Kondagaon. एशिया का सबसे बड़ा लाग डिपो।

Kondagaon का इतिहास  :–

जिले के रूप में Kondagaon का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है 15 अगस्त 2011 को इसके निर्माण की घोषणा की गई थी और 1 जनवरी 2012 को इसकी स्थापना हुई।

कोंडागांव शब्द कांदानार से आया है कंदमूल की लताओं को कांदानार कहा जाता है, ऐसा अनुमान है की प्रारंभिक वसाहट इस नगर की जहां हुई थी वहां इस तरह की लताओं का व्यापक विस्तार था।

अंग्रेजों के शासन काल के दौरान 1943 में Kondagaon को तहसील का दर्जा प्राप्त हुआ था इसके पूर्व Kondagaon बड़े डोंगर तहसील के अंतर्गत आता था और पुलिस थाना भी बड़े डोंगर था।

वर्ष 1955 में दंडकारण्य प्रोजेक्ट जो उड़ीसा और बस्तर के इस क्षेत्र में फैला हुआ था पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों को बसाने का प्रयास किया गया।

वर्ष 1965 में कोडागांव को राजस्व अनुभाग घोषित किया गया और वर्ष 1975 में कोडागांव नगर में नगर पालिका परिषद की स्थापना की गई।

KONDAGAON जिले के आंकड़े :–

1

संभाग बस्तर
2 राजस्व अनुभाग

2 ( कोंडागाव केशकाल )

3

तहसील  7 ( ( कोंडागाव, केशकाल, फरसगाव, माकड़ी, बड़े राजपुर, धनोरा, मर्दापाल)
4 क्षेत्रफल

7768 वर्ग किलोमीटर

5

जनसंख्या 5,78,326
6 जनपद पंचायत

5 (कोंडागाव, केशकाल, फरसगाव, माकड़ी, बड़े राजपुर,)

7

ग्राम पंचायत 263
8 गांवो की संख्या

529

9

नगर  पंचायत 3 ( केशकाल, फरसगाव, विश्रामपुरी )
10 साक्षारता

58 %

11

जन घनत्व 74  वयक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
12 लिंगानुपात

1002

13

विधानसभा 1  ( आरक्षित S.T. )
14 भाषा

हिन्दी

15

बोली

छत्तीसगढ़ी, हल्बी

 

Kondagaon की लोकेशन :–

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दक्षिण दिशा में 230 किलोमीटर की दूरी पर Kondagaon नगर स्थित है कोंडागांव जिले के उत्तर में कांकेर जिला पश्चिम में नारायणपुर जिला और पूर्व में उड़ीसा राज्य जबकि दक्षिण में बस्तर जिला स्थित है।

Kondagaon जिला दंडकारण्य पठार के उत्तरी भाग में स्थित है राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 पर स्थित Kondagaon नगर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है छत्तीसगढ़ के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित बस्तर संभाग के 7 जिलों में से यह एक जिला है

Kondagaon किस नदी के किनारे स्थित है :–

कोंडागांव नगर नारंगी नदी के बाएं किनारे पर स्थित है यह नदी नगर के उत्तरी छोर से होकर बहती है और यह नारंगी नदी बस्तर संभाग की सबसे प्रमुख इंद्रावती नदी की सहायक नदी है

Kondagaon मौसम और जलवायु :–

Kondagaon उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत आता है दंडकारण्य पठार के उत्तरी छोर पर स्थित है समस्त बस्तर संभाग में सबसे अच्छा मौसम कोंडागांव जिले का ही होता है।

गर्मियों में तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है और गर्मियों का मौसम मार्च से जून के मध्य तक रहता है।

15 जून से मानसूनी बारिश प्रारंभ होती है जो सितंबर के अंत तक होती है बस्तर क्षेत्र में व्यापक बारिश होती है और कोंडागांव क्षेत्र में भी पर्याप्त बारिश बरसात के दिनों में होती है।

औसत वर्षा 1205.65 मिली मीटर होती है।

अक्टूबर से फरवरी के मध्य शीत ऋतु का सामान्य प्रभाव यहां दिखाई देता है इस प्रकार कोंडागांव जिले का मौसम वर्षभर सुहाना और सम बना रहता है।

Kondagaon परिवहन के साधन :–

परिवहन के मामले में Kondagaon जिला पिछड़ा हुआ है परिवहन का एकमात्र साधन सड़क मार्ग ही उपलब्ध है राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 कोंडागांव जिले और नगर से होकर गुजरती है

इस जिले में रेल और हवाई मार्ग का सर्वथा अभाव है।

सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा संभाग मुख्यालय जगदलपुर में स्थित है। वर्तमान में दुर्ग के दल्ली राजहरा से जगदलपुर तक रेल लाइन का निर्माण कार्य प्रगति पर है

इस मार्ग के बन जाने के बाद Kondagaon जिला रेल मार्ग से जुड़ जाएगा।

कृषि :–

कृषि के मामले में  Kondagaon जिला अत्यंत पिछड़ा हुआ है सिंचाई की सुविधाएं ना के बराबर उपलब्ध है, मानसून के दौरान धान और मक्के की फसल उगाई जाती है जिले का एक बड़ा भूभाग वनों से आच्छादित है इसलिए कृषि भूमि कम है

धान और मक्के के अलावा मिलेट मोटे अनाज (कोदो कूटकी मडिया) का भी उत्पादन होता है।

साल वनों के पेड़ों की जड़ में जमीन के अंदर बरसात के मौसम में पाए जाने वाला बोड़ा (बटन मशरूम) यहां बहुतायत में होता है और यहां पाया जाने वाला बोड़ा सबसे अच्छी क्वालिटी का होता है।

उद्योग :–

उद्योगों के मामले में पूरा बस्तर संभाग ही पिछड़ा हुआ है और कोंडागांव जिला इसका अपवाद नहीं है, जिले में कुछ धान मिल स्थित है, साथ ही पोहा बनाने के छोटे-छोटे कारखाने भी है।

शा मिल सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र में यहां अल्प संख्या में है। जहां लकड़ियों की चिराई होती है।

प्राकृतिक वनस्पति :–

इस जिले में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं, पूरा जिला प्राकृतिक वनस्पति और वनों से आच्छादित है साल, सागौन, हल्दू, तेंदू, चार, आम आदि की वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं।

बस्तर संभाग को साल वनों का दीप कहा जाता है जो इसी कोंडागांव जिले के कारण है क्योंकि सर्वोत्तम किस्म का साल वृक्ष केशकाल घाटी (कोंडागांव जिला) में ही पाए जाते हैं।

Kondagaon नगर :–

कोंडागांव नगर की बसाहट बिना किसी योजना के है, फिर भी नगर में चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं जो नगर के विभिन्न भागों को राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 से जोड़ती है।

रायपुर से दक्षिण की ओर बसे लगभग सभी नगरों की बसाहट सड़क के दोनों ओर लंबाई में राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ पाई जाती हैं इस मार्ग में एकमात्र नगर कोंडागांव हुई है, जिसकी अधिकतम जनसंख्या मुख्य सड़क से कुछ हटकर बसी हुई है।

संभवत इसका एक कारण दंडकारण्य प्रोजेक्ट के अंतर्गत बसाहट के लिए बनाई गई योजना और बस्तियां भी हो सकती है।  नगर में मुख्यतः तीन तालाब है जो निस्तारीय कार्य के लिए प्रयुक्त होते हैं ।

इनमें से 2 तालाबों को राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के किनारे ही देखा जा सकता है।

कोंडागांव नगर असमतल भूमि पर बसा हुआ है नगर के बाहर चारों ओर साल तेंदू और सागौन के वनों को देखा जा सकता है जो इस नगर को हरियाली से परिपूर्ण कर देते हैं।

 

kondagoan

Kondagaon की प्रसिद्धि के कारण :–

कोंडागांव जिले के रूप में अभी अपनी पहचान बना रहा है वैसे अन्य कई कारणों से कोंडागांव जिला बनने से पहले से ही विख्यात है।

1) एशिया का सबसे बड़ा लॉग डिपो।
2) जनजातीय कलाएं।
3) पर्यटन स्थल।

1) एशिया का सबसे बड़ा लॉग डिपो

Kondagaon नगर के दक्षिणी भाग में एशिया का सबसे बड़ा लॉग डिपो मौजूद था।  80- 90 के दशक में इस डीपों का एरिया कई किलोमीटर में फैला हुआ था ।

वर्तमान में जंगलों की कटाई पर प्रतिबंध लगने के बाद इस डिपों का वह स्थान अब नहीं है फिर भी इस स्थान पर लकड़ियों के लट्ठों का अंबार आज भी देखा जा सकता है।

इसी डिपो के अंदर एक आरा मिल (शा मिल) भी है। 80-90 के दशक में इस शा मिल से बड़ी संख्या में रेलवे को लकड़ी के स्लीपर की सप्लाई की जाती थी।

साथ ही इसी शा मिल में एक और यूनिट की स्थापना भी की गई थी जो भारत की प्रथम गैर बिजली से चलने वाली शा मिल थी इसमें मिल से निकलने वाले वेस्ट (लकड़ी के बेकार टुकड़ों) से ऊर्जा प्राप्त करके इसे चलाया जाता था।

इसी डिपो के अंदर छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा आक्शन हाल भी मौजूद है, जिसे इकोसिस्टम के आधार पर बनाया गया है एक विशेष स्थान पर खड़े होकर बोलने पर आवाज पूरे हॉल में गूंजती है और किसी भी प्रकार के लाउडस्पीकर की आवश्यकता नहीं होती है।

जनजाति लोक कलाएं

बस्तर और कोंडागांव को छत्तीसगढ़ की शिल्प राजधानी कहे तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी । मिट्टी शिल्प, कास्ट शिल्प, बांस शिल्प, धातु कला, लौह शिल्प, पत्थर शिल्प में यहां के कलाकारों की ख्याति भारत में ही नहीं विदेशों तक फैली हुई है।

घढ़वा कला

कोंडागांव जिले की प्रसिद्ध घढ़वा कला की तकनीक प्राचीन और परंपरागत है इसमें भ्रष्ट मोम पद्धति (Lost Wax Method) का प्रयोग होता है पीतल, कांसा और मोम से बने घढ़वा कला के कलाकारों की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल चुकी है।

इस से निर्मित मूर्तियां अत्यंत आकर्षक होती हैं जो सजावट के लिए विशेष तौर पर पसंद की जाती है।

मिट्टी से विभिन्न मूर्तियां और खिलौनों का निर्माण होता है कास्ट शिल्प में युवा गृहो घोटूल के खंभे मूर्तियां देवी झूले कलात्मक मृतक के स्तंभ तीर धनुष कुल्हाड़ी बनाए जाते हैं।

3) पर्यटन स्थल

कोंडागांव जिले में कई मनमोहक पर्यटन स्थल मौजूद है कुछ तक पहुंच मार्ग सरल है और  कुछ का दुर्गम, मुख्य पर्यटन स्थल  जिले में मौजूद है।

केशकाल घाटी

इस घाटी सड़क मार्ग का निर्माण 1905 में हुआ था रायपुर से कोंडागांव जिले को कनेक्ट करने वाली यह घाटी कांकेर के 30 किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित है यहीं से दंडकारण्य का पठार आरंभ होता है जो ऊंचाई पर स्थित है इसी ऊंचाई पर चढ़ने के लिए पहाड़ी के ढलानों पर सड़क का निर्माण किया गया है ।

4 किलोमीटर लंबी घाटी में कुल 12 मोड है यह क्षेत्र घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है इस घाटी का दक्षिणी हिस्सा दंडकारण्य पठार की शुरुआत है।

जटायु शिला

नाम से ही स्पष्ट है यह वही स्थान है जहां माता सीता का हरण करके ले जा रहे रावण और पक्षीराज जटायु के मध्य युद्ध हुआ था, यह स्थान फरसगांव राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 के मुख्य मार्ग से 3 किलोमीटर अंदर की ओर स्थित है।

कटुल कासा जलप्रपात होनहेडो

ग्राम पंचायत होनहेड से 1 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों के बीच यह जलप्रपात स्थित है 80 फीट की ऊंचाई से पानी पत्थरों से लुढ़कते हुए तेज आवाज के साथ नीचे गिरता है।

मझिन गढ़ जलप्रपात

जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में स्थित यह जलप्रपात है इसे इको टूरिज्म के लिए प्रसिद्धि प्राप्त हो रही है।

कोंडागांव जिले के मेला और मड़ई :–

बस्तर क्षेत्र में मडई मेलों का विशेष महत्व है कोंडागांव का मेला इस क्षेत्र में अत्यंत प्रसिद्ध है । होली से 15 दिन पूर्व से शुरू होकर होली तक लगने वाले इस मेले में देसी विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं और इस मेले में आदिवासी संस्कृति की झलक देखी जा सकती है।

इसके अलावा आस पास के क्षेत्रों मे भी मेलों का आयोजन होता है

दशहरा का मेला

पूरे बस्तर संभाग में कोन्डागांव एकमात्र ऐसा स्थान है जहां दशहरे के अवसर पर रावण दहन का कार्यक्रम संपन्न होता है।
दशहरे के अवसर पर 1 दिन के मेले का आयोजन होता है इस दौरान रावण मेघनाथ और कुंभकरण के बड़े आकार के पुतले बनाए जाते हैं और उनका दहन होता है जिसे देखने पूरे बस्तर संभाग से लोग आते हैं।

कोंडागांव जिले में नक्सलवाद का प्रभाव :–

कोंडागांव जिला भी छत्तीसगढ़ के उन जिलों में सम्मिलित है, जो नक्सल गतिविधियों से सर्वाधिक प्रभावित हैं वैसे तो संपूर्ण जिले में नक्सलियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, लेकिन कोंडागांव जिले का मर्दापाल तहसीलन क्सल गतिविधियों से सर्वाधिक प्रभावित है।

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