Dantewada. ग्रीनीज़ वर्ड रिकॉर्ड होल्डर जिला।

Dantewada इतिहास :–

Dantewada अथवा दंडकारण्य के इस क्षेत्र में तीसरी के आठवीं शताब्दी तक नल वंश का शासन था इस वंश के प्रथम शासक वाराह राज थे।

दक्षिण कौशल में कलचुरी वंश का शासन काल था, उसी समय बस्तर छिंदक नाग वंश के राजा का शासन था, यह नागवंशी चक्रकोट के राजा के नाम से विख्यात थे।

बस्तर के छिंदक नाग वंश के प्रथम राजा का नाम नृपति भूषण का उल्लेख एर्राकोट से प्राप्त शक संवत 945 अर्थात 1023 ईस्वी के एक तेलुगु शिलालेख में मिलता है।

बस्तर में नागवंशीयों के पश्चात काकतीय वंश का राज्य स्थापित हुआ इस वंश के राजा मूलत चालूक्य् थे, इनका शासन का इस क्षेत्र में सबसे लंबे समय तक था।

काकतीय वंश के बाद  मराठों के उत्कर्ष काल में बस्तर क्षेत्र भी मराठा शासक भोंसले के अधीन हो गया था, दरिया देव द्वारा संधि पत्र पर 6 अप्रैल 1778 ईस्वी को हस्ताक्षर कर देने से बस्तर नागपुर के अधीन रतनपुर

राज्य के अंतर्गत चला गया और इसी समय से बस्तर छत्तीसगढ़ का अंग बना।

डलहौजी की हड़प नीति के अंतर्गत 1854 ईसवी में नागपुर राज्य के रघुजी तृतीय के निसंतान मृत्यु होने के कारण ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया नागपुर राज्य के अधीन छत्तीसगढ़ के साथ बस्तर भी 1854 में अंग्रेजी साम्राज्य का अंग स्वाधीनता तक बना रहा।

स्वाधीनता के बाद बस्तर जिला का एक तहसील यह दंतेवाड़ा वर्ष 1998 तक था।

25 मई 1998 को Dantewada को बस्तर से अलग एक जिला बना दिया गया।

Dantewada  location / स्थिति :–

Dantewada जिला छत्तीसगढ़ के सुदूर दक्षिणी भाग में स्थित है उत्तर दिशा में नारायणपुर जिला और कोंडागांव जिला है पूर्व में बस्तर और दक्षिण में सुकमा और पश्चिम में बीजापुर जिले स्थित है।

बस्तर संभाग के 7 जिलों में दंतेवाड़ा ही मात्र एक ऐसा जिला है जिसकी सीमाएं अन्य किसी पड़ोसी राज्य से नहीं लगती है, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 390 किलोमीटर और बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 90 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम दिशा में दंतेवाड़ा जिला स्थित है।

दंतेवाड़ा जिले की जनजातियां :–

दंतेवाड़ा एक जनजाति बाहुल्य वाला जिला है जिले की कुल आबादी का 72% जनसंख्या आदिवासी है, प्रमुख आदिवासी समुदायों में माडिया, धुरवा, मुरिया, हलबा, भत्रा, गोड़ आदि यहां पर निवास करते हैं और इनकी

संस्कृति और रहन-सहन पर दक्षिण भारतीय प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।

Dntewada  जिले के आंकड़े :–

S.।N.

1

संभाग बस्तर
2 गठन

25 May 1998

3

तहसील  6 ( दंतेवाड़ा, गीदम, बारसुर, कटेकल्यान , कूआकोंडा, बड़े बचेली )
4 क्षेत्रफल

3410.50 वर्ग किलोमीटर 

5

जनसंख्या 2,83,479
6 नगर पालिका

3 ( दंतेवाड़ा, गीदम, बड़े बचेली )

7

विकासखंड 4 ( दंतेवाड़ा, गीदम,  कटेकल्यान , कूआकोंडा, )
8 ग्राम पंचायत

143

9

गांवो की संख्या 239
10 नगर  पंचायत

2 ( बारसुर, कटेकल्यान )

11

साक्षारता 42.12 %
12 जन घनत्व

83 वयक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर

13

लिंगानुपात 1023
14 विधानसभा

1 आरक्षित ( S.T. )

15

भाषा हिन्दी
16 बोली

गोंडि

Dantewada  की  नदीयां :–

Dantewada नगर शंखिनी डंकिनी नदियों के संगम पर बसा हुआ है, यह दोनों नदियां इंद्रावती नदी की सहायक नदियां हैं, इस प्रकार इंद्रावती नदी भी इस् दंतेवाडा जिले में प्रवाहित होती है जो गोदावरी नदी की सहायक है।

Dantewada  की  जलवायु/ मौसम :–

Dantewada जिला उष्णकटिबंधीय उष्ण जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत आता है प्रायद्वीपीय भारत के मैदान में यह स्थित है इसलिए गर्मी के महीने अधिक होते हैं।

मार्च से मध्य जून तक भीषण गर्मी होती है तापमान अधिकतम 42 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। बरसात का मौसम 15 जून से सितंबर के अंत तक रहता है व्यापक मात्रा में बारिश होती है (लगभग 1024 मिलीमीटर वार्षिक) अक्टूबर से फरवरी तक सामान्य शीत ऋतु का प्रभाव होता है।

दंतेवाड़ा जिले के बचेली तहसील का मौसम दंतेवाड़ा के बाकी इलाकों से कुछ अलग है क्योंकि यह क्षेत्र पर्वत श्रृंखलाओं के ऊपर स्थित है जो समुद्र सतह से 4160 फीट ऊंचे भूभाग है इसलिए यहां का मौसम गर्मियों में कम गर्म और सर्दियों में अत्यंत ठंडा होता है, जो दंतेवाड़ा जिले के अन्य इलाकों से पूरी तरह से भिन्न है।

Dantewada  प्राकृतिक वनस्पति :–

पूरे Dantewada जिले में उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती मानसूनी वन पाए जाते हैं। इस जिले में सागौन, साल, तेंदू, हल्दु,महुआ, ताड़ आदि के वृक्ष पाए जाते हैं । प्राकृतिक वनों से आच्छादित यह जिला देश के उन जिलों में सम्मिलित है जिनमें कुल भूभाग का वन क्षेत्र सर्वाधिक है ।

Dantewada में  कृषि :–

कृषि के मामले में समस्त बस्तर संभाग ही पिछड़ा हुआ है और Dantewada जिला इसका अपवाद नहीं है, सिंचाई की सुविधाओं का सर्वथा अभाव है, क्षेत्र की मिट्टी लाल दोमट प्रकार की है जो अधिक उपजाऊ नहीं होती है।

मानसून के दौरान अल्प मात्रा में धान मक्का और मोटे अनाजों की खेती होती है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था जंगली उत्पाद पर निर्भर है जंगलों से तेंदूपत्ता, चार ,चिरौंजी ,इमली और कंदमूल प्राप्त होता है।

Dantewada में  उद्योग :–

उद्योगों के मामले में दंतेवाड़ा जिला अत्यंत पिछड़ा हुआ है सरकारी क्षेत्र एनएमडीसी के अंतर्गत बैलाडीला में लौह उत्खनन के लिए संयंत्र लगाए गए हैं, जहां स्थानीय लोगों को भी रोजगार प्राप्त हो रहा है।

वर्तमान में राज्य सरकार के प्रोत्साहन और सहयोग से दंतेवाड़ा में पावरलूम की स्थापना की गई है इसके अतिरिक्त अन्य उद्योगों का पूर्णतया अभाव है।

खनिज :–

Dantewada जिला खनिज के मामले में अत्यंत समृद्ध है लोह् आयस्क, टिन, कोरंडम, ग्रेफाइट, चूना पत्थर, संगमरमर आदि प्रमुख खनिज यहां पाए जाते हैं।

दंतेवाड़ा जिले का बैलाडीला क्षेत्र लोह अयस्क के निक्षेपो (भंडार) के मामले में देश में सबसे बड़े भंडारों में से एक है, वर्ष 1968 से सरकारी क्षेत्र की कंपनी एनएमडीसी द्वारा यहां से लौह अयस्क का खनन किया जा रहा है।

यहां की खानों से हेमेटाइट प्रकार का अयस्क प्राप्त होता है जिस में लोहे की मात्रा अधिकतम 70% तक हो सकती है। यहां से उत्खनित होने वाला लोह् अयस्क जापान को निर्यात किया जाता है ।

इसके अतिरिक्त विशाखापट्टनम लोह् अयस्क संयंत्र को भी लोह् अयस्क की सप्लाई यहां से होती है इसके अतिरिक्त रायपुर की रोलिंग फैक्ट्रियां भी यही बैलाडीला से ही लोह आयस्क प्राप्त करते हैं।

इसके अलावा कोरंडम एक तरह का कीमती पत्थर है जिसे आभूषण और सजावटी सामान बनाने हेतु प्रयोग में लाया जाता है।

एक अन्य महत्वपूर्ण खनिज टिन भी है जिसका प्रयोग समुद्र में चलने वाली नाव के तल को जंग से बचाने के लिए होता  है।

पर्यटन स्थल :–

खनिजों के साथ ही पर्यटन के क्षेत्र में दंतेवाड़ा जिला अत्यंत समृद्ध है लेकिन दंतेवाड़ा जिले के ज्यादातर पर्यटन स्थलों को ख्याति प्राप्त नहीं हुई है जिसके वे हकदार हैं कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल निम्न है।

माता दंतेश्वरी का मंदिर

समस्त बस्तर क्षेत्र में सर्वाधिक धार्मिक विश्वास एवं श्रद्धा की प्रतीक का क्योंकि आराध्य दंतेश्वरी देवी हैं प्रथम काकतीय राजा अन्नम देव (1313 से 1358 ईस्वी) ने ताराला ग्राम में दंतेश्वरी देवी का मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर 14 सदी में निर्मित कराया था। जन श्रुतियों के अनुसार दंतेश्वरी देवी बालिका के रूप में राजा के साथ ही यहां आई थी।

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार माता सती के 52 शक्तिपीठ में से एक दंतेवाड़ा नगर में स्थित है जब माता सती की 52 अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे तो इंन स्थानों पर शक्ति पीठो का निर्माण हुआ यहां पर माता के दांत गिरे थे इसलिए इस का नाम दंतेवाड़ा पड़ा।

स्थापित मंदिर के गर्भ गृह में माता दंतेश्वरी की प्रतिमा है कार्तिक नवरात्र के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन यहां मंदिर में होता है 9 दिनों तक चलने वाले मेले में देश-विदेश और समस्त बस्तर संभाग से लोग माता का दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने यहां आते हैं।

ढोलकल गणेश

ढोलकल गणेश

यदि आप भगवान गणेश के दर्शन के साथ ही ट्रैकिंग का भी आनंद उठाना चाहते हैं तो, ढोलकल गणेश आपकी इच्छा पूरी कर सकते हैं।

दंतेवाड़ा में बैलाडीला पहाड़ी में 3000 फिट की ऊंचाई पर भगवान गणेश की 3 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है ऐसा माना जाता है कि, 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच नागवंश के दौरान यह मूर्ति इस स्थान पर स्थापित की गई थी,

यह स्थान दंतेवाड़ा से 13 किलोमीटर दूर स्थित है और पहाड़ी पर स्थित गणपति के दर्शन के लिए पहाड़ी के ऊपर ट्रैकिंग करते हुए जाना पड़ता है, जो अत्यंत कठिन मार्ग है।

बारसुर

दंतेवाड़ा नगर से लगभग 40 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित धार्मिक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से दंतेवाड़ा जिला और बस्तर संभाग का यह महत्वपूर्ण स्थल बारसुर 11 वीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ में नाग वंश के बस्तर में अभ्युदय पर उनकी राजधानी बना था।

उस समय के प्राप्त अभिलेखों से ज्ञात होता है कि 11वीं शताब्दी में इस क्षेत्र को चित्रकूट या भ्रमर कोट कहा जाता था बारसूर में नाग युगीन अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल में धर्म दर्शन तथा स्थापत्य कला की अत्यधिक उन्नति हुई थी, ऐसा मानना है कि केवल बारसूर में ही 147 मंदिर एवं इतने ही तालाब थे।

किंतु आज यहां नाग युगीन तीन मंदिर मामा भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर, चंद्रादित्यईश्वर मंदिर पूरी तरह से अच्छी स्थिति में विद्यमान है वही पुराने मंदिरों के खंडहर आज भी बारसूर में देखे जा सकते हैं।

इस पुरातत्विक और ऐतिहासिक नगरी के अलावा बारसूर में बोधघाट परियोजना के अवशेष भी देखे जा सकते हैं बहुत देसी परियोजना आज ठंडे बस्ते में चली गई है लेकिन उस समय के निर्मित चौड़ी चौड़ी सड़कें और बड़े पुल के अवशेष आज भी बारसूर में देखे जा सकते हैं।

बैलाडीला

यह दंतेवाड़ा जिले की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में दंतेवाड़ा नगर से 50 किलोमीटर दूर स्थित है यह भाग समुद्र तल से 4160 फीट ऊंचे भूभाग पर स्थित है, बैलाडीला में विश्व प्रसिद्ध लौह अयस्क की खदानें हैं, यहां पर्यटन के लिए कई स्थल मौजूद हैं पहाड़ों के ऊपर स्थित आकाश नगर पर्यटकों की पहली पसंद होता है।

छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची पर्वत चोटी नंदी राज :–

दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला में स्थित नंदी राज पर्वत को वर्ष 2022 तक बस्तर की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था लेकिन वर्ष 2022 में सर्वे ऑफ इंडिया ने नंदी राज पर्वत (1267 मीटर) को छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची पर्वत चोटी घोषित की है इसके पूर्व गौर लाटा चोटी को छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था जिसकी ऊंचाई 1244 मीटर है।

परिवहन के साधन / पहुँच मार्ग  :–

दंतेवाड़ा जिला परिवहन के साधनों के मामले में अत्यंत पिछड़ा हुआ है।

सडक मार्ग

दंतेवाड़ा जिले में मुख्यतः दो राष्ट्रीय राजमार्ग है पहला जगदलपुर से निजामाबाद के लिए जाने वाला नेशनल हाईवे नंबर 63 स्थित है, और दूसरा हाईवे जो छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग है वह गीदम से दंतेवाड़ा तक है जो 163 A नंबर का है जिसकी कुल लंबाई 12 किलोमीटर मात्र है।

रेल मार्ग

दंतेवाड़ा नगर में रेलवे स्टेशन मौजूद है यह रेल् दंतेवाड़ा जिले को आंध्र प्रदेश के एक प्रमुख शहर विशाखापट्टनम से जोड़ती है।इस प्रकार दंतेवाड़ा जिले में रेल की सुविधा उपलब्ध है।

हवाई मार्ग

दंतेवाड़ा जिले में हवाई मार्ग का सर्वथा अभाव है सबसे नजदीकी हवाई अड्डा संभाग मुख्यालय जगदलपुर में स्थित है जो 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

दंतेवाड़ा जिले ने बनाया ग्रीनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड :–

वर्ष 2022 में दंतेवाड़ा जिला उस समय सुर्खियों में आया जब दंतेश्वरी माता को 11000 मीटर ( 11 किलोमीटर) लंबी चुनरी अर्पित करके गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया गया।

दंतेवाड़ा में स्थित छत्तीसगढ़ की पहली गारमेंट फैक्ट्री डनेक्स में काम करने वाली महिलाओं द्वारा यह चुनरी तैयार की गई थी। इसके पहले सबसे लंबी चुनरी का रिकॉर्ड 8 किलोमीटर का था जो मध्यप्रदेश में नर्मदा माता मंदिर में चढ़ाई गई थी।

नक्सल प्रभाव :–

Dantewada जिला छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों का केंद्र रहा है देश के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, कांकेर और नारायणपुर है।

नक्सलियों का प्रभाव होने का प्रमुख कारण इस क्षेत्र में जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ होना है, जिले के अधिकांश भाग में आवागमन के साधन रोड आदि का अभाव है, नक्सली वारदात के बाद जंगलों और दुर्गम

पहाड़ियों में जाकर छिप जाते हैं। 80 90 के दशक से यहां नक्सलियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जो आज भी हत्या अवैध वसूली आदि के काम में अनवरत लगे हुए हैं, हालांकि राज्य और केंद्र सरकारों के प्रयास से नक्सली गतिविधियों में कुछ कमी भी आई है।

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