जब धर्म में कर्म कांडो का महत्व बढ़ता गया तो धर्म का पालन करना एक सामान्य मनुष्य के लिए कठिन हो गया। धार्मिक क्रियाकलापो में दान यज्ञ और विभिन्न परंपराओं में होने वाले खर्च को वहन कर पाना अब साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं था।
धार्मिक आडंबर और आर्थिक नुकसान करने वाली परंपराओं से मुक्ति के लिए एक नए धर्म का जन्म हुआ या कहें कि एक धार्मिक क्रांति हुई।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत में प्राचीन परंपरागत धार्मिक व्यवस्था के विरोध में बौद्ध धर्म का प्रतिपादन गौतम बुद्ध द्वारा किया गया।
अपने पूर्ववर्ती जैन धर्म से यह अधिक लोकप्रिय और पूरे विश्व में फैलने वाला धर्म बना।
बौद्ध धर्म क्या है :–
बौद्ध धर्म धार्मिक आडंबर से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के उन साधनों की व्याख्या करता है जिन पर प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है।
गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित इस धर्म ने मनुष्यों को मोक्ष प्राप्ति का एक सरल मार्ग बताया है जिसे कोई भी साधारण मनुष्य अपनाकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है ।
वास्तविक रूप से देखा जाए तो जैन धर्म के समान ही बौद्ध धर्म भी अनिश्वर वादी है ,इसमें भक्ति की बजाए आचरण के द्वारा मोक्ष प्राप्ति के उपाय बताए गए हैं।
बौद्ध धर्म मे कौन सी जाति आती है :–
बौद्ध धर्म में जाती पाती और छुआछूत का निषेध किया गया है, गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में सभी जाति और धर्मों के लोगों से बौद्ध धर्म अपनाने को कहा बौद्ध धर्म की स्थापना ही समाज में उत्पन्न हुए जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए हुई थी।
बौद्ध धर्म में सभी मनुष्यों को समान माना गया है। इस प्रकार बौद्ध धर्म किसी जाति विशेष से संबंधित नहीं है।
विश्व का कोई भी धर्म या जाति से संबंधित व्यक्ति बौद्ध धर्म ग्रहण कर सकता है बिना किसी भेदभाव के उसका अनुपालन भी कर सकता है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे :–
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे, इनका जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल की कपिलवस्तु के शाक्य वंशी क्षत्रिय राज परिवार में लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था।
इनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम माया देवी था गौतम बुध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। बचपन से ही गौतम बुद्ध चिंतनशील और एकांत प्रिय थे।
16 वर्ष की आयु में यशोधरा से विवाह के उपरांत उन्हें राहुल नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई।
राज्य परिवार से संबंधित होने के कारण उन्हें विलासिता तथा सुख सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी इसके बावजूद उनका मन सांसारिक गतिविधियों में नहीं लगता था और अंततः 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर त्याग दिया।
ज्ञान की खोज में निकल पड़े अनेक स्थानों पर धर्म आचार्यों से संपर्क में आने और कठोर तप के बावजूद उन्हें ज्ञान प्राप्ति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
अंततः बोधगया में निरंजना नदी के तट पर एक पीपल वृक्ष के नीचे कई दिनों की तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए।
इसके बाद वे सर्वप्रथम वाराणसी में उपदेश देकर धर्म चक्र का प्रवर्तन किया और जीवन भर धार्मिक उन्नति के लिए विभिन्न स्थानों पर धर्म उपदेश देते रहे।
अंततः 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की आयु में वर्तमान देवरिया जिले के कुशीनगर में उनका देहांत (निर्वाण प्राप्ति) हो गया।
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांत :-
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांत निम्न है
1 अनिश्वरवाद
बौद्ध धर्म में ईश्वर जैसी किसी भी सत्ता को नकारा गया है। किसी भी सृष्टि कर्ता और ईश्वर को यह धर्म स्वीकार नहीं करता।
2 अनात्मवाद
बौद्ध धर्म जीवो में विद्यमान किसी नित्य या अनंत स्वरूपवान या अस्वरूपवान आत्मा का अस्तित्व नहीं स्वीकार करता है।
वास्तव में बुद्ध ने आत्मा जैसे विवादास्पद मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा है।
3 अनित्यवाद
प्रकृति में दृश्यमान् प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है तथा कुछ भी नित्य और स्थाई नहीं है।
4 चार आर्य सत्य
जीवन की समस्याओं को समाप्त करने के लिए गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य का वर्णन किया है। जिन्हें अपने जीवन में उतारकर मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है। यह चार आर्य सत्य निम्न है।
i) दुःख
यह संसार दुखों का जाल है जरा, मृत्यु, रुग्णता आदि दुख ही है जीवन का प्रत्येक अंश दुख से भरा हुआ है।
ii) दुःख समुदय
दुख का कारण मनुष्य की अज्ञानता और तृष्णा या इच्छा है दुख तथा इस अज्ञानता के बीच बारह कारणों की एक श्रृंखला (द्वादश निदान) है। जिसकी निवृत्ति करके ही मनुष्य जरा- मरण से मुक्त हो सकता है।
iii) दुःख निरोध
दुखों से छुटकारा पाने हेतु आवश्यक है कि मनुष्य अज्ञानता से प्रेरित इच्छाओ का नाश करें अर्थात राग द्वेष काम आदि का त्याग करें।
iv) दुःख निरोध-गमिनी-प्रतिपदा
दुखों का नाश करने के लिए बुद्ध ने एक विशेष मार्ग दिखाया है जिसे वे अष्टांगिक मार्ग कहते हैं जिसका अनुसरण करके मनुष्य दुखों से छुटकारा पा सकता है।
5 अष्टांगिक मार्ग
गौतम बुद्ध ने दुखों से मुक्ति हेतु निम्न 8 मार्गों का अनुसरण करने का उपदेश दिया है।
i) सम्यक दृष्टि (उचित दृष्टिकोण)
ii) सम्यक संकल्प (धर्म पालन हेतु दृढ संकल्प)
iii) सम्यक वाक (सत्य और मधुर वाणी)
iv) सम्यक कर्मान्त ( श्रेठ कर्म)
v) सम्यक आजीव ( न्याय पूर्ण जीवन यापन)
vi ) सम्यक व्यायाम ( उचित उधम)
vii ) सम्यक स्मृति ( उचित वस्तुओ और तथ्यों का स्मरण)
viii ) सम्यक समाधी ( एकाग्रचित्त ध्यान)
अष्टांगिक मार्ग के 8 विचारों को शील, समाधि, और प्रज्ञा नामक तीन खंडों में वर्गीकृत किया गया है।
6 दस शील
बौद्ध धर्म में व्यक्ति को अपना आचरण सुधारने के लिए दस शीलो का उपदेश दिया गया है।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय्, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, आमोद प्रमोद का त्याग, सुगंधित पदार्थों का त्याग, असमय भोजन का त्याग, कोमल शय्या का त्याग और कामिनी कंचन का त्याग।
7 प्रतित्य समुत्पाद
प्रतित्य समुत्पाद का तात्पर्य है एक वस्तु की प्राप्ति होने पर दूसरे की इच्छा जागृत होना दूसरी वस्तु से फिर तीसरी इच्छा जागृत होना इस प्रकार यह हेतु प्रत्तय का सिद्धांत है वास्तव में चार आर्य सत्य प्रतित्य समुत्पाद पर ही आधारित है।
8 मध्यम प्रतिपदा
बुद्ध धर्म पालन हेतु मध्यम मार्ग अपनाने का उपदेश दिया अर्थात वे ना तो कठोर तप करने का और ना ही भोग विलास करने का समर्थन करते हैं बल्कि सामान्य रूप से अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करने पर ही बल देते हैं।
बौद्ध धर्म की चार सगितियां :–
बौद्ध धर्म से संबंधित यह प्रमुख चार सम्मेलन थे जो विभिन्न कालों में बुद्ध धर्म पर चर्चा करने और समस्याओं को सुलझाने के लिए आयोजित की गई थी।
i) प्रथम संगीति
483 ईसा पूर्व में अजातशत्रु के शासनकाल में राज्य गृह में प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी जिसकी अध्यक्षता महा कश्यप ने की थी इसी संगति में बुद्ध के उपदेशों को लिपिबद्ध किया गया था।
ii ) द्वितीय संगीति
383 ईसा पूर्व में कॉलाशोक के शासनकाल में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था जिसके अध्यक्ष सर्वकामी थे।
इस संगति में बौद्ध धर्म स्थविर् और महा संगिक नामक दो संप्रदायों में बट गया।
iii) तृतीय संगीति
251 ईसा पूर्व में अशोक के शासनकाल में आयोजित इस तृतीय संगति की अध्यक्षता मोगली पुत्र तिस्स ने की थी।
इस संगति में बौद्ध धर्मावलंबियों में उत्पन्न मतभेदों को दूर करने का प्रयास हुआ था
iv) चतुर्थ संगीति
100 ईसवी में कनिष्क के शासन काल में कश्मीर स्थित कुंडल वन में चौथी बौद्ध संगति आयोजित की गई थी जिसके अध्यक्ष वसुमित्र थे।
इस संगति में सगायन के पश्चात बुद्ध की शिक्षाओं को ताम्रपत्र पर खुदवा कर स्तूप में सुरक्षित रख दिया गया। (यह अब तक अज्ञात है कि इन ताम्रपत्र को कहां रखा गया है)
इसी समय बौद्ध धर्म हीनयान और महायान नामक दो संप्रदायों में बट गया महायान मत को मानने वाले बुध को अलौकिक शक्तियों से युक्त मानकर उनकी भव्य प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा अर्चना करते थे जबकि हीनयान मानने वाले बुध को मनुष्य और बौद्ध धर्म का प्रवर्तक मात्र मानते थे ।
कालांतर में वज्रयान नामक एक नवीन संप्रदाय का उदय हुआ जिसके पालक भैरवी चक्र के संस्कार रूप में मंदिरा मांस और मंत्र उच्चारण का पालन करते थे।
इसी वजह से आगे चलकर 84 सिद्धों का सिद्ध मार्ग निकला जो शराब के नशे में मस्त खोपड़ी का प्याला लिए श्मशान या वनों में निवास करते थे।
बौद्ध धर्मग्रंथ :–
बौद्ध धर्म में सबसे प्रमुख धर्म ग्रंथ त्रिपिटक है जिसके अंतर्गत तीन ग्रंथ समूह आते हैं।
1) विनय पिटक (पांच ग्रंथो का संग्रह)
2) सुत्त पिटक ( दीध निकाय, मझीम निकाय्, संयुक्त निकाय,अंगुत्तर निकाय,और खुद्दकनिकाय का संग्रह)
3) अभिधम्म पीटक
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