई कारण है , कहते है जब भगवान् जगग्न्नाथ नगर भ्रमण पर निकलते है तो गोंचा पर्व होता है ध् इस दौरान भगवान् को सलामी देने के लिए यहाँ बांस की बनी एक “बन्दुक” जिसे तुपकी कहते है दृ द्वारा सलामी दी जाती है ध् आइये बात करते है सिलसिले वार किस तरह इस पर्व का विधान किया जाता है ध् ज्ञात स्रोतों के आधार पर सबसे पहला पर्व है चंदन जात्रा –
क्या है चंदन जात्रा-
गोंचा पर्व की शुरुवात में चन्दन जात्रा विधान के साथ शुरू हुई ध् इस विधान के अनुसार भगवान् 14 दिनों के लिए अनसर काल में होते है तथा अस्वस्थ होते है , इस दौरान भगवान का दर्शन करना वर्जित होता है । पूरे अनसर काल में भगवान के स्वस्थ लाभ के लिए 360 घर ब्राम्हण आरणक्य समाज द्वारा औषधि युक्त भोग अर्पण किया जाता है। और भगवान् द्वारा लिया गया भोजन को प्रसाद के रूप में भक्तो की प्रदान किया जाता है ध् एसी मान्यता है कि इस प्रकार के भोजन को लेकर वर्ष भर स्वस्थ लाभ लिया जाता है ।
भोजन औषधि युक्त होने की वजह से यह काफी गुणकारी होता है तथा लोग इसमें चमत्कारी प्रभाव महसूस करते है ।
बहरहाल, अनसर काल खत्म होने के बाद ही गोंचा का अगला विधान शुरू होगा ।
गोंचा पर्व के आयोजनों में निम्न प्रकार के विधान किये जाते हैं
अनसर काल
नत्रोत्सव
गोंचा रथ यात्रा
अखंड रामायण पाठ
हेरा पंचमी
छप्पन भोग
उपनयन संस्कार
बहुडा गोंचा
देश शयनी एकादशी