नीति निर्देशक तत्व क्या है –:
मूल संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक (कुल 16 अनुच्छेद) राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। नीति निर्देशक तत्व वह सिद्धांत है जो, कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका को ऊंचे नागरिक आदर्श प्राप्त करने का निर्देश देता है।
वास्तविक रूप से संविधान की प्रस्तावना में जिन आदर्शों एवं उद्देश्यों को स्थान दिया गया है उन्हें व्यवहार में मूर्त रूप देने के उद्देश्य से इन तत्वों को संविधान में सम्मिलित किया गया है। इन तत्वों में संविधान तथा सामाजिक न्याय के दर्शन का वास्तविक तत्व निहित है।
निदेशक तत्वों को न्यायालय द्वारा प्रवर्तित (लागू) किया जा सकता है, अथवा नहीं, इसके विषय में अनुच्छेद 37 में स्पष्ट किया गया है कि, यह तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं किए जाएंगे।
लेकिन यह देश के शासन में मूलभूत आधार होंगे तथा विधि निर्माण करते समय कार्यपालिका और विधायिका इन तत्वों से प्रेरणा लेंगे और उन्हें विधि (कानून) का आधार बनाएंगे।
भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों का स्रोत/किस देश से लिया गया –:
i) भारतीय संविधान निर्माताओं ने आयरलैंड के संविधान से प्रेरणा लेकर नीति निर्देशक तत्वों को हमारे संविधान के लिए अपनाया था। ऐतिहासिक रूप से मूल अधिकार और नीति निर्देशक तत्व का प्रथम उल्लेख 1928 में नेहरू प्रतिवेदन एक साथ ही हुआ था।
ii) 1945 के सप्रू प्रतिवेदन में मूल अधिकारों को स्पष्ट रूप से दो भागों में बांटा गया था। न्यायालय द्वारा लागू किए जाने वाले अधिकार और दूसरे न्यायालय द्वारा नहीं लागू किए जाने वाले अधिकार।
iii) संवैधानिक सलाहकार सर बी एन राव ने सुझाव दिया कि, व्यक्तियों के अधिकारों को दो भागों में बांटा जाए न्यायालय द्वारा लागू होने वाले और दूसरे न्यायालय द्वारा लागू नहीं होने वाले।
iv) इन अधिकारों का दूसरा भाग अधिकारियों के लिए नैतिक उपदेश के रूप में था इस सुझाव को प्रारूप समिति ने भी स्वीकार किया।
v) इसलिए ही न्यायालय द्वारा प्रवर्तनशील (लागू) मूल अधिकार भाग 3 और नीति निर्देशक तत्व जो अप्रवर्तनशील है संविधान के भाग 4 का हिस्सा है।
नीति निर्देशक तत्वों की व्याख्या –:
i) राज्य के नीति निर्देशक तत्व एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का निर्देश देते हैं, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के अनुसार राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य जनता के कल्याण को प्रोत्साहित करने वाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है।
ii) संवैधानिक विशेषज्ञ डॉक्टर एम बी पायली ने “इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन” में उल्लेखित किया है कि, नीति निर्देशक तत्व प्रजातंत्रात्मक भारत की आधारशिला रखते हैं।
जब भारत सरकार इन्हें पूर्णरूपेण लागू कर पाएगी तब भारत एक सच्चा लोक कल्याणकारी राज्य कहलाएगा।
iii) सर आइवर जेनिंग्स द्वारा “सम करेक्टरेक्ट्रिक्स ऑफ द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन” में लिखा है कि, अधिकांश सिद्धांतों के पीछे फेबियन समाजवाद का दर्शन है जिसमें से समाजवाद निकाल दिया गया है क्योंकि इसमें उत्पादन वितरण एवं विनिमय के साधनों के राष्ट्रीयकरण का अभाव है।
iv) डॉ पायली के अनुसार नीति निर्देशक तत्वों का महत्व इसमें है कि, यह नागरिकों के प्रति राज्य के सकारात्मक दायित्व है।
इस प्रकार उपरोक्त विद्वानों के विचारों का अध्ययन करके हम कह सकते हैं कि, राज्य के नीति निर्देशक तत्व राज्य को ऐसी नीति बनाने के लिए प्रेरित करता है जिससे नागरिकों का अधिकतम कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।
नीति निर्देशक तत्वों के उद्देश्य और प्रकृति –:
A) भारतीय संविधान देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक लोकतंत्र स्थापित करने का प्रयास करता है। नीति निर्देशक तत्व उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य का मार्गदर्शन करते हैं ।
B) नीति निर्देशक तत्व समाजवाद गांधीवाद और व्यक्तिवाद का सृजन करते हैं।
C) नीति निर्देशक तत्व राज्य के लिए एक निर्देश है अतः न्यायालय द्वारा यह लागू कराने के लिए राज्य को बाधित नहीं किया जा सकता है।
D) संविधान के अनुच्छेद 37 इस संबंध में स्पष्ट करता है कि, नीति निर्देशक सिद्धांत न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय (लागू) नहीं किए जा सकते, परंतु यह देश के प्रशासन में नीति निर्माण के समय मार्गदर्शक की भूमिका में होंगे।
E) पनिक्कर के अनुसार नीति निर्देशक तत्व आर्थिक समाजवाद के प्रणेता है। कुछ राजनीतिक विचारक नीति निर्देशक तत्वों को फेवियनवाद का प्रतिनिधि मानते हैं।
F) जी आस्टिन के अनुसार नीति निर्देशक तत्व सामाजिक क्रांति के लक्ष्यों पर केंद्रित है।
G) एम सी सीतलवाड़ के अनुसार नीति निर्देशक तत्व न्यायालयों के लिए प्रकाश स्तंभ जैसे हैं।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व –:
अनुच्छेद (Article) 36
नीति निर्देशक तत्व की परिभाषा।
अनुच्छेद (Article) 37
नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत दिए गए उपबंध किसी न्यायालय द्वारा लागू नहीं होंगे।
अनुच्छेद (Article) 38(1)
राज लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा।
अनुच्छेद (Article) 38(2)
राज्य आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यक्तियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और कार्य करने वाले लोगों के बीच भी प्रतिष्ठा सुविधाओं और अवसर की समानता प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 39
i) राज्य अपनी नीति का निर्धारण करने में निम्न तथ्यों को सुनिश्चित करेगा।
ii)राज्य पुरुष व स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन का प्रबंध करेगा।
iii) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व व नियंत्रण इस प्रकार से विभाजित हो जिसमें सर्वोत्तम सामूहिक हित हो।
iv) उत्पादन के साधनों तथा धन का अहितकारी संकेंद्रण (केन्द्रीयकरण) ना हो ।
v) प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री सभी को समान कार्य के लिए समान वेतन प्राप्त हो।
vi) बालकों को स्वतंत्र और गरिमा में वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर एवं सुविधाएं दी जाएं तथा उनकी नैतिक आर्थिक शोषण से रक्षा की जाए।
अनुच्छेद (Article) 39 (क)
सभी को समान न्याय और निशुल्क विधिक सहायता प्राप्त हो।
अनुच्छेद (Article) 40
ग्राम पंचायतों का गठन होना चाहिए जिससे ग्रामीण स्व शासन मजबूत हो सके।
अनुच्छेद (Article) 41
राज्य काम तथा शिक्षा पाने के तथा बेरोजगारी, बुढ़ापा, बीमारी तथा असक्तता की स्थिति में लोक सहायता देने का प्रबंध करें।
अनुच्छेद (Article) 42
नागरिकों के लिए काम की न्याय संगत और उचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता उपलब्ध कराना।
अनुच्छेद (Article) 43
कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी की व्यवस्था और गांव में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने का प्रयास।
अनुच्छेद (Article) 44
नागरिकों के लिए सामान नागरिक संहिता लागू करना।
अनुच्छेद (Article) 45
राज्य के बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध।
अनुच्छेद (Article) 46
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि।
अनुच्छेद (Article) 47
राज्य के नागरिकों की पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधारने का प्रयास।
अनुच्छेद (Article) 48
राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक ढंग से संगठित करने का प्रयास करेगा और दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाएगा।
अनुच्छेद (Article) 48 (क)
राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवन की रक्षा का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 49
राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण।
अनुच्छेद (Article) 50
राज्य की लोक सेवाओं में कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथक करने के लिए राज्य प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 51
राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का राष्ट्रों के मध्य न्याय संगत और सम्मान पूर्ण संबंधों को बनाए रखने का संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि के प्रति आदर बढ़ाने का और अंतरराष्ट्रीय विवादों को मध्यस्था के द्वारा निपटाने के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।
नीति निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण –:
i) आर्थिक न्याय संबंधी निदेशक तत्व- अनुच्छेद- 38(2), 39, 41 और 43
ii) सामाजिक न्याय संबंधी निदेशक तत्व- अनुच्छेद- 39(क), 42, 44 और 46
iii) राजनितिक तथा पर्यावरण संबंधी निदेशक तत्व- अनुच्छेद- 40, 43(क), 47, 48, 49 और 50
iv) अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा संबंधी निदेशक तत्व- अनुच्छेद- 51
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नीति निर्देशक तत्वों का महत्व –:
नीति निर्देशक तत्वों का निम्नलिखित महत्व है।
1) जन शिक्षा।
2)जनकल्याण।
3)राजनीतिक स्थिरता प्रदान करते हैं।
4)शासन के मूल्यांकन का आधार प्रदान करते हैं।
मूल अधिकार विधि के द्वारा लागू कराए जा सकते हैं क्योंकि वे प्रत्याभूत (गारंटी) अधिकार है, किंतु निदेशक तत्व को इस प्रकार प्रवृत्त (लागू) नहीं कराया जा सकता इस कारण दो परिस्थितियां उत्पन्न होती है।
किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकार नीति निर्देशक तत्वों से असंगत (बेमेल) हो सकते हैं ।जैसे एक कसाई को अपना व्यापार करने के लिए मौलिक अधिकार प्राप्त है जबकि नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 48 में गौवध का प्रतिशेध् (रोक) किया गया है।
किसी नीति निर्देशक तत्व को प्रभावित करने वाला कानून किसी मूल अधिकार का उल्लंघन करता है या उसे कमजोर करता है जैसे न्यूनतम मजदूरी तय करने वाला कानून अनुच्छेद 19(1) छ के अधीन व्यापार के अधिकार का उल्लंघन करता है।
इस प्रकार से मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व के मध्य विरोधियों को समाप्त करने के लिए न्यायालय ने कई निर्णय दिए थे, परंतु अंतिम और संपूर्ण निर्णय मिनेरवा मिल बनाम भारत संघ के मामले में आया।
उपरोक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने सामंजस्य पूर्ण संरचना का सिद्धांत दिया जो यह कहता है कि नीति निर्देशक तत्व और मौलिक अधिकार एक दूसरे के पूरक हैं।
अनुच्छेद 350(A), 351 और 335 को भी नीति निर्देशक तत्वों की संज्ञा दी गई है जबकि यह सभी अनुच्छेद संविधान के भाग 4 में उल्लिखित नहीं है।
मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में सम्बन्ध की व्याख्या –:
मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में अनेक समानता है इन दोनों के प्रमुख संबंध निम्न है।
1) इन दोनों का उल्लेख संविधान में क्रमशः भाग 3 और 4 में किया गया है।
2) ऐतिहासिक रूप से मूल अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों का प्रथम उल्लेख एक साथ ही 1928 में नेहरू प्रतिवेदन में हुआ था।
3) इन दोनों से ही राज्य के नागरिकों और व्यक्तियों के अधिकारों में अभिवृद्धि होती है।
4) दोनों की ही संविधान में व्यापक व्याख्या की गई है।
5) कई विवादों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ के मामले में यह निर्णय दिया था कि नीति निर्देशक तत्व और मौलिक अधिकार एक दूसरे के पूरक है इसे कोर्ट ने सामंजस्य पूर्ण संरचना का सिद्धांत बताया है।
मूल अधिकार व नीति निर्देशक तत्व में अंतर –:
S.N. |
नीति निर्देशक तत्व |
मौलिक अधिकार |
1 |
आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। | इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है |
2 |
इसका वर्णन संविधान के भाग 4 में किया गया है। | इसका वर्णन संविधान के भाग 3 में किया गया है। |
3 | यह समाज की भलाई के लिए है । |
यह व्यक्तियों के अधिकारों के लिए है । |
4 |
इसके पीछे राजनीतिक मान्यता है । | मौलिक अधिकार के पीछे कानूनी मान्यता है । |
5 | इसे लागू कराने के लिए न्यायालय नहीं जाया जा सकता है। |
इसे लागू कराने के लिए न्यायालय जाया जा सकता है |
6 |
यह सरकार के अधिकारों को बढ़ाता है। | यह सरकार के महत्व को घटाता है। |
7 | यह सरकार के द्वारा लागू करने के बाद ही नागरिकों को प्राप्त होती है |
यह अधिकार नागरिकों को स्वतः प्राप्त हो जाता है। |
न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांतों के संबंध में दी गई व्यवस्था
1 ) संविधान के लागू होने के 1 वर्ष के बाद ही मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांतों के मध्य व्यवस्था को लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है की मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों के बीच किसी भी विवाद की स्थिति में मौलिक अधिकारों को प्राथमिकता दी गई है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में दी गई व्यवस्था के अनुसार नीति निर्देशक सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों का सहयोगी होना चाहिए साथी वह मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला नहीं होना चाहिए।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि संवैधानिक संशोधन अधिनियमों को लागू करके संसद द्वारा मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
2 )अगला विवाद गोकलनाथ बनाम पंजाब राज्य वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी की नीति निर्देशक सिद्धांतों के क्रियान्वयन के लिए संसद द्वारा मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है अर्थात मौलिक अधिकार प्राथमिक और प्रमुख है।
3 ) वर्ष 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के विवाद के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 1967 में अपने दिए गए पूर्व व्यवस्था को खारिज करते हुए यह नई व्यवस्था की की संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है लेकिन वह संविधान की मूल संरचना या ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती।
इसी व्यवस्था के अंतर्गत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया जो अनुच्छेद 31 में वर्णित था।
वर्ष 1980 में एक और मामले जिसमें मिनर्वा मिल्स बना भारत संघ के विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था पुनर्स्थापित की की सांसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती।
F.A.Q.
Q 1–नीति निर्देशक तत्व कौन से अनुच्छेद में है ?
Ans–मूल संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक (कुल 16 अनुच्छेद) राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
Q –2 नीति निर्देशक तत्व क्या है लिखिए ?
Ans– नीति निर्देशक तत्व वह सिद्धांत है जो कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका को ऊंचे नागरिक आदर्श प्राप्त करने का निर्देश देता है। वास्तविक रूप से संविधान की प्रस्तावना में जिन आदर्शों एवं उद्देश्यों को स्थान दिया गया है उन्हें व्यवहार में अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से इन तत्वों को संविधान में सम्मिलित किया गया है इन तत्वों में संविधान तथा सामाजिक न्याय के दर्शन का वास्तविक तत्व निहित है।
Q –3 भारत में नीति निर्देशक तत्व कितने हैं ?
Ans –मूल संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक (कुल 16 अनुच्छेद) राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का विस्तार से उल्लेख किया गया है नीति निर्देशक तत्व वह सिद्धांत है जो कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका को ऊंचे नागरिक आदर्श प्राप्त करने का निर्देश देता है।
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