भारतीय दर्शन पद्धति में Yog darshan का विशिष्ट महत्व है योग दर्शन सांख्य दर्शन की भांति ही द्वैतवादी है, परंतु योग दर्शन में ईश्वर को भी सम्मिलित किया जाता है। सांख्य और योग दर्शन वैचारिक पृष्ठभूमि पर निकटता का संबंध रखते हैं।
Yog darshan kya hai :–
Yog darshan में योग के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति के उपाय बताए गए हैं। योग के उद्देश्य स्वरूप और पद्धति का विवरण मिलता है।
बंधन का कारण अविवेक है, प्रकृति और पुरुष की भिन्नता का ज्ञान न रहना ही बंधन है बंधन का नाश विवेक ज्ञान से ही संभव है।
विवेक ज्ञान का तात्पर्य है पुरुष और प्रकृति के भेद का ज्ञान होना आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाना ही उसकी मुक्ति है।
योग दर्शन आत्मज्ञान अर्थात आत्मा की मुक्ति के लिए योगाभ्यास पर बल देता है योग का अर्थ है चित्तवृत्ति का त्याग मन अहंकार और बुद्धि को चित्त कहा जाता है जो अत्यंत चंचल है अतः इसका निरोध आवश्यक है।
योग दर्शन चित्तभूमि अर्थात मानसिक अवस्था के भिन्न-भिन्न रूपों में विश्वास करता है। क्षिप्त्, मूढ़ , विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध चित्त की पांच अवस्थाएं होती हैं।
इनमें से एकाग्र और निरुद्ध अवस्थाओं को ही योगाभ्यास के योग्य माना गया है। चित्तवृत्ति के निरोध के लिए योग दर्शन 8 चरणों या अष्टांग साधनों की चर्चा करता है यह अष्टांग साधन निम्न है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
ब्रह्मा और अभ्यांतर इंद्रियों के संयम की क्रिया को यम कहा गया है। जिसके 5 प्रकार हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
Yog darshan ki vyakhya :–
योग दर्शन ईश्वर वादी है वह ईश्वर प्राणी धान अर्थात ईश्वर की भक्ति और चित्त वृत्तियों के
निरोध का साधन मानता है। इसलिए योग दर्शन में ईश्वर को ध्यान का सर्वश्रेष्ठ विषय माना गया है।
योग में ईश्वर का व्यावहारिक महत्व है। महर्षि पतंजलि के अनुसार ईश्वर का एक विशेष प्रकार पुरुष है जो दुख कर्म विषय से अछूता रहता है वह स्वभावीक रूप से पूर्ण और अनंत है। वह अनादि अनंत असीमित शक्तिमान सर्वव्यापी और सर्वज्ञ है वह त्रिगुणातित् है वह नित्य मुक्त है।
योग दर्शन एकेश्वरवाद का समर्थक है। इस दर्शन में एक ईश्वर में विश्वास किया जाता है परंतु उसे सृष्टिकर्ता पालनकर्ता और संहार कर्ता नहीं माना गया है बल्कि सृष्टि की रचना तो प्रकृति के विकास के फलस्वरूप हुई है ।
परंतु वह सृष्टि की रचना में सहायक अवश्य रहा है योग दर्शन ईश्वर को दयालु अंतर्यामी वेदों का प्रणेता और धर्म ज्ञान व ऐश्वर्य का स्वामी मानता है। वह योग मार्ग में आई बाधाओं को दूर करता है ॐ ईश्वर का प्रतीक है।
Yog darshan का प्रवर्तन कब और किसने किया :–
शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर को अवधूत परम योगी माना गया है ध्यान और योगिक क्रियाओं के जनक भगवान शंकर ही है।
उनसे ही प्रेरणा लेकर प्राचीन ऋषि-मुनियों ने स्वस्थ जीवन शैली के अनुरूप योग की क्रियाओं को सामान्य दैनिक जीवन में प्रयोग किया ।
सर्वप्रथम महर्षि पतंजलि ने योग की समस्त क्रियाओं और ध्यान मुद्राओं को एक व्यवस्थित रूप प्रदान किया युग का आरंभ काल निर्धारण कठिन है क्योंकि बहुत प्राचीन समय से ही योग के साक्ष्य प्राप्त होते हैं ।
सिंधु घाटी सभ्यता में ऐसी मोहरे प्राप्त हुई है जिन पर योगिक क्रिया को दर्शाया गया है प्राचीन शास्त्र जो हजारों वर्ष प्राचीन है में भी योगिक क्रिया का उल्लेख है इस प्रकार यह दर्शन अत्यंत प्राचीन है
Yog darshan का आधुनिक पक्ष :–
वर्तमान आधुनिक जीवन की आपाधापी में शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए योग और योगिक क्रियाओं का महत्व बढ़ता जा रहा है।
आधुनिक युग में स्वामी विवेकानंद के शिकागो में हुए धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषणों द्वारा योग की ओर सारे विश्व का ध्यान खींचा ।
कई भारतीय योग गुरुओं ने पश्चिमी दुनिया में योग की लोकप्रियता आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचा दी।
योग को वर्ष 2014 में उस समय अंतरराष्ट्रीय पहचान और महत्व प्राप्त हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने पर अपनी सहमति दे दी।
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