इस लेख मे —
1) राष्ट्रपति पद का विवरण (परिचय ) |
2) राष्ट्रपति की शक्तियाँ और अधिकार |
3) राष्ट्रपति पद की योग्यताएं |
4) वेतन और भत्ते |
5) राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल |
6) राष्ट्रपति चुनाव का मतदान स्थल |
7) राष्ट्रपति चुनाव के लिए मत मूल्य |
8) राष्ट्रपति चुनाव के लिए गणितीय गढ़नाओ की आवश्यकता क्यों है ?
9) राष्ट्रपति चुनाव के लिए एकल संक्रमणीय मत पद्धति क्या है ?
10) वर्ष 2022 में राष्ट्रपति पद हेतु चुनाव की तारीख क्या है ?
11) राष्ट्रपतियों की सूची और कार्यकाल |
भारत का राष्ट्रपति कौन है ? यह सवाल जितना साधारण है उतना ही बहु आयामी है | संवैधानिक आधार पर देखा जाए तो भारत
का राष्ट्रपति वह व्यक्ति होता है, जिसे संसद और विधानसभा के निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एकल संक्रमणीय मत के आधार पर अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना है |
राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष में होता है, भारतीय इतिहास में एकमात्र राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ही दो कार्यकाल के लिए चुने गए हैं, इसके बाद सारे राष्ट्रपति एक कार्यकाल तक ही अपनी सेवाएं देश को दी है,
राष्ट्रपति के दायित्व और अधिकार संविधान में वर्णित है जिसके ऊपर हम इस लेख में आगे विस्तृत चर्चा करेंगे |
भारत का राष्ट्रपति कौन है इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं जैसे यदि वर्तमान की बात करें तो भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू है| इसके अलावा भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है,साथ ही तीनों सेनाओं का सेनाध्यक्ष और देश का औपचारिक प्रमुख भी होता है |
इसके अतिरिक्त देश की संसदीय व्यवस्था का प्रमुख भी राष्ट्रपति होता है | एकीकृत न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च न्यायाधीश भी राष्ट्रपति ही होता है |
द्रोपदी मुर्मू भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं, साथ ही वे आदिवासी समुदाय से आने वाली प्रथम महिला राष्ट्रपति है |
जो झारखंड जैसे पिछड़े राज्य से आती है | जुलाई 2022 में हुए चुनाव में उन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई और अधिकतम मत प्रतिशत के साथ वे देश की 15वीं राष्ट्रपति चुन ली गई |
इस लेख में हम राष्ट्रपति के शक्तियां अधिकार और दायित्व राष्ट्रपतियों की सूची और उनके कार्यकाल राष्ट्रपति का चुनाव वेतन निर्वाचन मंडल चुनाव का गणित आदि विषय के बारे में जानने का प्रयास करेंगे |
राष्ट्रपति पद की योग्यता —;
संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति होने की योग्य तब होगा जब वह नियम शर्ते पूरी करता हो
i) भारत देश का नागरिक हो |
ii) आयु 35 वर्ष होनी चाहिए |
iii) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो |
iv) किसी भी सरकार के अधीन लाभ के पद पर ना हो |
राष्ट्रपति की शक्तियां और अधिकार –:
औपचारिक प्रमुख होते हुए भी राष्ट्रपति को संविधान ने महती शक्तियां और अधिकार प्रदान किए हैं
राष्ट्रपति की शक्तियां और अधिकार निम्न है |
- कार्यपालिक शक्तियां
- विधायी शक्तियां और कार्य
- वित्तीय शक्तियां
- न्यायिक शक्तियां
- आपातकालीन शक्तियां
- सैनिक शक्तियां
- राजनयिक शक्तियां
1) कार्यपालिक शक्तियां –:
संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों का विवरण है, कार्यपालिक शक्तियों का प्रयोग वह केंद्रीय मंत्रिमंडल के माध्यम से करता है | राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों को निम्न तीन भागों में बांटा जा सकता है |
i) मंत्री परिषद का गठन –:
अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिक शक्तियों का निर्वहन केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है | प्रधानमंत्री की सलाह पर ही अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, साथ ही यदि किसी मंत्री को बर्खास्त किया जाना है तो उसकी सलाह भी प्रधानमंत्री ही राष्ट्रपति को देता है |
यहां इस शक्ति के अंतर्गत राष्ट्रपति को स्वविवेक की शक्तियां भी उस दशा में प्राप्त होती हैं, जब लोकसभा चुनाव के बाद किसी भी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता है, उस दशा में राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री
नियुक्त करता है, जिसके लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने की संभावना होती है |
ii) नियुक्ति संबंधी शक्ति –:
संविधान के अंतर्गत देश की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है जिनमें से प्रमुख है महान्यायवादी, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग के सदस्यों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों , संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयुक्त अन्य निर्वाचन आयुक्त, उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों,
राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्य अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्य राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्य राज्यों के राज्यपालों संघ शासित क्षेत्रों के उपराज्यपाल और प्रशासकों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है ! किंतु यह नियुक्तियां राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है |
iii) आयोगों का गठन –:
राष्ट्रपति को आयोगों को गठित करने की शक्ति संविधान ने प्रदान की है भारत के राज्य क्षेत्र में सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग की दशाओं का अन्वेषण करने के लिए आयोग, राजभाषा पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग, अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर रिपोर्ट देने के लिए तथा राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी क्रियाकलापों पर रिपोर्ट देने के लिए आयोगों का गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है |
2) विधायी शक्तियां और कार्य –:
संविधान में राष्ट्रपति के निम्न विधायी शक्तियां वर्णित है
i) संसदीय शक्ति–:
राष्ट्रपति संसदीय व्यवस्था का अभिन्न भाग है क्योंकि संसद का गठन राष्ट्रपति और लोकसभा तथा राज्यसभा से मिलकर बना होता है, महत्वपूर्ण संसदीय शक्तियां निम्न है |
- संविधान के अनुच्छेद 331 के अनुसार लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के 2 सदस्यों की नियुक्ति उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद 80 (1) के
- तहत वह राज्यसभा के 12 सदस्यों की नियुक्ति करता है जो खेल और कला जगत की नामचीन हस्तियां होती है ।
- यदि संसद के किसी सदस्य की योग्यता से संबंध में, दल बदल के आधार पर अयोग्यता को छोड़कर, प्रश्न उत्पन्न होता है! तो उसका निर्णय राष्ट्रपति करता है, लेकिन राष्ट्रपति ऐसा निर्णय करने से पूर्व निर्वाचन आयोग की राय अवश्य लेता है ।
- राष्ट्रपति संसद सत्र की शुरुआत करता है, साथ ही वह किसी सदन का सत्रावसान कर सकता है, तथा लोकसभा का विघटन भी कर सकता है !लेकिन इन सारी शक्तियों का प्रयोग वह केंद्रीय मंत्री परिषद की सलाह से ही करता है !
- संसद के किसी भी सदन में या संसद के संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण कर सकता है ।
- संसद में लंबित विधेयकों के संबंध में यथाशीघ्र विचारण करने के लिए संसद के दोनों सदनों को संदेश भेज सकता है ।
- संसद द्वारा कोई विधेयक पारित किए जाने पर उसे राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, राष्ट्रपति या तो उस पर अपनी अनुमति देता है या पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेज देता है। दोबारा संसद द्वारा विधेयक को पारित करने के बाद उसे विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है ।
- ii) राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति वाले विधेयक –:
निम्न विधेयकों को संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्यता लेनी होती है ।
- धन विधेयक, जो किसी कर को घटाने या समाप्त करने के प्रावधान वाले विधेयक होते हैं, उन्हें राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के बाद ही संसद में पेश किया जा सकता है ।
- नए राज्य का निर्माण करने या वर्तमान राज्य के क्षेत्र सीमा या नाम परिवर्तन करने वाले विधेयकों में भी राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है ।
- ऐसे विधेयक जो राज्यों के कराधान हित को प्रभावित करते हैं की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है ।
- ऐसे विधेयक जिन को लागू करने से भारत की संचित निधि पर भार बढ़ेगा या जिनका व्यय संचित निधि से होगा ऐसे विधायकों पर भी राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है ।
- भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक ।
- राज्यों के ऐसे विधेयक जो निर्बाध व्यापार की स्वतंत्रता पर रोक लगाते हैं ।
iii) राज्य विधान मंडल द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति की शक्ति –:
राज्यों के विधान मंडल द्वारा बनाए जाने वाले विधायकों पर राष्ट्रपति को निम्न शक्तियां प्राप्त हैं
- राज्य विधान मंडल द्वारा पारित ऐसा विधेयक जिससे उच्च न्यायालय की अधिकारिता प्रभावित होती है, तो ऐसी दशा में राज्यपाल उस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित कर देगा ।
- राज्यों की विधान मंडल द्वारा संपत्ति प्राप्त करने के लिए पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए राज्यपाल द्वारा आरक्षित रखा जाता है ।
- किसी राज्य के भीतर या दूसरे राज्य के साथ व्यापार आदि पर प्रतिबंध लगाने वाले विधायकों को विधानसभा में पेश करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्यता लेनी होती है।
- वित्तीय आपात की दशा में प्रवर्तन की स्थिति में राष्ट्रपति यह निर्देशित कर सकता है कि, सभी धन विधायकों को राज्य विधानसभा में पेश करने से पहले उस पर उसकी स्वीकृति ली जाए ।
- राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी करने का अधिकार है । जिसका प्रभाव उन्हीं विधायकों के बराबर होता है जो संसद द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद पारित माने जाते हैं ।
- इस प्रकार के अध्यादेश उस समय जारी किए जा सकते हैं, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो और राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि वर्तमान परिस्थितियों में अभिलंब अध्यादेश जारी कर के कार्रवाई करना अनिवार्य है ।
राष्ट्रपति द्वारा जारी ऐसे विधेयक 6 माह तक ही प्रभावी होते हैं, उसके बाद संसद द्वारा इसे पारित करना अनिवार्य है अन्यथा यह अध्यादेश प्रभाव शून्य हो जाते है ।
v) नियम बनाने की शक्ति –:
राष्ट्रपति को निम्नलिखित के संबंध में नियम और कानून बनाने की शक्ति है ।
A) राष्ट्रपति के नाम से किए जाने वाले और जारी अध्यादेश, आदेश तथा अन्य लिखित को अभिप्रमाणित करने के व्यवहार के संबंध में ।
B) राज्यसभा के सभापति तथा लोकसभा के अध्यक्ष से परामर्श कर के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को से संबंधित और उनसे परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया और नियम के संबंध में ।
C) संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों को निर्धारित करने वाले नियमों के निर्माण के संबंध में ।
D) संयुक्त लोक सेवा आयोग तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों तथा कर्मचारियों की सेवा शर्तों को निर्धारित करने वाले नियमों के संबंध में ।
vi) राष्ट्रपति की वीटो शक्ति –:
संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को तीन प्रकार की वीटो शक्ति प्राप्त है जो निम्नलिखित है
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पूर्ण वीटो –:
- जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति नहीं देता तो इसे पूर्ण वीटो कहा जाता है। राष्ट्रपति इस वीटो की शक्ति का प्रयोग गैर सरकारी विधेयक पर अनुमति नहीं प्रदान करने के लिए कर सकता है, साथ ही ऐसी सरकार द्वारा पारित विधेयक जो अनुमति के पूर्व ही सत्ता से विमुख हो गई हो और नई सरकार विधेयक पर अनुमति न देने की सलाह राष्ट्रपति को दें, ऐसे मामलों में राष्ट्रपति द्वारा इस पूर्ण वीटो का प्रयोग किया जाता है ।
-
निलंबन कारी वीटो –:
- जब राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक को पुनर्विचार हेतु वापस संसद को भेजता है तो ऐसी दशा में इसे निलंबनकारी वीटो कहा जाता है ।
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जेबी वीटो–:
- इसे पॉकेट वीटो भी कहते हैं जब राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को न तो अनुमति देता है और ना ही पुनर्विचार के लिए वापस संसद को भेजता है, तब ऐसी दशा में इसे जेबी या पॉकेट वीटो के नाम से पुकारा जाता है । इस वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 1986 में संसद द्वारा पारित भारतीय डाक संशोधन अधिनियम के संदर्भ में किया है ।
-
3) वित्तीय शक्तियां –
- :राष्ट्रपति को संविधान प्रबंध की शक्तियां प्रदान की है धन विधेयक तथा वित्त विधेयक को लोकसभा में पेश करने से पहले राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक है इसके अतिरिक्त जिस विधेयक को लागू करने पर
- भारत की संचित निधि से वह करना पड़े उस विधेयकको संसद द्वारा तभी पारित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति उस विधेयक पर विचार विमर्श करने की सिफारिश संसद को करें इसके अतिरिक्त कराधान में राज्य
- का हित संबंध है उस कराधान से संबंधित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति से ही लोकसभा में पेश किया जा सकता है प्रत्येक वर्ष वित्त मंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय विवरण लोकसभा में पेश करता है
- तथा प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात वित्त आयोग का गठन भी राष्ट्रपति द्वारा ही किया जाता है |
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4) न्यायिक शक्तियां –:
संविधान में राष्ट्रपति को मुख्यता 3 न्यायिक शक्तियां प्रदान की गई है जो निम्न है
- I) न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति –: संविधान के अनुच्छेद 124 के अनुसार राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयके न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति है उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करने के लिए राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करता है जिन से परामर्श करना वह आवश्यक समझ समझे मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के पूर्व मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करेगा ऐसा प्रावधान संविधान में किया गया है, लेकिन संविधान में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान नहीं किया गया है कि, राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के लिए बाध्य होंगे या नहीं 1993 में अपने एक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है की
- (A) उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ एवं न्यायाधीश को ही देश का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए
- (B) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय मानने के लिए बाध्य होगा राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण कर सकता है
- II) क्षमादान की शक्ति
- अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति को क्षमा तथा कुछ मामलों में दंड को निलंबित करने लघु करण करने या पूरी तरह से परिहार की शक्ति प्राप्त है राष्ट्रपति को निम्न मामलों में यह शक्तियां प्राप्त है |
- सेना न्यायालयों द्वारा दंडित किए गए मामलों में |
- मृत्यु दंड के सभी मामलों में |
- इन सभी मामलों में जिनमें दंड या दंड आदेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए दिया गया है जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का अधिकार है
राष्ट्रपति अपनी इन शक्तियों का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह से ही करता है और राष्ट्रपति द्वारा यदि इस शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो उसका न्यायिक पुनरावलोकन न्यायालय द्वारा किया जा सकता है |
III) उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार
- संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार जब राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है जो ऐसी प्रकृति का और व्यापक लोक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना महत्वपूर्ण है तब वह उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय की राय मांग सकता है |
-
5) आपातकालीन शक्तियां –:
- राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन आपातकालीन शक्तियां प्राप्त है |
- राष्ट्रीय आपात की घोषणा (अनुच्छेद 352 ) |
- राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर राष्ट्रपति शासन की घोषणा (अनुच्छेद 356) |
- वित्तीय आपात की घोषणा (अनुच्छेद 360) |
उपरोक्त आपातकालीन शक्तियों में वित्तीय आपात की घोषणा अब तक किसी भी राष्ट्रपति के कार्यकाल में नहीं की गई है |
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6) सैनिक शक्ति –:
- राष्ट्रपति रक्षा बलों का प्रमुख सेनानायक और प्रधान होता है,राष्ट्रपति रक्षा बलों को आदेशित और निर्देशित उस विधि के अनुसार करता है जो संसद द्वारा बनाए जाते हैं इसके अलावा वह रक्षा बलों के प्रमुखों की भी नियुक्ति करता है |
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7) राजनीतिक शक्तियां –:
- अन्य देशों के साथ प्रत्येक संवाद राष्ट्रपति के नाम से ही किया जाता है अंतरराष्ट्रीय मामलों में राष्ट्रपति भारत का प्रतिनिधित्व करता है अन्य देशों को भेजे जाने वाले राजदूत तथा उच्च चाहिए राष्ट्रपति द्वारा ही नियुक्त होते हैं साथ ही अन्य देशों से भारत में नियुक्त किए जाने वाले राजदूतों और ऊंचाइयों का स्वागत भी राष्ट्रपति द्वारा ही किया जाता है जब अन्य देशों के राजदूत या उच्चायुक्त भारत में युक्त होकर आते हैं तो वह अपना प्रत्यय पत्र ( Credential letter ) राष्ट्रपति के समक्ष पेश करते हैं समस्त अंतर्राष्ट्रीय करा और संध्या राष्ट्रपति के नाम से ही संपन्न की जाती है लेकिन सभी शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है |
-
8) राष्ट्रपति का विशेषाधिकार –:
- संविधान द्वारा राष्ट्रपति को यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वह अपने पद के किसी कर्तव्य के निर्वहन तथा शक्तियों के प्रयोग में किए जाने वाले किसी कार्य के लिए न्यायालय के प्रति उत्तरदाई नहीं होगा
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9) राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति –:
- संविधान की भावना तथा संविधान सभा में इसके सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई विचारों के अनुसार राष्ट्रपति राष्ट्र का केवल औपचारिक प्रधान मात्र है, लेकिन मूल संविधान के अनुच्छेद 741 में यह प्रावधान किया गया था कि, राष्ट्रपति को अपनी कृतियों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होगा |इसका यह अर्थ होता है कि, राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है और वह अपने विवेक से भी संविधान के प्रावधानों के अनुसार अपने कार्यों का निर्वहन कर सकता है |
- इसी प्रावधान के कारण प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बीच में कई मुद्दों पर मतभेद और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई थी, मूल संवैधानिक स्थिति को संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा ,और इस प्रकार राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य कर दिया गया किंतु इस दशा में भी संविधान के 44 वें संविधान संशोधन द्वारा व्यवस्था की गई कि, यदि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद कोई सलाह देता है तो वह मंत्रिपरिषद को दी गई सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है | इस प्रकार मंत्री परिषद द्वारा पुनर्विचार के बाद भी दी गई सलाह पर राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य होगा |
-
राष्ट्रपति का वेतन और भत्ते :–
राष्ट्रपति को वेतन के रूप में प्रतिमाह 5 लाख रुपए मिलते हैं, और यह सारी राशि कर मुक्त होती है| इसके अतिरिक्त आजीवन फ्री मेडिकल ,आवास की सुविधा भी उसे मिलती है | देश और विदेश की यात्राएं मुफ्त होती है , इसके अतिरिक्त कार्यालय के
कर्मचारियों के लिए अलग से भत्ता भी मिलता है रिटायर होने के बाद भी राष्ट्रपति को सामान्य जीवन निर्वाह के लिए कई सुविधाएं प्राप्त हैं जिनमें डेढ़ लाख रुपए पेंशन फ्री आवास फ्री मेडिकल और अन्य सुविधाएं |
जानिए उपराष्ट्रपति पद की योग्यता, निर्वाचक मंडल, पद अवधि, शपथ, वेतन भत्ते, कार्य और शक्तियां, चुनाव और अब तक हुए उपराष्ट्रपतियों के बारे में |
राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल —:
संविधान के अनुच्छेद 54 के अंतर्गत संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल होते हैं ;इस प्रकार राष्ट्रपति के अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में संसद के दोनों सदनों के सदस्य और राज्य
विधान सभा के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं |
राष्ट्रपति पद के लिए मतदान स्थल —:
राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए सांसदों के लिए संसद भवन दिल्ली में मतदान स्थल निश्चित किया गया है वहीं राज्यों में राज्य की राजधानी में विधान सभा के सदस्यों के लिए चुनाव स्थल निर्धारित किया गया है , हालांकि सांसद अपने राज्य की राजधानी में भी मतदान कर सकता है लेकिन उसे इसकी पूर्व सूचना देनी पड़ती है !
राष्ट्रपति चुनाव के लिए मत मूल्य —–:
जैसा कि हमें ज्ञात है कि राष्ट्रपति के मतदान में राज्य विधानसभा और सांसद के चुने हुए प्रतिनिधि ही भाग लेते हैं और उनका मत मूल्य गणितीय गणना के आधार पर निर्धारित किया जाता है तो पहले देखते हैं विधानसभा के विधायकों का मत मूल्य किस प्रकार से निर्धारित होता है
राज्य की कुल जनसंख्या
विधायक का मत मूल्य = ———————————————-
राज्य के कुल विधायकों की संख्या x1000
इसे कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं जैसे यदि छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें तो यहां की कुल जनसंख्या 1971 की जनगणना के अनुसार 11637494 थी
और कुल विधानसभा सदस्यों की संख्या 90 है तो यहां के विधायकों का कुल मत मूल्य होगा
11637494
कुल मत मूल्य = —————————– = 11610 छत्तीसगढ़ की विधानसभा का कुल मत मूल्य
90 x 1000
इसी प्रकार से उत्तर प्रदेश की विधानसभा के विधायकों के मत मूल्य की गणना करने पर निम्न मत मूल्य प्राप्त होगा
83849905
कुल मत मूल्य = —————————- = 83824 उत्तर प्रदेश की विधानसभा का कुल मत मूल्य
403 x 1000
इसी प्रकार सारे राज्यों की विधानसभाओं के मत मूल्य की गणना कर उन्हें जोड़ा जाता है और इन्हीं के आधार पर सांसदों के मत मूल्य का निर्धारण होता है
यदि देश की सभी विधानसभाओं के मत मूल्य को जोड़ा जाए तो वह 5,49,474 होगा
अब देखते हैं सांसदों के मत मूल्य किस प्रकार निर्धारित होते हैं
कुल सांसदों जिनमें लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित हैं उनकी संख्या लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 233 है सम्मिलित रूप से यह संख्या 776 होती है
एक सांसद की मत मूल्य को निर्धारित करने वाला फार्मूला
राज्य की विधानसभाओं की कुल मत मूल्य (5,49,474 )
______________________________________________= 708.85
कुल निर्वाचित सांसदों की संख्या (776 )
प्राप्त संख्या 708 को सांसदों की कुल संख्या से गुणा करके संसद सदस्यों के कुल मत मूल्य की गणना संपन्न होती है
सांसदों का कुल मत मूल्य = 708 x 776 = 5,49,408
इस प्रकार उपयुक्त गणना के आधार पर हम पाते हैं कि राज्य विधानसभाओं के कुल मत मूल्य सांसदों के कुल मत मूल्य के लगभग बराबर ही हैं ,इस प्रकार यदि हम कुल मत मूल्य की गणना करें तो वह इस प्रकार हो सकता है
विधानसभाओं की कुल मत संख्या + संसद की कुल मत संख्या = देश का संपूर्ण मत मूल्य
5,49,474 + 5,49,408 = 10,98,882
उपर्युक्त गणना के आधार पर राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न होता है लेकिन इस बार के चुनाव में मत मूल्यों में कुछ कमी आने की संभावना है क्योंकि लोकसभा की 3 सीटें और राज्यसभा की 16 सीटें खाली पड़ी है और जम्मू कश्मीर की विधानसभा को भी भग कर दिया गया है
इस बार सांसदों का कुल मत मूल्य 708 से घटकर 700 रहने की संभावना है !
ऐसी आशा है कि इस बार के चुनाव में देश भर से 4120 विधायक इस चुनाव में भाग लेंगे और कुल मतों या संपूर्ण मतों की संख्या 10,92,640 रहने की उम्मीद है और इस संपूर्ण मत का 50 प्रतिशत प्राप्त करने वाला प्रत्याशी विजेता होगा और भारत का नया राष्ट्रपति कहलाएगा !
राष्ट्रपति चुनाव के लिए गणितीय गढ़नाओ की आवश्यकता क्यों है —:
एक बड़ा सवाल यह है कि राज्य के विधानसभाओं और सांसदों के मत मूल्यों के लिए इस तरह की गणितीय गढ़नाओ की आवश्यकता क्यों है साथ ही अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं के लिए मत मूल्यों में अंतर क्यों है !
तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि राज्यों की जनसंख्या में व्यापक, समानता है जहां 1971 की जनगणना के अनुसार सिक्किम की जनसंख्या 209841 विधानसभा का मत मूल्य 224 है ,वही उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 83,849,905 है और मत मूल्य 83,824 है स्वाभाविक है कि इस तरह से सारे राज्यों को समान प्रतिनिधित्व देने के लिए गणितीय गढ़नाओं की आवश्यकता पड़ती है !
संविधान के अनुच्छेद 55 के खंड 1 और 2 में सारे राज्यों को समान और एक रूप प्रतिनिधित्व देने का सिद्धांत निर्धारित किया गया है इसीलिए गणितीय गणना के आधार पर सारे राज्यों और संसद सदस्यों के मत मूल्य की गणना करके समान प्रतिनिधित्व दिया जाता है !
एकल संक्रमणीय मत पद्धति —-:
राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा गुप्त मतदान रीति से होता है |अर्थात सभी मतदाताओं को मतपत्र पर अपनी प्राथमिकता अनुसार उम्मीदवारों का 1,2 और 3 के अनुसार क्रम में चयन करना होता है | अर्थात मतदाताओं को अपनी पसंद का पहला दूसरा और तीसरा प्रत्याशी चुनना होता है, जीतने के लिए प्रत्याशी को कुल वैध मतों का 50% प्राप्त करना अनिवार्य है, इसलिए मतदान की गणना कई चरणों में होती है पहले प्रथम चक्र में पहली पसंद के आधार पर गढ़ना होती है यदि किसी भी उम्मीदवार को 50% का कोटा प्राप्त नहीं हो तो, फिर से द्वितीय चरण और फिर तृतीय चरण की मतगणना की जाती है इन चरणों में जिस उम्मीदवार को सबसे कम मत प्राप्त होते हैं उसके मत दूसरे उम्मीदवार को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं और इस प्रकार से यह गणना न्यूनतम 50% कोटा प्राप्त करने तक जारी रहती है |
राष्ट्रपति पद हेतु चुनाव की तारीखें —-:
इस बार के राष्ट्रपति पद चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी है ,और नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 29 जून निर्धारित है अब तक लगभग 11 लोगों ने नामांकन दाखिल किया है लेकिन, इसमें दो प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार अब तक सम्मिलित नहीं है, ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 20 जुलाई तक संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी ,24 जुलाई को निवर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जाएगा |भारत के 9 वे राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी जो कि एक मात्र निर्विरोध निर्वाचित राष्ट्रपति हैं के समय से ही यह परंपरा चली आ रही है कि नए राष्ट्रपति 25 जुलाई को शपथ ग्रहण करते हैं |
राष्ट्रपतियों की सूची और उनके कार्यकाल –:
S.N. |
PRESIDENT |
TENURE |
TENURE TIME |
1 |
डॉ राजेंद्र प्रसाद |
26 JANUARY 1950 TO 13 MAY 1962 |
2 TIME |
2 |
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
13 MAY 1962 TO 13 MAY 1967 |
1 TIME |
3 |
डॉ जाकिर हुसैन |
15 MAY 1967 TO 3 MAY 1969 |
कार्यकाल के दौरान मृत्यु |
4 |
वी वी गिरी |
3 MAY 1969 TO 20 JULY 1969 |
कार्यवाहक राष्ट्रपति |
5 |
न्यायमूर्ति एन हिदायतुल्ला |
20 JULY 1969 TO 24 AUGUST 1969 |
कार्यवाहक राष्ट्रपति |
6 |
वी वी गिरी |
24 AUGUST 1969 TO 24 AUGUST 1974 |
1 TIME |
7 |
फखरुद्दीन अली अहमद |
24 AUGUST 1974 TO 11 FEBRUARY 1977 |
कार्यकाल के दौरान मृत्यु |
8 |
बी डी जत्ती |
11 FEBRUARY 1977 TO 25 JULY 1977 |
कार्यवाहक राष्ट्रपति |
9 |
नीलम संजीव रेड्डी |
25 JULY 1977 TO 25 JULY 1982 |
एकमात्र निर्विरोध निर्वाचित राष्ट्रपति |
10 |
ज्ञानी जैल सिंह |
25 JULY 1982 TO 25 JULY 1987 |
1 TIME |
11 |
एम. हिदायतुल्ला |
6 OCTOBER 1982 TO 31 OCTOBER 1982 |
राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति |
12 |
रामास्वामी वेंकटरमण |
25 JULY 1987 TO 25 JULY 1992 |
1 TIME |
13 |
डॉ शंकर दयाल शर्मा |
25 JULY 1992 TO 25 JULY 1997 |
1 TIME |
14 |
के. आर. नारायणन |
25 JULY 1997 TO 25 JULY 2002 |
1 TIME |
15 |
डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम |
25 JULY 2002 TO 25 JULY 2007 |
1 TIME |
16 |
श्रीमती प्रतिभा सिंह पाटिल |
25 JULY 2007 TO 25 JULY 2012 |
1 TIME |
17 |
प्रणब मुखर्जी |
25 JULY 2012 TO 25 JULY 2017 |
1 TIME |
18 |
रामनाथ कोविंद |
25 JULY 2017 TO 25 JULY 2022 |
1 TIME |
19 |
द्रौपदी मुरमू |
25 JULY 2022 से निरंतर |
वर्तमान राष्ट्रपति |
निष्कर्ष –:
इस तरह हमने देखा की राष्ट्रपति का पद भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण पद है चाहे नीति निर्माण की प्रक्रिया हो या प्रशासनिक व्यवस्था का एक ओर जहां राष्ट्रपति नीति निर्माण की प्रक्रिया मे महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है वहीं वह कार्यपालिका का भी प्रमुख है | सेना के सर्वोच्च कमांडर के रूप मे सेना का मार्गदर्शक होता है देश की एकीकृत न्याय व्यवस्था का प्रमुख भी है देश का प्रथम नागरिक और देश का प्रतिनिधि भी राष्ट्रपति ही है |
इन सारे महत्वपूर्ण दायित्व के होते हुए भी, राष्ट्रपति पद की आलोचना यह कह कर की जाती है की, यह पद केंद्रीय सरकार के रबर स्टांप से ज्यादा और कुछ नहीं है और यह आलोचना कुछ हद तक सही भी है, किन्तु हमे यह भी ध्यान रखना होगा की लोकतान्त्रिक देशों मे लोक के प्रति मंत्रिपरिषद जबाब देह होती है, इसलिए सविधान मे प्रशासनिक निर्णय का अधिकार मंत्रिपरिषद को दिया गया है | कुछ नाजुक मामलो मे राष्ट्रपति की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है जैसे आम चुनाव का बाद त्रिशंकु लोकसभा की दशा मे | संसद द्वारा पारित विधेयकों पर वीटो का प्रयोग,आपात काल की घोषणा आदि |
जानिए, राज्यपाल के पद को क्यों समाप्त कर देना चाहिए
14 thoughts on “भारत का राष्ट्रपति कौन है, क्या हैं राष्ट्रपति के वीटो पावर ?”