Pt. Sundarlal Sharma छत्तीसगढ़ के गांधी

छत्तीसगढ़ में जन्मे भारत माता के सपूतों में से एक प्रमुख नाम Pt. Sundarlal Sharma का भी है। उन्होंने देश समाज और मानवता की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

जिस प्रकार देश की राष्ट्रीय जागरण का अग्रदूत राजा राममोहन राय को माना जाता है उसी प्रकार छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जागरण के प्रणेता Pt. Sundarlal Sharma को माना जाता है ।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी शर्मा जी साहित्यकार चित्रकार मूर्तिकार नाटककार आदि सभी विधाओं में सिद्ध हस्त थे।

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में अछूतोद्धार  के कार्य में वे अग्रणी थे स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध बोलने और लिखने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन वह देश और समाज की उन्नति के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे।

Pt. Sundarlal Sharma जी की ख्याति छत्तीसगढ़ में एक साहित्यकार और शिक्षाविद के रूप में ही नहीं थी वरन एक प्रखर आंदोलनकारी संघर्षशील नेता समाज सुधारक तथा अछुतोद्धारक के रूप में भी वे प्रसिद्ध हुए।

Pt. Sundarlal Sharma का जन्म :–

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक नगरी राजिम के निकट महानदी के तट पर स्थित चंद्रसूर गांव में 21 दिसंबर 1881 को Pt. Sundarlal Sharma  जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

पिता का नाम जयलाल तिवारी और माता का नाम देवमती था। पिता कांकेर रियासत के विधि सलाहकार थे यहीं से उन्हें 18 गांव की मालगुजारी प्राप्त हुई थी परिवार संपन्न था।

  Pt. Sundarlal Sharma जी की शिक्षा :–

प्राथमिक शिक्षा चंद्रसूर गांव में ही हुई । संपन्न परिवार होने के कारण पिता जय लाल तिवारी ने उच्च शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही कर दी थी।

घर से ही उन्होंने अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी, उड़िया आदि भाषाओं का अध्ययन किया प्रारंभ में शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त करने के बाद वे स्वयं ही स्वाध्याय के माध्यम से अपनी उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाया।

Pt. Sundarlal Sharma का परिवार :–

Pt. Sundarlal Sharma  जी का विवाह बुधनी बाई से हुआ था और उनके दो पुत्र थे नीलमणि और विद्याभूषण।

साहित्य में योगदान :–

शर्मा जी एक उच्च कोटि के साहित्यकार लेखक चित्रकार थे उन्होंने विभिन्न विधाओं में लगभग 20 ग्रंथों की रचना की थी।

जिसमें नाटक उपन्यास और काव्य रचनाएं हैं प्रमुख ग्रंथों में प्रहलाद चरित्र करुणा पच्चीसी सतनामी भजन माला छत्तीसगढ़ी दानलीला आदि प्रमुख है।

सन 1960 में उन्होंने राजीम में संस्कृत पाठशाला की स्थापना की और कुछ वर्षों बाद यहां एक वाचनालय भी स्थापित किया गया।

जेल में रहने के दौरान उन्होंने कृष्ण जन्मस्थान नामक हस्तलिखित पत्रिका का भी लेखन और संपादन कार्य किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान :–

छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय जागृति और आंदोलन के प्रमुख अग्रजो में पंडित सुंदरलाल शर्मा जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

1905 में हुए बंग भंग आंदोलन से वे स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में कूद पड़े । 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने और आजीवन उससे जुड़े रहे।

सर्वप्रथम 1907 में सूरत में हुए कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया और छत्तीसगढ़ का नेतृत्व किया इसके उपरांत वे आजीवन कांग्रेस के सभी प्रांतीय सम्मेलनों में भाग लेते रहे।

शर्मा जी स्वदेशी आंदोलन के समर्थक थे इसी भावना से उन्होंने खादी आश्रमों की स्थापना की जिसका संचालन वह अनेक आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भी करते रहे इस कार्य में श्री मेघा वाले ने उनका भरपूर सहयोग किया।

जुलाई 1920 में धमतरी के कंडेल नामक ग्राम में नहर सत्याग्रह आरंभ हुआ अंग्रेजों द्वारा थोपे गए नहर कर के विरोध में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने ही ग्रामीणों का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया।

इस आंदोलन को और तेजी देने के लिए उन्होंने गांधीजी को आमंत्रित किया परंतु गांधी जी के आगमन से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने नहर कर के लिए लगाए गए जुर्माने को पूरी तरह से वापस ले लिया और यह स्थानीय लोगों और पंडित सुंदरलाल शर्मा जी की एक बड़ी जीत थी।

असहयोग आंदोलन में भाग लेने के फलस्वरुप शर्मा जी को आईपीसी की धारा 108 के अंतर्गत मई 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया और 1 साल 8 माह जेल की सजा सुनाई गई और उन्हें रायपुर जेल में बंद कर दिया गया।

यही जेल में उन्होंने हस्तलिखित कृष्ण जन्मस्थान नामक समाचार पत्र का संपादन और लेखन कार्य किया ।

1930 में रुद्री में जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व किया जिसके लिए उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा वे छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन के संचालन हेतु गठित समिति के सदस्य बनाए गए परंतु 20 अप्रैल 1932 को  फिर से गिरफ्तार कर लिए गए।

राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बीच शर्मा जी की बड़ी पहचान और आदर था।

अछूतों धार और सामाजिक उन्नति में योगदान :–

सामाजिक भेदभाव को दूर करने और अछूतोद्धार का कार्य करने में शर्मा जी ने छत्तीसगढ़ में एक अग्रणी की भूमिका निभाई थी।

इस कार्य में तो गांधीजी ने भी उन्हें अपना अग्रणी और गुरु माना था।

उन्होंने सतनामीयों के कल्याण के लिए संघर्ष किया उन्हें धर्म में दीक्षित कराया और जनेऊ धारण करवाया, जिससे उन्हें संकीर्ण मानसिकता वादियों की आलोचना का भी शिकार होना पड़ा परंतु आलोचनाओं की परवाह किए बिना वे अछूतोद्धार का कार्य करते रहे।

वह मंदिरों में हरिजन के प्रवेश का समर्थन करते थे अपने नैतिक समर्थन के बल पर उन्होंने राजिम के मंदिर में हरिजन प्रवेश को उस युग में संभव कर दिखाया।

इस प्रकार उन्होंने राज्य और राष्ट्र की सामाजिक नैतिक उन्नति में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया

मृत्यु :–

लगातार मेहनत करते रहने के कारण वे शारीरिक रूप से कमजोर होते चले गए और मात्र 59 वर्ष की आयु में 28 दिसंबर 1940 को उनका निधन हो गया ।

इस प्रकार छत्तीसगढ़ के गांधी कहें, या राजा राममोहन राय कहें, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहे, या सामाजिक सुधारों के पुरोधा कहें, अपनी सभी भूमिकाओं में उन्होंने देश और समाज को अपना ऋणी बना लिया था।

उनकी मृत्यु से राज्य, समाज और देश को अपूरणीय क्षति हुई।

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