भारत में स्थानीय स्वशासन का जन्म अंग्रेजों के दौर में लॉर्ड रिपन के शासनकाल में 1882 हो गया था और समय के साथ स्थानीय स्वशासन का विकास होता गया।
स्थानीय स्वशासन और नगर पालिका का एक महत्वपूर्ण विकास वर्ष 1992 में हुआ जब संविधान के 74 वें संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक अधिकार प्रदान किए गए।
इस अधिनियम में भारतीय संविधान में भाग IX-A जोड़ दिया जिसे शीर्षक दिया गया ‘नगर पालिका’ और इन प्रावधानों का उल्लेख अनुच्छेद 243-P से 243-Z तक है।
इन प्रावधानों के अतिरिक्त संविधान में 12 वीं अनुसूची भी जोड़ी गई इस अनुसूची में नगर पालिकाओं के अट्ठारह कार्यों का उल्लेख है जो अनुच्छेद 243-W से भी संबंधित हैं।
इस प्रकार नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिए जाने से अब यह राज्य सरकार के लिए एक बाध्यता हो गई।
इस अधिनियम का उद्देश्य शहरी स्थानीय शासन को पुनर्स्थापित और सुदृढ़ता प्रदान करना है था ताकि वे स्थानीय शासन की इकाई के रूप में अपना कार्य प्रभावी तरीके से कर सकें।
भारत में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं जैसे पंचायतों नगर पालिकाओं आदि को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद प्रशासनिक और विकास योजनाओं के विकेंद्रीकरण का एक नया दौर प्रारंभ हुआ है, इन संस्थाओं ने स्थानीय स्तर पर विकास को एक नई दिशा और दशा दी है।
यदि हम कहें कि संविधान के 73 वें संविधान संशोधन के बाद स्थानीय स्वशासन में एक क्रांति आ गई है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
नगर निगम की ही तरह नगर पालिकाओं की स्थापना भी राज्यों में राज्य विधान मंडल के अधिनियम तथा संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय अधिनियम द्वारा की जाती है।
नगर पालिकाओं को दूसरे नाम से भी जाना जाता है जैसे नगर परिषद, नगर समिति, म्युनिसिपल बोर्ड, सिटी म्युनिसिपालिटी ।
नगर निगम की तरह नगर पालिका में भी तीन प्राधिकरण होते हैं परिषद, स्थाई समिति और मुख्य कार्यकारी अधिकारी।
परिषद, नगरपालिका के विचार विमर्श और विधायी अभिकरण है। परिषद का प्रधान अध्यक्ष होता है जिसकी सहायता के लिए उपाध्यक्ष होते हैं।
नगर निगम के महापौर से सर्वथा भिन्न नगर पालिका का अध्यक्ष नगर पालिका प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, परिषद की बैठकों की अध्यक्षता करने के अलावा उसे कार्यकारी शक्तियां भी प्राप्त होती है।
नगर पालिका में स्थाई समितियों का गठन परिषद के कार्यों को सरल बनाने के लिए किया जाता है। स्थाई समितियां सार्वजनिक कार्यों, कराधान, स्वास्थ्य, वित्त आदि से जुड़े मामलों का निर्धारण करती है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी या मुख्य नगरपालिका अधिकारी पर नगरपालिका के दिन प्रतिदिन के सामान्य प्रशासन की जिम्मेदारी होती है तथा उसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
नगर पालिका संरचना :–
नगरपालिका के सभी सदस्यों का चुनाव उस नगर पालिका क्षेत्र के अंतर्गत निवासरत लोगों द्वारा प्रत्यक्ष वोटिंग के माध्यम से किया जाता है, इसके लिए प्रत्येक नगर पालिका क्षेत्र को स्थानीय निर्वाचन क्षेत्रों में या वार्डों में बांटा जाता है।
नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव पद्धति का निर्धारण राज्य विधान मंडल द्वारा किया जाता है और विभिन्न राज्यों में यह व्यवस्थाएं अलग-अलग है कहीं इन्हें प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना जाता है तो कुछ राज्यों में अप्रत्यक्ष।
इसके अतिरिक्त नगर पालिका में राज्य सरकार निम्नलिखित लोगों के प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी कर सकती है।
i) नगर पालिका प्रशासन का विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले व्यक्ति किंतु उन्हें नगर पालिका के बैठकों में मत देने का अधिकार नहीं होगा।
ii) लोकसभा और राज्य विधान मंडल के वे सदस्य जो उसे चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिसमें नगर पालिका का पूरा अथवा कुछ भाग सम्मिलित होता हो।
iii) राज्यसभा या राज्य विधान परिषद की वे सदस्य जो नगर पालिका क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत किए गए हैं।
iv) विभिन्न समितियों के अध्यक्ष (वार्ड समितियों को छोड़कर)।
नगर पालिका वार्ड समितियाँ :–
संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नगरपालिका जिनकी आबादी 3 लाख या उससे अधिक हो एक या एक से अधिक वार्ड को सम्मिलित कर वार्ड समिति गठित की जाएगी।
राज्य का विधान मंडल वार्ड समिति का संचालन भौगोलिक क्षेत्र और समिति के स्थानों को भरने के तरीकों से संबंधित प्रावधान निर्धारित कर सकता है।
राज्य का विधान मंडल वार्ड समिति के गठन के अतिरिक्त समितियों के गठन के लिए भी किसी तरह का प्रावधान कर सकता है।
नगर पालिका में आरक्षण :–
इस अधिनियम के अंतर्गत नगरपालिका क्षेत्रों की कुल आबादी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आबादी के अनुपात में नगर पालिका में सीटों को आरक्षित रखने का प्रावधान है।
इसके अतिरिक्त अधिनियम में किसी नगरपालिका क्षेत्र में कुल सीटों की संख्या में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं ।(अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणी की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों सहित रखने का भी प्रावधान है)।
राज्य विधान मंडल नगर पालिकाओं के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षित करने की पद्धति का निर्धारण भी कर सकता है।
राज्य विधानमंडल किसी नगरपालिका में पिछड़े वर्गों की लिए सीटों अथवा नगर पालिकाओं के अध्यक्ष पद के आरक्षण के लिए भी व्यवस्था कर सकता है।
नगर पालिका की अवधि :–
इस अधिनियम में प्रत्येक नगर पालिका का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है किंतु इस समय से पहले अर्थात कार्यकाल पूरा होने से पहले भी भंग किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त नगर पालिका के गठन के लिए नए चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष की अवधि की समाप्ति से पहले या नगर पालिका भंग होने की स्थिति में भंग होने की तिथि से 6 माह की अवधि की समाप्ति से पहले कर लिए जाने का प्रावधान है।
अयोग्यता :–
कोई वह व्यक्ति नगरपालिका का सदस्य चुने जाने के लिए अपात्र होगा जिसे।
i) राज्य विधान मंडल के चुनाव के प्रयोजन से उस समय लागू किसी कानून के अधीन अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
ii) राज्य विधान मंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के अंतर्गत अयोग्य घोषित किया गया हो।
इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति को इस आधार पर आरोग्य नहीं ठहराया जाएगा कि उसने 25 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है लेकिन उसकी उसकी आयु 21 वर्ष से कम ना हो, और योग्यता से संबंधित सभी विवाद राज्य विधान मंडल द्वारा निर्धारित प्राधिकारी को निर्णय हेतु भेजें जाएंगे।
राज्य चुनाव आयोग :–
नगर पालिकाओं के सभी चुनाव के आयोजन तथा मतदाता सूचियां की तैयारी के कार्य की निगरानी निर्देशन तथा उस पर नियंत्रण रखने का अधिकार राज्य चुनाव आयोग को प्राप्त है।
इस प्रकार राज्य चुनाव आयोग नगर पालिकाओं के चुनाव प्रक्रिया का सर्व प्रमुख अभिकरण है।
नगर पालिका के अधिकार और कार्य :–
राज्य विधान मंडल द्वारा नगर पालिका को ऐसी शक्ति और प्राधिकार प्रदान किए जाएंगे जो स्वशासन से जुड़ी संस्थाओं को उनके कार्य निर्धारण के लिए आवश्यक है।
इस के अंतर्गत निम्न अधिकार और कार्य निर्धारित है।
i) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं की तैयारी से संबंधित और
ii) नगर पालिकाओं को सीधे सौपे जाने वाली आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय जिसमें 12वीं अनुसूची में सम्मिलित 18 विषय भी शामिल है से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन की दायित्व देने और उनके क्रियान्वयन की शक्ति प्रदान करने की भी व्यवस्था की जाएगी।
वित्तीय प्रबंध :–
राज्य विधान मंडल नगर निर्गमन के वित्तीय पोषण के लिए निम्न प्रावधान कर सकती है।
नगर पालिकाओं को कर, शुल्क, पथ कर, लगाने उनका संग्रहण और विनियोजन करने की शक्ति और अधिकार दे सकता है।
ii) वह राज्य सरकार द्वारा प्रभावित और संग्रहित करो उनको और पथ करों को नगर पालिकाओं को सोंप सकता है।
iii) राज्य की समेकित निधि से नगर पालिकाओं को सहायता अनुदान की व्यवस्था कर सकता है।
iv) नगर पालिकाओं की समस्त धनराशि को एकत्र करने के लिए कोष का निर्माण कर सकता है।
वित्त आयोग :–
नगर पालिका के वित्तीय आधार के लिए प्रत्येक 5 वर्षों के अंतराल पर वित्त आयोग वित्तीय स्थिति की समीक्षा करेगा और राज्यपाल को निम्नलिखित सिफारिशें भी की जाएंगी।
i) राज्य द्वारा लगाए गए कर शुल्क को पथ करों से हुई शुद्ध आय को राज्य और नगर पालिकाओं के बीच विभाजित करने के सामान्य सिद्धांतों का निर्धारण।
ii) नगर पालिकाओं को सोंपे जाने वाले करो शुल्कों और पथकरों के निर्धारण के लिए लागू होने वाले सामान्य सिद्धांत।
iii) राज्य की समेकित निधि से नगर पालिकाओं को सहायता अनुदान दिए जाने वाले सिद्धांतों का निर्धारण। वित्तीय स्थितियों पर वित्त आयोग निम्न सुझाव की राज्यपाल को देता है।
i) नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने के लिए आवश्यक उपाय।
ii) नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को प्रेषित अन्य कोई विषय।
राज्यपाल आयोग की सिफारिशों को अनुवर्ती कार्रवाई रिपोर्ट के साथ राज्य विधानमंडल में रखेगा।
केंद्रीय वित्त आयोग भी राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर नगर पालिकाओं को संसाधनों की पूर्ति करने की दृष्टि से राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए जरूरी उपाय सुझाएगा ।
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