इस लेख मे
भरतपुर (राजस्थान) एक परिचय
भरतपुर का इतिहास
भरतपुर की जलवायु
वनस्पति
कृषि
यातायात के साधन
भरतपुर जिला आकड़ों मे
पर्यटन स्थल
भरतपुर (राजस्थान) एक परिचय
भरतपुर राजस्थान का एक सीमांत जिला है जो भरतपुर को उत्तर प्रदेश और हरियाणा से जोड़ता है | भरतपुर को यदि हम राजस्थान का प्रवेश द्वार कहे तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी,राजस्थान के पूर्वी भाग में अरावलीपर्वत माला से पूर्व दिशा मे यह स्थित है।
इसके पुर्व में उत्तर प्रदेश, उत्तर मे हरियाणा राज्य , दक्षिण में करौली और धौलपुर पश्चिम मे दौसा और अलवर जिले स्थित हैं |
प्राचीन काल से ही भरतपुर सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, तो चलिए आज इस लेख में हम जानने का प्रयास करते हैं कि भरतपुर का इतिहास क्या है, भरतपुर की जलवायु कैसी है, और कृषि के क्या साधन उपलब्ध हैं साथ ही किस तरह की वनस्पति और पर्यटक स्थान भरतपुर में उपलब्ध है |
भरतपुर का इतिहास
भरतपुर का इतिहास प्राचीन काल का है यदि प्रागैतिहासिक काल की काल का विचार करें तो लगभग डेढ़ लाख वर्ष पूर्व पाषाण के औजार उत्तर पश्चिम भरतपुर जिले से प्राप्त होते हैं।
उस प्रागैतिहासिक काल का एक प्रमुख स्थान ‘दर’ है जहां से पुरापाषाण कालीन कालीन खुरदुरा औजार प्राप्त हुए हैं साथ ही मानव बसाहट के भी अवशेष इस स्थान पर मिले हैं |
आद्य ऐतिहासिक काल या तांम्र कालीन सभ्यता के अवशेष ‘मलाह्’ से प्राप्त हुए हैं | यह स्थान घाना पक्षी अभ्यारण के अंदर स्थित है, इस स्थान पर तांबे के तलवार भाले और काटने के औजार प्राप्त हुए हैं |
इसके बाद ऐतिहासिक काल के प्रमाण ‘नोह्’ से प्राप्त हुए हैं। कार्बन डेटिंग के आधार पर इस स्थान की सभ्यता 1100 ई पू से 900 ईसवी पूर्व की मानी गई है, इस प्रकार यह लोह युगीन सभ्यता थी |
वर्ष 1964 में इस स्थान पर रतन चंद्र अग्रवाल के निर्देशन में खुदाई के फल स्वरुप विशाल आकार की यक्ष प्रतिमा और मोर्य् युगीन चिकने पॉलिश युक्त चुनार के टुकड़े प्राप्त हुए हैं ।
यह स्थान 5 संस्कृतिक युगों का गवाह है (ताम्र युगीन, आर्य युगीन, और महाभारत कालीन्) यहां से प्राप्त मिट्टी के बर्तन लाल और काले रंग के हैं ,एक पात्र पर ब्राह्मी लिपि में अंकित लेख भी प्राप्त हुआ है |
लौह युगीन सभ्यता के कृषि संबंधी उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन रिंग से बने हुए कुएं भी बहुतायत में पाए गए हैं, घरों के निर्माण में पक्की ईंटों के प्रयोग के भी प्रमाण मिले हैं, कुषाण नरेश हुविस्क् और वासुदेव के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं |
इसके बाद के ऐतिहासिक प्रमाण ‘बयाना’ से प्राप्त हुए हैं, इसका प्राचीन नाम श्री पंथ् था। गुप्तकालीन सिक्के और नील की खेती का प्रमाण यहां से प्राप्त हुआ है,
इसके बाद का उल्लेखनीय इतिहास मध्यकाल के अंतिम समय का है जब भरतपुर एक रियासत के रूप में उभरा |
भरतपुर का रियासत के रूप मे विकास
भारतीय मध्य कालीन इतिहास के अंतिम समय में जब मुगल शासक औरंगजेब शासन कर रहा था, उस समय कई स्थानीय शक्तियों का उदय हुआ जिनमें पश्चिम भारत में मराठा और उत्तर भारत में जाट शक्ति प्रमुख थी,
इतिहासकारों के अनुसार स्थानीय शक्तियों के उदय के बाद ही मुग़ल शक्ति कमजोर हुई और कई छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ |
गोकुल सिंह जाट तिलपत गांव के सरदार बनाए गए और उन्होंने मुगल आक्रांता औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया 1666 इसवी में हुई लड़ाई में गोकुल सिंह के नेतृत्व में जाट सेना विजयी हुई 1970 में गोकुल सिंह की हत्या मुगलों ने आगरे में कर दी।
इसके बाद 1670 इसवी मे जाटों का नेतृत्व राजाराम ने किया यहीं से भरतपुर राज्य का उल्लेख मिलता है। राजाराम ने अकबर की कब्र (सिकंदरा आगरा) खोदकर उसकी हड्डियां निकलवाए और उन्हें जला दिया, 1865 मे राजा राम के नेतृत्व में दूसरा जाट विद्रोह मुगलों के विरुद्ध हुआ था।
राजाराम के बाद उसका छोटा भाई चूड़ामण 1688 में जाट साम्राज्य का संस्थापक बना उसने उनमें थून् मे किला बनवाया और राज्य स्थापित किया परवर्ती मुगल बादशाह फरूख्सियर् जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो
उसने चुड़ामन से समझौता करने और टकराव रोकने के लिए उसे राव बहादुर खान की उपाधि दी थी, मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के आदेश पर सवाई जयसिंह ने चुरामन को हराकर उनके किले थून् पर अधिकार कर
लिया जिससे इस हार से आहत होकर चुरामन ने आत्महत्या कर ली।
सन 1722 में चूड़ामण के भतीजे बदन सिंह को जाट शक्ति का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया बदन सिंह को ही जाट राज वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
महाराजा सूरजमल ( 1756-1763)
* भरतपुर राज्य की वास्तविक स्थापना और उन्नति सूरजमल के काल में ही हुई |
* इनके पिता बदन सिंह जाट ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
* बुद्धिमता तथा राजनीतिक कुशलता के कारण सूरजमल को जाट जाति का प्लेटो या अफलातून भी कहा जाता है।
* उन्होंने भरतपुर मथुरा मेरठ और अलीगढ़ आदि जागीर अपने अधिन् की थी 1761 आगरा के किले पर भी अधिकार कर लिया था।
* लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण भरतपुर में करवाया जिस पर कोई भी शत्रु विजय प्राप्त नहीं कर सका।
* मुगल शैली में डीग के जल महल का निर्माण करवाया था।
* 25 दिसंबर 1763 में नवाब नजीब खां रोहिल्ला के साथ युद्ध में महाराजा सूरजमल की मृत्यु हो गई ।
पानीपत की लड़ाई
मराठा और अफगानी आक्रांता अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध हुए पानीपत की तीसरी लड़ाई सूरजमल के समय में ही हुई थी ।
इस लड़ाई में मराठों ने किसी भी अन्य शासक का सहयोग लेने से इनकार कर दिया था, और इसके पहले मराठा सरदार सदाशिव राव भाऊ और सूरजमल के कुछ मुद्दों पर मतभेद हो गए थे, परिणाम स्वरूप इस युद्ध में सूरजमल की जाट सेना ने भाग नहीं लिया।
जैसा की सर्वविदित है कि, इस युद्ध में मराठा परास्त हुए, मतभेद के बावजूद सूरजमल ने मराठा सैनिक, जो घायल और भूखे थे की मदद की और वापस महाराष्ट्र लौटने का प्रबंध भी किया ।
सूरजमल के बाद जाट शासकों के काल में विशेष उल्लेखनीय घटना का अभाव रहा।
वर्तमान भरतपुर
अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भरतपुर रियासत भारतीय संघ में सम्मिलित हो गया, राजस्थान में निर्मित मत्स्य संघ ने इसका विलय किया गया और 1949 में यह राजस्थान में सम्मिलित हो गया । 1956 राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा सुझाए गए 14 राज्यों में राजस्थान का गठन हुआ और भरतपुर उसका एक जिला बनाया गया ।
भरतपुर की जलवायु
भरतपुर की जलवायु उष्णकटिबंधीय जलवायु के अंतर्गत आती है, जिले में पर्याप्त हरियाली और वनों का क्षेत्र है, वार्षिक वर्षा 80 से 100 सेंटीमीटर के मध्य होती है । गर्मियों में तापमान 44 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है,
वही ठंडी में 4 से 10 डिग्री के मध्य तापमान होता है 6 से 7 माह गर्मियां और 4 माह ठंड का मौसम होता है ।
पर्याप्त संख्या में पेड़ पौधे होने से भरतपुर जिला अत्यंत हरा भरा है और वर्षा की भी पर्याप्त मात्रा यहां होती है।
वर्ष भर में 3 माह जुलाई अगस्त और सितंबर माह में यहां बारिश दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है।
ठंडी के महीनों में कुछ वर्षा पश्चिमी विछोभो से भी होती है।
वनस्पति
राजस्थान के इस हिस्से में उष्ण शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं, जो गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं, और जुलाई में मानसून की बारिश के साथ ही फिर से हरे भरे हो जाते हैं ।
प्रमुख वृक्षों में धोकड़ा (धौंक) आम, बरगद, गूलर, नीम, तेंदू, बबूल, बहेड़ा, आंवला, दास कत्था, महुआ, खस, आदि के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। राजस्थान का यह जिला प्राकृतिक वनस्पति और पेड़ पौधों की पर्याप्त मात्रा से परिपूर्ण है ।
कृषि
भरतपुर जिले की मिट्टी रेतीली दोमट मिट्टी है, जो फसलों के उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है लेकिन सिंचाई सुविधाओं के अभाव के कारण जिले का अधिकांश भाग की कृषि मानसूनी बारिश पर ही निर्भर है।
सरसों के उत्पादन के मामले में भरतपुर राजस्थान में प्रथम स्थान पर है ।
भरतपुर में ही ‘केंद्रीय सरसों अनुसंधान केंद्र’ सेवर की स्थापना हुई सन 1983 में हुई थी ।
फलों के मामले में भरतपुर में सर्वाधिक उत्पादन आम का होता है।
भरतपुर की प्रमुख कृषि उत्पादन निम्न है।
खरीफ– बाजरा,ग्वारफली,मूंगफली ।
रवि– गेहूं,जौ, सरसों, चना ।
जायद– खरबूजे,तरबूज,ककड़ी आदि ।
यातायात के साधन
भरतपुर यातायात के साधनों से परिपूर्ण है चाहे वायु सेवा हो चाहे रेल सेवा या फिर (सार्वजनिक परिवहन) सड़क मार्ग |
वायु मार्ग
वायु मार्ग से भरतपुर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा आगरा है जहां से अंतर्देशीय और अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट उपलब्ध है इसके अलावा भरतपुर से 300 किलोमीटर की दूरी पर जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा भी वायु मार्ग के लिए उपलब्ध है ज्यादातर देशी और विदेशी पर्यटक आगरा हवाई अड्डे के माध्यम से ही भरतपुर पहुंचते हैं |
रेल मार्ग
भरतपुर रेल द्वारा देश के बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है मुंबई दिल्ली रेल मार्ग में यह भरतपुर स्टेशन स्थित है इसके अलावा आगरे से जयपुर की ओर जाने वाली ट्रेनों के लिए भी भरतपुर एक प्रमुख रेल स्टेशन है रेल द्वारा भी भरतपुर पहुंचना आसान है |
सड़क मार्ग
आगरा से जयपुर को जोड़ने वाला N.H.-1 भरतपुर से होकर ही जाता है सार्वजनिक परिवहन के पर्याप्त साधन आगरे से या फिर जयपुर से भरतपुर पहुंचने के लिए उपलब्ध है |
भरतपुर जिला आकड़ों मे
वर्ष 2011 के जनगणना के आधार पर निम्न तथ्य भरतपुर जिले के है |
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पर्यटन स्थल
वैसे तो संपूर्ण राजस्थान ही पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध क्षेत्र है | भरतपुर में पर्यटन के लिए अनेक स्थल हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, तो अब जानते हैं कि भरतपुर में स्थित प्रमुख पर्यटन स्थल कौन-कौन से हैं |
केवलादेव नेशनल पार्क
इसे घाना पक्षी रिजर्व के नाम से भी संबोधित किया जाता है, यह सैकड़ों एकड़ में फैले जलजमाव पर स्थित है, भरतपुर शहर से दक्षिण पूर्व दिशा में 5
किलोमीटर की दूरी पर यह राष्ट्रीय उद्यान स्थित है, यह विश्व के सबसे बड़े पक्षियों के जमावड़े में से एक है, पर्यटन की दृष्टि से यह स्थल बहुत लोकप्रिय
है |
इस स्थान पर पक्षियों को निहारने के लिए दूरबीन की आवश्यकता होती है जो आप साथ ला सकते हैं या फिर कुछ शुल्क पर भी यह उपलब्ध है,
सबसे उपयुक्त भ्रमण का समय नवंबर दिसंबर जनवरी और फरवरी के महीने है, यहां पर ग्रीन सैंडपाइपर और क्रीक सर्दियों में बड़ी संख्या में आते हैं,
इसके अलावा सैकड़ों की प्रजाति में विभिन्न प्रकार की पक्षियों को यहां देखा जा सकता है यहां पर 350 से अधिक पक्षी और सरीसृप की प्रजातियां रहती है |
इस अभ्यारण को 1985 में विश्व विरासत का दर्जा मिल चुका है |
बंद बरेठा
भरतपुर के बयाना तहसील में स्थित यह बांध कुकन्द नदी पर बना है, इस बांध का निर्माण महाराजा रामसिंह ने 1887 में करवाया था | यह बान्ध भरतपुर
जिले का सबसे बड़ा बांध है, इससे भरतपुर जिले के कुछ हिस्सों में पीने के लिए और सिंचाई के लिए पानी इस बांध से ही मिलता है | यह स्थल भरतपुर से
44 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |
लक्ष्मण जी का मंदिर
यह मंदिर भरतपुर शहर के बीचो बीच स्थित है | भगवान राम के भाई लक्ष्मण को यह मंदिर समर्पित है और इसकी अपनी विशिष्ट राजस्थानी शैली की वास्तुकला और
सुंदर गुलाबी पत्थर का काम किया गया है, जालीदार पत्थर पर की गई नक्काशी मन मोह लेती है, ऊंचे चबूतरे पर बनाए गए इस मंदिर के छत खंभे दीवारों मेहराबों आदि
पर फूल और पक्षियों की जटिल नक्काशी की गई है |
भरतपुर पैलेस संग्रहालय
भरतपुर पैलेस के भीतर यह संग्रहालय स्थित है | जिसमें बड़ी संख्या में प्राचीन वस्तुएं रखी गई है, जिनमें पत्थर की मूर्तियां, स्थानीय कला और
शिल्प के सामान और प्राचीन ग्रंथ है | जो भरतपुर की कला और संस्कृति को दर्शाते हैं, यह संग्रहालय राजपूत वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना
है |
लोहागढ़ का किला
अत्यंत विशाल क्षेत्र में फैला हुए इस किले का निर्माण सूरजमल ने करवाया था | जो अंत तक अजेय् रहा अंग्रेजों ने इस किले पर कई हमले किए सबसे लंबी घेराबंदी के बाद भी उन्हें वापस जाना पड़ा, लेकिन 1805 में अंग्रेज
अधिकारी लॉर्ड लेक ने इस किले पर कब्जा करने में पहली बार सफलता पाई इस किले के चारों ओर विशाल खाई बनाई गई थी, और उनमें पानी भरा गया था जिससे दुश्मन उस खाई को पार कर किले में दाखिल ना हो
पाए, साथ ही किले के मुख्य द्वार पर लोहे की कील लगी हुई बड़े-बड़े दरवाजे भी बनाए गए थे | किले में कुछ दिलचस्प स्मारक किशोरी महल, महल खास, और कोठी खास, मोती महल, जवाहर बुर्ज, फतेह बुर्ज जैसे टावरों
का निर्माण कराया गया है |
डीग का किला
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित इस किले का निर्माण राजा सूरजमल द्वारा किया करवाया गया था | इस किले में मुगल
शैली में बनाए गए फव्वारे विशेष आकर्षण का केंद्र हैं, वैसे तो किले का अंदरूनी हिस्सा ज्यादातर खंडहर में तब्दील हो चुका है किंतु फिर
भी इसकी भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है |