मौलिक अधिकार किसे कहते हैं –:
भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण भाग 3 अनुच्छेद 12 से 30 तक और फिर 32 से 35 तक (कुल 23 अनुच्छेद) में व्यक्तियों और नागरिकों के मूल अधिकारों का व्यापक वर्णन किया गया है ऐसा विशद वर्णन विश्व के किसी भी अन्य संविधान में नहीं है।
मूल अधिकारों को उन अधिकारों के रूप में परिभाषित और रेखांकित किया जा सकता है जो व्यक्ति को व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है यह अधिकार व्यक्ति की नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है और यह अधिकार राष्ट्र की मौलिक विधि अर्थात संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं और इन अधिकारों को सामान्य विधि से संशोधित नहीं किया जा सकता है
मौलिक अधिकार में परिवर्तन के लिए संविधान में संशोधन करना होता है और देश का कानून मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है इन अधिकारों का संरक्षक न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट) है।
मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है –:
i) भारतीय संविधान में शामिल किए गए मूल अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से प्रेरित माना जाता है।
ii) वैश्विक स्तर पर इसका सबसे पहला विकास ब्रिटेन के अलिखित संविधान में देखने को मिलता है जब 1215 में ब्रिटिश सम्राट जान ब्रिटिश जनता ने प्राचीन स्वतंत्रता को मान्यता प्रदान करने हेतु मैग्नाकार्टा पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दिया।
iii) संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की ओर दृष्टिपात करें तो मूल संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख नहीं किया गया था 1791 में 10 वें संविधान संशोधन द्वारा अधिकार पत्र ( bill of Right) से इसे जोड़ा गया।
iv) फ्रांस की जनता ने मूल अधिकारों के हनन के कारण 1789 में लुई 16 को फांसी पर चढ़ा दिया था।
v) भारतीय परिपेक्ष में मौलिक अधिकारों की घोषणा के लिए सर्वप्रथम मांग वर्ष 1895 में की गई थी।
vi) 1925 में एनी बेसेंट ने कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल में यह मांग की, कि भारतीयों को भी अंग्रेजों के समान नागरिक और समता का अधिकार प्रदान किया जाए।
vii) वर्ष 1928 में मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में भी मौलिक अधिकारों की मांग की गई।
viii) वर्ष 1931 में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (लंदन) में गांधी जी द्वारा मूल अधिकारों की मांग को दोहराया गया लेकिन 1934 में संयुक्त संसदीय समिति ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया परिणाम स्वरूप 1935 के भारत सरकार अधिनियम में मौलिक अधिकारों को शामिल नहीं किया गया।
ix) 27 फरवरी 1947 को जे बी कृपलानी की अध्यक्षता में मौलिक अधिकारों से संबंधित एक उप समिति गठित की गई सरदार पटेल के साथ कुल 13 लोग इस कमेटी के सदस्य थे इसी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही मौलिक अधिकारों को संविधान में सम्मिलित किया गया है।
मौलिक अधिकार का महत्व –:
संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार का महत्व निम्न वत है।
1) मौलिक अधिकार सरकार की निरंकुशता पर प्रतिबंध लगाता है।
2) मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक वातावरण और परिस्थितियां उत्पन्न करता है।
3) मौलिक अधिकार सामाजिक समानता स्थापित करता है ।
4) मौलिक अधिकार धर्मनिरपेक्ष राज्य की आधारशिला है ।
5) मौलिक अधिकार से कानून का शासन स्थापित होता है ।
6) मौलिक अधिकार लोकतंत्र की आधारशिला है ।
7) मौलिक अधिकार कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करता है ।
8) मौलिक अधिकार अल्पसंख्यको के हितों की रक्षा करता है।
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर –:
S.N. |
मौलिक अधिकार |
मूल कर्तव्य |
1 | मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है |
मूल कर्तव्यों की संख्या वर्तमान में 11 है |
2 |
मौलिक अधिकार मूल संविधान के भाग है | वर्ष 1976 में 42वां संविधान संशोधन द्वारा इसे जोड़ा गया था |
3 | सविधान के भाग -3 मे अनुच्छेद 12 से लेकर 35 में मौलिक अधिकारों का वर्णन है |
संविधान के भाग -4 (क) अनुच्छेद 51( क) में वर्णित है |
4 |
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से प्रेरणा ली गई है | सोवियत यूनियन के संविधान से प्रेरणा ली गई है |
5 |
इसे लागू करने के लिए न्यायालयों को अधिकृत किया गया है |
इसे लागू करने के संबंध में संविधान मौन है |
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