Jwalamukhi | भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी कहां है ?

Jwalamukhi kise kahate hain :–

Jwalamukhi दो शब्दों के मेल से बना है, ज्वाला और मुखी ज्वाला का शाब्दिक अर्थ होता है आग, और मुखी का शाब्दिक अर्थ है मुंह, तो ज्वालामुखी का शाब्दिक अर्थ हुआ आग उगलने वाला मुंह |

                    Jwalamukhi पृथ्वी की सतह से कुछ ऊपर उठे हुए उभार होते हैं जैसा कि एक पर्वत का होता है जिनमें से गैस लावा जलवाष्प और चट्टान निकलती है |

पृथ्वी के अंदर अत्यंत दबाव के साथ यह पदार्थ आसमान की ओर धकेले जाते हैं धूल के बादल और राख कई किलोमीटर तक आसमान में फैल जाते हैं   Jwalamukhi से लावा निकलने की क्रिया दो प्रकार से होती है |

I ) पृथ्वी के आंतरिक परत में मैग्मा और  लावा के फैलने और शीतल होकर पत्थरों में तब्दील होने की प्रक्रिया जिसमें लावा पृथ्वी के ऊपर ना आकर पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे ही जमा हो जाता है।

इस प्रक्रिया के फलस्वरूप बैथोलिथ, फेकोलिथ, लोपोलिथ सिल  डाइक  नाम की शिलाओं का निर्माण होता है |

Ii ) पृथ्वी की सतह से ऊपर उठे हुए भाग से लावा, कंकड़, पत्थर बाहरी सतह पर बहते और फैल जाते  है |

Jwalamukhi kya hai :–

       पृथ्वी की संरचना को मोटे तौर पर तीन स्तरों में बांटा गया है सबसे ऊपरी परत सियाल ( Silica + Aluminium.)  है दूसरी परत सीमा ( Silica + Magnesium ) और तीसरी परत जो सबसे आंतरिक है को नीफे ( Nickel + Fermium )कहते है।

  इसमें पृथ्वी के सबसे अंतरिक् परत द्रव्य ( लावा और मैग्मा ) रूप में है, जबकि दूसरी परत का नीचे से मिलने वाला भाग भी द्रव रूप में ही है ।

                   पृथ्वी के आंतरिक भाग में लावा में हलचल होती है तो, वह उद्गार के रूप में पृथ्वी की सतह पर दृश्य मांन होती है ज्वालामुखी उद्गार के निम्न कारण होते हैं ।

         i) भूगर्भ में तापमान की वृद्धि या कमी के कारण चट्टानों का पिघलना और  सिकुड़ना |

        Ii ) पृथ्वी की सतह पर स्थित जल के  आंतरिक रिसाव से जलवाष्प का निर्माण होना |

        iii)  प्लेट टेक्टोनिक  के प्रभाव से पृथ्वी के अंतरिक् भाग में अत्यधिक दबाव उत्पन्न होने से |

        iv) गर्म लावा और गैस ठंडा होने का प्रयास करती हैं जिससे उनका प्रवाह पृथ्वी की सतह की ओर होता है 

         v) भूगर्भ या पृथ्वी के आंतरिक भाग में जहां पृथ्वी तरल रूप में है वहां लगातार रासायनिक  प्रक्रिया के फल स्वरुप गैसों का निर्माण होता रहता है, और जब इन गैसों की मात्रा अधिक बढ़ जाती है तो वह ज्वालामुखी  के रूप में दिखाई देती है |

Jwalamukhi ke prakar :–

सर्वमान्य रूप से ज्वालामुखी के तीन प्रकार होते हैं |

      i) जागृत Jwalamukhi (Active Volcanoes) 

     ii) प्रसुप्त Jwalamukhi (Dormant Volcanoes)

     iii) शांत या मृत Jwalamukhi (Extinct Volcanoes)

i) जागृत Jwalamukhi (Active Volcanoes) 

              उन ज्वालामुखीयों को जागृत ज्वालामुखी कहते हैं जो गैस लावा और धूल पत्थर आदि का उत्सर्जन लगातार कर रहे हैं।

, पृथ्वी की सतह पर सैकड़ों ज्वालामुखी जागृत अवस्था में है जिनमें हवाई दीप के मोनोलोआ इटली का भूमध्य सागर का स्तंभ कहा जाने वाला स्ट्रांबोली प्रमुख है |

ii) प्रसुप्त Jwalamukhi (Dormant Volcanoes)

              ऐसी ज्वालामुखी जो पूर्व में जागृत थे और वर्तमान में शांत हैं, परंतु भविष्य में फिर से कभी भी जागृत अवस्था में आ सकते हैं, ऐसे ज्वालामुखी को प्रसुप्त ज्वालामुखी कहा जाता है।

 यह सबसे खतरनाक ज्वालामुखी होते हैं ,और इनसे व्यापक जन धन की हानि होती है इटली का  कुख्यात ज्वालामुखी विसुवियस  ऐसा ही खूनी वोल्केनो है जिसने इतिहास में कई बार फटकर हजारों लोगों की जान ली है |

iii) शांत या मृत Jwalamukhi (Extinct Volcanoes)

           इस श्रेणी में ऐसे ज्वालामुखी को रखा जा सकता है, जिनका भविष्य में उद्गार या ज्वालामुखी प्रक्रिया की संभावना नाम मात्र की ही है, वैसे तो कोई भी ज्वालामुखी हमेशा के लिए मृत नहीं होता है उसमें विस्फोट की संभावना हमेशा बनी रहती है |

Jwalamukhi से निकलने वाले पदार्थ

       सक्रिय ज्वालामुखी से मुख्यतः तीन प्रकार के पदार्थ धरातल पर फेंके जाते हैं |

         i) गैस और जलवाष्प 

      Jwalamukhiविस्फोट होने पर सबसे पहले जल वाष्प और गैस ज्वालामुखी के मुंह से वायुमंडल और आसमान की ओर धकेले जाते हैं, जो वायुमंडल में कई किलोमीटर की ऊंचाई तक उठ सकते हैं,

इनमें सबसे अधिक मात्रा में जलवाष्प ही होती है, इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसे भी वायुमंडल में फैल जाती है |

          ii) विखंडित पदार्थ

                    निकलने वाले  टुकड़ों में बारीक ज्वालामुखी धूल के कण, छोटे पत्थर के  टुकड़ों से लेकर बड़े-बड़े चट्टानों तक शामिल होते हैं, जो कुछ सेंटीमीटर के टुकड़ों से टनों भारी टुकड़े भी गैस और जलवाष्प द्वारा अत्यधिक वेग से वायुमंडल में उछाल दिए जाते हैं, जो कुछ समय पश्चात वापस धरती पर आ जाते हैं |

           iii) लावा 

                    Jwalamukhi विस्फोट के समय भूगर्भ में स्थित  मैग्मा बाहर निकल कर भूपर्पटी पर फैल जाता है ,कुछ ज्वालामुखीयों में यह अत्यंत दबाव के साथ आसमान की ओर उछाल दिया जाता है।

जबकि कुछ में यह तरल मैग्मा और लावा भूतल के सहारे बहता है ,यह लावा हल्के पीले और लाल रंग का होता है जो गाढे द्रव्य की तरह बहता और ठंडा हो जाता है ।

ज्वालामुखी का वैश्विक फैलाव

            ज्वालामुखीयों का अस्तित्व सारे पृथ्वी पर है पर यह प्रशांत महासागर अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर के तटों पर ज्यादा विस्तृत है,।

प्रशांत परीमेखला जिसे अग्नि वलय ( fire of ring ) के नाम से भी जाना जाता है कि चारों ओर सर्वाधिक सक्रिय Jwalamukhi पाए जाते हैं |

                    पूरे विश्व में ज्ञात ज्वालामुखीयों की संख्या लगभग 495 है जिनमें से 400 प्रशांत महासागर के चारों ओर और शेष 95 अटलांटिक और हिंद महासागर के चारों और फैले हुए हैं |

                      विश्व का एक महाद्वीप ऐसा भी है जहां एक भी ज्वालामुखी नहीं है और वह महाद्वीप ऑस्ट्रेलिया है |

                     इस प्रकार विश्व में ज्वालामुखी के वितरण पर नजर डालने से स्पष्ट हो जाता है यह सभी महाद्वीप के फाल्ट पर पाए जाते हैं, जो 3 स्पष्ट पट्टियों के रूप में देखी जा सकती हैं |

 1)  परी प्रशांत महासागरीय पेटी  ( Circum pacific belt )

                            इस पेटी में विश्व के ज्वालामुखीयो की सर्वाधिक संख्या है पृथ्वी के दो प्रमुख प्लेटों के मिलन स्थल पर स्थिति यह पेटी विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई है जिसे Fire Girdle of the Pacific Ocean कहा  जाता है ।

इस पेटी में पाए जाने वाले ज्वालामुखी पर्वतों के रूप में भूमि स्थल से उभार लिए हुए होते हैं |

 2) मध्य महाद्वीपीय पेेटी  ( Mid-continental belt ) 

                                         मध्य अटलांटिक उभार के पास स्थित आइसलैंड से प्रारंभ होकर यह पेटी भूमध्य सागर अफ्रीका हिमालय और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों तक फैली हुई है, इस पेटी में पाए जाने वाले ज्वालामुखी दरारों से लावा का उत्सर्जन करते हैं |

 3) मध्य अटलांटिक पेटी 

                             यह पेटी मध्य अटलांटिक उभार की श्रृंखला में फैली हुई है, यहां पर दो प्रमुख प्लेटों का मिलन होता है दोनों प्लेटों के घर्षण से दरार और भ्रंश का निर्माण होता है |

                      भारत में ज्वालामुखी 

                        भारत का मुख्य भाग ज्वालामुखी से पूर्णतया मुक्त है किंतु भारत के केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार दीप समूह में दो ज्वालामुखी स्थित है |

             बैरन दीप 

                        यह भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है, जो अंडमान निकोबार दीप समूह के  मध्य अंडमान दीप से पूर्व दिशा में स्थित है |

              नारकोंडम 

                          यह प्रसुप्त ज्वालामुखी अंडमान दीप समूह के उत्तर अंडमान दीप से पूर्व दिशा में स्थित है |

                       भारत की यह दोनों ज्वालामुखी दीप समूह में स्थित है जहां आबादी नगण्य है इस वजह से इनका प्रभाव जन जीवन पर नहीं है |

           ज्वालामुखी के भाग 

          अध्ययन की सुविधा या ज्वालामुखी की कार्यविधि को समझने के लिए इसे निम्न भागों में बांटा जा सकता है |

       1 ज्वालामुखी उभार 

                  भूपर्पटी से कुछ मीटर से लेकर हजारों मीटर की ऊंचाई तक पर्वतों की तरफ उठे उभार को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं इसके अंदर से ही ज्वालामुखी की क्रिया पूरी होती है |

      2  ज्वालामुखी तल 

                     ज्वालामुखी का तल भूगर्भ में उस स्थान पर होता है जहां से लावा ज्वालामुखी के अंदर आता है इसे ही इस स्टेनोस्पीयर कहते हैं |

      3  लावा निकास नलिका 

                       ज्वालामुखी पर्वत के अंदर यह नाली नुमा एक आकृति होती है, जो स्टेनोस्फीयर से लेकर ज्वालामुखी के मुंह ( क्रेटर ) तक विस्तृत होती है जिससे हि लावा गैस इत्यादि ज्वालामुखी से बाहर आता है ।

       4     विवर (क्रेटर )

         ज्वालामुखी का मुंह होता है जो आमतौर पर गोल और गहरा होता है ज्वालामुखी की निकास नली का यहां समाप्त होती है और यहीं से लावा गैस इत्यादि बाहर फेंके जाते हैं ।

ज्वालामुखी का मुंह या विवर कुछ मीटर से लेकर कई किलोमीटर के घेरे या व्यास में हो सकता है साथ ही उनकी गहराई की बात करें तो वह कुछ मीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक गहरा हो सकता है ।

               आमतौर पर ज्वालामुखी की आकृति ऐसी ही होती है परंतु विश्व में पाए जाने वाले कई ज्वालामुखी पर्वत के रूप में उभरे नहीं होते हैं, और उनमें से लावा गैस इत्यादि एक भू छिद्र अथवा दरार से बाहर आती है।

,ऐसे ज्वालामुखीयो का श्रेष्ठतम उदाहरण हवाई दीप के ज्वालामुखी है ।

ज्वालामुखी से हानि 

                           ज्वालामुखी उन प्राकृतिक घटनाओं में से एक है, जिससे व्यापक जन धन की हानि होती है, ज्वालामुखी से  होने वाली कुछ प्रमुख हानियां निम्न है |

           1)  ज्वालामुखी से निकलने वाली गैस और स्मोक से सारा वायुमंडल (वातावरण) जहरीला और प्रदूषित हो जाता है, जो मनुष्य और  जानवरों के लिए घातक होता है ।

           2) ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा आसपास के क्षेत्रों में फैल जाता है, जिससे रिहायशी मकान और पेड़  पौधे नष्ट हो जाते हैं ।

            3) हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि होती है ।

            4) ज्वालामुखी के फटने से जब धूल और राख आसमान में सैकड़ों किलोमीटर की ऊंचाई तक फैल जाते हैं  तब वायु  परिवहन में बाधा उपस्थित होती है ।

             5)  ज्वालामुखी से निकलने वाली गर्म राख और छोटे कंकड़ पत्थर जब वापस पृथ्वी पर गिरते हैं तो फसलों को व्यापक नुकसान पहुंचाते हैं ।

       ज्वालामुखी से लाभ 

                जिन प्राकृतिक दैत्यों से व्यापक विनाश होता है उससे लाभ भी है जो निम्न है ।

  1. ज्वालामुखी से निकलने वाली राख क्षेत्र के जमीन पर फेल कर उसे उपजाऊ बना देती है ।
  2. लावा का फैलाव जिस भूमि पर होता है वह  बहुत उपजाऊ हो जाती है, इसका उदाहरण भारत में महाराष्ट्र मध्य प्रदेश और गुजरात के काली मिट्टी का क्षेत्र है जहां लाखों वर्ष पूर्व  भू दरार से निकला हुआ लावा जमीन पर फैल गया था  
  3.  ज्वालामुखी से निर्मित चट्टानों का उपयोग घरों के निर्माण में होता है ।
  4. कम सक्रिय ज्वालामुखी में से ऊर्जा और विद्युत की प्राप्ति होती है ।

    बचाव

   ज्वालामुखी बहुत ही अस्थिर प्रकृति के होते हैं इन में विस्फोट का सटीक पूर्वानुमान लगाना लगभग असंभव है बचाव के निम्न उपाय हो सकते हैं ।

  1. प्रसुप्त ज्वालामुखी के नजदीक बसाहट नहीं होनी चाहिए ।
  2. ज्वालामुखी में किसी भी प्रकार की हलचल होने पर उससे दूर चले जाना चाहिए ।
  3. विस्फोट होने पर स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करना चाहिए ।
  4. विस्फोट के बाद व्यापक मात्रा में राख डस्ट और जहरीली गैस वातावरण में फैल जाती है अतः अच्छी क्वालिटी के मास्क का प्रयोग करना चाहिए और ज्वालामुखी से दूर जाने का प्रयास करना चाहिए ।

        विश्व की प्रमुख ज्वालामुखी

                माउंट फुजियामा 

                                      क्या कोई ज्वाला मुखी पर्वत किसी देश का पहचान भी बन सकता है तो इसका जवाब है हां, माउंट फुजियामा ज्वालामुखी जापान देश की पहचान बन चुका है |

जापान देश में इसे पवित्र पर्वत की  तरह पूजा जाता है और यह विश्व की सबसे मशहूर ज्वालामुखी में से एक ज्वालामुखी पर्वत है, जापान की होनसू दीप पर स्थित यह ज्वालामुखी जापान का सबसे ऊंचा पर्वत भी है ।

                स्ट्रांबोली 

                                      स्ट्रांबोली ज्वालामुखी इटली में स्थित है, इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ भी कहा जाता है, क्योंकि भूमध्य सागर से आने वाले जहाजों को यह स्पष्ट दिखाई देता है, क्योंकि यह  भूमध्य सागर  के तट पर स्थित है।

 पिछले सैकड़ों वर्ष से यह सक्रिय अवस्था में भी है, समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 926 मीटर है जिससे यह दूर से ही जहाजों को दिखाई दे जाता है ।

                 विसुवियस 

                                    इटली के नेपल्स में स्थित इस ज्वालामुखी को खूनी ज्वालामुखी भी कहा जा सकता है, इतिहास में कई बार हुए विस्फोट की वजह से इसने हजारों लोगों की जान ली है।

हाल ही में हुई पुरातत्व खोजों से पता चला है कि इसवी 78 में हुए विस्फोट के बाद वहां हजारों लोग इस ज्वालामुखी के पायरोक्लास्टिक बहाव में या तो जमीन के अंदर दब गए या जलकर राख में तब्दील हो गए ।

                   कोटोपैक्सी 

                                      इक्वाडोर देश में स्थित यह ज्वालामुखी विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत है जो सक्रिय अवस्था में है, इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 5897 मीटर है यह ज्वालामुखी एंडीज पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत ही स्थित है |

                    मोनो लोआ

                                         संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई दीप में स्थित यह ज्वालामुखी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है ।

इस ज्वालामुखी से लावा एक दरार से निकलकर नदी की तरह बहता हुआ समुद्र में गिरता है, यह ज्वालामुखी सैकड़ों वर्षों से सक्रिय अवस्था में है |

निष्कर्ष 

इस प्रकार हमने देखा कि  ज्वालामुखी पूरे विश्व में फैले हुए हैं , इनके विस्फोट से होने वाली हानि और लाभ ने मनुष्य की सभ्यता को प्रभावित किया है।

प्राचीन समय में कई ज्वालामुखी विस्फोट ऐसे हुए जिनके प्रभाव से लाखों लोगों की मृत्यु हुई किंतु आधुनिक विज्ञान और अनुभव के आधार पर अब मनुष्य ने ज्वालामुखी के विस्फोटों से निपटने का तरीका सीख लिया है।

फिर भी एक बड़ा प्रश्न प्राचीन काल से यह उठाया जाता रहा है। की क्या पृथ्वी का विनाश इन वृहद ज्वालामुखी विस्फोटों के प्रभाव से ही होगा जैसा कि कुछ फिल्मों और लेखकों द्वारा बताया जा रहा है । 

           तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि ऐसा संभव नहीं क्योंकि ,जब ग्रहों का निर्माण हुआ था तब वह पूरी तरह से गर्म अवस्था में थे, फिर धीरे-धीरे यह ग्रह ठंडे हुए और इन पर जीवन संभव हुआ।

इन ग्रहों का ऊपरी भाग तो ठंडा हो गया है किंतु अंदर का कोर हिस्सा अभी भी गर्म और द्रव अवस्था में है, जैसा कि हमें ज्वालामुखी के अध्ययन से ज्ञात होता है।

पृथ्वी जब से अस्तित्व में आई है तब से ज्वालामुखी की प्रक्रिया अनवरत जारी है और जब तक पृथ्वी रहेगी तब तक यह प्रक्रिया जारी रहेगी |

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             FAQ

                 प्रश्न 1 – ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं 

                 उत्तर  – ज्वालामुखी मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जागृत, प्रसुप्त, और शांत 

                  प्रश्न 2-  पृथ्वी पर कितने ज्वालामुखी है

                   उत्तर  – ऐसा अनुमान है कि पृथ्वी पर लगभग 500 ज्वालामुखी है

                   प्रश्न 3 –  भारत की प्रमुख ज्वालामुखी कौन से हैं  

                   उत्तर  – भारत में स्थित प्रमुख ज्वालामुखी हैं बैरन दीप और नारकोंडम

                    प्रश्न 4  –  विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी कौन सा है

                     उत्तर – इक्वाडोर में स्थित कोटोपैक्सी विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत है 

                  प्रश्न 5  –  भारत में कुल कितने ज्वालामुखी हैं

                   उत्तर –  भारत में ज्वालामुखी अंडमान निकोबार दीप समूह में स्थित है और इनकी संख्या दो है पहले बैरन दीप                             और दूसरा नारकोंडम ज्वालामुखी इनमें से बैरन ज्वालामुखी दीप सक्रिय अवस्था में है