Sirpur. छत्तीसगढ़ का एक प्राचीन और पुरातात्विक नगर

Sirpur छत्तीसगढ़ का एक प्राचीन और पुरातात्विक नगर है जो प्राचीन काल से कई राजाओं की राजधानी थी इस नगर के पुरा अवशेषों में हिंदू बौद्ध और जैन धर्म के प्रमाण प्राप्त होते हैं ।

संभवत प्राचीन काल में यह छत्तीसगढ़ का सबसे वैभवशाली नगर रहा होगा, इस स्थल से प्राप्त स्तूप और मंदिर अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं।

सोमवंश के बाद आए कलचुरी राजाओं ने अपनी राजधानी Sirpur से रतनपुर हस्तांतरित कर दी जिससे यह नगर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया था।

Sirpur का इतिहास :–

छत्तीसगढ़ के प्राचीन स्थलों में से एक Sirpur अंचल के गौरवशाली अतीत के अनेक अवशेष संजोए हुए हैं आज का यह छोटा सा गांव कभी शरभपूरीय वंश और उसके बाद पांडु वंशीय राजाओं की राजधानी था।

बौद्ध ग्रंथ अवदान शतक के अनुसार महात्मा बुध यहां आए थे, यहां से मिले प्राचीन प्रमाणों जैसे चैत्य, विहार और अनेक बौद्ध मूर्तियां यह सिद्ध करती है कि, यह एक प्राचीन बौद्ध नगरी थी।

चीनी यात्री हेनसांग ने 635 से 640 ईसवी में यहां की यात्रा की थी और किसका यात्रा वृतांत का उल्लेख अपनी पुस्तक में भी किया है।

इतिहास के जानकार विद्वानों के अनुसार महाभारत काल में अर्जुन के पुत्र भब्रुवाहन की राजधानी यह पुरातात्विक स्थल उस समय मणिपुर के नाम से विख्यात थी।

Sirpur पुरातात्विक स्थल 1955- 56 ईसवी में उस समय प्रकाश में आया जब सागर विश्वविद्यालय के डॉ. एम जी दीक्षित के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन का कार्य किया गया, डॉ दीक्षित के अनुसार Sirpur अत्यंत प्राचीन काल से अस्तित्व में था, पांचवी सदी में यहां शरभपूरी वंश के शासकों का शासन था Sirpur से इस वंश के शासकों के ऐसे अभिलेख प्राप्त हुए हैं जो इसे  इनकी की राजधानी प्रमाणित करते हैं।

शरभपूरी वंश के बाद यहां सोमवंशी राजाओं का शासन था इसके बाद इस स्थान की अवनति प्रारंभ हो गई, कलचुरी राजाओं ने सिरपुर के स्थान पर बिलासपुर के निकट तुम्मान को और उसके बाद रतनपुर को अपनी राजधानी बनाया।

रतनपुर का महत्व बढ़ता गया और सिरपुर का ऐतिहासिक वैभवशाली नगर पतन की ओर अग्रसर होता गया और यह इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया।

स्थिति :–

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में Sirpur स्थित है, यह स्थल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 77 किलोमीटर की दूरी पर घने वन क्षेत्र के बीच स्थित है महासमुंद नगर से यदि सिरपुर की दूरी देखें तो वह लगभग 35 किलोमीटर की है।

प्राचीन नाम :–

महाभारत कालीन यह नगर प्राचीन समय से ही विभिन्न नामों से जाना जाता है महाभारत काल में अर्जुन के पुत्र भब्रुवाहन की राजधानी इस स्थान का नाम मणिपुर अथवा चित्र आगद्पुर् था।

बौद्ध उन्नति काल में इसे श्रीपुर और चित्र अंगद पुर के नाम से जाना जाता था वर्तमान में इसे इस स्थल के समीप स्थित ग्राम सिरपुर के नाम से पहचाना जाता है।

Sirpur किस नदी तट पर स्थित है :–

अन्य प्राचीन सभ्यताओं के समान ही Sirpur की प्राचीन सभ्यता भी नदी के किनारे ही फली फूली थी। Sirpur महानदी के किनारे पर स्थित है यह नदी छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी है और छत्तीसगढ़ के सभी तीर्थ स्थल (राजिम , शिवरीनारायण ) इस नदी के किनारे स्थित है इस प्राचीन सभ्यता की उन्नति में इस नदी का विशेष महत्व रहा है।

दर्शनीय स्थल :–

प्राचीन नगरी Sirpur में दर्शनीय स्थलों की भरमार है उनमें से कुछ प्रमुख निम्न है।

Sirpur  बौद्ध बिहार और स्वस्तिक विहार

Sirpur में 2 विहार प्राप्त हुए हैं इनमें से एक अपनी योजना के कारण स्वास्तिक विहार कहा जाता है, दूसरा विहार जहां आनंद प्रभु नामक बौद्ध भिक्षु से संबंधित शिलालेख प्राप्त हुआ है आनंद प्रभु कोठी बिहार नाम से जाना जाता है, यह दोनों इटों से निर्मित है जिनमें भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी स्थित है जो पाषण की बनी हुई है।

वर्ष 1955- 56 में हुए उत्खनन के फल स्वरूप बौद्ध विहार तथा स्वास्तिक विहार प्रकाश में आए थे बौद्ध विहार 14 कक्षाओं से युक्त मुख्य गर्भ गृह में साढ़े छह फुट ऊंची भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित है।

बौद्ध मंदिर के सामने पानी का कुंड तथा चारों ओर बौद्ध भिक्षुओ की कुटिया बनी हुई है, इनका निर्माण लंबी ईटों तथा लंबे-लंबे पाषण खंडों से किया गया है निर्माण की तकनीक से ऐसा लगता है कि यह दो मंजिला रहा होगा, स्वास्तिक विहार भी बौद्ध विहार का लघु रूप प्रतीत होता है।

बौद्ध विहार का निर्माण छठवीं शताब्दी में महाशिव गुप्त के शासन काल (595 से 655 ईसवी) में बौद्ध भिक्षु आनंद प्रभु द्वारा कराए जाने की जानकारी मिलती है।

ह्वेन्सांग की यात्रा

प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग 639 ईसवी में कलिंग से होते हुए दक्षिण कौशल की राजधानी Sirpur पहुंचा था, उसने अपनी यात्रा वृतांत में यहां का रोचक वर्णन किया है किंतु उसने यहां के राजा एवं राजवंशों की चर्चा अपनी पुस्तक में नहीं की है।

उसने यहां अशोक द्वारा स्तूप बनाए जाने का उल्लेख किया है यदि विस्तृत उत्खनन का कार्य किया जाए तो संभव है कि यहां मौर्य और बौद्ध कालीन और पूरा अवशेष प्राप्त होंगे।

लक्षमण मंदिर

पाण्डुवंश (सोमवंश) कि राजा हर्ष गुप्त का विवाह मगध के गोखरी राजा सूर्य वर्मा की बेटी वासटा देवी सिंह हुआ था वह वैष्णव धर्म मानने वाली थी, पति के स्वर्गवास के बाद उसकी स्मृति को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए राजमाता वासटा ने सिरपुर में हरी (विष्णु ) का मंदिर बनवाया जो आज लक्ष्मण मंदिर के नाम से जाना जाता है।

इस समय इसके पुत्र महा शिव गुप्त बालार्जुन के शासनकाल (595 से 655 ईसवी) में लाल ईंटों द्वारा निर्मित यह मंदिर सिरपुर का विशेष आकर्षण है, और यह उस काल के स्थापत्य कला में एक विशिष्ट स्थान रखता है ईटों में ही विभिन्न देवी-देवताओं, पशु, कमल पुष्पों, की सुंदर व स्पष्ट आकृतियां मंदिर के ऊपर से नीचे तक उकेरी गई है।

ईटों पर किसी किस्म का प्लास्टर नहीं किया गया है इसके बावजूद सैकड़ों वर्षों से प्रकृति के थपेड़ों को सहते हुए यह मंदिर लगभग वास्तविक स्थिति में ही बना हुआ है मंदिर के गर्भ गृह में शेषनाग युक्त लक्ष्मण जी की पत्थर से निर्मित प्रतिमा रखी हुई है संभवत इसलिए इसे लक्ष्मण मंदिर कहा जाने लगा।

गर्भ ग्रह का प्रवेश द्वार गुप्तोत्तर कला का सुंदर उदाहरण है, इसमें विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा कृष्ण लीला का अंकन है इसके ललाट भिंड में अनंत शेष शाही विष्णु का अंकन इसे निश्चित रूप से विष्णु का मंदिर सिद्ध करता है ।

सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर शिखर वास्तु के निर्माण की दृष्टि से संक्रमण काल का माना गया है गुप्तकालीन समतल छतों के मंदिरों तथा मध्ययुगीन उन्नत शिखर युक्त मंदिरों के बीच अर्ध विकसित शिखर वाले मंदिर का यह अत्यंत महत्वपूर्ण उदाहरण है।

ईटों के मंदिर निर्माण की परंपरा समाप्त होने के पश्चात मंदिर निर्माण की दृष्टि से एक अंतराल यहां दिखाई पड़ता है वस्तुतः सोमवंशी शासकों के पतन के बाद और कलचुरी सत्ता की स्थापना तक इस क्षेत्र में किसी

शक्तिशाली राजवंश की सत्ता नहीं थी और इसका प्रभाव साहित्य संस्कृति के साथ ही साथ कला पर भी दिखाई देता है।

गंधेश्वर महादेव मंदिर

गंधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना का समय आठवीं शताब्दी का माना जाता है इसका जीर्णोद्धार चिमनजी भोंसले द्वारा कराया गया था यहां काले पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है।

इस मंदिर के प्रांगण में भगवान बुद्ध, जैन प्रतिमा, विष्णु, महिषासुरमर्दिनि, तथा नटराज की प्रतिमाएं दृष्टिगोचर होती है जो तत्कालीन धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है।

Sirpur संग्रहालय

लक्ष्मण मंदिर के पीछे भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा एक संग्रहालय की स्थापना की गई है इसमें Sirpur से प्राप्त लगभग 100 मूर्तियां तथा कलाकृतियों को संरक्षित किया गया है यह मूर्तियां और कलाकृतियां शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन आदि संप्रदायों से संबंधित है।

प्रतिवर्ष बौद्ध पूर्णिमा के अवसर पर यहां Sirpur महोत्सव का आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है साथ ही प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के अवसर पर यहां एक मेला भी लगता है जहां सारे प्रदेश के अलावा देसी विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं।

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